दिल्ली चुनाव : लोकतांत्रिक ताकतों को भाजपा की शिकस्त सुनिश्चित करना होगा।

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अंत तक आते-आते दिल्ली चुनाव रोचक मोड़ पर पहुंच गया है। एक ओर आप पार्टी के लोकलुभावन वायदे हैं तो दूसरी ओर भाजपा के अपने दावे हैं, बजट के माध्यम से मध्य वर्ग को आकर्षित करने का उसने प्रयास किया है और 2020 दंगों की याद ताजा कर वह ध्रुवीकरण के प्रयास में लगी है, इसके लिए बाकायदा एक नफरती फिल्म को promote किया जा रहा है, वहीं कांग्रेस अपने वायदों और दावों के साथ एक तीसरा कोण बनाने का प्रयास कर रही है।

हालांकि ओखला और मुस्तफाबाद जैसी जिन मुस्लिम बहुल सीटों पर कांग्रेस की अच्छी संभावना हो सकती थी, वहां ओवैसी की AIMIM ने भी प्रत्याशी खड़े कर रखे हैं। इंडिया गठबंधन के एक अन्य घटक अखिलेश यादव आप के समर्थन में प्रचार करने जा रहे हैं। उधर मोदी 14 साल के कांग्रेस के कुशासन तथा आप पार्टी के 11साल के आपदा शासन के खिलाफ अपनी पार्टी के लिए जनादेश की अपील कर रहे हैं।

आप पार्टी को इस बात का लाभ मिल सकता है कि उसकी योजनाओं से समाज के सबसे कमजोर तबकों का सशक्तीकरण हुआ है, उन्हें शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को प्राप्त करने का अधिकार मिला है तथा मुफ्त पानी, बिजली आदि प्राप्त हुई है। वहीं भाजपा अपने लोकलुभावन वायदों के साथ उसका मुकाबला करने की कोशिश कर रही है।

आप पार्टी ने मुफ्त स्वास्थ्य सेवाओं, मोहल्ला क्लिनिकों के विस्तार और महिलाओं को 1000 से बढ़ाकर 2100 रू देने का वायदा किया है। इसके मुकाबले भाजपा ने सभी वरिष्ठ नागरिकों के लिए पेंशन, गैस सिलेंडर पर 500रू सब्सिडी, सबके लिए सस्ते दर पर आवास आदि का वायदा किया है।

कांग्रेस ने भी लोकलुभावन वायदों की झड़ी लगा दी है। उसने वायदा किया है कि कांग्रेस जीती तो 300 यूनिट बिजली फ्री देगी। अपने वायदे की विश्वसनीयता के पक्ष में उसने लोगों को याद दिलाया है कि उसकी सरकार ने कर्नाटक में 200 यूनिट बिजली फ्री देने का वायदा लागू करके दिखा दिया है।

प्यारी दीदी योजना के तहत उसने सभी महिलाओं को 2500 ₹ मासिक देने का वायदा किया है। जीवन रक्षा योजना के तहत  25 लाख तक मुफ्त इलाज का वायदा किया है। युवा उड़ान योजना के तहत सभी युवाओं को 8500₹ मासिक की दर से एक साल तक अप्रेंटिस की गारंटी की है।

महंगाई मुक्ति योजना के तहत 500₹ में गैस सिलेंडर देने तथा राशन किट फ्री देने का वायदा किया है जिसमें 5 किलो चावल, दो किलो चीनी, एक लीटर तेल, 6 किलो दाल, 250 ग्राम चायपत्ती मुफ्त देने का वायदा किया है। कांग्रेस का दावा है कि उसके वायदों के फलस्वरूप हर परिवार की साल भर में दस लाख की बचत होगी। कांग्रेस लोगों को याद दिला रही है कि दिल्ली का पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर शीला दीक्षित के कार्यकाल में निर्मित हुआ है।

इस बार चुनाव का बड़ा फोकस पूर्वांचल के मतदाता हैं। सभी पार्टियां उन्हें जीतने में लगी हुई हैं। कांग्रेस ने वायदा किया है कि सत्ता में आने पर वे पूर्वांचल मंत्रालय का गठन करेंगे। पूर्वांचल के सामाजिक सांस्कृतिक त्यौहार छठ को कुंभ की तरह महोत्सव के रूप में मनाया जाएगा।

कांग्रेस ने अरविंद केजरीवाल पर हमला बोला है कि उन्होंने बयान दिया है कि पूर्वांचल से लोग 500 का टिकट लेकर आते हैं और मुफ्त में 5 लाख का इलाज करा के चले जाते हैं। भाजपा पर हमला बोलते हुए कांग्रेस ने कहा कि वे पूर्वांचल के लोगों को रोहिंग्या कहकर दिल्ली से भगाने की बात करते हैं।

कांग्रेस ने कहा है कि 2023 से बंद पड़े अल्पसंख्यक आयोग को पुनर्जीवित किया जाएगा ताकि उनके अधिकारों का संरक्षण एवं संवर्धन हो सके। जैन समाज को अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा मनमोहन सिंह के कार्यकाल में दिया गया था। उसने जैन कल्याण बोर्ड के गठन का भी वायदा किया है।

इस बीच चुनाव में अन्ना हजारे की भी एंट्री हो गई है। Hibernation से अचानक जागृत हो उन्होंने दिल्ली चुनाव को लेकर बयान दिया है। उन्होंने अपील किया है कि स्वच्छ विचारों, अच्छे चरित्र वाले लोगों को वोट दें जो देश के लिए बलिदान दे सकें और अपमान को सह सकें। वे बेकार लोगों को वोट न दें, उससे देश नष्ट हो जाएगा। अगर भारत को बचाना है तो किसी को बलिदान देना होगा।

अप्रासंगिक हो चुके अन्ना हजारे का नई प्रासंगिकता हासिल करने का इस तरह का अमूर्त बयान पूरी तरह अराजनीतिक है और यह किसे लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से प्रेरित है, कह सकना मुश्किल है।

इस बीच यमुना के पानी को लेकर जंग छिड़ी हुई है। आप पार्टी की मुख्यमंत्री आतिशी ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर आरोप लगाया है कि हरियाणा की ओर से जानबूझ कर बड़े पैमाने पर अमोनिया प्रदूषण यमुना में डाला जा रहा है ताकि जल शोधन के लिए लगाए गए हमारे ट्रीटमेंट प्लांट काम न कर सकें। चार दिन में उधर से आने वाले पानी में अमोनिया का स्तर अचानक बहुत बढ़ गया है। इसे उन्होंने जल आतंकवाद का नाम दिया है।

इसको लेकर दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने चुनाव आयोग से शिकायत की है कि यह निष्पक्ष व स्वतंत्र चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित करने के उद्देश्य से प्रेरित है। हालांकि हरियाणा के मुख्यमंत्री सैनी ने इसका खंडन किया है और इसे बेबुनियाद आरोप करार दिया है।

वैसे तो चुनाव सर्वेक्षणों की विश्वसनीयता कम ही बची है, फिर भी अगर उन पर गौर किया जाय तो आप को बढ़त हासिल है। C voter के अनुसार पिछले चुनावों में तो आप को कुल 70 सीटों में 67 और 62 सीटें मिली ही थीं, इस बार भी 51%वोटों के साथ वह clean sweep करने जा रही है।

पिछली बार जिन औरतों ने आप पार्टी को वोट दिया था, उसमें से 80% अभी भी देंगी, जबकि भाजपा को मत देने वाली महिलाओं में अब 65% ही उन्हें फिर वोट देंगी, उनके 25% का रुझान आप पार्टी की ओर है। कांग्रेस को वोट देने वाली महिलाओं में 75% से 100% अबकी बार आप पार्टी को वोट दे सकती हैं। इसी तरह National Confederation of Dalit and Adivasi Organisations ( NACDAOR) के सर्वे के अनुसार 44% दलित आप के साथ हैं, जबकि 32% भाजपा के साथ हैं और 21% कांग्रेस के साथ हैं। उनके अनुसार आप पार्टी को 35 सीटों पर बढ़त हासिल है, भाजपा को 28 सीटों पर और कांग्रेस को 7 सीटों पर बढ़त है।

सर्वे करने वालों ने यह भी पाया कि जनता को सीधे आर्थिक लाभ पहुंचाने में आपका रिकॉर्ड बेहतर है।

बहरहाल ‘सर्वहारा’ के ताजा अंक में इस बात को ठीक नोट किया गया है कि, “केजरीवाल सरकार पर भाजपा का आरोप है कि वे जनता को “मुफ्तखोरी” सिखाते हैं क्योंकि वे मुफ्त बिजली, पानी, शिक्षा, इलाज, परिवहन, आदि की राजनीति करते हैं। आज से पहले, यानी पूंजीवादी राज्य जब तक कल्याणकारी राज्य का ढोंग करने के लिए किसी न किसी रूप में मजबूर था, पूंजीवादी सरकारें भी इन सेवाओं को बहुत कम कीमत पर, लगभग निशुल्क, उपलब्ध कराती थीं।

उदाहरण के लिए, भारत में 1980 के दशक के मध्य तक सभी का इलाज सरकारी अस्पतालों में बहुत ही कम खर्च पर होता था और सरकारी विद्यालयों व कॉलेजों में ही सभी के बच्चे पढ़ते थे। लेकिन आज बड़ी पूंजी इन सेवाओं पर पूर्ण रूप से कब्जा कर इन्हें अकूत मुनाफे का क्षेत्र बना चुकी हैं। ऐसा बड़े पैमाने पर इनका निजीकरण करके किया गया जिसकी शुरूआत 1980 के दशक में हुई।

परिणामस्वरूप आज ऐसी सारी सेवायें-शिक्षा, पानी, बिजली, स्वास्थ्य, परिवहन, आदि – बहुत महंगी हो गयी हैं और जनता का एक बड़ा हिस्सा इन जरूरी सेवाओं से वंचित होता जा रहा है। इसलिए जो लोग “मुफ्त” पानी, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, आदि की नीति का विरोध करते हैं वे पूंजीपति वर्ग, खासकर बड़े पूंजीपति वर्ग के हितों से प्रेरित हैं, इसमें संदेह नहीं होना चाहिए।

इनका तर्क है कि सरकार का काम “मुफ्त की रेवड़ी” बांटना नहीं “विकास” कराना है, और इससे “विकास” के लिए सरकारी फंड नहीं बचेगा। “विकास” से लोगों को रोजगार प्राप्त होगा और वे इन सेवाओं को बाजार से खरीदने में सक्षम हो जाएंगे। लेकिन सच्चाई इसके उलट है। “विकास” हो रहा है लेकिन रोजगार खत्म हो रहे हैं।”

सच्चाई यह है कि मोदी की कथित विकासमूलक नीतियों के नाम पर देशी-विदेशी धन कुबेर मालामाल हो रहे हैं और आम जनता बदहाल होती जा रही है।

ठीक इसी तरह अरविंद केजरीवाल या कांग्रेस का मॉडल भी नवउदारवादी अर्थनीति के दायरे में ही काम करता है, उसका निषेध नहीं करता। आज कम से कम ऐसी नीतियों की जरूरत है जो समाज के ऊपरी तबके, कार्पोरेट घरानों की संपत्ति पर कर लगाकर संसाधन जुटाए और उसे जनता की बुनियादी जरूरतों शिक्षा, स्वास्थ्य आजीविका, रोजगार सृजन, कृषि आदि पर खर्च करे। जाहिर है ऐसी नीतियां सुसंगत वामपंथी और लोकतांत्रिक ताकतें ही लागू कर सकती हैं।

इस बीच खबर है कि चुनाव के अंतिम चरण में राहुल गांधी रैलियां कर रहे हैं और प्रियंका भी रोड शो कर रही हैं। हालांकि पिछले दिनों अस्वस्थता के कारण राहुल की कई रैलियां रद्द हो गई थीं। प्रेक्षकों का मानना है कि युद्धस्तर पर चुनाव में न उतरना कांग्रेस की रणनीति का भी हिस्सा हो सकता है, ताकि भाजपा को दिल्ली पर कब्जा करने से रोका जा सके।

दिल्ली में NDA जहां एक संगठित ब्लॉक के बतौर चुनाव मैदान में है, वहीं इंडिया ब्लॉक के दो महत्वपूर्ण घटक न सिर्फ एक दूसरे के आमने-सामने हैं बल्कि एक दूसरे पर तीखे आरोप-प्रत्यारोप भी कर रहे हैं, वे नीतिगत प्रश्नों पर एक दूसरे को नहीं घेर रहे, बल्कि भाजपा की तरह एक दूसरे पर भ्रष्टाचार और मोदी से डरे होने के आरोप तक लगा रहे हैं।

इंडिया गठबंधन के एक अन्य घटक अखिलेश यादव आप के समर्थन में प्रचार करने जा रहे हैं। ममता बनर्जी ने भी उनका समर्थन किया है।

यह तय है कि हरियाणा और महाराष्ट्र की अप्रत्याशित जीत के बाद अगर भाजपा दिल्ली में भी चुनाव जीतने में सफल होती है तो यह जहां बिहार और यूपी के चुनावों में उसके लिए जबरदस्त morale booster साबित होगा, वहीं विपक्ष के मनोबल को तोड़ने वाला साबित होगा। इसलिए तमाम लोकतांत्रिक ताकतों को दिल्ली में भाजपा की शिकस्त सुनिश्चित करना होगा।

(लाल बहादुर सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं।)

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