ग्राउंड रिपोर्ट: कहां गुम हो गयी पीतलनगरी की चमक?

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मुरादाबाद। मुरादाबाद दुनियाभर में पीतलनगरी के नाम से प्रसिद्ध है। यहां भारी मात्रा में पीतल की धातुओं के साथ-साथ पीतल के देवी-देवताओं की मूर्तियों का कारोबार किया जाता है। कारोबारियों की मानें तो हर साल करीब 8 हजार करोड़ रुपए का कारोबार होता है और 500 करोड़ रुपये से अधिक के पीतल के आइटम निर्यात होते हैं। यहां से तैयार माल को अमरीका, यूरोप, सऊदी अरब और ईरान सहित कई खाड़ी देशों में पहुंचाया जाता है। मोटे तौर पर पीतल कारोबार से 2 लाख से अधिक कारीगर और 3 हजार से अधिक निर्यातक जुड़े हुए हैं। पीतलनगरी में घर-घर कारीगर पीतल के सामानों में नक़्क़ाशी करते या उन्हें तराशते मिल जाएंगे।          

पीतल से बने हुए पूजा आर्टिकल्स 

किसी कारखाने में कच्चे पीतल को पिघलाने का काम होता है तो किसी में पीतल के बर्तन, पूजा आर्टिकल्स को तराशने का काम चल रहा होता है। पीतल कारोबार से जुड़े होने के कारण पीतलनगरी की धमक देशभर में भी देखी जा सकती है।

मार्च, 2021 की बात है जब केन्द्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल मुरादाबाद में उद्योगपतियों के साथ संवाद करने आए थे। इस दौरान उन्होंने एक किस्सा सुनाया, कहा – घर को सजाने-संवारने के लिए एक बार मैं दुबई से पीतल का लैंप खरीदकर लाया था। जब उस पर ‘मेड इन इंडिया’ लिखा देखा तो काफी गौरवान्वित महसूस किया, जिज्ञासावश पता किया तो वह पीतल नगरी यानि मुरादाबाद में बनाया गया था। वीडियो कांफ्रेंसिंग के दौरान उन्होंने उद्योगपतियों को पीतलनगरी की इस चमक को दुनिया के एक-एक कोने में पहुंचाने का आश्वासन दिया। लेकिन क्या यह आश्वासन हकीकत में बदल पाया है या महज़ एक जुमला बनकर रह गया? यह जानने के लिए जनचौक ने पीतलनगरी का दौरा किया।

हम हनुमान मूर्ति पर जाकर रुके और स्थानीय लोगों से पीतलनगरी के हालात के बारे में जानकारी जुटाना शुरू किया। 30 वर्षीय जितेन्द्र, रिक्शा चालक सवारियों का इंतजार कर रहे हैं इस दौरान सब्जी का ठेला लगाने वाले 50 वर्षीय अन्नु भी यहां आ जाते हैं। 

रिक्शा चालक जितेंद्र साथ में सब्जी का ठेला लगाने वाले अन्नु

पीतलनगरी की वर्तमान परिस्थितियों के बारे में चर्चा करते हुए जितेन्द्र बताते हैं कि “कोरोना की चपेट में आने से अधिकतर कारोबारियों पर असर पड़ा है। हम पहले एक कारखाने में मजदूरी किया करते थे लेकिन कोरोना काल में हालात ख़राब होते चले गए। कारखाने बंद हो गए, हम जैसों की आफत आ गई थी। क्या करते? मजबूरी में मयूरी लेनी पड़ी, भूखों तो मरा नहीं जाता ना..!”

हम लगातार स्थिति का जायजा लेते रहे और आगे बढ़े। पीतलनगरी द्वार पर हम पहुंचे तो और स्थानीय लोगों से हमारी मुलाकात हुई। 

इस दौरान 20 वर्षीय नवयुवक हर्षित से हमने पीतल के कारखानों के बारे में पूछा‌। हर्षित ने बताया “कात्यायनी देवी के मन्दिर की तरफ कुछ घरों में पीतल का काम जरूर होता है लेकिन पहले जैसे हालात तो अब नहीं हैं। कारखाने लगातार सिमटते जा रहे हैं इसलिए कारोबारी अपने घरों में ही थोड़ा-बहुत कर ले रहे हैं।”

हमने पीतलनगरी के ही स्थानीय पत्रकार शारिक सिद्दीकी से सम्पर्क किया। उनके सहयोग से हमें शहर के प्रमुख कारोबारियों के बारे में जानकारी मिली, जो पीतल के कारोबार से जुड़े हुए हैं । हम लाजपत नगर में ‘फेयर ट्रेड प्राइमरी प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन’ के अध्यक्ष सैयद गानिम मियां से मिलने उनके कार्यालय पहुंचे। जिसके मालिक शैलेन्द्र कुमार चावला हैं। फर्स्ट फ्लोर पर पीतल के सामान की पैकिंग चल रही थी और दूसरे फ्लोर पर ऑफिस बना है जिसमें गानिम मियां का इंतजार हो रहा था हम भी वहां पर जाकर बैठे ही थे कि पीछे से गानिम मियां भी वहां पर आ पहुंचे। आवभगत के बाद बातचीत शुरू हुई। पीतलनगरी में पीलत के उद्योग-धंधे के बारे में पूछने पर गानिम मियां ने बताया कि, “मुरादाबाद के उद्योग-धंधे को प्रभावित करने के पीछे कोई एक कारण जिम्मेदार नहीं है। पहले की सरकार (कांग्रेस) हमें ‘ड्रा बैग’ देती थी, जो साल 2014 के बाद अब मिलना बंद हो गया है।”

पीतलनगरी के हालातों पर निर्यातक गानिम मियां से बातचीत करते प्रत्यक्ष मिश्रा

साथ ही सरकार के साथ एक अनुबंध होता था जिसके आधार पर इनसेंटिव दिया जाता था वो भी अब नहीं मिलता। उनका कहना है, “सरकार डिजिटल इंडिया बना रही है अच्छी बात है लेकिन यदि कोई माचिस खरीदेगा तो भी उसका हिसाब-किताब डिजिटल पेमेंट से करना होगा अन्यथा जांच एजेंसियां शक के आधार पर क्लेम कर सकती हैं। यह वास्तविकता है मुरादाबाद इंडस्ट्री को ऐसे लोग चला रहे हैं जो अभी इतने जागरूक नहीं हैं, उन्हें सिग्नेचर करना नहीं आता। उन्हें डिजिटल पेमेंट करना नहीं आता लेकिन अरबों का कारोबार जानते हैं।” 

गानिम मियां का मानना है कि सरकार कारोबारियों के लिए जीएसटी के रूप में एक नई मुसीबत लेकर आई है। मान लीजिए आप बिजनेस शुरू करना चाह रहे हैं। आपने किसी बैंक से 1 करोड़ रूपये कर्ज़ लेकर कोई कारोबार शुरू किया। इस पर 18% जीएसटी लगी, तो सीधे-सीधे 18 लाख तो सरकार के खाते में ही पहुंच गए, आम तौर पर सरकार तीन महीने में जीएसटी रिफंड की बात करती है लेकिन अक्सर ऐसा नहीं होता। अब यदि कारोबारी अगली टर्म के लिए 1 करोड़ रूपये बैंक से और उधार ले तो 2 करोड़ में 36 लाख का तो ब्याज ही बैठ जाता है अब ऐसे मेंं कारोबारी बैंक का ब्याज जमा करेगा या जीएसटी फाइल करेगा ? गानिम मियां का मानना है कि पीतलनगरी के उद्योग जगत को जिन्दा रखने के लिए  बिजली दर आधी की जानी चाहिए और कारीगरों के लिए स्वास्थ्य बीमा की व्यवस्था की जाए ताकि कामगारों का भविष्य सुरक्षित हो सके।

पीतल भट्टियों में काम करते हुए कारीगर

पीतलनगरी के पिलखाना के कारोबारी सलमान अतीक पीतल के ‘पूजा आर्टिकल्स’ बनाने का काम करते हैं। क़रीब 100 मजदूर इनसे प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर से जुड़े रहते हैं, जो पोलिश, घिसाई वगैरह किया करते हैं। कोरोनाकाल का जिक्र करते हुए सलमान बताते हैं कि मुरादाबाद की ब्रास इंडस्ट्री के लिए मंदी की मार झेल रहे कारोबारियों के लिए यह कोरोना कोढ़ में खाज साबित हुआ है। एक्सपोर्ट इंडस्ट्री को तो फिर भी राहत मिली। उनके माल पर आवाजाही को लेकर सरकार ने कोई रोक-टोक नहीं की, बल्कि प्रशासन ने सहयोग किया लेकिन मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर इसका बुरा असर पड़ा। स्टाफ आधा होने की वजह से काम में गिरावट आयी। इसके बाद तेल के दामों में बढ़ोत्तरी होने से माल की सप्लाई महंगी हो गई।  

 पीतल के उत्पादों को तलाशते कारीगर

राॅ मैटेरियल की कीमत बढ़ गई जिसके कारण सीमित मेंटल से ही काम चलाना पड़ रहा है।पिछले कुछ समय में मेंटल के दामों में भी 30% की बढ़ोत्तरी हुई है जिसके कारण कारोबारियों को अफोर्ड करना आसान नहीं हो पा रहा, इसका कारण है मुरादाबाद का पीतल उद्योग जगत कुछ समय से चीन में उत्पादकों के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहा है, खाड़ी देशों में निर्यात होने वाले माल में कमी आयी है। साल 2012-13 में यहां 20 हज़ार करोड़ का कारोबार होता था जो अब सीधा 8 हजार करोड़ रुपए पर आकर धड़ाम से गिर गया है इसलिए अब कारोबारी मेंटल से ऐल्युमिनियम मैन्युफैक्चरिंग की तरफ बढ़ रहे हैं। क्योंकि डिमांड न होने से कारोबारी ठगा सा महसूस कर रहे हैं साथ ही 18% जीएसटी पर माल खरीदकर कारोबारी 12% पर माल तैयार करके बेच रहा तो 6% का घाटा तो यहीं हो जा रहा है जिसके कारण पीतल दस्तकार बेरोजगार हो गए हैं। उन्हें उम्मीद है कि यदि सरकार पीतलनगरी के हस्तशिल्प को ज़िंदा रखना चाहती है तो पीतल दस्तकारों के लिए अवश्य कुछ करेगी।

मुरादाबाद ब्रास कारखानादार ऐसोसिएशन के चेयरमैन आज़म अंसारी बताते हैं कि सरकार ने पीतलनगरी में सैकड़ों प्रशिक्षण केन्द्र खोल रखे हैं लेकिन इनमें क्या होता है, यह सरकार ही जाने।

 पीतलनगरी में बना हुआ धातु हस्तशिल्प सेवा केन्द्र

बहरहाल 2008-09 के बाद से यहां के पीतल उद्योग ने अपने बाजार का 65 प्रतिशत हिस्सा खो दिया है। उनका कहना है “2019 में पीतल का स्लैब रेट 300 रुपये किलो था, जो अब बढ़कर 510 रुपये किलो हो गया है।”अंसारी कहते हैं, ‘14 % से अधिक कारीगरों ने पीतल के इस उद्योग-धंधे को ही छोड़ दिया है। उनका कहना है कि, “सरकार ‘एक जनपद एक उत्पाद’ पाॅलिसी लेकर आई, बहुत अच्छी बात है लेकिन प्रशासन ने सरकार की मंशा पूरी ही नहीं होने दी। यह पाॅलिसी केवल कागजों तक ही सीमित रह गई। अंसारी आगे बताते हैं एमएसएमई लोन की ब्याज़ दर 17% प्रति वर्ष है जबकि नार्मल लोन की ब्याज़ दर 8 फीसदी। ऐसे में छोटा कारीगर तो शुरू में ही दम तोड़ देगा।” आजम का मानना है यदि सरकार वास्तव में मुरादाबाद हैंडीक्राफ्ट की मदद करना चाहती है तो इस सेक्टर को फिलहाल के लिए ब्याज मुक्त करे। उन्होंने बताया कि इन मांगों को लेकर हमारी सीएम योगी आदित्यनाथ से तीन बार मुुुलाकात हुई लेकिन अधिकारीगण इसको सफल नहीं होने दे रहे। 

पीतल के बर्तन पर नक्काशी करते कारीगर

इधर रूस-युुक्रेन महायुद्ध से पीतल नगरी के पीतल व स्टील उद्योग को बड़ा झटका लगा है। महायुद्ध शुरु हो जाने से परिवहन प्रभावित हो गया है। जिसकी वजह से विदेशों से कच्चे माल की आपूर्ति नहीं हो पा रही है, वहीं उनके पीतल व स्टील से बने उत्पादों का निर्यात ठप हो गया है। गौरतलब बात है कि विदेशों से आने वाले स्क्रैप व ब्रास समेत कच्चे माल की कीमतें इतनी बढ़ गई हैं कि स्थानीय बाजार में बर्तनों की डिमांड घट गई है। तांबे और जस्ता जैसे प्रमुख कच्चे माल की कीमतों में तेज वृद्धि होने से पैकेजिंग सामग्री और परिवहन की लागत स्थानीय उत्पादकों और निर्यातकों पर भारी पड़ रही है। वहीं पीतल के लिए भट्टी में प्रयोग होने वाले कोयले की कीमत के 36 रुपये प्रति किलोग्राम से बढ़कर 70 रुपये प्रति किलोग्राम हो जाने से काम भी ढीला पड़ गया है।

पीतलनगरी के उद्योग-धंधे जिस तरह प्रभावित हुए इसके पीछे क्या प्रमुख वजह रही, इसके बारे में विस्तार से जानने के लिए जनचौक ने शहर के वरिष्ठ पत्रकार जयप्रकाश से सम्पर्क किया। जयप्रकाश दशकों से पीतलनगरी के कारोबार पर निगाह बनाए हुए हैं। उनसे जब हमने पीतलनगरी के हालात के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि, एक समय था यहां के पीतल की चमक सोने को फेल कर देती थी लेकिन मौजूदा हालात अब ऐसे नहीं रहे। पीतल उद्योग अब उस स्थिति में नहीं है जो 10 से 15 साल पहले था। इसका सबसे बड़ा कारण सीधे तौर पर चीन से प्रतिस्पर्धा का होना है, जिसकी तकनीक और फिनिशिंग के चलते हम पीछे रह गए क्योंकि हमारे यहां ज्यादातर काम हस्तशिल्प किया करते थे, डिमांड के हिसाब से पीतल कारीगरों को बेहतर मजदूरी मिलती थी लेकिन चीन के मशीनीकरण की जंग में हमारा हस्तशिल्प निर्माण केन्द्र पीछे छूट गया और मज़दूरी घटती चली गई।

 कूड़े के ढ़ेर में तब्दील होती पीतलनगरी मुरादाबाद

मुनाफा न होने की वजह से कारोबारी भी हतोत्साहित होने लगे। पीतल कारीगरों पर सबसे बड़ा असर नोटबंदी और जीएसटी के बाद हुआ, क्योंकि अभी तक ज्यादातर काम नगदी पर होता था। पीतल कारीगरों की रोजाना की आय दो हजार से लेकर पांच हजार से भी ज्यादा थी‌ लेकिन जीएसटी के बाद घरों में छोटे-छोटे कारखाने चलने बंद हो गए इसका कारण था – “बड़े निर्यातक अब उन्हें ही काम देते थे जो कागजी औपचारिकताएं पूरी कर पा रहे थे।” दूसरी बड़ी मार प्रदूषण के चलते पीतल भट्टियों के बंद होने से पड़ी, क्योंकि एनजीटी के आदेश के बाद शहर के अंदर इस तरह की भट्टियाँ प्रतिबंधित हो गयीं जिनसे प्रदूषण फैल रहा था। इसका स्थान गैस वाली भट्टियों ने लिया लेकिन गैस महंगी होने की वजह से वह अभी उतनी मात्रा में नहीं लग पाई हैं।

बीते सात-आठ सालों में लगभग 4 लाख से अधिक पीतल कारीगर बेरोजगार हो गए, जिन शिल्प कारीगरों की वजह से इस उद्योग की शान थी वो अब खोती चली गयी। समय बदला, और इसके साथ-साथ निर्यातकों ने भी देश-दुनिया के बाजार की मांग के अनुसार अपने आपको ढाल लिया‌। अब मुरादाबाद में सिर्फ पीतल ही नहीं बल्कि मेटल के गिफ्ट आइटम और फर्नीचर तक बन रहे हैं। इस समय सबसे ज्यादा निर्यात होने वाले गिफ्ट्स आइटम ही हैं, लेकिन बीते दो वर्षों में कोरोना महामारी के चलते कारोबार फिर पटरी से उतरा है। सरकारें उद्योग को राहत किस प्रकार दे रहीं हैं यह अलग विषय है, लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में हम पीतल कारीगरों के सीधे नुकसान को देख रहे हैं। पीतलनगरी को जो कारीगरी की विरासत मिली थी वो अब सिमट चुकी है उसे आगे बढ़ाने के दावे तो बहुत मिलेंगे लेकिन जमीन पर ऐसा कुछ हो यह मुमकिन नहीं दिखता।

(मुरादाबाद से प्रत्यक्ष मिश्रा की रिपोर्ट।) 

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