ग्राउंड रिपोर्ट: अग्निपथ ने तोड़ दिये पहाड़ के युवाओं के सपने

देहरादून। आर्मी में भर्ती होना उत्तराखंड के 80 प्रतिशत युवाओं का सपना होता है और राज्य की अस्थाई राजधानी देहरादून सपनों की नगरी। पहाड़ के हर युवा को लगता है कि वह किसी न किसी तरह देहरादून पहुंच जाए तो उसके सपनों को पंख लग जाएंगे। दरअसल देहरादून के इस मोह के दो-तीन कारण हैं। पहला तो यह कि देहरादून में कुछ मैदान हैं, जहां सुबह-शाम दौड़ लगाकर फौज में भर्ती होने की तैयारी की जा सकती है। इन मैदानों के अलावा देहरादून की कुछ सड़कें भी हैं, जहां दौड़ने का अभ्यास किया जा सकता है। कुछ युवा यहां आकर दिन में कोई छोटा-मोटा काम तलाश लेते हैं और शाम सुबह -शाम इन मैदानों में दौड़ लगाते हैं। पहाड़ से आये कई युवक सुबह-शाम देहरादून के मैदानों में अभ्यास करने के साथ अपनी पढ़ाई भी करते हैं। यही वजह है कि देहरादून के मैदानों और कई सड़कों पर सुबह-शाम बड़ी संख्या में युवा दौड़ लगाते नजर आ जाते हैं।

केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार की अग्निपथ योजना के बाद फौज में भर्ती होने के लिए तैयारियां कर रहे युवकों पर क्या असर पड़ा है, यह जानने के लिए मैंने सुबह-सुबह ऐसे कुछ मैदानों और सड़कों पर निकलने की ठानी, जहां फौज में जाने के इच्छुक युवक अभ्यास करने आते हैं।  सुबह लगभग 5.30 बजे का वक्त है। मैं सीधे देहरादून शहर के बीचों-बीच परेड ग्राउंड की ओर चल पड़ता हूं। देहरादून में एक दिन पहले मानसून दस्तक दे चुका है और इस समय हल्की बूंदाबांदी हो रही है। मुझे मालूम है कि फौज में जाने की तैयारी कर रहे इन युवाओं में इतना जुनून होता है कि सर्दियों की सुबह को 3 डिग्री तापमान हो या फिर मानसून सीजन में 50 मिमी प्रति घंटा वाली बारिश, ये युवा अपना अभ्यास नहीं छोड़ते। कुछ देर के लिए ही सही, लेकिन वे दौड़ लगाने ज़रूर आते हैं। 

उत्तराखंड के दूर दराज के क्षेत्रों में सड़कों पर दौड़ लगाकर आर्मी में भर्ती होने की तैयारी कर रहे युवक नजर आ जाते हैं

आज परेड ग्राउंड में सिर्फ दो युवक ही दौड़ लगा रहे हैं। मैदान के किनारे बने फुटपाथ पर आर्मी के रंग वाला रेनकोट ओढ़े एक अधेड़ वॉकिंग कर रहे हैं। मैं उन्हें रोककर बातचीत करता हूं। मेरा अनुमान सही साबित होता है। वे आर्मी से रिटायर्ड हैं। नाम है मोहन सिंह। मूल रूप से पहाड़ के हैं, लेकिन यहीं परेड ग्राउंड के पास फालतू लाइन में रहते हैं। मैं पूछता हूं कि क्या अब इस ग्राउंड में आर्मी की तैयारी करने वाले लड़के कम आ रहे हैं। वे कहते हैं, अग्निवीर योजना आने के बाद सुबह यहां आने वाले लड़कों की संख्या कुछ कम हो गई है। फिर भी सौ-डेढ़ सौ आ जाते हैं। आज बारिश के कारण कुछ और कम आये हैं। मैं सीधे मुद्दे पर आता हूं और अग्निपथ योजना के नफे-नुकसान को लेकर सवाल करता हूं। मोहन सिंह इस योजना की खूबियां गिनाने लगते हैं। कहते हैं, लड़कों को समझना पड़ेगा कि यह योजना कितनी अच्छी है। 17 से 23-24 वर्ष की उम्र लड़कों के बिगड़ने की उम्र होती है। इस उम्र में आर्मी में रहेंगे तो अनुशासन में रहेंगे और फिर 10-12 लाख रुपये लेकर घर आएंगे तो कुछ अच्छा कर लेंगे। यह तर्क दरअसल मैं कई बार सुन चुका हूं। मैं मोहन सिंह से पूछता हूं, यदि यह योजना 20-25 वर्ष पहले आ गई होती तो क्या इस वक्त आप इतने निश्चिंत होकर मॉर्निंग वॉक कर रहे होते? उन्हें शायद ऐसे सवाल की उम्मीद नहीं थी। वे कहते हैं, देश का पैसा बचेगा और आगे बढ़ जाते हैं। मैं रोककर एक सवाल और दागता हूं, सभी रिटायर्ड फौजी अपनी पेंशन छोड़ दें तो देश के पास कितना सारा पैसा हो जाएगा? वे जवाब दिये बिना अपनी रफ्तार बढ़ा देते हैं।

दो लड़के इसी फुटपाथ पर दौड़ते हुए आ रहे हैं। उनके पीछे दो लड़के और हैं और पीछे एक और। मैं पांचों को रोक लेता हूं। ये सभी आर्मी की तैयारी कर रहे हैं और हर रोज सुबह शाम यहां आते हैं। सबसे आगे वाले दो युवक पिथौरागढ़ के एक सुदूरवर्ती गांव के हैं। पीछे के दो युवक चमोली जिले के कर्णप्रयाग के पास के किसी गांव के हैं। सबसे पीछे वाला युवक उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले का है। दो युवक 12वीं के छात्र हैं और पढ़ाई के साथ आर्मी में भर्ती होने की तैयारी कर रहे हैं। दो छोटा-मोटा जॉब करके अपना खर्च निकालते हैं, जबकि एक युवक सिर्फ आर्मी में भर्ती की तैयारी के लिए चमोली जिले से यहां आया है। 

कम हो गई है सुबह देहरादून के परेड ग्राउंड में दौड़ लगाने आने वाले युवकों की संख्या।

पांचों युवकों का कहना है कि अब सुबह यहां आने वालों की संख्या कुछ कम हो गई है। पिथौरागढ़ का युवक बताता है कि उनके साथ रहने वाले दो लड़के अग्निवीर के बाद घर चले गये हैं। कुछ देर इधर-उधर की बातें करने के बाद मैं युवकों से अग्निवीर योजना को लेकर सवाल पूछता हूं। सभी योजना को अच्छी बताते हैं। मैं उनसे कहता हूं कि मैंने उनका नाम नहीं पूछा है और न ही मैं उनमें से किसी का नाम पूछने वाला हूं। यहां तक मैं उनके गांवों का नाम भी नहीं पूछूंगा। इसलिए वे सच-सच बताएं कि इस योजना के बारे में वे क्या सोचते हैं? इस बीच तीन और युवक पहुंच चुके हैं और हमारी बातचीत में शामिल हो गये हैं। इन तीनों से भी मैं सिर्फ उनके जिले का नाम पूछता हूं। एक युवक पौड़ी जिले का है और दो टिहरी के। 

इन युवाओं को भरोसा हो गया है कि मैं इनका नाम उजागर नहीं करने वाला हूं। अब वे खुलकर बात करने के लिए तैयार हैं। एक युवक अपना डर बताता है। कहता है, यहां अक्सर पुलिस वाले आते हैं और कहते हैं कि योजना बहुत अच्छी है। विरोध करोगे तो तुम्हें आगे नौकरी मिलने में मुश्किल होगी। इसीलिए हम अग्निपथ के विरोध में होने वाले किसी आंदोलन में हिस्सा नहीं ले रहे हैं। युवकों का कहना है फिलहाल चार साल फौज की उम्मीद है, कोई बात हो गई तो ये उम्मीद भी खत्म हो जाएगी। अग्निपथ चर्चा के दौरान सभी युवकों के चेहरे पर निराशा उभर आई है। मुझे लगा, मैंने इनके घाव कुरेद दिये हैं। लेकिन, सच्चाई से कब तक मुंह फेरा जा सकता है। मैंने बातचीत जारी रखी।

युवकों ने बताया कि वे घर वालों से खर्चा लेकर देहरादून में रहकर तैयारी कर रहे हैं। घर वाले क्योंकि आर्थिक रूप से बहुत मजबूत नहीं हैं, वे भी किसी तरह उनका खर्च उठा रहे हैं, इस उम्मीद के साथ कि भर्ती हो गये तो सभी समस्याएं खत्म हो जाएंगी। लेकिन, अग्निपथ योजना ने उनके साथ ही उनके घर वालों के सपने भी तोड़ दिये हैं। वे फिर भी अभ्यास करना इसलिए नहीं छोड़ रहे हैं कि चार वर्ष के लिए ही सही, कुछ तो करना ही पड़ेगा। मैं युवाओं से थोड़ी देर पहले पूर्व फौजी से हुई बातचीत का जिक्र करता हूं। वे कहते हैं, उन्होंने अपना अच्छा समय निकाल दिया और आराम से रह रहे हैं, इसलिए उन्हें अंदाजा नहीं है कि चार साल में फौज से लौटकर आने वाले लड़कों की स्थिति क्या होगी। रिटायरमेंट के वक्त मिलने वाले 10 लाख रुपये के बारे में सवाल पूछने पर एक युवक कहता है, ‘‘आज के समय 10 लाख रुपये बहुत बड़ी रकम नहीं होती, चार साल बाद तो लगता है कि आज के 10 लाख की कीमत 5 लाख भी नहीं रहेगी और फौज से आने वाला लड़का इस रकम में सिर्फ शादी ही कर सकता है।’’ चमोली जिले का एक युवक सवाल करता है, ‘‘सरकार यदि पैसा बचाना चाहती है तो फिर केवल फौज में जाने वाले युवकों से ही पैसा क्यों बचाया जा रहा है, सबसे पहले तो नेताओं की पेंशन बंद करनी चाहिए।’’

फर्रुखाबाद जिले का युवक बताता है, ‘‘मैंने दो साल पहले फिजिकल निकाल लिया था। कोविड के कारण लिखित टेस्ट नहीं हो पाया। अब उम्मीद थी की रीटेन टेस्ट होगा और मैं फौज में चला जाऊंगा। लेकिन, अब सरकार ने पुराना फिजिकल रद्द कर नये सिरे से अग्निवीर में भर्ती की योजना निकाली है। पिछली बार फिजिकल निकालने के बाद मैंने नियमित दौड़ने और अभ्यास करने का सिलसिला बंद कर दिया था। अब पूरा फोकस रीटेन निकालने पर था। लेकिन, अग्निपथ योजना ने सारे सपने तोड़ दिये हैं। अब चार साल की नौकरी के लिए फिर से फिजिकल निकालने की तैयारी कर रहा हूं।’’ 

युवाओं का कहना है कि चार साल की फौज की नौकरी के बाद कई जगह नौकरियां मिलने की बात कही जा रही हैं, लेकिन 18-20 वर्ष फौज की नौकरी करने के बाद रिटायरमेंट आये कई लोग बेरोजगार हैं। उन्हें ज्यादा से ज्यादा प्राइवेट कंपनियों में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी मिल रही है।

देहरादून तो सिर्फ केस स्टडी है। इसके इतर पूरे राज्य में बड़ी संख्या में युवा फौज में जाने की तैयारियां करते हैं। हाल के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी का मुख्यमंत्री का चेहरा रह चुके और अब भाजपा में शामिल हो चुके कर्नल (सेवानिवृत्त) अजय कोठियाल तो युवाओं को फौज में भर्ती करवाने के नाम पर ही राज्य का मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे थे। दरअसल कर्नल कोठियाल का यूथ फाउंडेशन राज्य में कई जगहों पर युवाओं को फौज में भर्ती करने की ट्रेनिंग पिछले कई सालों से देता रहा है। कर्नल कोठियाल दावा करते रहे हैं कि यूथ फाउंडेशन में कैंपों में ट्रेनिंग करने वाले लगभग सभी युवा फौज में भर्ती हो जाते हैं। यह बात अलग है कि अग्निपथ योजना को लेकर भाजपा नेता बन चुके कर्नल कोठियाल और उनके यूथ फाउंडेशन की ओर से अब तक कोई टिप्पणी नहीं आई है। उत्तराखंड के दूर-दराज के गांवों में भी कई सेवानिवृत्त पूर्व सैनिक और अधिकारी युवाओं को फौज में भर्ती होने की ट्रेनिंग देते रहे हैं।

भर्ती ट्रेनिंग कैंपों से अलग राज्य के हजारों युवक अपने स्तर पर फौज में भर्ती होने की तैयारी करते हैं और सफल भी होते हैं। यही वजह है कि उत्तराखंड राज्य की अस्थाई राजधानी से लेकर दूर-दराज के क्षेत्रों की सड़कों, खेल के मैदानों और यहां तक कि खेतों और पगडंडियों पर भी सुबह-शाम दौड़ लगाते युवक नजर आ जाते हैं। केन्द्र सरकार ने एक ही झटके में इन सभी युवाओं और उनके परिवारों के सपनों को चकनाचूर कर दिया है।

सैन्य बहुल उत्तराखंड में अग्निपथ योजना के तीव्र विरोध होने की संभावना थी। कोटद्वार, देहरादून, हल्द्वानी और अल्मोड़ा में आंदोलन हुए भी। लेकिन, इन आंदोलनों में योजना से प्रभावित युवा नजर नहीं आये। दरअसल पुलिस ने आंदोलन की सुगबुगाहट शुरू होते ही अभ्यास वाले मैदानों और कोचिंग सेंटरों में जाकर और अन्य कई माध्यमों से युवकों को चेतावनी दे दी थी कि यदि उन्होंने ऐसे किसी आंदोलन में हिस्सा लिया तो उनको जेल जाना पड़ सकता है और ऐसे में भविष्य में उनको नौकरी मिलना मुश्किल हो जाएगा। बेरोजगारी से डरा-सहमा युवा इसीलिए अग्निपथ का खुलकर विरोध नहीं कर पा रहा है।

(देहरादून से वरिष्ठ पत्रकार त्रिलोचन भट्ट की रिपोर्ट।)

त्रिलोचन भट्ट
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