दिल्ली हिंसा की अब चीफ जस्टिस डी एन पटेल करेंगे सुनवाई। दिल्ली हिंसा के लिए जिम्मेदार 3 बीजेपी नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट में जस्टिस मुरलीधर ने सरकार और दिल्ली पुलिस से तीखे सवाल पूछे। इसके बाद केंद्र सरकार ने जस्टिस मुरलीधर के तबादले की अधिसूचना जारी कर दी। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस मुरलीधर का तबादला पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में करने की सिफारिश की थी। अब इस मामले को अब चीफ जस्टिस डीएन पटेल की कोर्ट में शिफ्ट कर दिया गया है।यह सब आनन फानन में किया गया है जिससे केंद्र सरकार की छवि को और धक्का लगा है।
दरअसल मुख्यत: हर्ष मंदर की याचिका पर पहले बुधवार को चीफ जस्टिस डीएन पटेल की अदालत में ही सुनवाई होनी थी। लेकिन बुधवार को चीफ जस्टिस डीएन पटेल और कोर्ट के सबसे वरिष्ठ जज जस्टिस जीएस सिस्तानी, दोनों ही मौजूद नहीं थे। इस कारण हर्ष मंदर के वकील कॉलिन गोंजाल्वेस ने मामले को जस्टिस मुरलीधर की अदालत में पेश किया, जिस पर बुधवार को सुनवाई हुई। जस्टिस पटेल और जस्टिस सिस्तानी के बाद जस्टिस मुरलीधर ही हाईकोर्ट के सबसे वरिष्ठ जज हैं।
चूंकि, याचिका को अति आवश्यक के तौर पर पेश किया गया था, इसीलिए जस्टिस मुरलीधर इस मामले की सुनवाई के लिए सहमत हुए और उन्होंने अधिकारियों को नोटिस जारी किया। बुधवार इस मामले की सुनवाई दोपहर 12.30 बजे होनी थी, जिसमें तीखे सवाल जवाब हुए। मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस मुरलीधर और जस्टिस तलवंत सिंह ने सॉलिसिटर जनरल और दिल्ली पुलिस के तीखे सवाल पूछे।
सबसे पहले इसी बात पर अदालत ने नाराजगी जाहिर की जब तुषार मेहता ने कहा कि इस मामले की अर्जेंट हियरिंग यानी तुरंत सुनवाई की जरूरत नहीं है, खासतौर से बीजेपी के तीन नेताओं कपिल मिश्रा, परवेश वर्मा और अनुराग ठाकुर के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग निराधार है। मेहता ने तर्क देते हुए कहा कि उन्होंने इन तीनों नेताओं के भाषणों के वीडियो नहीं देखे हैं, वहीं दिल्ली के डीसीपी क्राइम ब्रांच राजेश देव ने भी इन वीडियो को न देखने की बात कही।
इस पर जजों ने पूछा कि, “क्या आप कह रहे हैं कि दिल्ली के पुलिस कमिश्नर ने इन वीडियो को नहीं देखा है?” जस्टिस मुरलीधर ने कहा कि, “दिल्ली पुलिस की हालत से मैं हैरान हूं।” इसके बाद कोर्ट ने वीडियो को कोर्ट में चलाने को कहा। इसके बाद कोर्ट ने तुषाम मेहता को दोपहर 2.30 बजे तक का समय दिया।
सुनवाई के दौरान हर्ष मंदर के वकील कॉलिन गोंजाल्वेस ने तर्क रखे कि आखिर इन तीनों नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की क्यों जरूरत है। इस पर तुषार मेहता ने एतराज जताया कि आखिर याचिकाकर्ता ने इन्हीं तीन नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग क्यों की है। उन्होंने कहा कि बहुत से नेताओं ने भड़काऊ भाषण दिए हैं, ऐसे में हर्ष मंदर को बताना चाहिए कि सिर्फ इन्हीं नेताओं के खिलाफ एफआईआर की क्यों मांग की जा रही है।
इस पर जस्टिस मुरलीधर ने कहा कि आपके इस तर्क से पुलिस की छवि और खराब होती है। आप कह रहे हैं कि पुलिस न सिर्फ इन तीन वीडियो क्लिप का संज्ञान लेने में नाकाम रही, बल्कि और भी कई क्लिप्स हैं जिनका संज्ञान पुलिस ने नहीं लिया। इसके जवाब में तुषार मेहता ने कहा कि पुलिस विचार कर रही है और सही समय आने पर मामला दर्ज किया जाएगा। इस पर जस्टिस मुरलीधर ने पूछा, “सही समय क्या होगा? जब पूरा शहर जल जाएगा?”
उन्होंने कहा कि अदालत का काम लोगों की जिंदगी और स्वतंत्रता की रक्षा करना है, और एक संवैधानिक अदालत होने के नाते हम आंखें बंद नहीं कर सकते। इसके बाद कोर्ट ने पूछा कि इस हिंसा में कितने लोगों की जान गई है। इसके जवाब में फिर तुषार मेहता ने कहा कि पुलिस सही वक्त पर माहौल सही होने के बाद कार्रवाई करेगी। इस पर कोर्ट ने कहा, “अगर आप एक्शन लेने में नाकाम रहेंगे तो हालात और माहौल सही कैसे होगा।” इस पर तुषार मेहता ने कहा कि आप नाराज हो रहे हैं, इसके जवाब में जस्टिस मुरलीधर ने कहा कि नाराज नहीं, गुस्सा हूं।
जस्टिस मुरलीधर के तबादले के बाद यह मामला अब चीफ जस्टिस की अदालत में चला गया है। लेकिन तबादले की टाइमिंग को लेकर न्याय की निष्पक्षता का सवाल जरूर उठ गया है और इससे सरकार की विश्वसनीयता में और गिरावट आना निश्चित है।
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