Friday, March 29, 2024

झारखण्ड की प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा में डिजिटल शिक्षा के झूठ का पर्दाफाश 

कोविड -19 से समाज का हर वर्ग एवं क्षेत्र प्रभावित हुआ है। देखा जाए तो इसका सबसे ज्यादा प्रभाव शिक्षा पर पड़ा है। बता दें कि कोविड काल में शिक्षा पर पड़े प्रभाव को लेकर ज्ञान विज्ञान समिति झारखण्ड व भारत ज्ञान विज्ञान समिति ने साथ मिलकर एक टीम के तहत बड़े पैमाने पर झारखंड के 24 जिलों में 22,600 स्वयं सेवकों को प्रशिक्षित कर कोविड के समय स्वास्थ्य, रोजगार, शिक्षा पर भी काम करना शुरू किया। सरकारी स्कूल के बच्चे शिक्षा की चुनौतियों का समाना कैसे करें? समिति ने इस पर विशेष रूप से जागरूकता का काम शुरू किया था।

समिति ने ऑनलाइन शिक्षा के प्रभाव के अध्ययन के लिए एक सर्वेक्षण आयोजित किया। यह सर्वेक्षण 17 जिलों के 115 प्रखण्ड के 602 पंचायत के 877 गांवों में किया गया था। इस सर्वेक्षण में 662 स्वयं सेवक शामिल हुए जो 5118 घरों तक पहुंचे।

स्वयं सेवक जब गांव में शिक्षा पर हुए प्रभाव सर्वे का काम कर रहे थे तो उन्होंने पाया कि स्कूल बंद रहने के कारण बड़े पैमाने पर बच्चे अपनी पढ़ाई भूलने लगे हैं। जबकि उस समय तक सरकार के द्वारा ऑनलाइन शिक्षा शुरू हो चुकी थी।

सर्वेक्षण में यह पाया गया कि 93.6 प्रतिशत बच्चों के पास मोबाइल फोन नहीं था। तब यह सवाल लाज़मी हो जाता है कि यदि बच्चों के पास मोबाइल नहीं है तो बच्चों ने किसके मोबाइल से ऑनलाइन क्लास किया?

सर्वे में यह बात खुलकर आई कि 35.1 प्रतिशत बच्चों ने अपने माता-पिता के मोबाइल से, 4.6 प्रतिशत बच्चों ने अपने बड़े भाई के मोबाइल से तथा 5 प्रतिशत रिश्तेदार के मोबाइल से कभी कभी पढ़ाई करने की कोशिश की, जबकि 44.8 प्रतिशत को कुछ भी पता नहीं था। कोरोना संक्रमण काल के दो साल बाद सरकारी स्कूल के बच्चों की शिक्षा पर क्या प्रभाव पड़ा? इस पर हुए सर्वे की रिपोर्ट के पहले यह बताना जरूरी होगा कि कोरोना संक्रमण काल में सरकार की भूमिका क्या रही?

बताते चलें कि झारखंड सरकार के घोषित कार्यक्रम में कोविड -19 की पहली लहर में बच्चों की पढ़ाई बाधित न हो, उसे लेकर सरकारी स्कूल के पहली से 12वीं तक के बच्चों के लिए 11 मई 2020 से दूरदर्शन पर पढ़ाई शुरू की गई। कार्यक्रम के अनुसार सुबह 10 बजे से 12 बजे और दोपहर एक बजे से दो बजे तक अलग-अलग क्लास की पढ़ाई की गई। इसे लेकर झारखंड शैक्षणिक परियोजना परिषद ने डिजिटल कंटेंट तैयार कर दूरदर्शन को उपलब्ध कराया। 

सभी क्लास के लिए सुबह 10 बजे से साढ़े 10 बजे तक यूनिसेफ द्वारा तैयार “मीना की कहानी” और “जीवन कौशल” के बारे में बताया गया। कार्यक्रम के अनुसार बच्चों को गणित, अंग्रेजी, पर्यावरण, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, भौतिकी, रसायन शास्त्र व जीव विज्ञान पढ़ाया गया।

बता दें कि स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग ने इस संबंध में दूरदर्शन के साथ करार किया था कि यह पढ़ाई 11 मई से 10 जून यानी एक महीने तक लगातार जारी रहेगी। नियमित रूप से सोमवार से शुक्रवार तक प्रतिदिन दो पालियों में तीन घंटे तक पढ़ाई होगी। कोरोना संक्रमण की वजह से स्कूलों के बंद होने पर विभाग ने यह पहल की थी। दूरदर्शन पर हर दिन एक घंटे का प्रसारण निशुल्क था, जबकि दो घंटे के लिए झारखंड शिक्षा परियोजना परिषद से दूरदर्शन 12 हजार और 18 प्रतिशत जीएसटी के साथ 14,160 रुपए प्रतिदिन के आधार पर लिया। एक महीने में 2,83,200 रुपए का भुगतान दूरदर्शन को किया गया। दूरदर्शन को कंटेंट उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी जेईपीसी के डॉक्टर अभिनव कुमार और जेसीईआरटी के कीर्तिवास कुमार को दी गई थी। सरकार द्वारा घोषित किया गया कि इस पढ़ाई से 10 लाख बच्चे लाभान्वित हुए जबकि लगभग 13 लाख बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई से जोड़ा गया था। 

जब एक सर्वे के तहत गांवों में अभिभावकों से यह पूछा गया कि आपके घर में में डीटीएच कनेक्शन या केबल कनेक्शन के साथ चालू हालात में टीवी है। 84 प्रतिशत ने नहीं बताया 16 प्रतिशत ने हां में जवाब दिया। जबकि सरकारी दावों के मुताबिक 13 लाख बच्चे जिन्होंने 11 मई से 12 जून 2020 तक एक महीने दूरदर्शन पर पढ़ाई की, उससे 10 लाख बच्चों को फायदा हुआ।  

हम सर्वे को देखें तो मात्र 16 प्रतिशत अभिभावकों ने बताया है कि उनके घर में डीटीएच कनेक्शन या केबल कनेक्शन के साथ चालू हालात में टीवी है, जो 13 लाख में मात्र 2,08,000 का आंकड़ा ही बताता है। इसका मतलब सरकारी आंकड़ों में लगभग 8 लाख लाभान्वित बच्चों के आंकड़े पूरी तरह घपला साबित हुआ।

जबकि एक साल के बाद फिर से घोषणा हुई कि कोरोना की दूसरी लहर को देखते हुए राज्य के तमाम शिक्षण संस्थानों में पठन-पठान की प्रणाली में बदलाव किया गया है। ऑनलाइन तरीके से ही विद्यार्थियों तक पढ़ाई से जुड़ी सामग्री मुहैया कराई जा रही है। वहीं, सूबे के शिक्षा विभाग की ओर से एक बार फिर दूरदर्शन के माध्यम से पठन-पाठन संचालित किए जाने को लेकर तैयारी की जाने की घोषणा की गई।

बता दें कि वर्ष 2020 में कोरोना की पहली लहर के दौरान देश भर में लॉकडाउन था। लॉकडाउन काल में तमाम शिक्षण संस्थानों ने ऑनलाइन तरीके से पठन-पाठन का संचालन किया था। वर्ष 2021 में जनजीवन पटरी पर लौट रहा था कि कोरोना की दूसरी लहर आ गई। लोग बड़ी संख्या में संक्रमित होने लगे। एक बार फिर राज्य के तमाम शिक्षण संस्थानों में ताला लग गया और ऑनलाइन प्रणाली से पठन-पाठन की शुरुआत हुई।

बताना जरूरी होगा कि निजी स्कूलों की ओर से किसी तरह पठन-पाठन को व्यवस्थित तरीके से ऑनलाइन विभिन्न माध्यमों के जरिए करवाई जा रही थी। लेकिन सरकारी स्कूलों के लिए एक बार फिर समस्या आ गई, क्योंकि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले ग्रामीण छात्रों की संख्या अधिक थी। ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले छात्रों तक ऑनलाइन पढ़ाई से जुड़ी सामग्री पहुंचाना शिक्षा विभाग के लिए परेशानी भरा था। बावजूद इसके यह घोषणा की जाती रही कि शिक्षा विभाग की ओर से ह्वाट्सएप ग्रुप डीजे ऐप के माध्यम से बच्चों तक पठन-पाठन से जुड़ी सामग्री पहुंचाई जा रही है।

वहीं शिक्षा विभाग द्वारा फिर घोषित हुआ कि राज्य के सरकारी विद्यालयों के बच्चों के लिए दूरदर्शन पर कक्षा शुरू करने के लिए जल्द ही फिर से स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग और दूरदर्शन के अधिकारियों के साथ बातचीत की जाएगी। घोषित किया गया कि प्रतिदिन 3 घंटे कक्षा का संचालन किया जाएगा। कक्षा संचालन 12वीं तक के विद्यार्थियों के लिए होगा। 

बताया गया कि पिछले वर्ष दूरदर्शन पर सरकारी स्कूल के बच्चों के लिए कक्षा का संचालन किया गया था। जिसमें लगभग 10 लाख बच्चे लाभान्वित हुए थे। स्कूल बंद होने के बाद झारखंड शिक्षा परियोजना परिषद ने इस वर्ष फिर से बच्चों को ऑनलाइन लर्निंग मटेरियल भेजने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।

बताया गया कि पिछले वर्ष यानी मई 2020 में लगभग 13 लाख बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई से जोड़ा गया था। जो सरकारी स्कूलों में कक्षा 1 से 12 तक नामांकित कुल बच्चों का 29 फीसदी है। इस वर्ष इस की संख्या बढ़ाने की कोशिश शिक्षा विभाग की ओर से की जा रही है।

अब हम सर्वेक्षण पर बात करें तो यह सर्वेक्षण कार्य ज्ञान विज्ञान समिति द्वारा 10 अगस्त, 2021 को पूरा हुआ। इसके बाद समिति की राज्य कार्यकारिणी की बैठक में यह तय हुआ कि समिति के लोग अब बच्चों के बीच काम करेंगे। इसके लिए शुरू हुआ खेत खलियान में शिक्षा कार्यक्रम। बड़े पैमाने पर स्वयं सेवक इस काम में आये और बाद में सहयोग के लिए यूनिसेफ झारखण्ड आगे आई। यूनिसेफ के सहयोग से गिरिडीह एवं जमुआ गिरडीह के 2 प्रखंडों में सघन काम शुरू हुआ। यूनीसेफ के सहयोग से 10 हजार बच्चों में गुणात्मक शिक्षा पर काम शुरू हुआ और बाकी 50 हजार बच्चों को 85 पंचायतों में कोविड के बाद स्कूल तक ले जाने की योजना बनायी गयी।

इसी बीच लगातार केन्द्र सरकार और राज्य सरकार के द्वारा यह बताया जा रहा था कि बच्चों को शिक्षा के साथ जोड़े रखने के लिए ऑनलाइन पढ़ाई चलायी जायेगी और दूरदर्शन से भी बच्चों को लगातार पढ़ाया जायेगा।

अब हम जरा सरकार की डिजिटल शिक्षा के प्रसार के आकलन को स्कूल में इंटरनेट सेवा के साथ जोड़ कर देखें। इसके लिए हमें गत वर्ष में स्कूलों में इंटरनेट की स्थिति पर बात करना होगा। तो बता दें कि  ज्ञान विज्ञान समिति का दावा है कि भारत के 22 प्रतिशत स्कूलों में ही इंटरनेट सेवा है, 30 प्रतिशत  सरकारी स्कूलों में ही कंप्यूटर है।

2019 -2020 के आंकड़े के अनुसार 12 प्रतिशत सरकारी स्कूल में इंटरनेट की व्यवस्था है।

ऐसे में जब हम राज्य-वार डिजिटल कनेक्टिविटी की तरफ देखते हैं तो पाते हैं कि 87.84 प्रतिशत केरल, 85.69 प्रतिशत दिल्ली, 6.46 प्रतिशत उड़ीसा, 8.5 प्रतिशत बिहार, 10 प्रतिशत बंगाल, 13.62 प्रतिशत उत्तर प्रदेश में ही कनेक्टिविटी है।

इस आंकड़े से यह स्पष्ट होता है कि डिजिटल शिक्षा के प्रसार से अभिवंचित वर्ग के बच्चे शिक्षा से वंचित होंगे ही। केन्द्रीय सरकार ने जब शिक्षा पर सदन में बजट पेश किया तो उसने डिजिटल विश्वविद्यालय और कई दूरदर्शन चैनल को खोलने की बात की। सर्वे से यह स्पष्ट हो गया है कि लोगों के पास मोबाइल फोन नहीं हैं और ऐसे में शिक्षकों के द्वारा जो पढ़ाई की सामग्री मोबाइल में भेजी जाती हैं, क्या अभिभावक उनको खोल पाते हैं? क्या बच्चे दूरदर्शन से पढ़ाई करते हैं? 

इन बातों को लेकर समिति द्वारा 17 जिलों में एक सर्वेक्षण किया गया।

जिसमें 24 फरवरी 2022 से लगातार स्रोत समूह द्वारा ऑनलाइन बैठक, प्रशिक्षण, जिला स्तरीय प्रशिक्षण के बाद 31मार्च 2022 को सर्वेक्षण सम्पन्न हुआ।

पायलट सर्वे किया गया, उसके अनुभव को लेकर पुनः बातचीत की गई और सर्वे की शुरूआत की गयी।

 डिजिटल सर्वेक्षण में पाया गया कि पूरे देश में डिजिटल का हर क्षेत्र में उपयोग करने के कारण असमानता बढ़ी है। खास कर कोविड संक्रमण काल के बाद सभी सेवा को डिजिटल के माध्यम किया जा रहा है। विशेष रूप से शिक्षा एवं स्वास्थ्य क्षेत्र में डिजिटल माध्यम का उपयोग तेजी से किया जा रहा है। बताना जरूरी होगा कि कोविड काल में लोगों का रोजगार घटा है।

जब राष्ट्रीय सेम्पल सर्वे 2017 को देखा जाय तो हम पाते हैं कि 6 प्रतिशत ग्रामीण घरों में एवं 25 प्रतिशत शहरी घरों में कम्प्यूटर है। जब हम इंटरनेट की पहुंच देखते हैं तो 17 प्रतिशत ग्रामीण घरों में और 42 प्रतिशत शहरी घरों में इंटरनेट उपलब्ध है।

जब हम डिजिटल शिक्षा की बात करते हैं तो बच्चों को अधिक समय घर में रह कर ही पढ़ना पड़ेगा। यह सच है कि हमारे देश में घर में पढ़ने के वातावरण की कमी है। हमारे देश में 25 प्रतिशत लोग एक कमरे में रहते हैं। इस तरह के वातावरण में हम डिजिटल शिक्षा की बात कर रहे हैं, जो अव्यवहारिक व बेमानी है।

भारत ज्ञान विज्ञान समिति के महासचिव डॉ. काशीनाथ चटर्जी बताते हैं कि समिति द्वारा झारखण्ड के 20 जिलों के 58 प्रखंडों के 197 पंचायतों में 1,078 स्वयं सेवकों के द्वारा 7,885 घरों में सर्वेक्षण कार्य किया गया। सर्वेक्षण में 51.8 प्रतिशत महिला और 48.2 प्रतिशत  पुरूषों का आकलन किया गया। 

जिसमें 23 प्रतिशत अनुसूचित जन जाति, 21.3 प्रतिशत अनुसूचित जाति, 51.8 प्रतिशत ओबीसी से बातचीत की गई।

क्या आप को जानकारी है कि टीवी के माध्यम से बच्चों की पढ़ाई होती है? 86.3 प्रतिशत का जवाब नहीं में था। 13.7 प्रतिशत ने हां में जवाब दिया। क्या आपके घर में में डीटीएच कनेक्शन या केबल कनेक्शन के साथ चालू कंडीशन में टीवी है?

85 प्रतिशत ने नहीं बताया, 16 प्रतिशत ने हां में जवाब दिया। जबकि सरकारी दावों के मुताबिक 13 लाख बच्चे जिन्होंने 11 मई से 12 जून, 2020 तक एक महीने दूरदर्शन पर पढ़ाई की, जिससे 10 लाख बच्चों को फायदा हुआ। जो13 लाख में मात्र 2,08,000 का आंकड़ा ही बताता है। इसका मतलब सरकारी आंकड़ों में लगभग 8 लाख का सरकारी घपला सामने।

 क्या आपके बच्चे टी.वी से पढ़ाई करते हैं?

 96.9 प्रतिशत नहीं तथा 3.1 प्रतिशत हां कहा। इसका अर्थ यह हुआ कि 7,885 में से मात्र 244 बच्चों ने टीवी से पढ़ाई की।

टीवी में जब बच्चे पढ़ते हैं तो उनका निगरानी हो पाता है? 

73.4 प्रतिशत हां में जवाब दिया, 16.4 प्रतिशत ने नहीं कहा और 10.2 प्रतिशत ने कभी कभी कहा।

क्या बच्चे टीवी पर पढ़ते समय एजुकेशन चैनल बदल कर इंटरटेनमेंट चैनल को देखते हैं?

 25.4 प्रतिशत हां, 25.8 प्रतिशत नहीं तथा 54.1 प्रतिशत ने कभी कभी बताया।

 क्या बच्चों के पास अपना स्मार्ट मोबाईल फोन है?

 97.3 प्रतिशत ने नहीं, 2.7 प्रतिशत ने हां में जवाब दिया

 क्या अभिभावक के पास स्मार्ट मोबाइल फोन है?

 54.2 प्रतिशत ने हां, 54.8 प्रतिशत ने पास नहीं कहा।

 क्या पिछले लॉकउाइन में बच्चों ने मोबाइल से पढ़ाई की थी?

 87.3 प्रतिशत नहीं तथा 7.6 प्रतिशत ने हां में जवाब दिया।

 मतलब 7,885 में से मात्र 602 बच्चे ही मोबाइल से शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। 

 जब यह पूछा गया कि बच्चे किसके मोबाइल से पढ़ाई करते थे?

 82.2 प्रतिशत अभिभावक के मोबाइल से, 9.6 प्रतिशत स्वयं के मोबाइल से।

बच्चे मोबाइल में क्या पढ़ रहे हैं इसकी निगरानी अभिभावक के द्वारा हो पाती थी?

 61.8 प्रतिशत हां, 15.0 प्रतिशत नहीं, 22.3 प्रतिशत कभी-कभी।

 क्या आपके मोबाइल पर पढ़ने के लिए स्टडी मटेरियल उपलब्ध कराया जाता है?

 68.9 प्रतिशत हां, और 18.9 प्रतिशत  नहीं, 12.1 प्रतिशत जानकारी नहीं है।

 उपलब्ध कराई गई स्टडी मेटेरियल का नेचर किस प्रकार है? 

31.9 प्रतिशत ने बताया वीडियो, 14.3 प्रतिशत ने कहा ऑडियो, 8 प्रतिशत ने पीडीएफ और 39.2 प्रतिशत ने बताया सभी मिला हुआ।

 मोबाइल में उपलब्ध कराई गई स्टडी मटेरियल से बच्चा अपने क्लास का स्टडी मैटेरियल का चुनाव कर पाता था? 

 43.9 प्रतिशत हां, 26.6 प्रतिशत नहीं, 17.1 प्रतिशत कभी कभी तथा 12.5 प्रतिशत बता नहीं सकते।

मोबाइल में स्टडी करते समय सबसे अधिक दिक्कत क्या होती थी?

35.5 प्रतिशत नेटवर्क प्राब्लम,12.6 प्रतिशत रिचार्ज की कमी,11.6 प्रतिशत समझने में दिक्कत, 25 प्रतिशत लगभग या सभी 8.5 प्रतिशत कोई दिक्कत नहीं।

 क्या आपको लगता है कि कोविड 19 के कारण बच्चों के शिक्षा में आई हुई कमी को पूरा करने के लिए स्कूल के अलावा कुछ अलग व्यवस्था होनी चाहिए?

 97.5 प्रतिशत हां कहा।

क्या आपके गांव में ज्ञान विज्ञान समिति झारखण्ड और यूनिसेफ के द्वारा संयुक्त रूप से संचालित सामुदायिक शिक्षण केन्द्र चलता है? 

78.7 प्रतिशत ने हां, 18.1 प्रतिशत  नहीं, 3.2 प्रतिशत को पता नहीं था।

 क्या आपके बच्चे सामुदायिक शिक्षण केन्द्र में जाते हैं?

 91.1 प्रतिशत ने हां कहा।

सामुदायिक शिक्षण केन्द्र के सहयोग से आपके बच्चे के सीखने के स्तर, ज्ञान के स्तर और फिर से स्कूल से जुड़ने में सहयोग प्राप्त हुआ है?

 98.3 प्रतिशत ने हां कहा।

(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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