दिल्ली विधानसभा चुनाव : इस बार दलित वोटर किसके साथ?

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इसी दिसम्बर के अंतिम सप्ताह में दिल्ली के‌ पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सेंट्रल दिल्ली में मौजूद वाल्मीकि मंदिर में पहुँचकर पूजा-अर्चना करके नयी दिल्ली विधानसभा सीट पर अपने प्रचार अभियान की शुरूआत की। केजरीवाल नयी दिल्ली सीट से चौथी बार चुनाव लड़ रहे हैं।‌ वाल्मीकि मंदिर इसी नयी दिल्ली विधानसभा सीट के अंतर्गत आता है। हर बार वे नामांकन से पहले इसी मंदिर में जाते हैं।

इसी मंदिर से जुड़ी वाल्मीकि बस्ती में अरविंद केजरीवाल ने पार्टी के दूसरे नेताओं के साथ 2013 में झाड़ू लगाकर अपने चुनाव चिह्न को लांच किया था। झाड़ू साफ़-सफाई का प्रतीक है।‌ इस चुनाव चिह्न को बीते दो चुनाव में दलित मतदाताओं का भारी साथ मिला,जिसमें वो तबका भी है, जो साफ़-सफाई के काम से जुड़ा है, जिसके लिए झाड़ू की अपनी अहमियत है। 2013 के चुनाव में 12 आरक्षित सीटों में से 9 सीटें आप पार्टी ने जीती थीं।

पिछले आम चुनाव में आप ने सभी 12‌ सीटों पर विजय हासिल की। 1993 से लेकर 2020‌ तक 7 विधानसभा चुनाव में दलितों के लिए आरक्षित सीटों पर जिसने बढ़त हासिल की,उसी‌की सरकार बनी। साल 1993 के चुनाव में 70 में से 13 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थीं। भारतीय जनता पार्टी ने 13 में से 8 सीटें जीती और सरकार बनाई। अगले चुनाव 1998 में इन सीटों पर कांग्रेस ने बढ़त बनाई और 12 आरक्षित सीटों को जीतकर दिल्ली में सरकार बनाई।

अगले 15 सालों तक दिल्ली में शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार चली। इस दौरान कांग्रेस ने 2003 में 10 और 2008 में नौ आरक्षित सीट जीतीं, हालाँकि, 2008 में परिसीमन के बाद रिज़र्व सीटों की संख्या 13 से घटाकर 12 कर दी गई थी। ये 12 सीटें हैं- बवाना, सुल्तानपुर माजरा, करोल बाग, मंगोलपुरी, मादीपुर, पटेल नगर, आंबेडकर नगर, देवली, त्रिलोकपुरी, कोंडली, सीमापुरी और गोकलपुर। 2013 के चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 9 आरक्षित सीट जीतीं और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई> फिर 2015 और 2020 में आप ने सभी 12 रिज़र्व सीट जीतीं।

12 आरक्षित सीटों के अलावा राजेंद्र नगर, शाहदरा, तुगलकाबाद, चाँदनी चौक, आदर्श नगर और बिजवासन समेत 18 ऐसी सीटें हैं जहाँ दलित मतदाताओं की अच्छी-ख़ासी आबादी है। 2011 की जनगणना के मुताबिक़ दिल्ली में लगभग 17 फ़ीसदी दलित आबादी है। इस आबादी में दलितों की कुल 36 जातियाँ हैं। इनमें जाटव, वाल्मीकि, धोबी, रैगर, खटिक, कोली और बैरवा प्रमुख हैं। आबादी के हिसाब से दिल्ली के अनुसूचित जाति वर्ग में जाटव सबसे बड़ी जाति है और जाटव के बाद वाल्मीकि बड़ी जाति है। राजेंद्र पाल गौतम साल 2015 से लेकर 2022 तक दिल्ली सरकार में मंत्री थे।

दलित दिल्ली की आबादी और राजनीति दोनों में अपना प्रभाव रखते हैं, लेकिन क्या उनका प्रतिनिधित्व भी इसी हिसाब से है? 20 फ़ीसदी दलित आबादी वाले उत्तर प्रदेश में मायावती चार बार मुख्यमंत्री बन चुकी हैं, लेकिन 17 फ़ीसदी दलित आबादी वाले दिल्ली को अब तक कोई दलित मुख्यमंत्री नहीं मिला है।

दिल्ली में भले ही 17 प्रतिशत दलितों की आबादी हो, लेकिन दलित अस्मिता की राजनीति उस तरह नहीं बन पाती, जिस तरह उत्तर प्रदेश और बिहार में। इसका कारण यह है कि यह आबादी अलग-अलग विधानसभाओं में बिखरी हुई है। झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोगों में बड़ी संख्या दलितों की है। मँहगाई और बेरोज़गारी दलित मतदाताओं के बड़े मुद्दे हैं। केजरीवाल की मुफ्त वाली योजनाएँ‌ मँहगाई में राहत तो देती हैं, लेकिन स्थायी समाधान नहीं दे पातीं।

दिल्ली सरकार में सरकारी नौकरियों को ख़त्म करके ठेकेदारी प्रथा आ गई है, इससे दलित समाज की पहुँच भी इन नौकरियों से दूर हो गई है, क्योंकि यहाँ पब्लिक सेक्टर की तरह आरक्षण नहीं है। कोंडली विधानसभा क्षेत्र ; जो कि एक आरक्षित सीट है, यहीं पर कल्याणपुरी में ओमप्रकाश जाटव; जो पेशे से वकील हैं तथा सामाजिक मुद्दों पर बहुत मुखर रहते हैं, वे कहते हैं, “आम आदमी पार्टी के साथ समस्या यह है, कि इस पार्टी की कोई विचारधारा नहीं है। यही कारण है कि जिस विजयी विधायक को टिकट नहीं मिलता, वे भाजपा या अन्य किसी दूसरी पार्टी में चले जाते हैं। कोंडली विधानसभा में जो भी अनुसूचित जाति का प्रत्याशी चुनाव जीतकर आया, उसने इस विधानसभा की भारी दलित आबादी के लिए कुछ भी नहीं किया।”

उनका कहना है कि अगर उम्मीदवार मजबूत है, तो कांग्रेस को दलितों का साथ मिल सकता है। दलितों के‌ प्रतिनिधित्व लेकर केजरीवाल सरकार का दिल्ली और पंजाब दोनों जगह रवैया सही नहीं है। दलित समाज राहुल गांधी की हिस्सेदारी वाली बात को गंभीरता से ले रहा है, लेकिन विधानसभा में उम्मीदवार मजबूत होगा, तभी कांग्रेस को फायदा होगा। ऐसा नहीं होने पर दलित समाज अरविंद केजरीवाल के साथ ही रहेगा।

अजय प्रकाश एक स्वतंत्र पत्रकार हैं,जो कोंडली विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत मयूर विहार फेज 3 में रहते हैं तथा दिल्ली चुनाव को बहुत नज़दीक से देख रहे हैं। वे कहते हैं कि, “दलित अस्मिता का मुद्दा दिल्ली के दलित मतदाताओं को बहुत नहीं लुभा रहा है। संसद में गृहमंत्री अमित शाह द्वारा आंबेडकर पर दिया गया बयान भी का भी कोई प्रभाव दिल्ली के मतदाताओं पर नहीं दिखता है। प्रधानमंत्री द्वारा दिल्ली के झुग्गी- झोपड़ी वालों को पक्के मकान देने की बात मतदाताओं को कुछ हद तक ही प्रभावित कर रही है, लेकिन अधिकांश इस पर विश्वास नहीं कर पा रहे हैं। अरविंद केजरीवाल की लाभार्थी योजनाओं की चमक अभी भी बरकरार है, विशेष रूप से मुफ्त बिजली, पानी और महिला सम्मान योजना। दिल्ली में कांग्रेस अभी तक अपना आधार विकसित नहीं कर पाई है, इसलिए यहाँ मुख्य मुकाबला आम आदमी पार्टी और भाजपा के बीच ही है, जिसमें आम आदमी पार्टी की बढ़त अभी तक बरकरार है।”

स्वदेश कुमार सिन्हा लेखक और स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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