नई दिल्ली/बेंगलुरु। कर्नाटक विधानसभा चुनाव नतीजों की धमक पूरे देश में सुनाई दे रही है। चुनाव परिणाम कांग्रेस के पक्ष में रहा और शनिवार सुबह शुरू हुए मतगणना के शुरुआती रुझान ही अंतत: परिणाम साबित हुए। कांग्रेस ने सुबह से ही सत्तारूढ़ भाजपा पर बढ़त बना ली थी और भाजपा चुनावी मैदान में खेत रही। इस चुनाव परिणाम के कई मायने हैं। कर्नाटक में हार से भाजपा के लिए दक्षिण का दरवाजा बंद हो गया तो कांग्रेस के कंधे पर राष्ट्रीय स्तर पर धर्मनिरपेक्ष, प्रगतिशील और सच्चे अर्थों में भाजपा विरोधी ताकतों को पहचानकर एक मंच पर लाने की जिम्मेदारी है।
कर्नाटक विधानसभा के 224 सीटों में से कांग्रेस को 135, भाजपा को 66, जनता दल (सेकुलर) को 19, कल्याण राज प्रगति पक्ष को 1, सर्वोदय कर्नाटक पक्ष को 1 और दो सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशियों को सफलता मिली है। कांग्रेस को 56 सीटों का फायदा हुआ है जबकि भाजपा को 38 और जेडीएस को 19 सीटों का नुकसान हुआ है। मत प्रतिशत की बात करें तो कांग्रेस को 42.9 प्रतिशत, भाजपा को 36, जेडीएस को 13.3 और अन्य दलों को 5.8 प्रतिशत मत मिले हैं। कर्नाटक में इस बार 73.19 प्रतिशत मतदान हुआ था। कांग्रेस के सीट और मत प्रतिशत दोनों में काफी इजाफा हुआ है। इस तरह से देखा जाए तो कांग्रेस की जीत हर तरह से ऐतिहासिक है।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस जीत को नफरत के बदले मोहब्बत की जीत बताई है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार और वरिष्ठ कांग्रेस नेता शशि थरूर ने इसे संगठन और कार्यकर्ताओं की जीत बताया है। लेकिन कांग्रेस की यह जीत कर्नाटक कांग्रेस की मेहनत, राज्य के नेताओं की एकजुटता के साथ देश और राज्य के समक्ष मौजूद मुद्दों पर स्पष्ट सोच और उसे हल करने के वादे के कराण हुई है। कर्नाटक की जनता ने कांग्रेस को यह संदेश दिया है कि यदि पार्टी जमीन पर मजबूती से लड़े और गुटबाजी से बचे तो उसे कांग्रेस के साथ आने में कोई परहेज नहीं है।
फिलहाल कांग्रेस ने धर्मनिरपेक्षता, संविधान और सामाजिक न्याय के मुद्दे पर जिस ईमानदारी से पहलकदमी ली, उसके सामने भाजपा के हिजाब, हलाल, राष्ट्रवाद और विकास के मुद्दे हवा हो गए। कांग्रेस को अल्पसंख्यकों का एकमुश्त वोट मिला, जिसमें मुसलमान और ईसाई दोनों शामिल हैं। इसी के साथ ही दलित, पिछड़ा और अन्य समुदाय का वोट भी कांग्रेस के पक्ष में आया। भाजपा को गुटबाजी, वरिष्ठ नेताओं का पार्टी छोड़ना और हवा-हवाई मुद्दों को उठाने के कारण शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा।
कर्नाटक कांग्रेस नेताओं की एकजुटता, हाईकमान के प्रति विश्वास और जनता के मुद्दों पर मजबूती से खड़े होने के कारण ही ‘महाबली मोदी’ की कोई कलाबाजी नहीं चली। लेकिन जमीनी स्तर पर इस जीत के समीकरण, कारणों और मुद्दों की पड़ताल की जा रही है।
कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस की सफलता को भारत जोड़ो यात्रा के सकारात्मक परिणाम के रूप में देखा जा रहा है। राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान कर्नाटक में 21 दिनों में 511 किलोमीटर की यात्रा की थी। वह प्रदेश के सात जिलों से गुजरे थे जिसमें विधानसभा की 51 सीटें आती हैं। इन 51 में से 34 सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की है।
अगर क्षेत्रवार तरीके से देखा जाए तो मुंबई कर्नाटक क्षेत्र की 50 सीटों में से 32 सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की है। कांग्रेस को यहां 17 सीटें मिली हैं। कांग्रेस को पिछले चुनाव की तुलना में सिर्फ एक सीट ही ज्यादा मिली है।
कर्नाटक के बेंगलुरु शहर क्षेत्र में कुल 28 सीटें आती हैं, जिनमें से भाजपा ने 15 सीटें जीती हैं, वहीं कांग्रेस ने 13 सीटों पर कब्जा किया है। 2018 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस को यहां 13 सीटें ही मिली थीं। यानी इस क्षेत्र में कांग्रेस का प्रदर्शन पुराना ही रहा।
सेंट्रल कर्नाटक को भाजपा का गढ़ माना जाता रहा है। लेकिन कांग्रेस ने भाजपा के किले को ध्वस्त कर दिया है। यहां की 35 सीटों में से कांग्रेस ने 26 सीटों पर जीत दर्ज की है और भाजपा 6 सीटों पर सिमट गई है। पिछली बार कांग्रेस को यहां 7 सीटें ही मिली थीं। यह पार्टी अध्यक्ष डीके शिवकुमार के सांगठनिक कौशल का प्रमाण है।
ओल्ड मैसूर क्षेत्र की 55 सीटों में से कांग्रेस ने 34 सीट जीत कर भाजपा के सामने कड़ी चुनौती पेश की है। ओल्ड मैसूर रीजन में बीजेपी को जीत का भरोसा था लेकिन ये यहां कांग्रेस से मात खा गई। ओल्ड मैसूर पहले कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था लेकिन पिछले चुनाव में भाजपा ने यहां पर कांग्रेस को पीछे कर दिया था। लेकिन कांग्रेस ने इस बार भाजपा से अपने पुराने किले को छीन लिया है।
कर्नाटक के तटीय क्षेत्र में करीब 21 सीटें आती हैं, जिनमें से बीजेपी ने 13 सीटों पर जीत दर्ज की है, जबकि कांग्रेस ने 8 सीटें जीती हैं। कांग्रेस को यहां पर 5 सीटों का फायदा हुआ है। यही इलाका है जिसे बीजेपी का गढ़ माना जाता है। और उसकी सांप्रदायिक राजनीति की प्राथमिक होने का दर्जा उसे हासिल है।
हैदराबाद कर्नाटक रीजन में भी भाजपा को नुकसान और कांग्रेस को फायदा मिला है। यहां की 31 सीटों में से कांग्रेस को 20 सीटों पर जीत मिली है, वहीं भाजपा 8 सीटों तक सिमट गई। जबकि 2018 में भाजपा को यहां से 15 सीटें और कांग्रेस 21 सीटों पर जीत दर्ज की थी।
भाजपा को इस बार साउथ कर्नाटक, कित्तूर कर्नाटक और वेस्ट कर्नाटक में काफी नुकसान झेलना पड़ा है। कित्तूर क्षेत्र में बेलागवी, धारवाड़, विजयपुरा, हावेरी, गडग, बागलकोट और उत्तर कन्नड़ जैसे जिले आते हैं। जहां भाजपा ने पिछले चुनावों में काफी अच्छा प्रदर्शन किया था। इस क्षेत्र में भाजपा को करीब 15 सीटों का नुकसान हुआ है। कित्तूर में लिंगायतों का काफी दबदबा माना जाता है। इस क्षेत्र में कांग्रेस को सबसे ज्यादा फायदा पहुंचा है।
चुनाव परिणामों को आधार मानते हुए यह कहा जा सकता है कि भाजपा अपने कोर वोट बैंक लिंगायत समुदाय को भी नहीं साध पाई और ना ही दलित, आदिवासी, ओबीसी और वोक्कालिगा समुदाय का ही दिल जीत सकी। वहीं, कांग्रेस मुस्लिमों से लेकर दलित और ओबीसी समुदाय को अपने पक्ष में करते हुए लिंगायत समुदाय के वोटबैंक में भी सेंधमारी करने में सफल रही।
(जनचौक के राजनीतिक संपादक प्रदीप सिंह की रिपोर्ट।)