Friday, March 29, 2024

अग्निपथ पर ग्राउंड रिपोर्ट: ‘आतंकवादी बनाना चाहती है सरकार’

बली-मेवला (बागपत)।’’सरकार ने दरोगा पद क्या इसीलिए दिया है कि आप बद्तमीजी से बात करो। आप हमारे इलाके के दरोगा हो, चौकी इंचार्ज हो। आपको तो खुशी होनी चाहिये कि बच्चे डिसिप्लिन में रहकर मेहनत कर रहे हैं। और आप यहां आकर गाली दे रहे हो! इनडिसिप्लिन क्रिएट कर रह हो। अपको पता है 20 रूपये फाइन है यहां गाली देने का। आपने छह-सात गाली दी थी सुबह।’’ 

ये नज़ारा है उत्तर प्रदेश के जिले बाग़पत के एक गांव बली के स्पोर्टस मैदान का। गांव बली को देश के राष्ट्रपति द्वारा ‘‘क्रांति गांव’’ का दर्जा हासिल है। 

एक सुबह जब नौजवान प्रैक्टिस के लिए मैदान में पहुंचे तो खाकी वर्दी धारी एक दरोगा और एक सिपाही उन्हें प्रशासनिक धौंस का डंडा दिखाने के लिए मैदान में आ धमके। ये सब कुछ हमारे बली-मेवला के स्पोर्ट्स मैदान पहुंचने से करीब 5-6 दिन पहले की बात है। हम वहां सरकार की फौज मे भर्ती की नई योजना अग्निपथ के बारे में युवाओं से बात करने गए थे। 

लेफ्टिनेंट जनरल अनिल पुरी ने 19 जून रविवार को प्रेस के जरिये कहा था, ’‘अनुशासन भारतीय सेना की नींव है, इसलिए आगजनी, तोड़फोड़ करने वालों के लिए सेना में कोई जगह नहीं है। उन्होंने कहा कि सेना के साथ जो अग्निवीर जुड़ना चाहता है, उसे एक शपथ पत्र देना होगा कि उसने किसी प्रदर्शन या तोड़फोड़ में हिस्सा नहीं लिया। फौज में पुलिस वेरिफिकेशन के बिना कोई नहीं आ सकता। इसलिए प्रदर्शन कर रहे छात्रों से अनुरोध है कि अपना समय ख़राब न करें।’’    

जनरल पुरी ने अनुरोध किया था कि अग्निपथ योजना के ख़िलाफ़ प्रदर्शन न करने का। पर उसके बाद… फौज में भर्ती की तैयारी कर रहे नौजवानों को उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से प्रशासन धमकाने पहुंचने लगा। 

सुबह भद्दी-भद्दी गालियां देकर नौजवानों को डराने के बाद शाम को जब दूसरी बार खाकी वर्दी वाले धमकाने आए तो कोच धर्मेंद्र पवार ने उनका वीडियो बनवाया और उन्हें ऐसा करने से रोका। और बताया कि उनके ग्राउंड में गाली देना निषेध है। इसके बाद फिर पुलिस वालों को बोल न सूझा। 

धर्मेंद्र ने बताया कि पुलिस वालों ने फौज में भर्ती की तैयारी कर रहे नौजवानों के ज़बरदस्ती फोटो खींचे और नाम लिखे। किसी से 10 नाम लिखवाए किसी से 20 लिखवाए। उन्हें अग्निपथ योजना के ख़िलाफ़ किसी भी प्रकार के प्रदर्शन करने या भाग लेने से दूर रहने की चेतावनी देकर गए। और ऐसा वो गालियों के साथ कर रहे थे। 

धर्मेंद्र पवार की देख-रेख में चल रहे बली-मेवला स्पोर्ट्स ग्राउंड में अनुशासन का पूरा ध्यान रखा जाता है। बली और मेवला दो अलग-अलग गांव हैं। पर इनकी पंचायत एक ही है। बली-मेवला दोनों गांवों ने आज़ादी के आंदोलन में भी शिरकत की है। इसीलिए दोनों गांवों को देश के राष्ट्रपति द्वारा ‘‘क्रांति गांव बली-मेवला’’ की उपाधि से भी नवाजा गया है। 

जिस मैदान में गांव के नौजवान प्रैक्टिस कर रहे हैं कोच धर्मेंद्र पवार ने बताया कि उसका अस्तित्व भी बली-मेवला गांव के नौजवानों की अपनी ही तन-मन-धन की मेहनत का नतीजा है। धर्मेन्द्र पवार 15सौ मीटर और क्रास कंट्री में नेशनल मेडलिस्ट हैं। 

धर्मेन्द्र पवार ने बताया कि जब ये कोरोना काल आया था तो मैं गांव में आया। उस वक़्त लगभग सब बैन ही हो गया था कोरोना के चलते। गांव में आकर इस चीज को देखा कि अगर हमारा यूथ भी फिजिकल एक्टिविटी शुरू कर दे तो जो दिमागी प्रेशर है कहीं न कहीं वह कम होगा और इसके सकारात्मक पहलू निकलेंगे। पहले कहा करते थे खेलोगे, कूदोगे तो खराब हो जाओगे। लेकिन अभी जितनी भी स्कीमें चल चही हैं उसमें है कि…खेलोगे-कूदोगे तो खिलोगे और नवाब बनोगे। स्पोर्ट्स का हमारे जीवन में बहुत महत्व है।

बली मेवला गांव का मुख्य द्वार।

सवाल – आप कह रहे हैं कि कोरोना से पहले इस ग्राउंड का कोई अस्तित्व ही नहीं था? 

धर्मेन्द्र पवार – नहीं, कोई अस्तित्व ही नहीं था। 

सवाल – किसी ने सोचा ही नहीं इस बारे कि यहां स्पोर्ट्स का कुछ होना चाहिये? 

धर्मेन्द्र पवार – नहीं इससे पहले इस तरह की पहल या किसी तरह की जागरुकता इस बारे में नहीं दिखाई गई।

सवाल – ये ग्राउंड आप कैसे मेंटेन करते हैं?

धर्मेन्द्र पवार – साफ-सफाई का जो भी योगदान है वो सब बच्चे मिल कर देते हैं। और आर्थिक रूप से हमारे गांव के जो सीनियर साथी-बड़े भाई हैं वो मदद करते हैं। हर महीने गांव का सीनियर यूथ सहयोग देता है। तीन-चार साल से उन्हीं के सहयोग से ये सब चल रहा है। हमने एक संस्था बनाई हुई है ‘बली-मेवला यूथ ब्रिगेड’ उसी के तत्वावधान में हमारा ये ग्राउंड चल रहा है। मेंटिनेंस, लाइट, घास, पार्क, ट्रैक का मेंटिनेंस ये सब इसी टीम के योगदान से चलता है।

सवाल – सरकार की तरफ से आपको कोई मदद नहीं मिलती?

धर्मेन्द्र पवार – नहीं, सरकार की इसमें हमें कोई मदद नहीं मिलती। हमने प्रयास किया एक-दो बार नल के लिए। हमें पानी पीने के लिए बहुत समस्या थी। गर्मी में फिजिकल एक्टिविटी या दौड़ करते हैं तो उस वक़्त पानी की बहुत ज़रूरत होती है। यहां पानी उपलब्ध नहीं था। सांसद डा. सत्यपाल जी यहां बागपत रोड रेलवे स्टेशन पर आए थे। ट्रेन का उद्घाटन करने के लिए। उस दौरान उनके सामने भी हमने बात रखी। प्रमुख साहब हैं, विधायक हैं सभी से हमने अपनी बात रखी लेकिन हमें कहीं से भी कोई सकारात्मक परिणाम नहीं मिला। उसके बाद हम बच्चों ने अपने खर्चे पर ये नल लगवाई। 

सवाल – सभी पोल और गांव के गेट का रंग तिरंगे रंगों में रंगा है?

धर्मेन्द्र पवार – ये हमारे यूथ का जज़्बा है। हमारे एक साथी थे नितिन जो आर्मी में थे। उनका क्रास कंट्री के दौरान एक हादसे में निधन हो गया था। उनकी ही याद में हम हर साल दौड़ का एक प्रोग्राम करवाते हैं क्रास कंट्री का। ये ग्राउंड उनको समर्पित है। और तिरंगा और आर्मी के प्रति बच्चों का जुनून है। 

सवाल – आपको कैसे जानकारी मिलती है कि कब, कौन सी प्रतियोगिता है? क्या तैयारी करनी है?

धर्मेन्द्र पवार – हमारी ही टीम ने गांव में एक लाइब्रेरी बनाई हुई है। हमारे गांव के जो नौजवान सफल हुए हैं उन्होंने सोचा कि अपने गांव के छोटे भाई-बहनों के लिए इस तरह की लाइब्रेरी की एक सुविधा दी जाए। वो गांव में इस फ्री कॉस्ट लाइब्रेरी को अपडेट करते रहते हैं।

मैदान, जहां प्रैक्टिस करते हैं युवा।

अग्निपथ योजना के बारे यहां के नौजवान क्या सोच-समझ रहे हैं जब मैंने ये जानने के लिए बात करनी शुरु की तो देखा कि थल सेना प्रमुख जनरल पुरी की चेतावनी और पुलिस की धमकी का असर उन पर छाया हुआ था। कोई भी कुछ बोलने को तैयार नहीं था। यहां तक कि अपना परिचय देते हुए भी हिचक थी नौजवानों में।

नौजवानों की चुप्पी को देखते हुए जब मैंने कहा कि आप सब को इस योजना से कोई समस्या नहीं है। ये योजना सही है… 

‘‘हम दंगाई नहीं हैं मैडम, ना ही हम सरकार की किसी संपत्ति को नुकसान पहुंचाएंगे।’’ एक नौजवान ने तपाक से कहा।  

नौजवान – ‘‘रही बात इन लोगों की, तो  मैडम ये आगे भी अपना काम करेंगे क्षमता है इन लोगों में काम करने की। ये अपनी 15 साल की नौकरी पूरी करके आएंगे। 25 प्रतिशत में शामिल होंगे। इतना दम है इनमें।’’ फौज में जाने की तैयारी कर रहे अपने साथियों की तरफ इशारा करते हुए नौजवान ने कहा।

ग्रेजुएशन भी तो कराएंगे इग्नू से। पीछे से एक दूसरे नौजवान ने कहा।

सवाल – कौन कराएगा ग्रेजुएशन? 

नौजवान – उन्होंने बोला तो है जो भी अग्निवीर बनेंगे उन्हें इग्नू से ग्रेजुएशन करवाएंगे। 

सवाल – यह जानकारी कहां से मिली आपको?

नौजवान – नेट से, गृह मंत्री अमित शाह ने बोला है।

(केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर – “इस योजना के तहत 

दसवीं के बाद सेना में भर्ती हुए छात्र को देश की सेवा करने का मौक़ा मिलता है, 12वीं का सर्टिफ़िकेट मिलेगा, उनका स्किल सेट बेहतर होता है और प्रशिक्षण और पैसा मिलता है। इसके बाद अगर कोई दूसरी नौकरी करता है तो उन्हें उसमें भी मदद मिलती है।”)

सवाल – तो आप लोगों को लग रहा है कि यह स्कीम जो सरकार लाई है यह सही है, आप संतुष्ट हैं?  

‘‘मैडम देखिए गवर्नमेंट की जो भी स्कीम होती है उसके कुछ मेरिट भी होते हैं, कुछ डिमेरिट्स भी होते हैं।’’ 

यूपीएससी सीडीएस की तैयारी कर रहे 23 साल के नौजवान अरुण कुमार ने कहा।

अरुण कुमार – मैरिट में अगर आप देखें तो यह है कि जो लोग 2 साल से तैयारी कर रहे थे उनका कुछ हो जाएगा। इन्होंने एज बढ़ा दी है। अगर नहीं बढ़ाते तो 23 साल वालों का नहीं होता। और डिमेरिट यह है कि 4 साल के बाद निकाल दिया जाएगा। यह तो हो सकता है कि वह 25  प्रतिशत में आ जाए लेकिन ज्यादातर चांस यही है कि 75 प्रतिशत में आएंगे। क्योंकि अंदर और भी बहुत सारी चीजें होती हैं। भ्रष्टाचार हर जगह है। लोग पैसे देकर आ जाते हैं। मेरिट ये भी है कि हमारी सेना में सुधार हो जाएगा उनको हथियार वगैरह मिल जाएंगे। इसमें मेरिट भी है लेकिन डिमेरिट्स ज्यादा हैं।

अरुण कुमार

जो बंदा 23 साल का लग रहा है वह 27 साल का वापस आएगा और मैक्सिमम वैकेंसी में 27 या 28 साल उम्र मांगते हैं। 4 साल के बाद तैयारी भी नहीं कर पाएगा किसी और  नौकरी की। उसके बाद वह करेगा क्या यह सबसे बड़ा डिमेरिट है। वह घर पर आकर या तो कोई बिजनेस ही करेगा अगर बिजनेस नहीं चला तो किसी प्राइवेट जॉब में जाएगा और अगर यह भी नहीं चला तो फिर वह कहीं भी जा सकता है।” 

बातचीत के दौरान अरुण कुमार ने बताया कि पुलिस वाले फौज में भर्ती की तैयारी कर रहे नौजवानों को धमका कर गए हैं कि अगर कहीं भी कुछ होता है तो सबसे पहले वो उठेंगे। 

अरुण कुमार बताते हैं कि एक बार के लिए तो उन्होंने भी भी सोचा था कि बागपत डीएम के सामने एक पीस फुल प्रोटेस्ट किया जाए। लेकिन यहां से सब लड़कों के नाम लिखकर ले गए जो तैयारी कर रहे हैं। अब अगर आगे जाकर यह शांतिपूर्ण प्रदर्शन भी करते हैं तो प्रदर्शन में ऐसे तत्व भी होंगे जो दंगा वगैरह कर दें तो  उसमें इन लड़कों का नाम भी आ जाएगा। ये लड़के सबसे पहले उठेंगे। यह बोल कर गए हैं।

सवाल – यह तो एक तरह की धमकी है।

अरुण कुमार – “अब क्या करें… यह चीज गलत है। अगर आपने कोई डिसीजन ले लिया है तो ऐसा मत कीजिए कि उसमें और बच्चों की जिंदगी भी बर्बाद हो जाए। उन लड़कों को पकड़िए जो लड़के दंगा कर रहे हैं। इन लड़कों का क्या है, ये तो अपनी तैयारी कर रहे हैं। सब लोग इसीलिए घबरा रहे हैं बात करते हुए। इनका फ्यूचर भी आगे जाकर खराब हो जाए। यह हमारे पास लास्ट ऑप्शन है। अभी लड़के लगे हुए हैं, तैयारी कर रहे हैं। अकेला जाकर तो मैडम कोई नहीं बैठ सकता। डंडे मार कर भगा देंगे। 

एक बार जब पुलिस की धमकी की बात खुली तो फिर अग्निपथ योजना में अग्निवीरों के फायदे-नुक्सान पर खुलकर चर्चा हुई।

‘‘मैडम 1 मिनट में आपके चैनल के माध्यम से एक बात कहना चाहता हूं। सरकार तक यह मैसेज देना चाहता हूं कि आपकी जो यह स्कीम है एकदम जो आपने लाकर छोड़ दी है। हमें इससे धक्का लगा है।’’ कोच धर्मेंद्र पवार ने कहा। 

धर्मेंद्र पवार – “यह चीज आप हमें पहले से बता देते तो जो हमारा मकसद था इसी को लेकर हमारे कुछ युवा इतने जुनून से तैयारी कर रहे थे, दिन रात-मेहनत कर रहे थे, कि हमें सिर्फ आर्मी में ही जाना है लेकिन अब वो टूट गए हैं कहीं ना कहीं एक नकारात्मक भाव उनमें आ गया है। 

हमारे गांव से कई बच्चे ऐसे हैं पिछले डेढ़ साल से इंतजार कर रहे हैं। वह जॉइनिंग वाले फेज में थे। उनका सब कुछ क्लियर हो गया था। सिर्फ मेरिट में नाम आना बाक़ी है। मनीष नाम का हमारा एक साथी है उसका सिर्फ मेरिट में नाम आना बाक़ी था। वह डिमोटिवेट हुआ है। उसके लिए बहुत ज्यादा नुकसानदायक है। 

अगर सरकार की यही प्लानिंग थी तो दो साल पहले बता देते। इतना आक्रोश नहीं होता। हम अपने आप को तैयार कर लेते कि हां भैया, इसमें तो सिर्फ हमारे पास यही ऑप्शन है। पता नहीं 25 पर्सेंट में हम सेलेक्ट हो पाएंगे या नहीं हो पाएंगे। हम दूसरी तरफ भी तैयारी कर लें। अब  हमारा वो ऑप्शन खत्म हो गया है। अचानक ये स्कीम हम पर थोप दी गई। अब हमारा फायदा तभी हो सकता है जब तीन गुना ज़्यादा वैकेंसी आप निकाले।’’

सवाल – सेना में भर्ती के लिए जो बच्चे तैयारी कर रहे हैं वो किन परिवारों से आते हैं? उनकी तैयारी का खर्च कैसे निकलता है?

धर्मेंद्र पवार – ज्यादातर बच्चे किसान परिवारों से आते हैं। कुछ बच्चे दिन में काम करते हैं। फिर सुबह-शाम प्रैक्टिस के लिए आते हैं। पढ़ाई करते हैं। इतने कठिन समय से गुजरते हुए भी इनका संघर्ष जारी है। 2-3 साल से किसी वैकेंसी की उम्मीद लगा कर बैठे हैं। और इन्हें इस तरह से एकदम झटका दे दिया गया है। 

जो फिजिकल एक्टिविटी से जुड़ा हुआ होता है उसकी सहनशक्ति अच्छी होती है। लेकिन डेढ़ साल पहले जिसका फिजिकल टेस्ट क्लियर हो गया था फिर पढ़ाई पर उसका फोकस था। वो फिजिकल एक्टिविटी से हट गया था। उनके लिए तो ये योजना एक तरह से श्राप है।  

हमारे गांव से नहीं है लेकिन आसपास के गांव से जो कुछ साथी हैं उन्होंने इस चीज को लेकर आत्महत्या भी की है। हमारे लिए इस योजना ने समस्याएं ही समस्याएं खड़ी कर दी हैं। अब नौजवानों को समझ ही नहीं आ रहा कि वो क्या करें? जिनकी आर्थिक स्थिति खराब है या जो थोड़ा सा डिमोटिवेट हो जाएं या दिमागी रूप से स्ट्रांग नहीं हैं। 4 साल के बाद निकाले जाने पर वो पता नहीं क्या करेंगे? 12 लाख से रोज़गार शुरू करेंगे या पता नहीं, गलत रास्ते पर भी जा सकते हैं। 

सुजल, प्रतियोगी छात्र

12वीं की पढ़ाई पूरी कर चुके 18 साल के नौजवान सुजल कहते हैं कि वो सरकार के बुलडोज़र से नहीं डरते। और वो अग्निपथ योजना की कड़ी निंदा करते हैं। जब मैंने सुजल से पूछा कि आप अग्निवीर योजना के बारे में क्या जानते हैं तो सुजल ने बताया –

सुजल – 18-19 साल की उम्र में हम इस योजना के तहत भर्ती होंगे। ये योजना 4 साल की है। 4 साल बाद हम उस ट्रेनिंग से अग्निवीर बनकर वापस आएंगे अगर 25 प्रतिशत में हमारा नंबर नहीं आया तो। उस समय हमारी शादी की उम्र हो जाएगी। सरकार जो 12 लाख हमें देगी वो सारा हमारी शादी में खर्च हो जाएगा। फिर हम आगे क्या करेंगे? इस तरह की योजना हमारे देश के लिए नुकसानदायक है। युवाओं से पहले एक बार सलाह मशविरा किया जाना चाहिये। ऐसा नहीं होना चाहिये कि आप किसी भी योजना को कभी भी आकर लागू कर दें।

सवाल – अभी आपको क्या लग रहा है? क्या होना चाहिये?

सुजल – होना ये चाहिये कि युवाओं से और देश के जो रिटायर्ड कर्नल-जनरल हैं उनसे विचार विमर्श करिये। ऐसा नहीं है कि आप ज़बरदस्ती किसी से भी हां करवा देंगे कि हां जी ये योजना सही है। इतने बच्चे प्रोटेस्ट कर रहे हैं कम से कम उन बच्चों के भविष्य की तो सोचिये आप। हमारे सांसद हैं गाज़ियाबाद से श्री वीके सिंह उन्होंने कहा है कि कोई कह थोडे़ ही रहा है कि आप इस भर्ती में शामिल हों। इस तरह की टिप्पणी करना किसी सांसद को शोभा नहीं देता। 

सवाल – अग्निपथ योजना में अग्निवीर बनने के लिए आप जाएंगे?

सुजल – अभी एक रिपोर्ट आई है कि दो साल के अंदर 50 हज़ार बच्चों का नंबर आया है। पर नंबर ही आया है अभी केवल वो भर्ती पर चढ़े नहीं है। वो कैंसिल कर दिए सब। तो हम भर्ती की तैयारी भी कर लें तो हमें तो इसमें विश्वास ही नहीं है कि चार साल में हम इसमें पूरी ड्यूटी पर रह जाएंगे। 

सवाल – अग्निपथ योजना के तहत आप जाएंगे, अगर सरकार इसमें कुछ भी बदलाव नहीं करती है तब भी?

सुजल – मजबूरी है अब क्या करें! शादी भी करनी है। 11-12 लाख रूपये की कम से कम शादी होती है। घर भी बनवाना है। सारा पैसा घर में और शादी में खर्च हो जाएगा। या तो सरकार इस रकम को 25 लाख करे। पेंशन बंधवाए।

सवाल – इस स्कीम में तो पेंशन भी नहीं मिलेगी।

सुजल – इसमें पेंशन भी नहीं मिलेगी। इसमें तो ये है कि आपको एक लालीपाप दे रहे हैं ये। 

सवाल – सरकार कह रही है कि इस योजना से पैसे बचा कर वो सेना को मजबूत करेंगे। आधुनिक हथियार देंगे।

सुजल – मेरा तो विचार यही है कि 4 साल भर्ती में रहकर फिर हथियार मिलेगा। तो फिर कहीं इधर बैंक लूट दिया या फिर किसी थाने-चौकी में जाकर…यही काम हो सकता है…

सवाल – हथियार आपको दिया थोड़े ही जाएगा। बस चलाना सिखाया जाएगा। 

सुजल – जब हमारे देश का युवा हथियार चलाना सीख जाएगा इसका मतलब तो देश बर्बादी में है। आतंकवादी बनाना चाहती है सरकार।

सवाल – तो आपको लग रहा है कि ये योजना ठीक नहीं है?

सुजल – हम तो इनकी योजना का खंडन करते हैं।

सवाल – आपको डर नहीं लग रहा जैसे बाकी लोग डर रहे हैं? सबके नाम लिख कर ले गए हैं।

सुजल – अगर देश का युवा ही डर गया तो देश कैसे चलेगा। हम बुलडोजर से नहीं डरते। हम डरते हैं कि कहीं हमारा भविष्य खराब न हो जाए। 

आपको भी लग रहा है कि इससे बच्चों का भविष्य खराब होगा। पास खड़े सुजल की बातों पर हंसते 19 साल के मोहित से मैंने पूछा। 

मोहित –  लग तो रहा है जी। 

सवाल – आपका भी नाम लिख कर ले गए हैं?

मोहित – नाम तो पहले ही लिख कर ले गए थे। तब तक तो कुछ हुआ भी नहीं था। 

फोन पर फोन करने लग रहे हैं कि हिसाब से रहना। हमने कहा ठीक है जी। हम कहां दंगा कर रहे हैं। चार साल बाद पेपर न करवाएं तो सही है। फिर चाहे 4 साल वाली दिलवा दो… कोई दिक्कत नहीं है। मोहित के साथी नौजवान ने कहा।

सवाल – चार साल वाली नौकरी ले रहे हैं आप?

नौजवान – तीन साल से तैयारी कर रहे हैं। ये आ गई कोई बात नहीं इसे भी ले लेंगे।

मोहित – उम्मीद तो 15-20 साल तक की है। पर जो नसीब में रहेगा… 4 साल बाद वापस आ गए तो फिर तो…

सुजल ने शादी की जो बात कही वो भारतीय समाज में अपने आप में बहुत गंभीर समस्या है। भारतीय समाज में शादी-विवाह की रस्में आज भी पुरानी चाल चल रही हैं। खासकर गांव-समाज में। और सेना में सिपाही दर्जे की भर्ती के लिए ज़्यादातर नौजवान भारत के गांवों से ही आते हैं। देश में जिस तरह बेरोजगारी का बोलबाला है। और प्राइवेट नौकरियों का भी कोई ठिकाना नहीं है। शादी के बाज़ार में सरकारी नौकरियों वाले लड़कों की बड़ी भारी पूछ है। सरकारी नौकरी किसी भी स्तर की क्यों न हो। सरकारी नौकर के दहेज के भाव बढे़ हुए हैं। मां-बाप हमेशा की तरह बेटी का सुरक्षित भविष्य दामाद की सुरक्षित नौकरी में देख रहे हैं। सरकारी नौकरी पर लाखों रुपये वारने से गुरेज नहीं करते। चाहे कर्ज़ ही क्यों न लेना पडे़। 

इसीलिए अग्निवीर बनकर 75 प्रतिशत निकाले जाने वाले नौजवानों का शादी को लेकर भविष्य अंधकार में ही रहने वाला है।

कोरोना के बाद, ऊंची तनख्वाह और टाई-बूट वाले संगठित क्षेत्र के कामगारों की हालत भी पतली है। पहले से आधी तनख्वाह पर चार गुना काम करने को मजबूर हैं। कहीं कोई सुनवाई नहीं। असंगठित क्षेत्रों के मज़दूरों की तो बात ही छोड़ दें। उनका कोई माई-बाप नहीं। बीजेपी सरकार द्वारा मज़दूरों के हित की तथाकथित नई लोकतांत्रिक-श्रम नीति की सिल पर पहले के कामचलाऊ श्रम कानूनों को भी सरकारी दमन के सिलबट्टे से पीस दिया गया है?  

गांवों के नौजवान जो अपनी माली हालत और सरकार की अनदेखी के कारण पढ़ाई, जानकारी, स्वास्थ्य और हर तरह की सुविधाओं से महरूम हैं वो अपने आप को टाई-बूट की नौकरियों के काबिल बनाने में असमर्थ पाते हैं। और निर्माण मज़दूर या फैक्ट्री-कारखाना मज़दूरी उनके लिए निचले दर्जे का काम है। 

किसान परिवारों में आत्माभिमान की भावना ज़्यादा देखने को मिलती है। कम तनख्वाह पर सेना में जान गंवाना उन्हें ज़्यादा सहज और गर्वीला मालूम होता है बजाय एक मज़दूर के रूप में खटने के। तो भारत जिसकी कि अधिकतर आबादी आज भी गांवों में निवास करती है और खेती के स्वावलंबी बेशक, घाटे के कारोबार पर निर्भर है, उनके लिए सेना रोज़गार का एक सबसे बड़ा और गौरवपूर्ण ज़रिया है। 

अभी तक ज़्यादा संख्या में और कम शिक्षा यानि दसवीं-बारहवीं पास करके फौज की नौकरी में ज़्यादा मौके थे। बजाय सिवल सर्विसेज के। अग्निपथ योजना से पहले ही सरकार रेलवे, बैंकिंग, शिक्षा, स्वास्थ्य व अन्य सिविल सरकारी भर्तियों को निजी बट्टे-खाते में डालने का काम जोरो-शोरों से कर रही है।

गांव बली का साढ़े सत्रह साल का बच्चा अपनी अर्थी पर अपने मां-बाप को इज़्जत और खुद को हीरो कहलवाने को बेकरार है। एक बार बस देश की सेवा करनी है। उसे अग्निपथ योजना की कमियों-खूबियों की बहस से मतलब नहीं। वो कहता है – जुनून है फौज में जाना।’’ 

जब मैं पूछती हूं क्यों है जुनून अभी आपकी उम्र सिर्फ साढ़े सत्रह साल है। तो वो पंजाब के गायक सिद्धू मूसेवाले की हत्या के बाद उसकी प्रसिद्धि की बात करता है। जिस तरह उसके चाहने वालों ने उसका समर्थन किया है वो वैसी ही ख्याति के करिश्मे को अपने लिए फौज की शहादत में देखता हैं। उसे फर्क नहीं पड़ता कि वो 15 साल की पूरी नौकरी में शहादत पाए या अग्निवीर की 4 साल की ट्रेनिंग में। उसे शहीद की प्रसिद्धि और गौरव फौज में खींच रहा है। 

गांव की ही लाइब्रेरी में सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहे 21-22 साल के एक नौजवान ने इस जुनून पर कहा कि यही तो सरकार की चालाकी है कि वो ऐसी उम्र को सेना में भर्ती के लिए चुनते हैं जिसमें दिमाग रोमानियत से आगे कुछ सोच ही न पाए। 

तो वीके सिंह जब कहते हैं कि कोई कह थोड़े रहा है कि आप अग्निवीर बनो तब वो जानते हैं कि बेरोज़गारी का डर और रोमानियत का जूनून उन्हीं के साथ है। होशमंद नौजवान विरोध करता है तो करता रहे उनकी बला से।

(बागपत से जनचौक संवाददाता वीना की रिपोर्ट।)

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