दिल्ली के मतदाताओं को लुभाने के लिए लॉलीपॉप की घोषणा पूरी होते ही चुनाव आयोग द्वारा तारीख का ऐलान

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पिछले एक माह से दिल्ली विधानसभा चुनावों को लेकर आप, बीजेपी और कांग्रेस पार्टी की कशमकश को आज तब औपचारिक मान्यता मिल गई, जब चुनाव आयोग ने प्रेस कांफ्रेंस के जरिये विधानसभा चुनाव की तारीख का ऐलान कर दिया।

इस प्रकार दिल्ली में 5 फरवरी को एक चरण में सभी 70 विधानसभा सीटों के लिए मतदान होना तय पाया गया है, और नतीजा 8 फरवरी को सामने आएगा।

इस मौके पर मुख्य चुनाव आयुक्त, राजीव कुमार सहित तीनों चुनाव आयुक्त मौजूद थे, लेकिन शेष दोनों चुनाव आयुक्त की अभी तक की सार्वजनिक भूमिका महज औपचारिक मेजबान से अधिक नहीं जान पड़ती है। ऐसा लगता है जैसे कोरम पूरा करने के लिए ये नियुक्तियां लोकसभा चुनाव से पहले की गई थीं।

महाराष्ट्र विधानसभा की तरह दिल्ली में भी मतदाता सूची में नए वोटर्स की संख्या में अभूतपूर्व बढ़ोत्तरी से स्वंय दिल्ली के मुख्य निर्वाचन अधिकारी हैरत में हैं। मुख्य निर्वाचन अधिकारी, आर. एलिस वाज़ ने सोमवार 6 जनवरी को अंतिम मतदाता सूची जारी करते हुए मतदाता सूची में नाम जोड़ने के लिए आये आवेदनों को अप्रत्याशित बताते हुए इसकी पड़ताल की जरूरत बताई है।

दिल्ली चुनाव आयोग के मुताबिक, 29 अक्टूबर, 2024 को मसौदा सूची प्रकाशित होने के बाद से अब तक 1.67 लाख (1.09%) नए नाम मतदाता सूची में जोड़े जा चुके हैं। पिछले 20 दिनों के दौरान नए मतदाता पंजीकरण के लिए “अभूतपूर्व” भीड़ देखने को मिली है, इस अवधि के दौरान 5.1 लाख से अधिक आवेदन प्राप्त हुए हैं।

आखिरी प्रकाशन सूची तक कुल 3,08,942 नाम जोड़े गये हैं और कुल 1,41,613 मतदाताओं के नाम काटे गये हैं। इस प्रकार इस अवधि के दौरान कुल 1,67,329 मतदाताओं का इजाफ़ा हुआ है। चूंकि नामांकन की अंतिम तारीख 17 जनवरी है, इसलिए आज मतदाता सूची में नाम जोड़ने की आखिरी तारीख को देखते हुए आज भी बंपर संख्या में नाम जोड़े जा सकते हैं।

दिल्ली चुनाव आयोग के द्वारा, कल सोमवार को जो अंतिम मतदाता सूची जारी की, उसके मुताबिक दिल्ली विधानसभा में मतदाताओं की कुल संख्या 1.55 करोड़ बताई गई है। 18-19 आयु वर्ग के नए मतदाताओं की संख्या 2,08,302 है।

दिल्ली में पुरुष मतदाता संख्या 83,49,645 जबकि महिला मतदाता संख्या 71,73,952 पाई गई है, लेकिन अक्टूबर से जनवरी के बीच मतदाता सूची में जोड़े गये नामों में देखें तो महिला मतदाताओं की संख्या पुरुष मतदाता से अधिक है। पुरुष मतदाता सूची में जहां 70,873 नाम जोड़े गये हैं, वहीं महिला मतदाता सूची में 96,426 नए नाम जोड़े गये हैं।

यह बताता है कि देश में लड़की बहन योजना के तहत सभी राजनीतिक दल महिला मतदाताओं को अपने पक्ष में लाने के लिए 1,000 रुपये से लेकर 3,100 रुपये मासिक देने का ऐलान कर रही हैं, उसका असर दिल्ली में भी अच्छा खासा पड़ा है।

जहां तक तीनों प्रमुख दलों की तैयारी का प्रश्न है तो आम आदमी पार्टी ने सभी 70 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की सूची का ऐलान पहले ही कर दिया था, और पार्टी सघन चुनाव प्रचार में जमीन पर सक्रिय है। वहीं, भाजपा ने अभी तक 29 उम्मीदवारों की सूची जारी की है, और कांग्रेस भी 40 सीट पर उम्मीदवारों का ऐलान कर चुकी है।

2015 और 2020 विधानसभा चुनावों के परिपेक्ष्य में देखें तो इस बार भी इस बात की पूरी संभावना है कि आम आदमी पार्टी (आप) को ही दिल्ली में तीसरी बार पूर्ण बहुमत मिलने जा रहा है। लेकिन यह भी सही है कि फरवरी 2020 में 70 में से 62 सीटों पर जीत के बाद ही दिल्ली के उत्तरी पूर्वी हिस्से में हिंदू-मुस्लिम दंगे के साथ शहर का समीकरण काफी हद तक बदल चुका है।

इसके फौरन बाद, मार्च 2020 से अगले दो वर्ष तक कोविड महामारी और उसके बाद दिल्ली आबकारी नीति में बदलाव में केजरीवाल सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते, आप सरकार लगभग विकलांग अवस्था में ही रही।

आप पार्टी के पास अभी भी ले देकर फ्री बिजली, पानी, स्कूल और हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर के अलावा दिल्ली की महिलाओं के लिए मुफ्त डीटीसी बस सेवा ही रामबाण चुनावी मंत्र है। दिल्ली न ही पूर्ण राज्य के तौर पर काम करने के लिए स्वतंत्र है और न ही केंद्र शासित राज्य के तौर पर ही केंद्र सरकार के जिम्मे है।

सुप्रीम कोर्ट ने भी लंबे समय तक दिल्ली राज्य सरकार बनाम एलजी की लड़ाई में जो फैसला दिल्ली सरकार के पक्ष में सुनाया, उसे केंद्र की मोदी सरकार ने विधेयक लाकर उलट दिया। अब हालत यह है कि दिल्ली सरकार के तहत काम करने वाले प्रशासनिक अधिकारी तक दिल्ली के मंत्रियों को धेले भर का भाव नहीं देते।

यही वह अजीबोगरीब मकड़जाल है, जिसमें दिल्ली की आम जनता चकरघिन्नी की तरह घूम रही है। दिल्ली के लोगों ने 2014 से लगातार तीन बार लोकसभा में भाजपा को सभी सातों सीट पर विजयी बनाया, लेकिन विधानसभा में उसने रिकॉर्ड मतों से झाड़ू को अंगीकार किया है।

लेकिन पिछले 11 वर्षों में उसे यह जबरन समझा दिया गया है कि यदि दिल्ली में कुछ भी बड़ा फैसला करना है तो बीजेपी को ही दिल्ली राज्य की सत्ता सौंपनी होगी, वर्ना एलजी के जरिये केंद्र सरकार स्थानीय सरकार को ढेले भर का काम नहीं करने देगी।

अरविंद केजरीवाल को भी अच्छे से पता है कि 40-45 सीट जीतकर भविष्य में दिल्ली पर 5 वर्षों तक शासन कर पाना उनके बूते के बाहर की बात है। पिछली बार यदि जनता ने 62 सीट पर जीत न दी होती तो यहां तक खींच पाना भी संभव न होता। इस बार भी पार्टी को कम से कम 50 या उससे अधिक सीटों पर जीत दर्ज करनी ही होगी।

आप पार्टी ने अपनी तमाम कमजोरियों के बावजूद जो चीज नहीं छोड़ी, वह है भाजपा के बरक्स अपने आईटी सेल के माध्यम से तुरत-फुरत जवाबी आक्रमण में कोई ढील नहीं छोड़ी है। आप के नेता हाजिरजवाब हैं, और भाजपा के हर हमले पर उनका जवाब पहले से तैयार रहता है।

आप पार्टी के परंपरागत वोट बैंक, जिसे उसने कांग्रेस से छीना है, में से मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय उससे काफी हद तक छिटक चुका है। दलित समुदाय के बीच भी कांग्रेस पार्टी के प्रति आकर्षण बढ़ा है।

लेकिन इसके बावजूद, इन दोनों समुदाय को अच्छी तरह से पता है कि दिल्ली में कांग्रेस का नेतृत्व सिर्फ चुनाव के मौसम में ही नमूदार होता है। उसके पास स्थानीय स्तर पर कार्यकर्ता बचा ही नहीं है।

2015 और 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनावों के आंकड़ों को देखें तो 2015 में आप 54.3% मत हासिलकर अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा से 22% वोटों से आगे थी, जो अपने आप में ऐतिहासिक था। 2020 में भी आप पार्टी को 53.57% मत हासिल हुए, लेकिन भाजपा के मतों में 6% सुधार के साथ वह 38.51% मत जुटाने में कामयाब रही।

इस प्रकार वह 2015 के अपने 3 सीटों से आगे बढ़ उसे 8 सीटों तक ले जाने में सफल रही। लेकिन कांग्रेस जिसे 2015 में एक भी सीट न मिलने के बावजूद 9.7% वोट हासिल थे, वह 2020 में 4.26% वोट पर सिमट गई।

1998 में लगातार तीसरी बार दिल्ली की सत्ता पर जब कांग्रेस आई थी तो उसके पास 40% से अधिक वोट थे, और 2013 में जब उसे सत्ता से हाथ धोना पड़ा तब भी उसके पास 8 सीट और 25% वोट थे। पश्चिम बंगाल में जिस प्रकार वाम मोर्चे का सफाया हुआ, कुछ उसी प्रकार पहले 2015 और बाद में 2020 में कांग्रेस के बचे-खुचे वोटों पर आप और कुछ हिस्से पर बीजेपी ने कब्जा जमा लिया।

आज कांग्रेस एक बार फिर से अपनी खोई विरासत को हासिल करने के लिए हाथ-पांव मार रही है। लेकिन यह प्रयास इतने समय बाद और आखिरी समय पर किया जा रहा है कि दिल्ली का सेक्युलर मतदाता भी जो संभव है कि इस बार कांग्रेस को वोट देने का मन बना रहा हो, बीजेपी-आप के बीच मुकाबले के आखिरी चरण में जाकर एक बार फिर झाड़ू के निशान पर ईवीएम का बटन दबा दे।

2020 के मुकाबले बीजेपी ने किया है अपनी रणनीति में फेरबदल

पिछली बार बीजेपी की आक्रामक हिंदुत्ववादी रणनीति ने दिल्ली के चुनाव में आम मतदाताओं को इतनी बुरी तरह से झकझोरा था कि बड़ी संख्या में लिबरल हिंदू मतदाता भी उसके इस स्वरुप को देखकर भीतर ही भीतर घबरा गये थे।

दिल्ली के हर गली-मोहल्ले में आईटी सेल की मदद से व्हाट्सअप ग्रुपों में जिस प्रकार की बहसों को परोसा जा रहा था, उसने आम मतदाता को अंतिम समय में आप के पक्ष में मतदान करने के लिए मजबूर कर दिया था। इससे पहले ऐसा लग रहा था कि झाड़ू और कमल के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिलेगी।

इस चुनाव में सबसे खास बात यह देखने को मिल रही है कि बीजेपी का फोकस शहरी गरीब मतदाताओं पर केंद्रित है, जिसे अभी तक हिंदुत्ववादी शक्तियां केजरीवाल के मुफ्त की योजनाओं के चलते कोस रहे थे। दो दिन पहले पीएम मोदी द्वारा 1,600 से अधिक झुग्गीवासियों के लिए दिल्ली में बहुमंजिला इमारतों में आवास के आवंटन को भाजपा अपना प्रमुख चुनावी दांव बनाने जा रही है।

इसके लिए बीजेपी ने तय किया है कि दिल्ली के तमाम गरीब बस्तियों के रहवासियों को इस बहुमंजिला इमारत के दर्शन कराए जायेंगे, और उन्हें आश्वस्त किया जायेगा कि यदि उनकी सरकार दिल्ली में बनती है तो लाखों झुग्गीवासियों को भी ऐसे ही सुख-सुविधाओं से युक्त इमारतों में रहने का मौका प्राप्त होगा।

यह अलग बात है कि भाजपा और DDA ने पिछले ही वर्ष बड़ी संख्या में दिल्ली के विभिन्न इलाकों में झुग्गियों को तोड़ने और हजारों परिवारों को बेसहारा करने का काम किया था, उसे अरविंद केजरीवाल की पार्टी भूलने नहीं देगी।

वहीं, दूसरी ओर केजरीवाल का फोकस भाजपा के हिंदुत्ववादी वोट बैंक में सेंधमारी पर लगा हुआ है। इसके लिए केजरीवाल आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को पत्र लिखने के साथ-साथ मंदिर के पुजारी से लेकर गुरुद्वारा के ग्रंथियों को 18,000 रूपये प्रतिमाह की तनख्वाह देने का वायदा कर लुभाने की जीतोड़ कोशिश कर रहे हैं।

आप की जीत को हार में तब्दील करने के लिए दो चीजें सबसे अहम साबित हो सकती हैं। पहला है, कांग्रेस के पक्ष में कम से कम 12-15% वोट और दूसरा है पिछले 5 वर्षों के दौरान दिल्ली सरकार को एलजी के जरिये पंगु बना देने की केंद्र सरकार की कुचेष्टा के आगे दिल्ली के अवरुद्ध हो चुके विकास की खातिर मध्यवर्ग का आत्मसमर्पण। यदि ये दोनों कारक काम नहीं आये तो एक बार फिर से दिल्ली में झाड़ू फिरनी तय है।

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं)

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