कर्नाटक विधानसभा चुनाव में अमूल दूध की एंट्री से नया राजनीतिक भूचाल 

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आजादी के बाद इन 7 दशकों में कुछ ही भारतीय उत्पाद ऐसे हैं, जिन्हें समूचे देश ने सहर्ष न सिर्फ गले लगाया है, बल्कि ये उत्पाद भारतीय ब्रांड के वैश्विक प्रतिनिधि बनकर उभरे। हमारा बजाज, लिज्जत पापड़ और अमूल दूध और डेयरी उत्पाद पिछले कई दशकों से हर आम भारतीय के लिए एक रोजमर्रा की जरूरत के रूप में उभरे हैं। 

लेकिन हाल के दिनों में कुछ ऐसा घटा है, जिसने एक अनावश्यक विवाद को पैदा कर दिया है। जिस अमूल ब्रांड को गुजरात के बाद महराष्ट्र और अब संपूर्ण उत्तर भारत में बेहद सहजता से गृहणियों ने अपने किचन में शामिल कर लिया था, वह आज दक्षिण के राज्य कर्नाटक में भारी विवाद और भाजपा के लिए विघ्नकारी साबित होने जा रहा है।

हालांकि इसके पीछे की वजह भी खुद भाजपा सरकार की वह आक्रामक शैली है, जो राजनीति में या तो कोई दल या राजनेता उसके पक्ष में है या उसमें समाहित कर ले, या फिर उसे भारी विरोध का ही सामना करना पड़ेगा और उसके अस्तित्व का संकट खड़ा हो सकता है। जी हां, आज भारत में गुजरात के प्रमुख कॉर्पोरेट की छवि कुछ ऐसी ही हो गई है, लेकिन अमूल अभी तक इससे अछूता रहा था। इसके पीछे की वजह इसके कोआपरेटिव समूह में रही है, जिसमें गुजरात के करीब 30 लाख दुग्ध उत्पादक किसान थे।   

अब खबर है कि अमूल ने कर्नाटक में अपने पैर पसारने की योजना को फिलहाल के लिए रोक दिया है, क्योंकि इससे भाजपा को चुनावी राह में बड़ी अड़चने पेश हो रही हैं। 5 अप्रैल को गुजरात मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन की ओर से घोषणा की गई थी कि ई-कॉमर्स के माध्यम से बेंगलुरु में अमूल दूध और दही का विपणन शुरू किया जा रहा है। इस घोषणा ने कर्नाटक की राजनीति में जैसे भूचाल सा ला दिया है। तमाम कन्नड़ क्षेत्रीयता के समर्थक संगठनों सहित मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस और जेडी(एस) ने इसे भाजपा द्वारा कर्नाटक मिल्क फेडरेशन के उत्पाद नंदिनी की कीमत पर अमूल के उत्पादों को कर्नाटक की जनता पर थोपने की साजिश करार दे दिया है। 

मामले की गंभीरता को देखते हुए राज्य के सहकारिता मंत्री एसटी सोमशेखर ने अपने बयान में कहा है कि अमूल से नंदिनी ब्रांड को कोई खतरा नहीं होने जा रहा है, लेकिन विपक्ष द्वारा इसका राजनीतिकरण किया जा रहा है और झूठा प्रचार किया जा रहा है। इसे ध्यान में रखते हुए हमारा दिल्ली स्थित केंद्रीय नेतृत्व इस मुद्दे पर नजर बनाये हुए है, और गुजरात मिल्क फेडरेशन से बातचीत कर रहा है। 

दक्षिण भारत के समाचारपत्रों के अनुसार, अमूल एक स्वायतशासी संस्था है और सरकार के सीधे नियंत्रण में नहीं है। लेकिन संभावित डैमेज को कण्ट्रोल करने के लिए लगातार अनौपचारिक स्तर पर अमूल प्रबंधन से वार्ता चल रही है। 

इस बारे में कर्नाटक मिल्क फेडरेशन के प्रबंध निदेशक बीसी सतीश का मानना है कि कर्नाटक में नंदिनी ब्रांड को अमूल से कोई खतरा नहीं है। नंदिनी का दुग्ध उत्पाद क्षमता करीब 80 लाख लीटर प्रतिदिन की है, और कर्नाटक के दुग्ध उत्पादकों को प्रति लीटर 6 रूपये की सब्सिडी भी हासिल है। ऐसे में अमूल के लिए नंदिनी ब्रांड को टक्कर देना संभव नहीं है। वैसे भी कर्नाटक में अमूल ई-कॉमर्स के जरिये मात्र 2500 लीटर दूध का विपणन करता है। 

यहां पर यह बात उल्लेखनीय है कि फरवरी माह में गृह मंत्री अमित शाह, जो सहकारिता मंत्रालय का भी कार्यभार संभाल रहे हैं, के द्वारा कर्नाटक में घोषणा की गई थी कि अमूल और नंदिनी के बीच में तकनीक और मार्केटिंग रणनीति को लेकर आपसी सहयोग किया जायेगा। यहीं से कुछ हलकों में यह खबर फैली कि हो न हो यह नंदिनी के अमूल में विलय की पूर्वपीठिका बनाई जा रही है। इसके कुछ ही समय बाद ऍफ़एसएसएआई का वह निर्देश भी आया, जिसमें सभी उत्पादकों के लिए कर्ड की जगह बोल्ड अक्षरों में दही लिखना अनिवार्य बना दिया गया।

प्रादेशिक भाषा में दही (कर्ड) को जो भी कहा जाता है, उसे छोटे अक्षरों में लिखे जाने का दक्षिण के राज्यों में मुखर विरोध हुआ, जिसमें तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने बढ़चढ़ कर भूमिका निभाई। ऍफ़एसएसअआई को जल्द ही अपना निर्देश वापस लेना पड़ा। लेकिन ऐन चुनावी मौसम में दही के बाद अब अमूल की एंट्री ने दक्षिण भारत और विशेषकर कर्नाटक में इसे एक बड़ा मुद्दा बना दिया है, जो भाजपा के लिए एक बड़ी मुसीबत साबित हो सकता है।

अमूल कोआपरेटिव के प्रबंधन में भी इस बीच आमूलचूल परिवर्तन हुआ है। अमूल का व्यावसायिक हित भी अब गुजरात तक सीमित न रहकर अखिल भारतीय स्वरुप ले चुका है। गुजरात से बाहर भी अमूल के मिल्क प्लांट स्थापित हैं, और मार्केटिंग और प्रतिस्पर्धी बाजार में अपने उत्पादों को वरीयता दिलाने के लिए जरुरी उपायों का सहारा लिया जाता है। लेकिन इससे भी बड़ी चौकाने वाली बात यह है कि दशकों से कांग्रेस के गुजरात में सत्ता से बाहर होने के बावजूद भी अमूल कोआपरेटिव फेडरेशन में उसका दबदबा बना हुआ था।

लेकिन इस वर्ष फरवरी 2023 में इसमें भी भारी उलटफेर हो गया है और अब अमूल कोआपरेटिव लगभग पूरी तरह से भाजपा के नियन्त्रण में चली गई है। इसकी शुरुआत कैरा जिला दुग्ध उत्पादक संघ (अमूल) के चेयरमैन पद पर दो दशकों से आसीन रामसिंह परमार की पराजय से हुई, और साथ ही उनके डेपुटी राजेंद्रसिंह परमार जो कि पूर्व कांग्रेसी विधायक रहे हैं, की जोड़ी को अमूल कोआपरेटिव से विदा होना पड़ा। 2020 में हुए चुनावों में कांग्रेस के पास अमूल डेरी में 11 सीटों में 8 सदस्य थे, लेकिन आज अधिकांश सदस्य पाला बदलकर भाजपा में शामिल हो चुके हैं, और मौजूदा समय में कांग्रेस के पास मात्र 2 सदस्य हैं। 

कांग्रेस भी कर्नाटक में इस विवाद को तूल देकर कर्नाटक की अस्मिता से जोड़ रही है। कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डी के शिवकुमार द्वारा हासन जिले में नंदिनी मिल्क पार्लर पर जाकर, इसके ब्रांड के उत्पादों का सेवन और आम लोगों के बीच में वितरण चर्चा का विषय बना हुआ है। पत्रकारों के साथ अपनी बातचीत में डीके शिवकुमार ने कहा “प्रदेश में 70 लाख किसान इस दुग्ध व्यवसाय से जुड़े हैं। हमें गुजरात के किसानों से कोई विरोध नहीं है, लेकिन नंदिनी के बाजार में किसी प्रकार की सेंधमारी हमारे लिए स्वीकार्य नहीं है।”

फिलहाल तो यही लगता है कि अमूल प्रबंधन अपनी तात्कालिक विस्तार की योजना को स्थगित करने जा रही है, लेकिन चुनाव के बाद यह ऊंट किस करवट बैठेगा, इसको लेकर निश्चित रूप से कर्नाटक के किसानों के बीच में उहापोह की स्थिति तो बन गई है।  

( रविंद्र पटवाल जनचौक के मैनेजिंग एडिटर हैं।)

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