Friday, March 29, 2024

दिल्ली दंगों में पुलिस पर सवाल उठाने वाले जजों का हो गया तबादला

दिल्ली हाईकोर्ट मोदी सरकार के साथ खड़ा नजर आ रहा है, क्योंकि दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा अधीनस्थ न्यायपालिका के हालिया तबादलों ने वर्ष 2020 में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के मुद्दे पर उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हिंसा और तीन भाजपा नेताओं के भड़काऊ बयानों को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस एस मुरलीधर द्वारा पुलिस और सरकार को फटकार लगाने पर आधी रात को उनके पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में तबादले कि याद दिला दी है। इसी तर्ज़ पर वर्ष 2020 में दिल्ली में हुए दंगों के कुछ मामलों में दिल्ली पुलिस की अक्षमता,असंवेदनशील और हास्यास्पद जांच की आलोचना करने वाले निचली अदालत के एक सत्र न्यायाधीश का राष्ट्रीय राजधानी की एक अन्य अदालत में बुधवार को तबादला कर दिया गया।

अभी पिछले हफ्ते ही उच्चतम न्यायालय के अवकाशप्राप्त न्यायाधीश जस्टिस कुरियन जोसेफ ने कहा था कि अगर न्यायाधीशों को मालिकों(बासेस)यानि राजसत्ता की बात नहीं सुनने के कारण उनके तबादले या उन्हें पदोन्नति से वंचित किया जाता है तो इससे न्यायपालिका की अखंडता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है ।न्यायपालिका में स्थानांतरण के का भी दिखाकर यह गलत संदेश दिया जा रहा है कि यदि कोई न्यायाधीश भय, पक्षपात, स्नेह और दुर्भावना के बिना अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने की संवैधानिक शपथ के अनुपालन में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करेगा तो तबादले या पदोन्नति से वंचित करके दंडित किया जा सकता है।

दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा जारी स्थानांतरण में फरवरी 2020 के दिल्ली दंगों से संबंधित मामलों की सुनवाई करने वाले एक विशेष न्यायाधीश सहित दिल्ली जिला अदालतों के ग्यारह न्यायिक अधिकारियों को अन्य असाइनमेंट / अदालतों में स्थानांतरित कर दिया गया है।दिल्ली दंगों के मामलों की सुनवाई कर रहे अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव को अब विशेष सीबीआई न्यायाधीश, राउज एवेन्यू कोर्ट के रूप में तैनात किया गया है।

स्थानांतरण आदेश के अनुसार, विशेष न्यायाधीश (सीबीआई) वीरेंद्र भट्ट न्यायाधीश यादव की जगह लेंगे।अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश यादव ने दिल्ली दंगों के मामलों में दिल्ली पुलिस द्वारा की गई जांच की आलोचना की थी।एक मामले में सत्र न्यायाधीश द्वारा लिखे गए आदेशों में से एक में आरोप पत्र दायर करने के तरीके की आलोचना की गई थी।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश यादव ने अपने स्थानांतरण से एक दिन पहले दिल्ली पुलिस की आलोचना करते हुए कहा था कि पुलिस के गवाह शपथ लेकर झूठ बोल रहे हैं’ और विरोधाभासी बयान दे रहे हैं।उन्होंने यह टिप्पणी उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के मामले की सुनवाई के दौरान की, जब एक पुलिसकर्मी ने तीन कथित दंगाइयों की पहचान की, लेकिन एक अन्य ने कहा कि जांच के दौरान उनकी पहचान नहीं की जा सकी।यादव ने कहा था कि यह बहुत ही खेदजनक स्थिति है।उन्होंने इस संबंध में पुलिस उपायुक्त (उत्तर पूर्वी) से रिपोर्ट मांगी थी।

न्यायाधीश यादव ने दंगों संबंधी कुछ मामलों में दिल्ली पुलिस की जांच से असहमति जताई थी तथा असंवेदनशील एवं हास्यास्पद”जांच के लिए कई बार उसकी खिंचाई की थी और जुर्माना भी लगाया था, जिसे बाद में उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी।

यादव ने सितंबर में पुलिस की आलोचना करते हुए कहा था कि विभाजन के बाद दिल्ली में हुए सबसे भयावह साम्प्रदायिक दंगों को इतिहास जब मुड़कर देखेगा, तो उचित जांच नहीं करने के कारण लोकतंत्र के प्रहरी को बहुत पीड़ा होगी। यादव ने एक अन्य मामले में कहा था कि 2020 उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगों के मामलों में जांच के मानक बहुत खराब’ रहे हैं।उन्होंने एक अन्य मामले में कहा था कि यह बहुत ही खेदजनक स्थिति है।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने कहा था कि यह देखा गया है कि अदालत में आधी-अधूरी चार्जशीट दाखिल करने के बाद, पुलिस शायद ही जांच को तार्किक अंत तक ले जाने की परवाह करती है। कई मामलों में फंसे आरोपी व्यक्ति इसके परिणामस्वरूप जेलों में सड़ते रहते हैं।आदेश मे कहा गया था कि यह देखा गया है कि अदालत में आधा-अधूरा चार्जशीट दाखिल करने के बाद, पुलिस शायद ही जांच को तार्किक अंत तक ले जाने की परवाह करती है। कई मामलों में फंसे आरोपी व्यक्ति इसके परिणामस्वरूप जेलों में सड़ रहे हैं।

एक अन्य आदेश में सत्र न्यायाधीश यादव ने वैज्ञानिक तरीकों को शामिल करने में “जांच एजेंसी की विफलता पर टिप्पणी की थी ।जज ने कहा था कि मैं खुद को यह देखने से रोक नहीं पा रहा हूं कि जब इतिहास दिल्ली में विभाजन के बाद के सबसे भीषण सांप्रदायिक दंगों को देखेगा, यह जांच एजेंसी की नवीनतम वैज्ञानिक विधियों का उपयोग करके उचित जांच करने में विफलता है, निश्चित रूप से लोकतंत्र के प्रहरी को पीड़ा होगी। उन्होंने पिछले कुछ महीनों में इस मामले में जांच पर नजर रखने और दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए दिल्ली पुलिस आयुक्त राकेश अस्थाना के हस्तक्षेप की मांग की थी।

स्थानांतरित अन्य अतिरिक्त सत्र न्यायाधीशों में संदीप यादव, जिन्होंने दक्षिण-पूर्व जिला साकेत अदालतों में पारिवारिक अदालत की अध्यक्षता की और संजीव कुमार सिंह (विद्युत न्यायालय) ने अध्यक्षता की। वे दोनों एक दूसरे की जगह लेंगे।

स्थानांतरित किए गए न्यायाधीशों के नामों की जानकारी देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने एक सार्वजनिक नोटिस में कहा है कि माननीय मुख्य न्यायाधीश और इस अदालत के माननीय न्यायाधीशों ने दिल्ली उच्च न्यायिक सेवा में तत्काल प्रभाव से पदस्थापन/स्थानान्तरण किए हैं।महापंजीयक मनोज जैन के हस्ताक्षर वाले सार्वजनिक नोटिस में कहा गया है कि जिन न्यायिक अधिकारियों का स्थानांतरण किया जा रहा है, उन्हें प्रभार सौंपने से पहले उन मामलों को अधिसूचित करने का निर्देश दिया गया है जिनमें उन्होंने अपने निर्णय या आदेश सुरक्षित रखे हैं।

पूर्वोत्तर दिल्ली का यह दंगा फ़रवरी 2020 में हुआ था। नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के समर्थकों और उसके ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने वालों के बीच झड़प के बाद हिंसा में 50 से ज़्यादा लोग मारे गए थे और सैकड़ों घायल हुए थे। इसी दंगे से जुड़े मामलों में न्यायाधीश विनोद यादव सुनवाई कर रहे थे।

आधीरात में जस्टिस मुरलीधर का हुआ था तबादला

फरवरी 2020 में दिल्ली हिंसा में घायलों को समुचित इलाज और सुरक्षा मुहैया कराने की मांग वाली याचिका पर आधी रात सुनवाई करने और भाजपा नेताओं के खिलाफ दंगा भड़काने के आरोप में मुकदमा दर्ज करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करने वाले दिल्ली उच्च न्यायालय के जज जस्टिस एस मुरलीधर का तबादला पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में कर दिया गया था। 26 फरवरी 20 को उन्होंने इस मामले की सुनवाई अगले दिन के लिए स्थगित कर दिया था। बाद में इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष स्थान्तरित कर दिया गया था।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने भाजपा के तीन नेताओं के नफरत भरे भाषणों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने में दिल्ली पुलिस की नाकामी पर ‘रोष जताया और पुलिस आयुक्त से बृहस्पतिवार तक ‘सोच-समझकर’ फैसला लेने को कहा। अदालत ने सुनवाई के दौरान हाजिर विशेष पुलिस आयुक्त को ‘रोष’ के बारे में आयुक्त को बता देने को कहा। अदालत ने कहा कि शहर में बहुत हिंसा हो चुकी है तथा नहीं चाहते हैं कि शहर फिर से 1984 की तरह के दंगों का गवाह बने।

जस्टिस एस मुरलीधर और जस्टिस बलवंत सिंह ने कहा था कि पुलिस जब आगजनी, लूट, पथराव की घटनाओं में 11 प्राथमिकी दर्ज कर सकती है, तो उसने उसी तरह की मुस्तैदी तब क्यों नहीं दिखाई जब भाजपा के तीन नेताओं -अनुराग ठाकुर, प्रवेश वर्मा और कपिल मिश्रा के कथित नफरत वाले भाषणों का मामला उसके पास आया था । पीठ ने कहा था कि हम नहीं चाहते हैं कि शहर फिर से 1984 की तरह के दंगों का गवाह बने। शहर काफी हिंसा और आक्रोश देख चुका है ,1984 को दोहराने मत दीजिए।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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