चुनावी रिपोर्ट: नूंह दंगे का मेवात की सीटों पर कितना होगा असर ?

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नूंह। नूंह की गिनती हरियाणा के सबसे पिछड़े जिलों में होती है। मेवात के इस क्षेत्र में तीन विधानसभा सीट हैं -नूंह, फिरोजपुर झिरका और पुन्हाना।

पिछले साल नूंह में सांप्रदायिक दंगे हुए थे। जिसमें कई लोगों को भारी नुकसान हुआ था। इस दंगे के पूरे एक साल के बाद राज्य में विधानसभा चुनाव होने जा रहा है।

जनचौक की टीम ने चुनाव से पहले नूंह जिले के उन जगहों का दौरा किया, जहां पिछले साल दंगा हुआ था।

फिरोजपुर झिरका के बड़कली चौक में पिछले साल हुए दंगे की लपटों ने कई लोगों के जीवन को उजाड़ दिया था। जिसके बाद कई लोगों पर एफआईआर हुई।

आरोपी जेल से तो बाहर आ गए लेकिन कोर्ट के चक्कर काटने में उनके दिन गुजर रहे हैं। अब लोगों में इसी बात को लेकर गुस्सा है।

अली मोहम्मद का कहना है कि ‘बीजेपी ने सिर्फ हिंदू-मुसलमान का झगड़ा करवाया है। जिसमें सीधे तौर पर सरकार का हाथ था’।

वह आगे कहते हैं कि माहौल को खराब करने के लिए मोनू मानसेर ने मुसलमानों को उकसाया था। चुनाव पर इसके असर के बारे में पूछने पर उनका जवाब था जनता यह जान गई है कि सबकुछ बीजेपी ने करवाया था।

इतने सालों से यहां हिंदू-मुसलमानों में आपसी भाईचारा है। जिसे बिगाड़ने की कोशिश की गई, जिसमें बीजेपी सफल नहीं हुई। अब यहां लोग कांग्रेस का ही समर्थन कर रहे हैं।

बड़कली चौक पर हिंदू और मुसलमान दोनों की दुकानें हैं। सोनू यहां चाट की रेहड़ी लगाते हैं। दंगे के दौरान इनकी रेहड़ी जल गई थी। वह बताते हैं कि हमारी आंखों के सामने सबकुछ हुआ।  हमलोग किसी तरह जान बचा कर भागे थे।

दंगे के बाद मुआवजे में दोबारा से रेहड़ी मिली है। दोनों समुदाय के बीच किसी तरह के भेदभाव के बारे में पूछने पर वह दबी जुबान से कहते हैं थोड़ी खटास तो आ गई है। जबकि पहले ऐसा नहीं था।

लेकिन इलियास इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते हैं। वह साफ कहते हैं दंगा बीजेपी की साजिश का नतीजा था क्योंकि मेवात में भाईचारा बहुत ज्यादा है इसीलिए वे सफल नहीं हो पाए।

मुसलमानों को टारगेट किया गया है। दंगे के बाद मुसलमानों को पकड़-पकड़कर जेल में डाला गया है। वह पूछते हैं ‘क्या दंगे में सिर्फ मुसलमान ही थे’? उन्होंने जवान लड़कों की जिंदगी खराब कर दी है।

नूंह में दंगे के बाद कई लोगों पर एफआईआर दर्ज की गई। जिन्हें जमानत तो मिल गई है। लेकिन अब महीने भर कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ते हैं। फिरोजपुर झिरका सीट में कई लोग हैं जिनका दंगे के बाद जीवन ऐसा हो गया है।

हारुन उनमें से एक हैं। उनका शरीर 75 प्रतिशत तक विकलांग हैं। वह बताते हैं कि ‘पिछले साल दंगे के बाद एक दिन शाम को मैं अपने घर पर ही चाय पी रहा था। इसी दौरान पुलिस आई और मुझे ले गई। मुझ पर 17 मामले दर्ज हैं’।

कई महीनों तक इसी हालात में जेल में रहा। अब जेल से आऩे के बाद महीने में कई दफा कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ते हैं। विकलांगता के कारण कई बार नहीं जा पाता हूं।

हमने पूछा क्या कभी कोई नेता आपसे मिलने आया? जवाब था कोई नहीं यहां तक की चुनाव के दौरान भी नहीं।

हारुन का भी मानना है कि भाईचारा और एकता को खराब करने के लिए ऐसा किया था। जबकि इस साल सब कुछ सामान्य था।

वह कहते हैं ‘इस साल फिर हमने खुशी के साथ यात्रा के दौरान लोगों का स्वागत किया जैसा पहले होता था, वैसे ही किया गया ताकि भाईचारा बना रहे’।

पिछले साल हुए दंगे में फिरोजपुर झिरका के वर्तमान विधायक मामन खान का भी नाम था। वह तीन महीने जेल में भी रहे। उन पर यूएपीए भी लगा था। इसके बाद भी कांग्रेस द्वारा उन्हें फिरोजपुर झिरका सीट से टिकट दिया गया है। जिसके लिए राज्य की भाजपा सरकार हाईकोर्ट गई है।

हमने इस बारे में वकील ताहिर रुपाड़िया से बात की। वह इनका केस लड़ रहे हैं। दंगों में नाम और टिकट दिए जाने के बारे में वह कहते हैं कि फिलहाल उन पर मुकदमा चल रहा है। किसी भी तरह का अपराध साबित नहीं हुआ है।

जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि वह दंगे में शामिल थे, तब तक कानूनी तौर पर निर्दोष हैं। मुकदमा फिलहाल न्यायालय में लंबित है। इसलिए वह चुनाव लड़ सकते हैं।

दंगे का चुनाव पर असर के बारे में वरिष्ठ पत्रकार अमित नेहरा का कहना है ‘दंगे का ज्यादा असर चुनाव पर नहीं पड़ेगा क्योंकि यह सभी को साफ हो गया है कि यह प्रयोजित था जिसमें भाजपा का हाथ था’।

वह कहते हैं भाजपा अपना विस्तार नूंह की तरफ करना चाहता था। लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। हिंदुत्व की राजनीति मेवात में ज्यादा दिन तक टिक नहीं पाई। फिलहाल माहौल शांत हैं।

(पूनम मसीह की रिपोर्ट)

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