आज दिल्ली में चुनाव प्रचार का आखिरी दिन भी था और लोकसभा में भी बजट सत्र पर राष्ट्रपति के अभिभाषण पर सदन को चर्चा के लिए खोल दिया गया। इसलिए देश का ध्यान दोनों जगह समान रूप से लगा रहा। 2015 और 2020 के विधान सभा चुनाव की तुलना में 5 फरवरी 2025 को दिल्ली की जनता किसे पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने के लिए मौका देती है, इसके बारे में पूरी तरह से कोई भी राजनीतिक पार्टी खुलकर दावा करने की स्थिति में नहीं है।
हालांकि आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दावा किया है कि उनकी पार्टी दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों में से 55 सीटों पर आराम से जीतने जा रही है। दिल्ली की महिला मतदाताओं से अपील करते हुए केजरीवाल ने उन्हें अपने घर के पुरुष सदस्यों को भी झाड़ू के पक्ष में वोट करने के लिए कहा है। उनके अनुसार, यदि दिल्ली में महिला मतदाता ऐसा करती हैं तो आम आदमी पार्टी 60 सीटों पर जीत जाएगी।
उधर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने आज जंगपुरा में एक जनसभा को संबोधित करते हुए दावा किया कि अरविंद केजरीवाल खुद अपनी सीट से हार रहे हैं। पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के अपनी परंपरागत सीट पटपड़गंज सीट से चुनाव लड़ने के बजाय इस बार जंगपुरा विधानसभा से लड़ने की बात पर शाह का दावा था कि ऐसा वे अपनी निश्चित हार को देख फैसला लिए हैं।
चुनाव प्रचार का आखिरी दिन होने के कारण पूरी दिल्ली में आज जगह-जगह बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं के द्वारा रोड शो किये गये। अरविंद केजरीवाल ने कालकाजी विधानसभा क्षेत्र में मुख्यमंत्री आतिशी सिंह के प्रचार में रोड शो किया, तो कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने कस्तूरबा नगर विधानसभा में अपने उम्मीदवार अभिषेक दत्त के लिए रोड शो निकाला। वहीं केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह आज के दिन मोती नगर विधानसभा में अपने प्रत्याशी के समर्थन में रोड शो करते नजर आये।
चुनाव प्रचार के अंतिम दिन संगम विहार विधानसभा क्षेत्र में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने अपने उम्मीदवार चंदन चौधरी के पक्ष में जमकर पसीना बहाया। चंदन सिंह मूल रूप से बिहारी मतदाताओं के बीच अपनी पकड़ रखते हैं, लेकिन उत्तराखंडी मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए इस सीट पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को भाजपा ने उतारा है। यह देखना काफी रोचक रहा कि रोड शो में केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह की उपस्थिति के बावजूद पुष्कर सिंह धामी की प्रशंसा में बनाये गये उत्तराखंडी गीतों के साथ रोड शो चल रहा था।
जहां तक धन बल और प्रचार का प्रश्न है, इसमें भाजपा का पलड़ा भारी दिख रहा है। वैसे भी भाजपा समर्थक अपेक्षाकृत धनाढ्य और सवर्ण पृष्ठभूमि से आते हैं। फिर केंद्र में सरकार के अलावा कई राज्यों में सरकार होने के नाते उनके नेताओं की दृश्यता आप या कांग्रेस की तुलना में कई गुना अधिक है। यह भी एक तथ्य है कि भाजपा छोटे-बड़े किसी भी चुनाव को पूरी गंभीरता से लड़ती है।
दिल्ली का चुनाव भी इसका अपवाद नहीं है। उल्टा, दिल्ली राज्य विधानसभा को जीतने की हसरत भाजपा को पिछले तीन बार से बुरी तरह से साल रही है। 2013 में सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद कांग्रेस के समर्थन से पहली बार अरविंद केजरीवाल की सरकार बनने में कामयाब रही। उससे पहले लगातार तीन बार शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस दिल्ली पर काबिज रही है।
लगातार तीसरी बार केंद्र में सरकार बनाने के बावजूद मोदी सरकार की नाक के नीचे खुद को अराजनीतिक बताने वाले केजरीवाल की आप पार्टी की बंपर जीत पूरी पार्टी के लिए भारी शर्मिंदगी का कारण बनी हुई है।
यही कारण है कि इस बार भाजपा नेतृत्व की ओर से बेहद फूंक-फूंक कर कदम रखा जा रहा है। भाजपा अच्छी तरह से जानती है कि पूरे देश में आप और कुछ हद तक तृणमूल कांग्रेस ही ऐसी दो पार्टियां हैं जिनके पास काउंटर अटैक के लिए पर्याप्त गोला-बारूद हमेशा तैयार रहता है। ये दोनों दल अपने बचाव के लिए क्या पैंतरे अपनाने हैं, के बारे में बेहद सूझबूझ के साथ काफी तैयारी से रणनीति पर अमल करती हैं।
2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा ने बेहद आक्रामक हिंदुत्व की चुनावी रणनीति पर काम किया था। गृहमंत्री ने दिल्ली की गलियों में पैदल चलकर भाजपा के पर्चे तक बांटे थे और दिल्ली की जनता को कहा था कि, ‘इतनी जोर से ईवीएम का बटन दबाना, कि शाहीन बाग़ में भूकंप महसूस हो। ’बता दें कि उस दौरान सीएए/एनआरसी विरोधी आंदोलन का शाहीन बाग़ पूरे देश में केंद्र बना हुआ था। जब नतीजे आये तो ये झटका भाजपा को लगा। इतने हाई पिच चुनाव लड़ने के बावजूद आप पार्टी 54% वोट और 70 में से 62 सीट जीतने में कामयाब रही थी।
2020 में भाजपा के मत प्रतिशत में 6% का इजाफा होकर यह 38% तक पहुंच गया, लेकिन अरविंद केजरीवाल की पार्टी के मत प्रतिशत में यह गिरावट न होकर कांग्रेस के वोट बेस में 6% की गिरावट में नजर आया। दो बार से बुरी तरह से मुंह की खाने के बाद इस बार बीजेपी की रणनीति खुद को अरविंद केजरीवाल के ‘मुफ्त बिजली-पानी’ से लड़ने के बजाय उसे अपने भीतर शामिल करने के साथ शुरू हुई है।
भाजपा अच्छी तरह से जान चुकी है कि दिल्ली के धनी और उच्च मध्य वर्ग का वोट तो उसके पास वैसे भी सुरक्षित है, साथ ही सवर्ण तबके में से भी बहुसंख्यक मतों को वह हासिल करने में कामयाब रहने वाली है। उसे दिल्ली में रहने वाले गरीबों और निम्न मध्यम वर्ग को अपनी ओर लुभाना ही होगा। इसलिए भाजपा सबसे पहले इस बात को दुहरा रही है कि यदि वह जीतती है तो सभी कल्याणकारी योजनाओं को बदस्तूर जारी ही नहीं रखा जायेगा, बल्कि उसकी गति में तेजी लायी जाएगी।
इस सबके बावजूद ठीक-ठीक अंदाजा लगा पाना कठिन है कि दिल्ली का निम्न मध्यम और गरीब वर्ग किस हद तक आप पार्टी से दूर होने का मन बना रहा है। चुनावी विश्लेषक भी कुछ भी साफ़ कह पाने की स्थिति में नहीं हैं। सीएसडीएस प्रमुख संजय कुमार के अनुसार, भले ही शीशमहल और आबकारी घोटाले जैसे मामले में अरविंद केजरीवाल की लोकप्रियता पर असर पड़ा है, लेकिन इसके बावजूद बहुसंख्यक दिल्ली वासियों की निगाह में बिजली-पानी और स्कूल-मोहल्ला क्लिनिक एवं महिलाओं के लिए फ्री बस की सुविधा उसे महंगाई और रोजगार में आई गिरावट से सुकून पहुंचा रही है।
ऐसे में आखिरी उम्मीद की किरण यही बची है कि यदि दो कार्यकाल के शासन से ऊब, यमुना की सफाई, दस वर्षों के दौरान दिल्ली के इन्फ्रास्ट्रक्चर में कोई बड़ा बदलाव नहीं हो सका, के मुद्दे पर यदि आप पार्टी के 5% वोट घटकर भाजपा की झोली में आ जाते हैं, और साथ ही कांग्रेस अपने मत प्रतिशत को बढ़ाकर 9% तक ले आती है तो दिल्ली की बाजी को पलटना पूरी तरह से संभव हो जायेगा। इसके अलावा, चुनाव आयोग की भूमिका भी हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा की तरह इस बार के दिल्ली चुनाव में अहम साबित हो सकती है।
अरविंद केजरीवाल की पार्टी इस तथ्य से पूरी तरह से बाखबर है। दिल्ली में बड़े पैमाने पर मतदाता सूची से नाम काटने और हजारों की संख्या में हर विधानसभा में नए मतदाताओं को सूची में जोड़े जाने की खबर को आप पार्टी ने ब्रेक कर पहले ही चुनाव आयोग को रक्षात्मक मुद्रा में ला दिया है।
आज संसद में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में 5 महीने के भीतर हिमाचल प्रदेश की आबादी के बराबर नए मतदाताओं को महाराष्ट्र में जोड़े जाने के मुद्दे को उठाकर कहीं न कहीं केजरीवाल की पार्टी के लिए अनजाने ही सही मदद पहुंचाने का काम किया है।
आज अरविंद केजरीवाल ने इसी मुद्दे पर दिल्ली की जनता के नाम अपना आखिरी संदेश प्रसारित किया है। उन्होंने दिल्ली की जनता से अपील करते हुए कहा है कि “सूत्रों से पता चला है कि इस बार के चुनाव में 10% वोटों की गड़बड़ी की जा सकती है। हमें यदि इसे विफल बनाना है तो कम से कम झाड़ू को 15% की लीड देनी होगी, ताकि गड़बड़ी के बावजूद हम 5% की लीड से जीत सकें।
आप लोग खूब वोट डालना यही एक तरीका होगा इनके हथकंडों से पार पाने का। महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनावों से हमें जो सीख मिली है, उसे ध्यान में रखते हुए हमने एक वेबसाइट तैयार की है। 5 तारीख की रात को हर पोलिंग बूथ की इन 6 जानकारियों को हम इस वेबसाइट पर डाल देंगे।
- उस पोलिंग बूथ का नाम और नम्बर क्या है।
- पोलिंग बूथ अधिकारी का नाम।
- कण्ट्रोल यूनिट का आईडी क्या है।
- उस बूथ पर रात तक अंत में कुल कितने वोट पड़े। यदि कुल 800 वोट पड़े हैं तो गिनती 800 वोट की ही होनी चाहिए। इससे 800 की जगह 900 वोट की गिनती नहीं हो पायेगी।
- जो मशीन शाम 5 बजे तक चली वह चुनाव संपन्न होने के वक्त कितनी चार्ज थी और
- हर पार्टी के पोलिंग एजेंट का नाम क्या है?
ये 6 चीजें हम अपनी वेबसाइट पर उस रात को डाल देंगे, जिससे यदि कोई गड़बड़ी इनकी ओर से की जाती है तो हम उसे रोक सकते हैं। इनके ईवीएम के खेल को यदि हमें हराना है तो एक-एक का वोट पड़ना चाहिए।”
जाहिर है यदि आम आदमी पार्टी इस रणनीति पर गंभीरता से अमल करती है तो इसके दो फायदे उसे मिल सकते हैं। पहला, इससे पार्टी अपने कार्यकर्ताओं को गोलबंद करने और उन्हें मतदान के दौरान और मतगणना तक एक स्पष्ट लक्ष्य दे रही है।
एक स्पष्ट लक्ष्य पार्टी के कार्यकर्ताओं और 10-12% फ्लोटिंग वोटर्स को एक दिशा दे सकता है। चुनाव आयोग और पोलिंग बूथ की जिम्मेदारी संभाल रहे अधिकारियों के ऊपर भी अतिरिक्त नैतिक दबाव बनेगा और मीडिया के लिए भी कम से कम दिल्ली चुनाव में निष्पक्ष दिखने की विवशता बनी रहने वाली है।
जहां तक कांग्रेस का प्रश्न है, ऐसा जान पड़ता है कि उसके लिए अभी भी दिल्ली बहुत दूर है। हालांकि यह सही है कि 2020 के मुकाबले इस बार दिल्ली के आम मतदाताओं के बड़े हिस्से के लिए आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच चुनाव को लेकर भारी दुविधा बनी हुई है।
मुस्लिम अल्पसंख्यकों की निगाह में कांग्रेस सबसे पहली पसंद बनती जा रही है। कमोबेश यही स्थिति दलित समुदाय के बीच भी महसूस की जाने लगी है। लेकिन दिल्ली का निम्न मध्य वर्ग भी अपने वोट को जाया नहीं होने देना चाहता। वह चाहता है कि जिसे वोट दे, वो न सिर्फ विधायक चुना जाये बल्कि उसकी पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ सरकार भी बनाये।
कांग्रेस के लिए बादली विधानसभा सीट से दिल्ली प्रदेश कांग्रेस चीफ, देवेंद्र यादव चुनावी मैदान में बीजेपी और आप दोनों को कड़ी टक्कर देते दिख रहे हैं। बहुत विचार करने पर यही वह सीट है जिसके बारे में वहां के मतदाता भी कहते पाए गये हैं कि इस सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार सबसे दमदार नजर आ रहे हैं, जो बादली और जहांगीरपुरी की आम जनता के लिए जमीन पर खड़े रहते आये हैं।
भले ही कांग्रेस ने इस बार के विधानसभा चुनाव में कई सीटों पर अपने वरिष्ठ नेताओं को उतारा है और राष्ट्रीय नेतृत्व ने भी जमकर पसीना बहाया है, लेकिन ओखला हो या मुस्तफाबाद या नई दिल्ली सीट, सभी जगहों पर कांग्रेस के प्रति सहानुभूति होने के बावजूद वोट अंतिम क्षण में झाड़ू के पक्ष में पलट सकता है।
कई पर्यवेक्षकों के मुताबिक यदि दिल्ली में निष्पक्ष ढंग से चुनाव होते हैं तो आम आदमी पार्टी 40-45+, बीजेपी 25-27+ और कांग्रेस 1+ सीट पर जीत हासिल कर सकती हैं।
(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)
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