सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सुपर पावर बनी ईडी

उच्चतम न्यायालय के जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सी.टी. रविकुमार की पीठ द्वारा पीएमएलए की धारा 5, 8(4), 15, 17 और 19 के प्रावधानों की संवैधानिक घोषित करने और ईडी को गिरफ्तारी, कुर्की, तलाशी और जब्ती की शक्तियों को बरकरार रखने के फैसले के बाद ईडी देश की सबसे शक्तिशाली जांच एजेंसी बन गई है, जिस पर आपराधिक न्याय प्रक्रिया संहिता के प्रावधान लागू नहीं होते। वह किसी को भी, कभी भी, कहीं भी, गिरफ्तार कर सकती है, उसकी संपत्ति जब्त कर सकती है और छापेमारी कर सकती है।

यही नहीं ईडी के मामलों में यह जिम्मेदारी भी अभियुक्त की है कि वह बताए कि उसके पास कथित धन कहां से आया। जबकि सामान्य अपराधों में अपराध को सिद्ध करने का भार पुलिस पर होता है कि वह अपराध को सबूतों के साथ कोर्ट में साबित करे। ईडी अधिकारियों को पूछताछ में दिया गया बयान धारा 50 के तहत कोर्ट में स्वीकार्य है। क्योंकि ईडी को पुलिस नहीं माना गया है। जबकि सामान्य अपराधों में पुलिस को दिया गया बयान साक्ष्य अधिनियम की धारा 25 (पुलिस के समक्ष इबालिया बयान को सिद्ध नहीं करना) के तहत कोर्ट में स्वीकार्य नहीं माना जाता है।

नतीजतन भाजपा के शासनकाल में ज्यादातर जांच पड़ताल की कार्रवाई प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ही कर रही है, जबकि इससे पहले होने वाले बड़े-बड़े घोटालों की छानबीन या छापेमारी में हर जगह सीबीआई ही नजर आती थी। डॉ मनमोहन सिंह के शासनकाल तक एक्टिव रहने वाली सीबीआई पिछले 4 वर्षों में बैकग्राउंड में चली गई है और उसकी जगह ईडी ने ले ली। पिछले 8 वर्षों में ईडी की कार्रवाई में पांच से छह गुना का उछाल दर्ज किया गया है। हमने पड़ताल की कि किन वजहों से ईडी ने सीबीआई को पीछे धकेल दिया है।

यूपीए शासनकाल तक सीबीआई ही देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी मानी जाती थी। केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद जब इसी सीबीआई ने गैर भाजपा शासित राज्यों में कार्रवाई करनी चाही तो ये राज्य लामबंद हो गए। कोलकाता के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर रहे आईपीएस राजीव कुमार के समर्थन में सीएम ममता बनर्जी ने न केवल धरना-प्रदर्शन किया, बल्कि सीबीआई की एंट्री राज्य में बैन करवा दी। इसके बाद आठ राज्यों ने ममता का अनुसरण किया। देखते ही देखते राजस्थान, पश्चिम बंगाल, केरल, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, झारखंड, पंजाब, मेघालय और मिजोरम की गैर भाजपा सरकारों ने एक के बाद एक अपने प्रदेश में सीबीआई की एंट्री पर रोक लगा दी, मतलब बिना राज्य सरकार की इजाजत के सीबीआई राज्य में जांच पड़ताल नहीं कर सकती। सबसे ताजा मेघालय राज्य ने सीबीआई की एंट्री पर बैन लगाया है।

9 राज्यों में सीबीआई की एंट्री बैन होने से मजबूरन केंद्र सरकार को आर्थिक अपराध की छानबीन से जुड़ी दूसरी बड़ी जांच एजेंसी यानी ईडी को सक्रिय करना पड़ा। यह वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग के तहत एक विशेष वित्तीय जांच एजेंसी है। पिछले तीन से चार साल में ईडी का दायरा इतना अधिक बढ़ गया है कि हर बड़े घोटाले का खुलासा अब ईडी ही कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने भी पीएमएलए के तहत ईडी की गिरफ्तारी, तलाशी और जब्‍ती से जुड़ी शक्तियों को कायम रखा है। कोर्ट ने साफ कहा है कि गिरफ्तारी के लिए ईडी को आधार बताना जरूरी नहीं है।

ईडी की ईसीआईआर को प्राथमिकी नहीं माना गया है और इसलिए इसकी जानकारी अभियुक्त को देना अनिवार्य नहीं है। न ही इसे 24 घंटे के अंदर न्यायिक मजिस्ट्रेट को भेजना आवश्यक है। सीआरपीसी की धारा-154 के तहत यह अनिवार्य है। जबकि डीके बसु केस (1997) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यदि किसी को गिरफ्तार किया जाता है तो इसकी सूचना उसे या उसके परिजनों को दी जाएगी। एफआईआर की प्रति भी उसे उपलब्ध करवाई जाएगी। ईडी जांच पर कोर्ट ने कहा कि यह एक इंक्वायरी यानी जांच भर है, इंवेस्टीगेशन यानी अन्वेषण नहीं है।

उच्चतम न्यायालय ने कहने को तो यह फैसला आर्थिक अपराधों, ड्रग्स तस्करी से अर्जित धन, अंतरराष्ट्रीय और समुद्रपारीय इलेक्ट्रॉनिक लेने देन हवाला, आतंकवाद और रंगदारी जैसे उच्च तकनीकी अपराधों के नाम पर दिया है पर सुरक्षा उपायों पर विचार नहीं किया ताकि इसके दुरूपयोग को रोका जा सके । ये अपराध कंप्यूटर के एक माउस क्लिक पर हो जाते हैं जिन्हें पकड़ना काफी दुरूह कार्य है। इनके सबूत माइक्रो सेकंड में मिटाए जा सकते हैं या गायब किए जा सकते हैं। ऐसे में भारी मात्रा में पैसे की जब्ती होने पर उसे यदि सिद्ध करने का काम ईडी पर आया तो यह ईडी कभी सिद्ध नहीं कर पाएगी। इसी तरह हवाला की रकम का कोई रिकार्ड नहीं होता न ही उसका कोई दस्तावेज होता है। खुद को अपराधी बताने या अपने खिलाफ बयान देने के लिए मजबूर नहीं करने की संविधान के अनुच्छेद 20.3 के तहत संविधान में मिली सुरक्षा को भी इस कानून में रियायत दी गई है। ईडी अधिकारियों को पुलिस अधिकारी भी नहीं माना गया है।

दरअसल प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्‍ट 2002 में बना था। यह कानून 2005 में अमल में आया। पीएमएलए (संशोधन) अधिनियम, 2012 ने अपराधों की सूची का दायरा बढ़ाया। इनमें धन छुपाने, अधिग्रहण और धन के आपराधिक कामों में इस्‍तेमाल को शामिल किया गया। इस संशोधन की बदौलत ED को विशेषाधिकार मिले। वहीं मनी लॉन्ड्रिंग का मतलब पैसों की हेराफेरी है। यह अवैध तरीके से कमाई गई ब्लैक मनी को ह्वाइट मनी में बदलने की तरकीब है। ये ज्यादातर मामले वित्तीय घोटाले के होते हैं। एक्ट की अनुसूची के भाग ए में शामिल प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट ईडी को राजनीतिक घोटालों पर कार्रवाई का अधिकार देता है।

यह एक्‍ट प्रवर्तन निदेशालय को जब्‍ती, मुकदमा शुरू करने, गिरफ्तारी, जांच और तलाशी की शक्ति देता है। आरोपी व्‍यक्ति पर जिम्‍मेदारी होती है कि वह अपने को निर्दोष साबित करने के लिए सबूत दे। ईडी पर आरोप लगता है कि इस एक्ट के कड़े प्रावधानों, जैसे कि जमानत की कड़ी शर्तें, गिरफ्तारी के आधारों की सूचना न देना, ईसीआईआर कॉपी दिए बिना अरेस्टिंग, मनी लॉन्ड्रिंग की व्यापक परिभाषा, जांच के दौरान आरोपी की ओर से दिए गए बयान ट्रायल में बतौर सबूत मानने आदि, का एजेंसी दुरुपयोग करती है। पीएमएलए के सेक्‍शन 3, 5, 18, 19, 24 और 45 ईडी को सुपरपावर बनाते हैं।

सेक्‍शन 3: यह सेक्शन दोषियों की बात करता है। इनमें हर ऐसा शख्‍स शामिल होगा जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपराध में लिप्‍त है। सेक्‍शन 5: इसमें ऐसे लोगों की बात कही गई है जिनके खिलाफ जब्‍ती की कार्रवाई शुरू की जा सकती है। इसमें ये भी बताया गया है कि किन हालात में जब्‍ती नहीं की जा सकती है। सेक्‍शन 18: ये तलाशी से संबंधित सेक्शन है। इसमें बताया गया है कि किन हालात में किसी की तलाशी ली जा सकती है। सेक्‍शन 19: इसमें गिरफ्तारी के तौर-तरीकों के बारे में बताया गया है। कब और किन स्थितियों में गिरफ्तारी की जा सकती है, इसका भी जिक्र है। सेक्‍शन 24: यह सेक्‍शन ‘बर्डन ऑफ प्रूफ’ की बात करता है। यह कहता है कि खुद को बेकसूर साबित करने की जिम्‍मेदारी आरोपी व्‍यक्ति की होगी। सेक्‍शन 42: इसमें बताया गया है कि एक्‍ट के तहत किन स्थितियों में हाईकोर्ट में अपील की जा सकती है।

ईडी के एक्शन से पहली बार एक साल के भीतर तीन राज्यों के चार प्रभावशाली मंत्रियों को जेल जाना पड़ा है। इनमें महाराष्ट्र के तत्कालीन दो कैबिनेट मंत्री अनिल देशमुख और नवाब मलिक शामिल हैं। नवाब मलिक दाऊद इब्राहिम से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में अरेस्ट हुए, जबकि देशमुख को ईडी ने एंटीलिया केस में गिरफ्तार बर्खास्त पुलिस अधिकारी सचिन वझे द्वारा वसूले 4.7 करोड़ के मामले में की है। आरोप है कि ये रकम सचिन वझे ने मुंबई के कई रेस्तरां और बार ओनर्स से वसूले और देशमुख के निजी सचिव संजीव पलांडे और निजी सहायक कुंदन शिंदे को दिए थे। ये दोनों भी ईडी की गिरफ्त में हैं।

दिल्ली सरकार में स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन को मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में ईडी ने 30 मई को गिरफ्तार किया था। हाल में पश्चिम बंगाल में शिक्षक भर्ती घोटाले में मंत्री पार्थ चटर्जी की गिरफ्तारी हुई है। ईडी के छापे में पार्थ की करीबी अर्पिता मुखर्जी के घर से 50 करोड़ रुपये से अधिक कैश और 5 किलो सोने के जेवरात जब्त किए गए। ताजा मामला शिवसेना नेता संजय राउत की ईडी द्वारा गिरफ़्तारी का है।

नेशनल हेराल्ड केस से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ईडी ने इसी साल जून में राहुल गांधी से कई बार पूछताछ की थी और अब जुलाई में ईडी ने इसी केस में सोनिया से पूछताछ की है।

सीबीआई चार साल पहले तक देश के तमाम बड़े सियासी मामलों और घोटालों को टेकअप करती थी। इसके बाद ईडी की एंट्री होती थी। उदाहरण के लिए चारा घोटाला, स्पेक्ट्रम घोटाला, कोयला घोटाला सहित तमाम बड़े चर्चित मामलों के अलावा मुलायम, मायावती, मधु कोड़ा से जुड़े केस भी हैं। राज्य सरकारों के पास ऐसा कोई कानून नहीं है, जिससे वे ईडी के दखल को रोक सकें।

( वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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