Tuesday, March 19, 2024

कॉरपोरेट लूट और निजीकरण के खिलाफ किसानों-मजदूरों का देश भर में प्रदर्शन

देश के तमाम हिस्सों में किसान, मजदूर और कर्मचारी देश बचाने के लिए सड़कों पर उतरे। किसान-मजदूर विरोधी कानून, देश को कार्पोरेट के हवाले करने और देश की कंपनियों को बेचने के खिलाफ नौ अगस्त का दिन ‘देश बचाव दिवस’ के रूप में मनाया गया।

केंद्रीय श्रम संगठनों, क्षेत्रवार फेडरेशन और एसोसिएशनों के संयुक्त मंच के बैनर तले पूरे देश में, सभी कार्य स्थलों और केन्द्रों में सत्याग्रह, जेल-भरो कार्रवाई, जुलूस, सार्वजनिक रैलियों के देश-व्यापी कार्यक्रमों का आयोजन किया गया।

यह सरकार की कर्मचारी-विरोधी, किसान-विरोधी, जन-विरोधी और राष्ट्र-विरोधी नीतियों के लिए असहयोग और अवहेलना का एक-जुट संघर्ष था। लगभग सभी राज्यों में, कार्य-स्थानों, श्रम संघ कार्यालयों के साथ ही साइकिल और मोटरबाइक रैलियों, सार्वजनिक सभाओं के रूप में कार्यक्रम आयोजित किए गए।

दिल्ली में औद्योगिक क्षेत्रों में कार्यक्रम आयोजित किए गए। एक कार्यक्रम जंतर-मंतर पर भी आयोजित हुआ। इसमें केंद्रीय श्रम संगठनों के राष्ट्रीय नेताओं ने भाग लिया। इंटक से अशोक सिंह और राजिन, एटक की अमरजीत कौर, विद्या सागर गिरि, एचएमएस से हरभजन सिद्धू, सीटू से तपन सेन, हेमलता और देवरॉय, एआईयूटीयूसी से आरके शर्मा और चौरसिया; राजीव डिमरी और संतोष राय एआईसीसीटीयू से, लता सेवा से, यूटीयूसी से शत्रुजीत और एलपीएफ़ और एमईसी, बैंकों और बीमा क्षेत्र के नेता शामिल थे।

डॉ. संजीव रेड्डी अध्यक्ष, इंटक; मनाली शाह-सेवा; अशोक घोष-यूटीयूसी और शिव शंकर और देवराजन ने अपने-अपने राज्यों में भाग लिया। कई क्षेत्रों से गिरफ्तारी की रिपोर्ट मिली है।

राष्ट्रीय नेताओं ने जंतर-मंतर पर सभा को संबोधित करते हुए कहा कि लॉकडाउन के बाद कुछ औद्योगिक इकाइयों के खुलने के साथ, सभी श्रमिकों को वापस नहीं लिया जा रहा है। सिर्फ एक छोटा प्रतिशत नौकरियों में अपनी जगह पा रहा है और वह भी कम मजदूरी पर। लॉकडाउन अवधि के वेतन से वंचित किया जा रहा है। रोजगार और मजदूरी में कमी की इस चुनौती का सामना हमें एक-जुट संघर्ष के माध्यम से करना  होगा। 

उन्होंने कहा कि एमएसएमई स्वयं रिपोर्ट कर रहे हैं कि 30% से 35% इकाइयों के लिए अपनी गतिविधियों पुनः शुरू करना मुश्किल हो सकता है। बेरोजगारी की दर उच्चतम स्तर पर है और रोजगार ख़त्म हो रहे हैं। प्रख्यात वैज्ञानिकों और चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि कुपोषण बढ़ेगा, भूख से मौत एक दैनिक वास्तविकता बन जाएगी और अवसाद के परिणाम स्वरूप श्रमिकों द्वारा आत्म-हत्या का खतरा उत्पन्न होगा। इन सभी मुद्दों पर श्रमिक उत्तेजित हैं।

उन्होंने कहा कि सरकार न केवल महामारी को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाने में विफल रही, बल्कि उसने अल्प सूचना के साथ अनियोजित लॉकडाउन लागू किया, इससे लोगों, विशेष रूप से प्रवासी श्रमिकों  को गंभीर यातना झेलनी पड़ी। सरकार स्वास्थ्य प्रणाली के उन्नयन और अग्रिम पंक्ति के योद्धा को सुरक्षा उपकरण प्रदान करने के लिए आवश्यक कदम उठाने में भी विफल रही और उसने चार महीने का कीमती समय जाया कर दिया।

उन्होंने कहा कि सरकार न केवल रेलवे, रक्षा, बैंक, बीमा, दूर-संचार, डाक और अन्य क्षेत्रों के कर्मचारियों द्वारा प्रदान की जाने वाली अपार सेवाओं की पहचान में विफल रही, जो लॉकडाउन की अवधि के दौरान आवश्यक सेवाएं प्रदान कर रहे थे। बल्कि  उसने उनको हो रही समस्याओं की भी उपेक्षा की। सरकार ने कोविद-19 की समस्या से निपटने के लिए इसे मानव और समाज के लिए चिकित्सा आपात काल की बजाय कानून और व्यवस्था के मुद्दे के रूप में प्रस्तुत किया।

सरकार ने लाखों श्रमिकों, किसानों और समाज के अन्य कमजोर वर्गों को भारी कष्ट पहुंचाया है और वह केवल कॉर्पोरेट्स और बड़े व्यवसाइयों के साथ खड़ी हुई है।

सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम के विनिवेशन और थोक निजीकरण, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम- भारतीय रेल, रक्षा, बंदरगाह और डाक, कोयला, एयर-इंडिया, बैंक, बीमा समेत निजी क्षेत्रों में  100 प्रतिशत तक एफडीआई के प्रवेश की अनुमति के विरोध में केंद्रीय श्रम संगठनों  ने अपना विरोध दोहराया। 

अंतरिक्ष विज्ञान और परमाणु ऊर्जा आदि के क्षेत्र, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों, बीमा और अन्य वित्तीय क्षेत्रों को भी बड़े पैमाने पर निजीकरण के लिए लक्षित किया जा रहा है। भारतीय और विदेशी ब्रांडों के कॉर्पोरेट के पक्ष में सरकार के कदम देश के प्राकृतिक संसाधनों और व्यापार को बर्बाद  करने के लिए हैं।    

आत्म निर्भर भारत का नारा एक ढकोसला है। 48 लाख केंद्र सरकार के कर्मचारियों का महंगाई भत्ता और 68 लाख पेंशनधारकों की महंगाई राहत को फ्रीज करने का फैसला, जो राज्य सरकार के कर्मचारियों पर भी प्रभाव डाल रहा है। सरकारी कर्मचारियों और केंद्रीय श्रम संगठनों के विरोध के बावजूद वापस नहीं लिया गया है। न ही सभी गैर आयकर करदाताओं को 7500 रुपये के नकद हस्तांतरण की मांग को स्वीकार किया गया है।

लॉकडाउन अवधि की मजदूरी के भुगतान और मजदूरी में कोई कटौती नहीं करने के संबंध में अपने स्वयं के आदेश को लागू करने में विफल होने के बाद, जब कुछ नियोक्ता कोर्ट में गए तो, सरकार ने बेशर्मी से भारत के सर्वोच्च न्यायालय में अपने स्वयं के आदेश को वापस ले लिया।

सरकार निजीकरण और सार्वजनिक उपक्रम की बिक्री के साथ आगे बढ़ने के अपने अभिमानी रवैये पर कायम है। रक्षा उत्पादन जैसे अर्थव्यवस्था के महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में विदेशी निवेश को खतरनाक रूप से 49 से 74% तक उदार बनाया गया है। सरकार निजीकरण के लिए 41 आयुध कारखानों के निगमीकरण, भारतीय रेलवे के चरणबद्ध निजीकरण की अपनी परियोजना के साथ आगे बढ़ रही है।

हाल ही में सरकार ने भारतीय रेलवे के बुनियादी ढांचे और मानव शक्ति का उपयोग कर भारी लाभ कमाने के लिए निजी खिलाड़ियों को सुविधा प्रदान करने के लिए अत्यधिक आय वाले मार्गों में 151 ट्रेन सेवाओं के निजीकरण का विनाशकारी फैसला लिया है। विभिन्न सरकारी विभागों में नई नौकरियों के सृजन के लिए स्वीकृत पदों पर प्रतिबंध और नौकरियों के लिए युवा उम्मीदवारों के लिए प्रतिबंध जारी है जो कि नौकरियों के लिए युवा आकांक्षा के विरोध में है।

इन सबके साथ ही लगातार बढ़ती कीमतों ने लोगों की समस्याओं में इज़ाफ़ा किया है। ऐसी सरकार जिसके पास श्रमिकों और लोगों के अधिकारों और बुनियादी अस्तित्व-अधिकारों के प्रति कोई सम्मान और चिंता नहीं है, वह किसी भी सहयोग के लायक नहीं है।

आज सभी आवश्यक सावधानी बरतते हुए बीमारी का सामना करने के साथ ही हमारे संगठित होने, सामूहिक सौदेबाजी, काम करने की स्थिति, मजदूरी और भविष्य की सुरक्षा आदि के हमारे अधिकारों की रक्षा के लिए हम श्रमिकों, कर्मचारियों और ट्रेड यूनियनों को एक जुट रहने के लिए हर संभव प्रयास करने की आवश्यकता है।  

इस सरकार ने श्रमिकों और लोगों की बुनियादी मानवीय आवश्यकताओं के प्रति क्रूर असंवेदनशीलता का प्रदर्शन किया है। इसका समर्थन और सहयोग नहीं किया जा सकता है।

ऐक्टू ने भी दिल्ली में प्रदर्शन किया। ये प्रदर्शन मोदी सरकार की मजदूर-विरोधी, जन-विरोधी और विभाजनकारी नीतियों के साथ-साथ, तेजी से किए जा रहे निजीकरण के खिलाफ आयोजित किए गए। दिल्ली के जंतर-मंतर पर ऐक्टू और अन्य ट्रेड यूनियनों ने प्रदर्शन में हिस्सा लिया। इसमें दिल्ली परिवहन निगम, केंद्र और राज्य सरकारों के स्वास्थ्य संस्थानों, जल बोर्ड, स्कीम वर्कर्स समेत निर्माण व असंगठित क्षेत्र के मजदूरों ने अच्छी भागीदारी की।

एक्टू महासचिव अभिषेक ने कहा कि अपने पहले कार्यकाल से ही मोदी सरकार लगातार मजदूर-विरोधी कदम उठाए जा रही है। 44 महत्वपूर्ण क़ानूनों को खत्म करके 4 श्रम कोड लाने की प्रक्रिया तेज़ी से जारी है। कोरोना काल में ही काम के घंटे आठ से बढ़ाकर 12 कर दिए गए। विशाखापत्तनम से लेकर दिल्ली तक के कारखानों में मजदूरों के काम करने की स्थिति काफी भयावह है।

उन्होंने कहा कि हाल ही में हुई औद्योगिक दुर्घटनाओं में कई मजदूरों की जान तक चली गई और अनेक घायल हुए, पर फिर भी फैक्ट्री अधिनियम, औद्योगिक विवाद अधिनियम, ट्रेड यूनियन अधिनियम इत्यादि महत्वपूर्ण कानूनों को खत्म कर मजदूरों की सुरक्षा से खिलवाड़ किया जा रहा है। मोदी सरकार ने ट्रेड यूनियन संगठनों के सुझावों को न सिर्फ दरकिनार किया है बल्कि ठीक इसके उलट कदम उठाए हैं.

उधर, लोकतंत्र बचाओ दिवस के अवसर पर रासपहरी में मजदूर किसान मंच के महिला कार्यकर्ताओं ने अपनी मांगें रखीं। मनरेगा में काम दो, वनाधिकार  में पट्टा  दो, प्रवासी मजदूरों को उनका अधिकार दो के नारों के साथ उन्होंने अपनी आवाज बुलंद की।

आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट द्वारा रिहाई, कमाई, दवाई, पढ़ाई के सवाल  पर लोकतंत्र बचाओ दिवस का आयोजन किया गया। सीतापुर की लहरपुर, मिश्रिख, सीतापुर सदर, महोली, सिंधौली‌, बिसवां में यह आयोजन हुए। मिश्रिख में सुनीला रावत, लहरपुर में केशव राम, सीतापुर में कन्हैयालाल कश्यप, सिंधौली में अभिलाष, बिसवां में रोशनी गुप्ता के नेतृत्व में कार्यक्रम हुए।

बहराइच की महसी तहसील, हरदोई की संडीला तहसील में क्रमशः सुबोध यादव और नागेश के नेतृत्व में रिहाई, कमाई, दवाई, पढ़ाई के सवाल पर लोकतंत्र बचाओ दिवस आयोजित किया गया।

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