मणिपुर हिंसा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार 1 अगस्त को राज्य पुलिस को फटकार लगाई और पुलिस महानिदेश को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में पेश होने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि मणिपुर में राज्य मशीनरी पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है, कोई कानून-व्यवस्था नहीं बची। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने आज की सुनवाई में राज्य में जातीय हिंसा से संबंधित मणिपुर पुलिस की जांच को “सुस्त” बताया और बेहद तल्ख होकर कहा कि “राज्य की कानून-व्यवस्था और मशीनरी पूरी तरह से ध्वस्त हो गई है।”
पीठ यह जानकर हैरान था कि लगभग तीन महीने तक एफआईआर दर्ज नहीं की गई थी और हिंसा पर दर्ज 6000 एफआईआर में से अब तक केवल कुछ ही गिरफ्तारियां हुई हैं। कोर्ट ने मणिपुर के पुलिस महानिदेशक को शुक्रवार दोपहर 2 बजे व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में उपस्थित होने का निर्देश दिया।
पीठ ने आदेश में कहा “प्रारंभिक आंकड़ों के आधार पर, प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि जांच में देरी हुई है। घटना और एफआईआर दर्ज करने, गवाहों के बयान दर्ज करने और यहां तक कि गिरफ्तारियों के बीच काफी चूक हुई है। अदालत को आवश्यक जांच की प्रकृति के सभी आयामों को समझने में सक्षम बनाने के लिए, हम मणिपुर के डीजीपी को व्यक्तिगत रूप से शुक्रवार दोपहर 2 बजे अदालत में उपस्थित होने और अदालत के सवालों का जवाब देने की स्थिति में होने का निर्देश देते हैं।”
पीठ मणिपुर हिंसा से संबंधित कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें यौन हिंसा के पीड़ितों द्वारा दायर याचिकाएं भी शामिल थीं। कल, पीठ ने राज्य से कई प्रश्न पूछे थे। राज्य की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने आज पीठ को सूचित किया कि 6532 एफआईआर दर्ज की गई हैं और उनमें से 11 महिलाओं के खिलाफ अपराधों से संबंधित हैं।
सीजेआई ने पूछा कि इनमें से कितनी ‘शून्य’ एफआईआर हैं। सीजेआई ने उन तारीखों के बारे में भी पूछा जब यौन हिंसा की घटनाओं के संबंध में ‘शून्य’ एफआईआर को नियमित एफआईआर के रूप में परिवर्तित किया गया था। एसजी ने कहा कि वह तत्काल प्रतिक्रिया देने की स्थिति में नहीं हैं क्योंकि 6532 एफआईआर से संबंधित चार्ट अधिकारियों द्वारा रात भर में तैयार किया गया था और उन्हें दिन में यह जानकारी दी गई थी।
सीजेआई ने यौन हिंसा वीडियो से जुड़े मामले में गिरफ्तारी की तारीख के बारे में भी पूछा। एसजी कोई विशिष्ट उत्तर नहीं दे सके लेकिन उन्होंने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि वीडियो सामने आने के बाद इसमें सुधार किया जा सकता है। सीजेआई ने एसजी द्वारा प्रस्तुत नोट को देखने के बाद कहा कि एक बात बहुत स्पष्ट है। एफआईआर दर्ज करने में इतनी लंबी देरी हुई है।
सीजेआई ने एक महिला को कार से बाहर खींचने और उसके बेटे की पीट-पीटकर हत्या करने की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि 4 मई की घटना के संबंध में 7 जुलाई को एफआईआर दर्ज की गई थी। यह एक गंभीर घटना थी। सीजेआई ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि एक या दो मामलों को छोड़कर, कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है।
सीजेआई ने कहा कि जांच बहुत सुस्त है। दो महीने के बाद एफआईआर दर्ज की गई। गिरफ्तारी नहीं हुई। लंबे समय के बाद बयान दर्ज किए गए। एसजी ने कहा कि जमीन पर हालात खराब थे और जैसे ही केंद्र को पता चला, कार्रवाई की गई। सीजेआई ने पूछा कि इससे हमें यह आभास होता है कि मई की शुरुआत से लेकर जुलाई के अंत तक कोई कानून नहीं था। मशीनरी पूरी तरह से खराब हो गई थी कि आप एफआईआर भी दर्ज नहीं कर सके। क्या यह इस तथ्य की ओर इशारा नहीं करता है कि राज्य में मशीनरी, कानून और व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो गई थी?
सीजेआई ने कहा कि राज्य पुलिस जांच करने में असमर्थ है। उन्होंने नियंत्रण खो दिया है। वहां बिल्कुल भी कानून-व्यवस्था नहीं है।सीजेआई ने कहा कि 6000 एफआईआर में आपने 7 गिरफ्तारियां की हैं। एसजी ने स्पष्ट किया कि 7 गिरफ्तारियां वायरल वीडियो घटना के संबंध में की गईं और कुल मिलाकर 250 गिरफ्तारियां की गईं और 12000 गिरफ्तारियां निवारक उपायों के रूप में की गईं। एसजी ने कहा कि माननीय न्यायालय के शब्दों के परिणाम हो सकते हैं, इसका उपयोग या दुरुपयोग उन तरीकों से किया जा सकता है, जिनका इरादा नहीं था।
सीजेआई ने यह भी पूछा कि क्या महिलाओं को भीड़ के हवाले करने वाले पुलिसकर्मियों से पूछताछ की गई। सीजेआई ने गरजते हुए कहा कि महिलाओं के बयान हैं जो कह रहे हैं कि पुलिसवालों ने उन्हें भीड़ के हवाले कर दिया। क्या उन पुलिसकर्मियों से पूछताछ की गई है? क्या डीजीपी ने पूछताछ की है? डीजीपी क्या कर रहे हैं? यह उनका कर्तव्य है।
सीजेआई ने कहा कि यह स्पष्ट है कि दो महीनों के लिए, राज्य पुलिस प्रभारी नहीं थे। उन्होंने प्रदर्शनात्मक गिरफ्तारियां की होंगी, लेकिन वे प्रभारी नहीं थे। या तो वे ऐसा करने में असमर्थ थे या इसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी। पीठ ने यह भी कहा कि सभी एफआईआर को सीबीआई को स्थानांतरित करना असंभव है क्योंकि इससे केंद्रीय एजेंसी टूट जाएगी। एसजी ने कहा कि फिलहाल मौजूदा प्रस्ताव यौन हिंसा के 11 मामलों को सीबीआई को ट्रांसफर करने का है।
सीजेआई ने कहा कि इसलिए इन 6500 एफआईआर को विभाजित करने के लिए एक तंत्र की आवश्यकता है। क्योंकि सभी 6500 का बोझ सीबीआई पर नहीं डाला जा सकता है अन्यथा इसके परिणामस्वरूप सीबीआई तंत्र भी टूट जाएगा।
पीठ ने एक बयान देने को कहा, जिसमें बताया जाए:
1. घटना की तारीख
2. जीरो एफआईआर दर्ज करने की तारीख
3. नियमित एफआईआर दर्ज करने की तारीख
4. वह तारीख जिस दिन गवाहों के बयान दर्ज किए गए हैं
5. तारीख जिस दिन 164 के बयान दर्ज किए गए तथा
6. गिरफ़्तारी की तारीख
सीजेआई ने संकेत दिया कि कोर्ट, हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीशों की एक समिति गठित करने के बारे में सोच सकता है जो स्थिति, पुनर्वास, घरों की बहाली का समग्र मूल्यांकन करेगी और यह सुनिश्चित करेगी कि बयान दर्ज करने से संबंधित पूर्व-जांच प्रक्रिया उचित तरीके से चले।
सीजेआई ने संबंधित पक्षों से उस इकाई पर भी राय मांगी, जिसे मामलों की जांच सौंपी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि सभी मामलों को सीबीआई को स्थानांतरित करना अव्यावहारिक है। साथ ही राज्य पुलिस जांच करने की स्थिति में नहीं है। इसलिए एक स्वतंत्र संस्था के गठन की जरूरत है।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने यह भी स्पष्ट किया कि पीड़ितों की पहचान की परवाह किए बिना एक समान दृष्टिकोण अपनाया जाएगा। मैं दोहराता हूं, हमारा दृष्टिकोण इस बात की परवाह किए बिना है कि अपराध किसी ने भी किया है। अपराध तो अपराध है, भले ही पीड़ित/अपराधी कोई भी हो।
सुप्रीम कोर्ट ने 20 जुलाई को इस मुद्दे पर स्वत: संज्ञान लिया और केंद्र और राज्य सरकार को अपराधियों को कानून के दायरे में लाने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी देने का निर्देश दिया। अदालत ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि वह सरकार को कार्रवाई करने के लिए थोड़ा समय देगी, लेकिन अगर जल्द ही कुछ नहीं किया गया तो वह हस्तक्षेप करेगी।
जवाब में केंद्र सरकार ने मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंपने का फैसला किया। अपराध की गंभीरता को देखते हुए मणिपुर राज्य सरकार की सहमति से यह कदम उठाया गया। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से मुकदमे को मणिपुर राज्य से बाहर किसी अन्य राज्य में ट्रांसफर करने का भी अनुरोध किया। इसके साथ ही उसने आरोपपत्र दाखिल करने के छह महीने के भीतर मुकदमा पूरा करने का निर्देश देने की भी मांग की।
(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)