केरल में निजी विश्वविद्यालयों के पक्ष में विजयन सरकार, रेड कार्पेट बिछाकर स्वागत करने को तैयार सीपीएम

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नई दिल्ली। केरल की वामपंथी सरकार अब निजी विश्वविद्यालयों की पैरोकार बनकर खड़ी है। जल्द ही केरल में उद्योग घराने और पूंजीपति निजी यानि प्राइवेट विश्वविद्यालय खोलकर मनचाही फीस वसूल करेंगे। केरल की सीपीएम सरकार ने इसकी तैयारी कर ली है। राज्य में निजी विश्वविद्यालयों की स्थापना पर एक मसौदा विधेयक बनकर तैयार है। राज्य सरकार ने इसकी पुष्टि की है।

उच्च शिक्षा क्षेत्र को निजी क्षेत्र के लिए खोलने के खिलाफ तीन दशक पहले केरल में रक्त-रंजित आंदोलन हुआ था। आश्चर्य की बात यह है कि राज्य में ही नहीं देश भर में वामदल इसका विरोध कर रहे थे। लेकिन तीन दशक बाद ऐसा क्या हुआ कि  सीपीआई (एम) केरल में निजी विश्वविद्यालयों के लिए रेड कार्पेट बिछाकर उनके स्वागत में खड़ी है।

वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने केरल में निजी विश्वविद्यालयों की स्थापना पर एक मसौदा विधेयक की पुष्टि की है।

सीपीआई (एम) नेता और राज्य के उच्च शिक्षा मंत्री, प्रोफेसर आर बिंदू ने इस निर्णय को सही ठहराते हुए कहा, “आज एक वैश्वीकृत समाज है और अगर हम अत्यधिक प्रतिस्पर्धी परिदृश्य में जीवित रहना चाहते हैं तो हमें परिवर्तनों को आत्मसात करना होगा। विधेयक में निजी विश्वविद्यालयों के सामाजिक नियंत्रण और विनियमन की परिकल्पना की गई है। समय के अनुरूप यह एक अपरिहार्य निर्णय था। हम बदलावों से दूर नहीं रह सकते।”  

“यह परिवर्तन इस समय हुआ है। हम बदलाव के अनुरूप निर्णय लेते हैं और सीपीआई (एम) के पास एक सुपरिभाषित दृष्टिकोण है। साथ ही हमारा रुख विदेशी विश्वविद्यालयों के प्रवेश के खिलाफ है।” इस विधेयक को मौजूदा विधानसभा सत्र में पेश किए जाने की संभावना है।

केरल की पी. विजयन सरकार इस समय उच्च शिक्षा क्षेत्र को निजी क्षेत्र के लिए खोलने जा रही है। लेकिन 1995 में सीपीआई (एम) ने इस तरह के एक फैसले का जबरदस्त विरोध किया था। दरअसल, 1995 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) सरकार ने कन्नूर में सहकारी क्षेत्र में एक मेडिकल कॉलेज शुरू किया था।

तब सीपीआई (एम) ने इस फैसले का विरोध किया था। और कन्नूर के कुथुपरम्बा में पुलिस गोलीबारी में सीपीआई (एम) के युवा संगठन डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया (डीवाईएफआई) के पांच कार्यकर्ता मारे गए थे।

तब से, सीपीआई (एम) इस घटना को केरल में शिक्षा के निजीकरण के खिलाफ एक ऐतिहासिक आंदोलन के रूप में चिह्नित करती रही है। एक डीवाईएफआई कार्यकर्ता, जो उस समय 24 साल के थे, विरोध प्रदर्शन के दौरान घायल हो गए और शिक्षा के निजीकरण के खिलाफ पार्टी के रुख का प्रतीक बन गए थे। वे 30 वर्षों तक बिस्तर पर पड़े रहे और सितंबर 2024 में उनकी मृत्यु हो गई।

इसी तरह केरल में 2002 से 2006 तक सत्ता में रही कांग्रेस सरकार ने जब व्यावसायिक शिक्षा की तलाश में भारत के अन्य हिस्सों में छात्रों के प्रवाह को रोकने के लिए केरल में स्व-वित्तपोषित इंजीनियरिंग कॉलेज और मेडिकल कॉलेज शुरू करने का फैसला किया, तो पार्टी ने इस कदम का जोरदार विरोध किया।

2014 में, जब कांग्रेस सरकार ने राज्य में प्रतिष्ठित कला और विज्ञान कॉलेजों को स्वायत्तता प्रदान करने का फैसला किया, तो सीपीआई (एम) फिर से विरोध में उठ खड़ी हुई। दो साल बाद इसकी छात्र शाखा स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) ने एक वैश्विक शिक्षा शिखर सम्मेलन में पूर्व राजनयिक और तत्कालीन राज्य उच्च शिक्षा परिषद के उपाध्यक्ष डॉ. टीपी श्रीनिवासन के साथ यह कहते हुए दुर्व्यवहार किया कि सरकार का निर्णय “उच्च शिक्षा के व्यावसायीकरण को तेज करेगा”।

एसएफआई ने सीएम ओमन चांडी और शिक्षा मंत्री पी के अब्दु रब्ब पर केरल में निजी विश्वविद्यालयों को अनुमति देने के लिए रिश्वत लेने का भी आरोप लगाया था।

नवीनतम निर्णय पर प्रतिक्रिया देते हुए, श्रीनिवासन ने मंगलवार को कहा, “2011 में ही हम निजी विश्वविद्यालयों के लिए एक मसौदा लेकर आए थे, जब केरल में छात्रों को उच्च अध्ययन के लिए प्रवेश पाना मुश्किल हो रहा था। वामपंथियों ने हमेशा इस कदम का विरोध किया था। हमने कई साल गंवा दिए। हमने बाज़ार खो दिया। अब कला और विज्ञान महाविद्यालयों में पर्याप्त छात्र नहीं हैं। यह एक ऐसा ज्ञान है जो देर से सामने आया। हमारे विधेयक में कड़े मानदंड थे। नया बहुत उदार प्रतीत होता है।”

हालांकि सीपीआई (एम) ने शिक्षा के स्व-वित्तपोषण का विरोध किया, लेकिन बाद में पार्टी ने इस क्षेत्र में कदम रखा और कई उद्यम खोले।

उच्च शिक्षा में सुधारों से पहले, सीपीआई (एम) ने कई क्षेत्रों में बदलावों का विरोध किया था। 1990 के दशक में पार्टी ने कम्प्यूटरीकरण और उससे पहले कृषि में मशीनीकरण का विरोध किया था। 2000 के बाद, विभिन्न विकासात्मक परियोजनाओं के लिए एशियाई विकास बैंक और विश्व बैंक से सहायता स्वीकार करने को लेकर पार्टी विभाजित हो गई।

2003 में, जब पिनराई विजयन सीपीआई (एम) के राज्य सचिव थे, तब पार्टी ने एडीबी ऋणों का विरोध किया था। डीवाईएफआई ने कांग्रेस सरकार के साथ विचार-विमर्श के लिए केरल पहुंचे एडीबी सलाहकारों के साथ भी धक्का-मुक्की की थी।

2016 में विजयन के मुख्यमंत्री बनने के बाद, सीपीआई (एम) और उसके सहयोगी संगठनों ने हर क्षेत्र में सुधार का मार्ग प्रशस्त करने और विकास में तेजी लाने के लिए विरोध के झंडे झुका दिए। पार्टी अब सभी उपलब्ध स्रोतों से संसाधनों का लाभ उठाने के लिए तैयार है।

(जनचौक की रिपोर्ट)

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