Tuesday, March 19, 2024

वर्धा स्थित गांधी अध्ययन केंद्र पर ग्रहण

महाराष्ट्र के वर्धा स्थित गांधी विचार परिषद पर ग्रहण लग गया है। देश विदेश के सैकड़ों युवाओं को गांधी का पाठ पढ़ाने वाला यह संस्थान बंद किया जा रहा है। इसको लेकर हड़कंप मच गया है। इस केंद्र का संचालन स्वाधीनता सेनानी जमनालाल बजाज फाउंडेशन करता है। लोग हैरान है कि जिस जमनालाल बजाज ने गांधी जी के लिए सर्वस्व न्योछावर कर दिया था। आज उनके वंशज उस संस्थान को क्यों बंद कर रहे हैं। जबकि इस संस्थान से महात्मा गांधी के साथ उनके पूर्वज जमनालाल बजाज की भी त्याग तपस्या की स्मृतियां जुड़ी हुई हैं।

संस्थान के बंद होने की भनक मिलते ही इस परिषद से शिक्षित दीक्षित गांधी विचार के विद्यार्थियों सहित अनेक गांधी जन और प्रेमी सक्रिय हो गए हैं और उनके बीच इस संस्थान के भूत, भविष्य और वर्तमान पर मंथन शुरू हो गया है। हालांकि संस्थान की ओर से बन्दी की कोई औपचारिक घोषणा नहीं की गई है। कोरोना को लेकर संस्थान पिछले कई महीनों से बंद रहा। जुलाई से नए सत्र की शुरुआत होनी थी। और जब लॉकडाउन खुला तो संस्थान के कर्मचारियों को दूसरी संस्थाओं में समायोजित करने कहा गया है। इस कारण इसके बंद होने की आशंका बलवती हो गई है।

गांधी के साथ जमनालाल बजाज

वे इसके बंद होने पर सवाल खड़े कर रहे हैं। वे संगठित होकर यह मांग कर रहे हैं कि मौजूदा समय में महात्मा गांधी की प्रासंगिकता को देखते हुए इस संस्थान को बंद नहीं किया जाए बल्कि इसको और बेहतर तरीके से चलाए रखने का उपक्रम किया जाना चाहिए। इस संस्थान से शिक्षित होकर निकले ज्यादातर छात्र और उनके समर्थक इन दिनों जमनालाल बजाज फाउंडेशन के ट्रस्टियों को पत्र लिख रहे हैं। ईमेल कर रहे हैं। साथ ही इसके बंद होने के विरुद्ध सत्याग्रह करने पर भी विचार कर रहे हैं।

देश और दुनिया में गांधी के जीवन और उनके विचारों पर अध्ययन और शोध के लिए गांधी विचार परिषद की अपनी एक अलग पहचान है। इस संस्थान में अध्ययन के लिए भारत सहित विभिन्न देशों से भी विद्यार्थी आते रहे हैं। विदेशों में इसकी उपलब्धियों का आलम यह है कि सूडान की एक छात्रा इस संस्थान में पढ़ने आई तो उसके नियोक्ता ने उसे नौकरी से निकाल दिया। लेकिन जब वापस जाकर इस संस्थान के बारे में बताया तो नियोक्ता ने उसे बेहतर अभिवृद्धि के साथ फिर से नौकरी पर रख लिया।

अपनी कई अन्य गतिविधियों के कारण देश के दर्जन भर महत्वपूर्ण गांधी संस्थानों से भी बिल्कुल अलग है। यहां डिप्लोमा कोर्स के अलावा आल इंडिया यूनिवर्सिटी स्टूडेंट कैंप और महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी स्टूडेंट कैंप आदि आयोजन किए जाते रहे हैं। संस्थान की पहुंच देश के विश्वविद्यालयों और संस्थाओं के साथ दुनिया के बहुत से मुल्क की शैक्षणिक संस्थाओं तक हो गई है। गांधीजनों के बीच अपने अनूठे और मौलिक कार्यक्रमों के कारण इस संस्थान को लेकर अपनी एक अलग अवधारणा है।

यह गांधी पर केन्द्रित एक आवासीय शिक्षण संस्थान है, जहां गांधी को केवल किताबों में तलाश नहीं की जाती है बल्कि विद्यार्थियों को गांधी की तरह जीना भी सिखाया जाता है। संस्थान का वित्तपोषण भले जमनालाल बजाज फाउंडेशन करता है लेकिन संचालन परिषद के विद्यार्थी स्वयं लोकतांत्रिक तरीके से करते हैं। विद्यार्थियों का मंत्री मंडल होता है। उसमें एक प्रधानमंत्री और कई मंत्री होते हैं। इनके पास सफाई, अतिथि, खाद्य,श्रम और शिक्षा आदि विभाग होते हैं। प्रधानमंत्री का बाकायदा चुनाव होता है। ऐसे लोकतांत्रिक प्रयासों से एक संस्थान में एक रसता टूटती है और भारतीय लोकतंत्र को समझने का मौका मिलता है।

देश में उंगलियों पर गिने जाने लायक कुछ विश्वविद्यालय भी हैं, जहां गांधी विचारों की पढ़ाई होती है, लेकिन वहां की अध्ययन पद्धति अध्यापन और शोध तक ही सीमित है और स्थानीय राजनीति और लचर व्यवस्था के कारण वहां कोई प्रेरणादायक माहौल भी नहीं होता, जहां लोग गांधी को पूरी समग्रता में महसूस सके और समझ सके। अभी देश के पच्चीस विश्वविद्यालय में गांधी विचार की पढ़ाई होती है। एक भारतीय गांधी अध्ययन समिति भी है, जो इन दिनों विश्वविद्यालयों में गांधी संबंधित पाठ्यक्रम को एक समान बनाने की मांग कर रही है।

वर्धा स्थित गांधी विचार परिषद में पाठ्यक्रम और दिनचर्या और गतिविधियां एकदम अलग है। यहां परीक्षा नहीं होती। यहां के अध्ययन क्रम को डिप्लोमा कोर्स कहा जाता है। प्रारम्भ में तो यह डिप्लोमा भी नहीं कहा जाता था। विद्यार्थियों को गांधी के तत्व दर्शन, विचार और उनके जीवन व संदेशों के अध्ययन के साथ गांधी जी की दिनचर्या के मुताबिक जीना भी पड़ता है। यहां सुबह शाम सर्व धर्म प्रार्थना, चरखा चलाने,खेतों में श्रमदान करना,रसोई घर में कर्मचारियों को सहयोग करना, शौचालयों की, कमरे की और परिसर की सफाई करने के साथ अध्ययन सत्रों में सामूहिक चिंतन करना आदि सुबह से रात सोने के पहले तक की गतिविधियों में शामिल हैं।

राहुल बजाज

संस्थान में शिक्षकों की बहुत बड़ी फौज भी नहीं है। यहां स्वाध्याय को महत्व दिया जाता है। शिक्षक के रूप में देश के समाज कर्मी, गांधीवादी, चिंतक, लेखक, कलाकार, पर्यावरणविद्, आदि को आमंत्रित किया जाता है। सालाना करीब एक करोड़ के खर्चे में यह संस्थान चलता है, जिसकी व्यवस्था जमनलाल बजाज फाउंडेशन करता है। विद्यार्थियों के रुकने,खाने पीने की व्यवस्था निशुल्क है। यहां दाखिला लेने वाले ज्यादातर विद्यार्थी देश विदेश में जन सरोकार के काम से जुड़ी संस्थाओं और संस्थान से शिक्षित विद्यार्थी द्वारा ही भेजे जाते रहे हैं। संस्थान की ओर से दाखिले के लिए कोई विज्ञापन भी नहीं दिया जाता। यहां से शिक्षित होकर निकले विद्यार्थियों के लिए यह संस्थान उनकी जिंदगी को बदलने में बहुत सहायक साबित हुआ है। वे चाहते हैं कि यह संस्थान बंद नहीं हो बल्कि जरूरी सुधार के साथ और बेहतर तरीके से सदा के लिए संचालित होता रहे।

इस संस्थान का गरिमापूर्ण इतिहास रहा है। गांधी जी की शहादत के बाद उनके समकालीन आचार्य जेबी कृपलानी, काका कालेलकर, केजी मश्रुवाला, शंकर राव, जी रामचंद्रन और रविन्द्र वर्मा आदि ने मिल कर गांधी विचार परिषद की नींव डाली थी। काका कालेलकर इसके पहले अध्यक्ष बने। रविन्द्र वर्मा पहले सचिव बने। बाद में यह परिषद गांधी स्मारक निधि के गांधी तत्व प्रचार विभाग में समाहित हो गया। जमनालाल बजाज शताब्दी वर्ष 1987 में गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष रहते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री रविन्द्र वर्मा ने इस परिषद को गांधी पर अध्ययन और शोध के लिए, उनको नई पीढ़ी के युवाओं को ठीक से समझाने के लिए आवासीय संस्थान का रूप दिया।

रविन्द्र वर्मा ने दुनिया भर के अनुभव को ध्यान में रख कर इस संस्थान की मौलिक परिकल्पना की। यह वह समय था जब देश में विभिन्न गांधीवादी संस्थाओं और संगठनों द्वारा संचालित नियमित गांधी प्रशिक्षण शिविरों का सिलसिला पूरी तरह बंद हो गया था। देश में कहीं भी गांधी को ठीक से समझाने के लिए सरकारी तो दूर गैर सरकारी स्तर पर भी कोई गतिविधि संचालित नहीं की जा रही थी। गांधी विचार परिषद ने अपने नए जन्म के साथ तत्कालीन शून्यता को तोड़ा था। और अब तक पांच सौ से अधिक युवाओं को गांधी विचार और व्यवहार में दक्ष किया है। वे सभी सक्रिय हैं और संस्थान में प्राप्त ज्ञान और अनुभव से गांधी को जनता तक ले जा रहे हैं।

जमनालाल बजाज को महात्मा गांधी अपना पांचवा पुत्र मानते थे। उन्होंने गांधी जी के ट्रस्टीशिप के सिद्धांत का अक्षरशः पालन किया। उनके निधन के बाद इनकी पत्नी ने भी अक्षरशः पालन किया। महात्मा गांधी ने जब नमक सत्याग्रह के बाद अहमदाबाद स्थित साबरमती आश्रम का त्याग कर दिया था तो जमनालाल बजाज ने ही उनको वर्धा आने का निवेदन किया था। बजाज की मदद से ही सेवाग्राम में बापू की कुटिया का निर्माण हुआ और देश में अहमदाबाद के बाद सेवाग्राम गांधी महत्व के स्थल के रूप में विकसित और चर्चित हुआ।

गांधी विचार परिषद की शुरुआत भी जमनालाल बजाज जन्म शताब्दी वर्ष 1987 में सेवाग्राम आश्रम स्थित बापू की कुटिया से ही हुई। बाद में वर्धा शहर के गोपुरी में संस्थान को जब नया भवन मिला तो सारी गतिविधियां वहीं संचालित होने लगीं। लोगों को हैरानी है कि जिस बजाज ने महात्मा गांधी को वर्धा लाया और खुद को गांधी जी के आंदोलन में झोंका और इस तरह वे गांधी के इतने करीब हो गए कि उनको गांधी जी अपना पांचवां पुत्र कहने लगे। उन्हीं के वंशज क्यों कर इस संस्थान को बंद करने पर तुले हैं।

गांधी जगत की सर्वोच्च संस्था सर्व सेवा संघ के पूर्व अध्यक्ष डॉ. सुगन बरंथ ने गांधी विचार परिषद के एक वाट्सएप ग्रुप में संस्थान के पूर्व विद्यार्थियों, गांधी प्रेमियों से कहा है कि संस्थान ने 33 वर्षों से समाज के लिए योगदान दिया है। अब, विशेष रूप से कोविद -19 समय में, हमें अपने जीवन को जीवित रखने के लिए गांधी विचार और सिद्धांतों की आवश्यकता है।

हालांकि, यह एक निजी संस्थान है, जिसे बिना किसी उचित कारणों के तुरंत बंद नहीं किया जाना चाहिए। महात्मा गांधी, जमनालाल बजाज के अनुरोध पर सेवाग्राम (वर्धा) चले आए थे, अब उन्हीं के वंशज इस परोपकारी संस्थान को बंद कर रहे हैं। यह संस्थान काम करता है या नहीं, बस इसे भूल जाओ। हमारी कोशिश होनी चाहिए कि इस संबंध में, हमें क्या करने की आवश्यकता है। कृपया कोई भी पत्र या ईमेल तुरंत न लिखें।

  • सबसे पहले, हमें एक प्रभावी पत्र तैयार करना चाहिए, जिसमें IGS का इतिहास होना चाहिए, और भविष्य में योगदान भी होना चाहिए
  • इस स्थिति के मूल कारण क्या हैं?
  • क्या वास्तव में बजाज समूह के लिए एक छोटे संगठन को बनाए रखना मुश्किल है जो बजट एक करोड़ से कम है?

इसके आधार पर हमें एक पत्र का मसौदा तैयार करना है और फिर, कृपया अपनी स्वयं की भाषा में अनुवाद करें और इसे भेजें, अपने छोटे बायोडाटा के साथ, जिसमें यह उल्लेख होना चाहिए कि आप IGS से कैसे जुड़े हैं, आपको क्या फायदा हुआ। फिर, एक तारीख तय करें, उस दिन हमें सभी ट्रस्टियों को ईमेल भेजें। यदि हमें कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिलती है, तो दूसरे चरण के लिए जाएं।

(प्रसून लतांत वरिष्ठ पत्रकार एवं गांधीवादी कार्यकर्ता हैं।)

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