संविधान सभा ने दिया था संसद के दो-तिहाई बहुमत से चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति का सुझाव 

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मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार आज सेवानिवृत हो रहे हैं। इससे पहले ही सरकार ने नियुक्ति की सिफारिश करने वाली कमेटी में 2-1 के अपने ‘पूर्व नियोजित बहुमत’ के बल पर नये मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में ज्ञानेश कुमार को मुख्य चुनाव आयुक्त बनाने का रास्ता साफ कर दिया। राष्ट्रपति भवन से उनकी नियुक्ति को हरी झंडी भी मिल गयी। ज्ञानेश कुमार अभी तक आयोग में चुनाव आयुक्त के रूप में काम कर रहे थे। उनकी जगह हरियाणा के मुख्य सचिव विवेक जोशी को नया चुनाव आयुक्त बनाया गया है। इस तरह आयोग में दो नयी नियुक्तियां हो गईं। 

मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य आयुक्तों की नियुक्ति के लिए गठित तीन सदस्यीय समिति में देश के प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता सदस्य हैं। समिति के गठन का रास्ता बनाने वाली विधायी प्रक्रिया का विपक्ष ने दिसम्बर, 2023 में विरोध किया था। उसका कहना था कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले की रोशनी में उक्त तीन सदस्यीय समिति में प्रधान मंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता के अलावा तीसरे सदस्य के रूप में देश के मुख्य न्यायाधीश को शामिल किया जाय। सुप्रीम कोर्ट ने मार्च, 2023 के अपने आदेश में कमेटी की संरचना का यही फार्मूला पेश किया था। कोर्ट ने कहा था कि संसद जब तक इसके लिए कानून नहीं बना लेती तब तक तीन सदस्यों की इस संरचना के जरिये नियुक्तियां की जा सकेंगी।

लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी की पुरजोर अपील के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई में नियुक्ति की सिफारिश करने वाली कमेटी ने उक्त कमेटी की संरचना पर पुनर्विचार से इंकार किया कर दिया। यही नहीं, विपक्ष के नेता ने एक सुझाव यह भी दिया कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट 19 फरवरी को पहले से लंबित एडीआर की याचिका पर सुनवाई कर रहा है, इसलिए कमेटी सुप्रीम कोर्ट के कोई संभावित आदेश या सुझाव आने तक अपना फैसला लंबित रखे! लेकिन सरकार ने यह सुझाव भी नहीं माना और अंतत: चुनाव आयोग में दो नियुक्तियों का फैसला कर लिया गया। 

बहरहाल, चुनाव आयोग में दो नयी नियुक्तियां तो हो गईं लेकिन विवादों का अंत नहीं हुआ। आयोग की स्वतंत्रता और निष्पक्षता का मुद्दा जीवित रहेगा। विडम्बना ये है कि संविधान सभा में जब चुनाव आयोग से सम्बद्ध अनुच्छेद (जो बाद में अनुच्छेद 324 हुआ)पर जब लंबी चर्चा चल रही थी तो विख्यात विद्वान प्रोफेसर शिब्बन लाल सक्सेना ने आयोग के सदस्यों की नियुक्ति के प्रस्तावित प्रावधान की आलोचना की थी। डाॅक्टर भीमराव अम्बेडकर और प्रो के टी शाह जैसे विद्वान लोग भी उनकी आलोचना से सहमत थे। लेकिन उनके सुझाव पर संविधान सभा में व्यापक सहमति नहीं बनी। प्रो सक्सेना ने कहा कि सिर्फ सरकार में बैठे लोग ही अगर चुनाव आयोग में नियुक्ति करेंगे तो आयोग स्वतंत्र संस्था की जगह सरकारी संस्था बन जायेगा।

इसलिए बेहतर होगा कि आयोग के निर्णायक कार्यकारियों(आयुक्तों) की नियुक्ति की संपुष्टि संसद करे, तभी उनकी नियुक्तियां फाइनल मानी जायेंगी.. सचमुच प्रो सक्सेना का यह विचार आज बहुत प्रासंगिक है। अगर संसद दो-तिहाई बहुमत से मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य आयुक्तों की नियुक्ति करे तो भारत के निर्वाचन आयोग के लिए अपनी शक्ति, स्वतंत्रता और निष्पक्षता को सुनिश्चित करना आसान हो जायेगा! लेकिन आज तक ऐसा कुछ भी नहीं हो सका। सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित है। वह क्या और कब फैसला करेगा; फिलवक्त इस बारे में कयास लगाने का कोई मतलब नहीं। लेकिन मैं समझता हूं सात दशक पहले प्रो सक्सेना ने संविधान सभा में जो सुझाव दिया था; वह आज निश्चय ही बहुत प्रासंगिक नजर आ रहा है। पर उस पर कौन नजर डालेगा?

देश के नये मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार की नियुक्त  का फैसला बीती रात ही हो चुका है। वह राजीव कुमार की अगुवाई में काम करते रहे हैं। वह भी कुमार की तरह वरिष्ठ आईएएस अधिकारी रहे हैं। सहकारिता मामलों के मंत्रालय में सचिव रहे। मौजूदा सरकार के पसंदीदा अफसर माने जाते हैं। मुख्य निर्वाचन आयुक्त के रूप में उनका कार्यकाल कैसा होगा; इस बारे में आज कुछ भी कहना अनुचित होगा। इस सवाल का जवाब भविष्य देगा। 

ज्ञानेश कुमार

लेकिन राजीव कुमार के कार्यकाल के बारे में कुछ बातें आज ज़रूर कुछ कही जा सकती हैं। 

निश्चय ही, मई, 2022 से अब तक का उनका कार्यकाल विवादों से भरा रहा है। स्वतंत्र भारत के मुख्य चुनाव आयुक्तों/आयुक्तों की सूची पर नजर डालें तो उन्हें अब तक का सर्वाधिक विवादास्पद मुख्य चुनाव आयुक्त माना जा सकता है। हाल के महाराष्ट्र और हरियाणा चुनावों के दौरान आयोग की भूमिका पर विपक्ष ने इतने सारे सवाल उठाए पर श्री कुमार और उनकी टीम ने कोई ठोस जवाब नहीं दिया। श्री कुमार अनेक मौकों पर अपने काम की बड़ाई स्वयं करते रहे हैं। इसके लिए वह कभी-कभी काव्यात्मक या शायराना होने की हास्यास्पद कोशिश भी करते दिखते थे! 

पर सच ये है कि भारतीय समाज और राजनीति में मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में श्री कुमार की तारीफ सिर्फ सत्ता-पक्ष या उसके समर्थकों ने ही की। संपूर्ण विपक्ष ने उनके कामकाज को लेकर असंतोष और निराशा जताई। स्वतंत्र टिप्पणीकारों और अनेक पूर्व चुनाव आयुक्तों ने भी उनके अनेक फैसलों की आलोचना की। देश के असंख्य सेवानिवृत्त गणमान्य नौकरशाहों ने भी उनकी अगुवाई वाले आयोग से निष्पक्ष एंपायर के रूप में काम करने की अपील की। और यह तो मानना ही पड़ेगा कि किसी चुनाव आयुक्त की निष्पक्ष और स्वतंत्र होने की छवि तभी बनती है, जब उसके कामकाज या फैसलों पर सत्ता-पक्ष और विपक्ष में व्यापक सहमति और स्वीकार्यता होती है। निश्चय ही राजीव कुमार के कामकाज और कई फैसलों को लेकर दोनों पक्षों के बीच ऐसी स्वीकार्यता नहीं दिखी। उन्हें ‘न्यूट्रल अंपायर’ के रूप में नहीं देखा गया! 

कांग्रेस की सरकारों के दौरान भी कुछ विवादास्पद मुख्य चुनाव आयुक्त/चुनाव आयुक्त नियुक्त हुए। उनकी भी आलोचना हुई। कुछ साल पहले जब कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार के दौरान नवीन चावला को चुनाव आयुक्त बनाया गया था तब भी नेशनल मीडिया के बड़े हिस्से में उस फैसले की आलोचना हुई थी। लेकिन जितने विवाद राजीव कुमार को लेकर हुए और जितने बड़े पैमाने पर इनके कामकाज की आलोचना हुई, उतनी शायद और किसी भी मुख्य चुनाव आयुक्त की नहीं हुई! 

श्री कुमार या किसी भी चुनाव आयुक्त से मुझे निजी तौर पर किसी तरह का राग-द्वेष नहीं। पर शीर्ष पदों पर काम कर चुके लोगों के काम का समाज और मीडिया अपने-अपने ढंग से मूल्यांकन तो करेगा ही! उदाहरण के तौर पर टी एन शेषन और जे एम लिंग्दोह को समाज और मीडिया में आज भी अपेक्षाकृत बेहतर, निष्पक्ष और स्वतंत्र ढंग से काम करने वाले मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में याद किया जाता है।

श्री शेषन ने छात्र-जीवन के मेरे एक साथी और वरिष्ठ आई ए एस अधिकारी के साथ बुरा बर्ताव किया था। शेषन का कदम न्यायपूर्ण नहीं था। फिर भी मैं मानता हूं कि ऐसी कुछ गलतियों के बावजूद वह बहुत समर्थ, गतिशील और अपेक्षाकृत स्वतंत्र ढंग से काम करने वाले मुख्य चुनाव आयुक्त थे। 

उन्होंने भारतीय चुनाव आयोग की गरिमा और प्रतिष्ठा बढ़ाई। जे एम लिंग्दोह ने उनके काम को आगे बढ़ाया। कुछ गलतियां उनसे भी हुईं पर संपूर्णता में वह भी अपेक्षाकृत निष्पक्ष और स्वतंत्र ढंग से काम करने वाले मुख्य चुनाव आयुक्त थे। पर राजीव कुमार निश्चय ही शेषन या लिंग्दोह की परम्परा के मुख्य चुनाव आयुक्त नहीं माने जा सकते! इतिहास में वह तमाम विवादों और आलोचनाओं के बीच याद किये जायेंगे। श्री कुमार के स्वस्थ और सक्रिय जीवन के लिए हमारी शुभकामना।

देखिये, वह आगे क्या करते हैं! क्या सचमुच वह किसी सुरम्य हिमालयीय क्षेत्र में बसने की योजना पर काम कर रहे हैं, जैसा कुछ समय पहले उन्होंने स्वयं ही मीडिया के सामने इस तरह की जानकारी दी थी। बिन मांगे एक सलाह, सुरम्य वातावरण में रहते हुए वह अगर कविता या शायरी के सृजन में लगना चाहते हैं तो पहले वह कुछ महान कवियों और शायरों को ज़रूर पढ़ें। वैसे तो कविता या शायरी किसी लैब में पैदा होने वाला उत्पाद नहीं है। वह विचार और संवेदना के संश्रय की स्वाभाविक प्रक्रिया में उभरने वाली रचना है। फिर भी रचनाकार को कुछ रियाज तो करना ही पड़ता है! 

(उर्मिलेश वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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