Thursday, March 28, 2024

ट्वीट पर प्रशांत भूषण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अवमानना का मुकदमा

वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में तीसरी बार न्यायालय के अवमानना की कार्रवाई शुरू की गई है। उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को स्वत: संज्ञान लेते हुए अधिवक्ता प्रशांत भूषण और ट्विटर इंडिया के खिलाफ अदालत की अवमानना का मुकदमा दर्ज किया। जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस कृष्ण मुरारी की खंडपीठ के समक्ष यह मामला 22 जुलाई बुधवार को सूचीबद्ध किया गया है। उच्चतम न्यायालय रिकॉर्ड के अनुसार, सू मोटो केस नंबर (SMC(Crl) 1/2020) के रूप में मंगवार शाम 3.48 बजे पंजीकृत किया गया है। इस सू मोटो कार्यवाही का कारण अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है।

वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण के कथित ट्वीट्स से संबंधित मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया है। कोर्ट ने मंगलवार को भूषण के खिलाफ अदालत की अवमानना का मुकदमा दर्ज किया। इस मामले की सुनवाई बुधवार को होगी। इस मामले में कोर्ट ने ट्विटर इंडिया के खिलाफ भी मामला दर्ज किया है। सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस अरुण मिश्रा, बीआर गवई और कृष्ण मुरारी की पीठ बुधवार को प्रशांत भूषण और ट्विटर इंडिया के खिलाफ इस मामले की सुनवाई करेगी।

प्रशांत भूषण के खिलाफ शुरू की गई यह पहली अवमानना कार्यवाही नहीं है। एजी वेणुगोपाल ने नागेश राव की अंतरिम सीबीआई प्रमुख के रूप में नियुक्ति को चुनौती देने वाले मामले पर भूषण के खिलाफ 2019 के एक ट्वीट के खिलाफ अवमानना याचिका दायर की थी पर इस पर कोई आदेश पारित नहीं हुआ। इसके पहले उच्चतम न्यायालय के सात पूर्व चीफ जस्टिसों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाये जाने पर प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना का मामला दर्ज़ हुआ था जिसमें शांति भूषण ने उच्चतम न्यायालय को चुनौती दी थी कि न्यायाधीशों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने के लिए वह न्यायालय की अवमानना के कानून के तहत जेल जाने को तैयार हैं। इसके बाद यह मामला कहाँ गुम हो गया यह शोध का विषय है।

प्रशांत भूषण मामले के अलावा, तहलका पत्रिका के पूर्व संपादक तरुण तेजपाल के खिलाफ 2009 में दर्ज एक अवमानना मामला 24 जुलाई को इसी पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है। यह मामला भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाड़िया के खिलाफ भूषण द्वारा तहलका पत्रिका को एक साक्षात्कार में गई कुछ टिप्पणियों से संबंधित है।

बार एंड बेंच के अनुसार हालांकि एक मुकदमा गुना (मध्य प्रदेश) के एक अधिवक्ता, महेक माहेश्वरी ने 2 जुलाई को भूषण और ट्विटर इंडिया के खिलाफ याचिका दायर करने के जरिये किया था, जिसमें दोनों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई थी। यह मामला चीफ जस्टिस एसए बोबडे द्वारा नागपुर में एक बाइक हार्ले डेविडसन की सवारी करते फोटो के साथ प्रशांत भूषण के एक ट्वीट से सम्बन्धित था।

माहेश्वरी ने अवमानना के आरोपों के सम्बन्ध में 27 जून, 2020 एक ट्वीट का हवाला दिया था, जिसमें प्रशांत भूषण ने कहा था कि चीफ जस्टिस राजभवन नागपुर में एक भाजपा नेता से संबंधित 50 लाख की मोटरसाइकिल की सवारी बिना मास्क या हेलमेट के करते हैं, उस समय वह नागरिकों को न्याय तक पहुँचने के उनके मौलिक अधिकार से वंचित करते हुए सुप्रीम कोर्ट को लॉकडाउन मोड में रखते है! याचिका में कहा गया है कि यह ट्वीट “गंभीर प्रकृति” का है और यह एक बड़ा सवाल है कि वह चीफ जस्टिस  के संप्रभु कार्यों और भारत के संविधान के लिए उनके स्थायी स्वभाव का नहीं है।

हालाँकि अवमानना कार्यवाही का सही कारण अभी तक ज्ञात नहीं है, लेकिन अधिवक्ता भूषण के अंतिम ट्वीट्स में से एक ने 27 जून, 2020 को काफी विवाद उत्पन्न किया था, जहाँ उन्होंने कहा था कि जब भविष्य में इतिहासकार यह देखने के लिए पिछले 6 साल पर नजर डालेंगे कि कैसे आपातकाल की औपचारिक घोषणा के बिना भारत में लोकतंत्र को कुचल दिया गया है तो वो इस बर्बादी में उच्चतम न्यायालय की भूमिका का विशेष जिक्र करेंगे और खासकर पिछले चार मुख्य न्यायाधीशों की भूमिका का।

दरअसल प्रशांत भूषण न्यायपालिका से जुड़े मसले लगातार उठाते रहे हैं। हाल ही में उन्होंने कोविड-19 महामारी के दौरान दूसरे राज्यों से पलायन कर रहे कामगारों के मामले में सुप्रीम कोर्ट के रवैये की तीखी आलोचना की थी।इसके साथ ही भूषण ने भीमा-कोरेगांव मामले में आरोपी वरवर राव और सुधा भारद्वाज जैसे जेल में बंद नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले कार्यकर्ताओं के साथ हो रहे व्यवहार के बारे में बयान भी दिए थे। हालांकि, इस बात की जानकारी नहीं दी गई है कि भूषण के किस ट्वीट को पहली नजर में अदालत की अवमानना करने वाला माना गया है।

उन्होंने जेल में बंद भीमा कोरेगांव की घटना के आरोपियों वरवर  राव और सुधा भारद्वाज के इलाज को लेकर भी कड़े बयान दिए। हालांकि, अब तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि प्रशांत भूषण के किस/किन ट्वीट/ट्वीट्स को उच्चतम न्यायालय ने अदालत की अवमानना के दायरे में रखा। रिकॉर्ड्स में भी इसकी जानकारी नहीं दी गई है कि उच्चतम न्यायालय ने दोनों के खिलाफ यह कार्रवाई क्यों की है?

मार्च 2019 में, भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में एक “वास्तविक गलती” के लिए ट्वीट करते हुए स्वीकार किया था कि सरकार शीर्ष अदालत को गुमराह करती दिखाई दी थी और संभवतः एम नागेश्वर राव की अंतरिम सीबीआई प्रमुख के रूप में नियुक्ति के लिए उच्च स्तरीय चयन पैनल की बैठक में मनगढ़ंत मिनट प्रस्तुत किए थे। अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने उसी के बारे में 1 फरवरी के ट्वीट के लिए भूषण के खिलाफ अवमानना याचिका दायर की थी।

अटॉर्नी जनरल की याचिका के बाद, केंद्र सरकार ने भी इस मामले को लेकर भूषण के खिलाफ एक अवमानना याचिका दायर की। बाद में एजी वेणुगोपाल ने खंडपीठ को बताया कि वह अपनी अवमानना याचिका वापस लेना चाहते हैं, उन्होंने कहा कि वह (भूषण) इस अदालत के समक्ष एक बयान देने के लिए तैयार हैं कि उन्होंने गलती की थी। इस दृष्टि से मैं अपनी याचिका वापस ले रहा हूँ। उनका कहना (भूषण) है कि उन्होंने वास्तविक गलती की थी। इस पर पीठ ने कहा था कि आप (वेणुगोपाल) उसके (भूषण) खिलाफ याचिका वापस ले सकते हैं या नहीं लेकिन आपने एक सवाल उठाया है और हम इसका फैसला करेंगे। उस समय भूषण ने भी खुली अदालत में पेश किया था कि वह अवमानना याचिका की सुनवाई से जस्टिस अरुण मिश्रा की पुनर्विचार याचिका के लिए बिना शर्त माफी मांगने को तैयार नहीं हैं।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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