देश में कोरोना की दूसरी लहर में हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं। पीड़ितों और इलाज करने वाली मशीनरी को रेमेडिसविर और ऑक्सीजन की कमी के साथ बेड और आईसीयू बेड की कमी से जूझना पड़ रहा है। एक तरफ हाई कोर्ट रेमेडिसविर की कमी पर सरकारों को फटकार लगा रहे हैं, दूसरी तरफ स्वास्थ्य मंत्रालय ने सोमवार को कहा कि रेमेडिसविर जीवनरक्षक दवाई नहीं है और डब्लूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) ने रेमेडिसविर को कोविड-19 के इलाज की औषधियों की सूची से बाहर कर दिया है। ऐसे में देश के कई हाई कोर्ट कोरोना को लेकर संबंधित राज्य सरकारों और केंद्र को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं।
गौरतलब है कि पिछले साल जब 20 हजार, 30 हजार कोरोना केस आ रहे थे, जो आज से आधे भी एक्टिव केस नहीं थे, तो सारे फैसले केंद्र सरकार लेती रही। अब जब नए केस का आंकड़ा तीन लाख के पास और एक्टिव केस 20 लाख पार चले गए हैं तो केंद्र कह रहा है कि कोरोना कंट्रोल राज्यों की जिम्मेदारी है! कोरोना पर जब बात बिगड़ गई, केंद्र राज्यों से कह रहा- संभालो हालात? यह ध्वनि प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और रेल मंत्री के बयानों से निकल रही है।
दिल्ली हाई कोर्ट
दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस विपिन सांघी और रेखा पल्ली की खंडपीठ ने ऑक्सीजन संकट को लेकर केंद्र सरकार को फटकार लगाई है। गौरतलब है कि कोरोना की दूसरी लहर के बीच देश की राजधानी दिल्ली सहित कई राज्यों के अस्पताल इस समय ऑक्सीजन की कमी का सामना कर रहे हैं और देश में कोरोना के एक्टिव केसों की संख्या 21.5 लाख के पार पहुंच गई है।
खंडपीठ ने कहा है कि सरकार जमीनी हकीकत को लेकर इतनी बेखबर क्यों है? आप ऑक्सीयजन की कमी के कारण लोगों को इस तरह मरने नहीं दे सकते। आप अपना समय लेते रहें और लोग मरते रहें। आप इंडस्ट्री को लेकर चिंतित हैं, जबकि लोग मर रहे हैं। ऑक्सीजन की कमी अपने आप में इमरजेंसी जैसे हालात हैं, इसके मायने हैं कि सरकार के लिए इंसान की जिंदगी कोई मायने नहीं रखती। आज स्थिति यह है कि अस्पेताल ‘ड्राई’ हालत में हैं। हमारी चिंता का कारण केवल दिल्ली नहीं है। हम जानना चाहते हैं कि पूरे भारत में ऑक्सी’जन की सप्लाई को लेकर केंद्र क्या कर रहा है? ऑक्सीजन की जरूरत कई बार बढ़ी है। यह केंद्र की जिम्मेदारी है कि वह पर्याप्त सप्लाई सुनिश्चित करे, हम उन्हें जीवन के मौलिक अधिकार की रक्षा का निर्देश देते हैं। यदि टाटा अपने स्टील प्लांट से उत्पादित ऑक्सीजन को डायवर्ट कर सकते हैं तो अन्य क्यों नहीं? क्या इंसानियत का कोई मतलब नहीं हैं?
दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार को इंडस्ट्रीज की ऑक्सीजन सप्लाई फौरन रोकने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने मैक्स अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि ऑक्सीजन पर पहला हक मरीजों का है। खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि मरीजों के लिए अस्पतालों को ऑक्सीजन की आपूर्ति सुनिश्चित करना केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है। ऐसे में सरकार इतनी लापरवाह कैसे हो सकती है? आप गिड़गिड़ाइए, उधार लीजिए या चुराइए, लेकिन ऑक्सीजन लेकर आइए, हम मरीजों को मरते नहीं देख सकते।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को फटकारा
महाराष्ट्र में रेमेडिसविर की कमी पर बॉम्बे हाई कोर्ट ने नोटिस लिया है। नागपुर पीठ ने केंद्र सरकार से सवाल किया कि राज्यों को यह इंजेक्शन किस आधार पर बांटा जा रहा है? कोर्ट ने कहा कि महाराष्ट्र में देश के 40% कोरोना मरीज हैं तो उन्हें रेमेडिसविर भी उसी हिसाब से दिए जाने चाहिए। हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को भी फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि जिलों को मनमाने तरीके से रेमेडिसविर का बंटवारा किया जा रहा है। महाराष्ट्र सरकार ने 13 अप्रैल और 18 अप्रैल को नागपुर में रेमेडिसविर की एक भी वायल (शीशी) क्यों नहीं भेजी? अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिए कि सोमवार रात आठ बजे तक 10 हजार डोज नागपुर भेजी जाए।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने मंगलवार को महाराष्ट्र सरकार से कहा कि सभी 45 साल से अधिक उम्र के आरोपियों को उनकी गिरफ्तारी के बाद टीका लगाया जाए, ताकि उन्हें कोविड-19 के वायरस से बचाया जा सके। चीफ जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस जीएस कुलकर्णी की खंडपीठ ने महाराष्ट्र की जेलों में कोविड-19 मामलों में तेज वृद्धि को देखते हुए एक जनहित याचिका पर सुनवाई की। यह मामला 198 जेलों में बंद 47 कैदियों के बाद 14 अप्रैल, 2021 को कोरोना पॉजीटिव होने के बाद दर्ज किया गया था।
एमपी हाई कोर्ट
मध्य प्रदेश में कोरोना संक्रमितों के इलाज में हो रही लापरवाही पर मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की है। कोर्ट ने केंद्र व राज्य सरकार को 49 पेज के विस्तृत आदेश देकर 19 बिंदुओं की गाइडलाइन जारी की है। आदेश में हाई कोर्ट ने कहा, “हम मूकदर्शक बनकर यह सब नहीं देख सकते। कोरोना के गंभीर मरीजों को एक घंटे में अस्पताल में ही रेमेडिसविर इंजेक्शन सरकार उपलब्ध कराए। केंद्र सरकार रेमेडिसविर का उत्पादन बढ़ाए। अगर जरूरत पड़े तो आयात करे। हाई कोर्ट ने कहा कि इलाज के नाम पर प्राइवेट अस्पताल मनमानी रकम न वसूल सकें, यह भी तय किया जाना चाहिए। कोरोना महामारी की दूसरी लहर के बीच मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय आपदा एवं देश व्यापी समस्या होने के कारण केंद्र सरकार को औद्योगिक उपयोग की ऑक्सीजन को मेडिकल ऑक्सीजन के लिए उपयोग करने की व्यवस्था पर विचार करना चाहिए और यदि फिर भी यह ऑक्सीजन पर्याप्त नहीं होती है तो इसका आयात करना चाहिए। हाई कोर्ट ने प्रदेश सरकार को निर्देश दिए हैं कि वह डॉक्टर के लिखने के बाद कोविड-19 मरीजों को जीवन रक्षक दवाओं की उपलब्धता एक घंटे के अंदर सुनिश्चित करे।
पटना हाई कोर्ट
पटना हाई कोर्ट ने बिहार के कोविड अस्पतालों के निरीक्षण कर रिपोर्ट देने का आदेश एम्स के डायरेक्टर और मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष को दिया है। कोर्ट ने इस दो सदस्यीय कमेटी को मंगलवार को एनएमसीएच का दौरा कर रिपोर्ट देने को कहा है। साथ ही इस कमेटी को कोविड अस्पतालों का औचक निरीक्षण करने का अधिकार दिया है। कोर्ट ने राज्य में स्थायी ड्रग कंट्रोलर नहीं रहने पर सवाल उठाते हुए सरकार को जवाब देने का निर्देश दिया है। इसके अलावा कोविड कंट्रोल के लिए अब तक बने एक्शन प्लान के बारे में जानकारी राज्य सरकार से मांगी है।
गुजरात हाई कोर्ट
गुजरात हाई कोर्ट ने सरकार से कहा है कि वे कोरोना के असल आंकड़े सामने रखें, जिससे किसी भी तरह का भ्रम न फैले और दूसरों को भी मिर्च-मसाला लगा लोगों के बीच डर का माहौल पैदा करने का मौका न मिले। गुजरात हाई कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया है कि अगर सरकार की तरफ से कोरोना के असल आंकड़े छिपाए जा रहे हैं, तो इससे जनता का सरकार के प्रति विश्वास कम होगा और घबराहट का भी माहौल बनेगा। असल तस्वीर का खुलासा करने से लोगों में जागरूकता आएगी और वे कोरोना प्रोटोकॉल का और सख्ती से पालन कर पाएंगे।
पल्ला झाड़ने की कोशिश कर रहा है केंद्र
जमीनी सच्चाई ये है कि राज्यों को लॉकडाउन के सिवा कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है। सवाल ये है कि कोविड से जंग के इस मोड़ पर लाकर केंद्र क्यों कह रहा है कि अब राज्य देखें क्या करना है? केंद्र का ये रुख सिर्फ लॉकडाउन को लेकर नहीं है। वैक्सीनेशन से ऑक्सीजन और दवाई से इलाज तक पर है। सवाल है कि क्या अब जब कोरोना वायरस अपना सबसे खतरनाक रूप धर चुका है तो केंद्र पल्ला झाड़ने की कोशिश कर रहा है?
प्रधानमंत्री ने राज्यों को लॉकडाउन से बचने की सलाह ऐसे वक्त में दी है, जब हर कुछ घंटे में कोई न कोई राज्य लॉकडाउन या मिनी लॉकडाउन या कर्फ्यू का ऐलान कर रहा है। पिछले साल के लॉकडाउन ने देश में ऐसी बुरी हालत पैदा कर दी थी कि आज देश का कोई कोना लॉकडाउन नहीं चाहता। इस फैसले के राजनितिक परिणाम हो सकते हैं। तो अब केंद्र ने सियासी तौर पर जोखिम भरा काम राज्यों के जिम्मे कर दिया है? इतना ही नहीं पीएम तो कह रहे हैं लॉकडाउन न लगाओ। अब ये अलोकप्रिय काम राज्य सरकारें करती हैं तो खामियाजा वही भुगतेंगी। मैंने तो मना किया था जी! गृह मंत्री की दलील है कि हर राज्य में स्थिति अलग है तो राज्यों को ही फैसला करना चाहिए। तो क्या पिछले साल स्थिति एक जैसी थी?
(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)