Saturday, April 20, 2024

EXCLUSIVE: बीजेपी के साथ फेसबुक का नाभिनाल का है रिश्ता

‘वाल स्ट्रीट जरनल’ यानी डब्ल्यूएसजे के खुलासे के बाद यह बात अब साफ हो गयी है कि फेसबुक न केवल खुले तौर पर बीजेपी और आरएसएस की मदद करता है बल्कि उसके साथ उसके गहरे रिश्ते हैं। फेसबुक की इंडिया हेड आंखी दास का अपनी बहन रश्मि दास के जरिये पार्टी के साथ उनके कथित रिश्तों ने यह साफ कर दिया है कि यहां प्रोफेशनल और पर्सनल मामलों के बीच कोई दूरी नहीं है। दोनों एक हो गए हैं। यानी भारत में बीजेपी के हितों के साथ ही फेसबुक के हित भी जुड़ गए हैं। लेकिन यह कोई नई बात नहीं है।

किसी को अगर यूरेका लग रहा है तो ऐसा न जानकारी के चलते हो सकता है। सच यह है कि मोदी के सत्ता में आने से पहले से लेकर अब तक बीजेपी और फेसबुक के बीच रिश्ते नाभिनाल के रहे हैं। इसकी शुरुआत उस समय हो गयी थी। जब फेसबुक के वैश्विक राजनीति और गवर्नेंस के मामलों को देखने वाली केटी हरबाथ को इस काम पर लगाया गया था। 

यह बात वह खुद छुपाती भी नहीं। लिंक्डइन सोशल साइट पर अपने प्रोफाइल के साथ दिए गए परिचय में उन्होंने खुद को फेसबुक की पब्लिक पालिसी टीम से 2011 से जुड़ा बताया है। जिसमें अपने काम के बारे में उन्होंने बताया है कि वह फेसबुक के लिए ग्लोबल इलेक्शन स्ट्रेट्जी यानी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न देशों में होने वाले चुनावों की रणनीति तय करने का काम करती हैं। चुनाव के दौरान नीतियों को विकसित करना और उन्हें लागू करना। आनलाइन चुनाव को आकार देने के लिए नीति निर्माताओं के साथ काम करना।

दुनिया के पैमाने पर चुने गए प्रतिनिधियों, नेताओं और सरकारों के साथ काम करना। आदि चीजें उनके प्रोफाइल में दर्ज हैं। इसके साथ ही उन्हें अपने वोटरों और कांस्टिट्यूएंसी के लोगों को फेसबुक के जरिये संचार स्थापित करने के बारे में बताना भी इसमें शामिल है। उन्होंने इस परिचय में इस बात को बताना नहीं भूला है कि यह सब कुछ दुनिया के कई देशों के चुनावों में हो चुका है। जिसमें उन्होंने साफ-साफ अमेरिका, भारत, ब्राजील, ब्रिटेन, यूरोपियन यूनियन, कनाडा, अर्जेंटिना, आस्ट्रेलिया, फिलीपींस, जापान और मैक्सिको के नाम का जिक्र किया है।

एस्पेन आइडिया के प्लेटफार्म के प्रोफाइल में उन्होंने खुद को फेसबुक के ग्लोबल इलेक्शन का पब्लिक पालिसी डायरेक्टर लिखा है। इसमें फेसबुक से जुड़ने से पहले के अपने काम के बारे में भी जानकारी दी है। फेसबुक से पहले 2009-11 के बीच वह नेशनल रिपब्लिकन सीनेटोरियल कमेटी की चीफ डिजिटल स्ट्रैट्जिस्ट रही हैं। इसके अलावा हरबाथ अमेरिका में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार रहे रूडी गुलियानी का चुनाव अभियान भी देख चुकी हैं। उसके पहले अमेरिका के हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव की 2005-06 के दौरान कम्यूनिकेशन डायरेक्टर और प्रेस सचिव भी रह चुकी हैं। और उन्होंने विंसकोंसिन-मेडिसन यूनिवर्सिटी से 2003 में पत्रकारिता और राजनीति शास्त्र में बीए किया हुआ है।

हरबाथ ने मई, 2014 में होने वाले भारत के आम चुनाव की तैयारी जनवरी से ही शुरू कर दी थी। यह बात उनकी तब की फेसबुक पोस्ट बताती है। 2 जनवरी, 2014 को उन्होंने एक फेसबुक पोेस्ट किया। जिसमें उन्होंने पोलिटिको डॉट कॉम के एक आर्टिकल को एक टिप्पणी के साथ शेयर किया था। इसमें उन्होंने लिखा था कि 2014 बहुत व्यस्त होने जा रहा है। दरअसल शेयर किए गए आर्टिकिल में 2014 में वैश्विक स्तर पर होने वाले 10 देशों के चुनावों का जिक्र है। इसमें भारत भी शामिल था। लेख के भीतर भारत के बारे में जो लिखा गया है उसके हिसाब से देश में मोदी की सरकार बनने के स्पष्ट संकेत हैं। 

इसमें कांग्रेस को वाम रुझान वाली पार्टी बताया गया है। और अप्रैल के चुनाव में धीमी विकास की दर, दहाई में मुद्रास्फीति, भ्रष्टाचार और ढेर सारे घोटालों को चुनाव के मुद्दे के तौर पर पेश किया गया है। इसके साथ ही मोदी को स्वनिर्मित नेता करार देते हुए स्टेट एडमिनिस्ट्रेटर और उनकी पार्टी बीजेपी के कांग्रेस से ज्यादा वोट पाने की संभावना जतायी गयी है। हालांकि लेख में कहा गया है कि एक त्रिशंकु संसद के होने के आसार ज्यादा हैं। लेकिन साथ ही इसे भारत के लिए अच्छा नहीं बताया गया है।

उसके बाद 29 जनवरी, 2014 को उन्होंने अपने वाशिंगटन स्थित वार रूम की फोटो पोस्ट किया है। जिसमें उन्होंने चंद शब्दों में ही लिखा है कि “वार रूम गरम है और काम कर रहा है”। बल्कि इसी पोस्ट में नीचे एक महिला ने टिप्पणी करते हुए कहा है कि “सही में वह काम कर रही है। यह एक षड्यंत्र है”।

इस काम को करने के लिए फेसबुक की तरफ से अलग से एक पेज बनाया जाता है। और हरबाथ इसका अपनी वॉल के जरिये प्रचार भी करती हैं। जिसकी एक पोस्ट में वह लिखती हैं कि “अगर आप सोशल मीडिया और राजनीति में काम करते हैं तो फेसबुक को इस्तेमाल करते हुए अपने अभियान को संचालित करने में यह मददगार साबित होगा”।    

उसके बाद 20 फरवरी, 2014 की अपनी एक पोस्ट में अपनी टीम में कुछ और लोगों को ज्वाइन कराने की बात करती हैं। जिसमें उन्होंने सीधे-सीधे लिखा है कि हम कुछ और लोगों की तलाश कर रहे हैं जो हमारे वैश्विक राजनीति और शासन की बाहर काम करने वाली टीम का हिस्सा बन सकें। इसमें लैटिन अमेरिका के साथ ही दूसरे क्षेत्रों का भी जिक्र किया गया है। 

उसके बाद केटी हरबाथ वाशिंगटन से सीधे भारत पहुंच जाती हैं। और राजधानी दिल्ली में अपने रिहाइशी स्थल होटल ताज से 1 मार्च, 2014 को जो पहली फोटो इंस्टाग्राम पर पोस्ट करती हैं वह मोदी, केजरीवाल, ममता बनर्जी और अखिलेश यादव के साथ फेसबुक के लाइव इंटरव्यू कार्यक्रम वाली होती है। जिसे हिंदुस्तान टाइम्स अखबार ने अपनी खबर के तौर पर प्रकाशित किया था। दिलचस्प बात यह है कि एनडीटीवी और मधु त्रेहान के सहयोग से होने वाले इस 5 दिनी कार्यक्रम में राहुल गांधी की बात तो छोड़ दिया जाए सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस के किसी नेता तक को शामिल नहीं किया जाता है।

और पहला लाइव कार्यक्रम बीजेपी के वरिष्ठ नेता और रणनीतिकार के तौर पर जाने जाने वाले अरुण जेटली का 9 मार्च, 2014  को होता है। जिसको केटी हरबाथ बाकायदा जेटली की लाइव तस्वीर शेयर कर अलग से बताती हैं। इसमें वह लिखती हैं कि “हमारा भारत में पहला राजनीतिक फेसबुक सवाल-जवाब इस समय बीजेपी नेता और राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली के साथ हो रहा है”। इसके अलावा ममता बनर्जी और अखिलेश के साथ भी फेसबुक का लाइव होता है।

फेसबुक की पूरी योजना परवान चढ़ने लगती है। जो अलग-अलग रूपों में इधर-उधर दिखनी भी शुरू हो जाती है। 11 मार्च को भारत में रहते ही हरबाथ एक अंग्रेजी अखबार का स्क्रीन शॉट शेयर कर अपनी भारत टीम को धन्यवाद देती हैं। पूरे आमने-सामने के दोनों पेज पर छपे इस लेख की हेडिंग थी “वोट फेसबुक पर” हैं। इसके साथ ही सामने वाले पेज पर बाकायदा भारत का नक्शा देकर उसमें कहां कितना लाइक मिल सकता है उसका पूरा ब्योरा दिया गया है। फेसबुक पोस्ट के जरिये हरबाथ ने अपनी इंडिया टीम से कहा कि “इस तरह की हेडलाइन पसंद करते हैं”।

उसी पोस्ट पर एक फ्रेसबुक फ्रेंड ने हरबाथ से सवालिया लहजे में पूछा कि लगता है कि इस समय तुम अपना काम कर रही हो। जिसके जवाब में हरबाथ अपनी टीम के एक दूसरे शख्स को इसका श्रेय देती हैं। दिलचस्प बात यह है कि उससे पहले 5 मार्च, 2014 को हरबाथ ने जनरल इलेक्शन के वोटिंग कैलेंडर का मैप पोस्ट किया था। अब इन दोनों नक्शों के बीच आपस में क्या संबंध था यह तो फेसबुक की टीम ही बता सकती है।

फिर 12, मार्च 2014 के एक अंग्रेजी अखबार में आया लेख हरबाथ के लिए आह्लादित करने वाला था। और उन्होंने इस खुशी को जाहिर करने में समय भी नहीं लगाया। उस पेपर में प्रकाशित लेख के स्क्रीन शॉट को अपने फेसबुक पर इस टिप्पणी के साथ शेयर किया कि “एक लड़की इस तरह की रोजाना हेडलाइन हासिल करने की आदती हो सकती है #टीमइंडिया”। इस लेख का शीर्षक था “जब राजनीति सोशल हो जाती है”। चुनावी राजनीति पर सोशल मीडिया ने किस तरह से अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया था यह लेख इस बात की खुली बयानी था।

इस बीच, भारत में रहते हरबाथ ने ताजमहल और हुमायूं के मकबरे समेत कई ऐतिहासिक स्थलों का दौरा किया और उसको भी वह सोशल मीडिया के अपने विभिन्न प्लेटफार्मों पर शेयर करती रहीं। खास कर इन तस्वीरों के लिए उन्होंने इंस्टाग्राम को चुना है।

कई देशों में एक साथ चुनावों और भारत में केंद्रीकरण के चलते लगता है कि फेसबुक का काम काफी बढ़ गया था और उसे स्टाफ की और ज्यादा जरूरत थी। लिहाजा 4 अप्रैल, 2014 को अमेरिका में रहते हरबाथ ने बाकायदा फेसबुक के जरिये जॉब आफर किया और उसके लिए उन्होंने तीन लिंक भी दिए।

जिसके लिए उन्होंने वाशिंगटन डीसी में तीन जगहें और एक के लंदन में होने की बात कही। और पोस्ट में उनके अलग-अलग लिंक भी दे दिए।

ब्राजील में भी चुनाव हो रहा था लिहाजा हरबाथ ने वहां का भी दौरा किया। वहां की फेसबुक टीम के साथ 10 अप्रैल, 2014 की उनकी फोटो देखी जा सकती है। जिसमें उन्होंने ब्राजील की टीम की बेहद प्रशंसा की है। दिलचस्प बात यह है कि इस दौरान बाहर रहते हुए भी उनकी बराबर नजर भारत के चुनाव पर बनी रही। और उसमें भी खासकर बीजेपी और फेसबुक से जुड़ी खबरों को अपने फेसबुक पर साझा करने से नहीं चूकीं। 19 अप्रैल, 2014 को ‘द ऑस्ट्रेलियन डॉट काम’ में एक लेख प्रकाशित हुआ जिसका शीर्षक था भारत के बीजेपी अभियान के लिए ‘रुड-एबॉट सेल्फी मॉडल’। चुनाव का आखिरी दौर आते-आते मोदी के लिए फेसबुक का प्यार हिलोरें मारने लगा था।

केटी हरबाथ ने इसको छुपाया भी नहीं। 30 अप्रैल, 2014 की उनकी पोस्ट इसको जाहिर कर देती है। जिसमें मोदी वोट देने के बाद कमल का फूल लिए सेल्फी ले रहे हैं। यह फोटो आने के बाद देश में बवाल मच गया था और विपक्षी दलों ने इसे चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करार दिया था। हालांकि आयोग ने भी इसका संज्ञान लिया। और बाद में गलती बताने के बावजूद उसने मोदी को माफी दे दी। आप को बता दें कि यह पूरा अभियान फेसबुक द्वारा संचालित किया गया था जिसे उसने ‘सेल्फी विथ वोट’ का नाम दिया था। 

उसके बाद चुनाव का अभी नतीजा नहीं आया था उससे पहले ही मोदी के प्रधानमंत्री बनने की संभावनाएं और उसमें सोशल मीडिया और खासकर फेसबुक की भूमिका को लेकर लेख आने शुरू हो गए। 16 मई को ‘ओजेडवाई’ वेबसाइट में प्रकाशित इसी तरह के एक लेख को हरबाथ ने अपने फेसबुक पेज पर शेयर किया। जिसमें तक़रीबन नरेंद्र मोदी की जीत घोषित की जा चुकी थी। फेसबुक और सोशल मीडिया की इसमें क्या भूमिका रही उस पर विस्तार से आंकड़ों के साथ लिखा गया था। दिलचस्प बात यह है कि इस पूरे दौरान हरबाथ ने कांग्रेस के राहुल गांधी से लेकर सोनिया गांधी या फिर किसी भी दूसरे नेता की न तो कोई खबर, न ही पोस्ट शेयर की। न ही विपक्ष की किसी दूसरी पार्टी और उसके नेता को यह सम्मान मिला कि वह हरबाथ की वाल का शोभा बढ़ा पाता।

बीजेपी के साथ फेसबुक का यह प्रेम उस समय अश्लीलता की हद पार गया जब मौजूदा समय में डब्ल्यूएसजे विवाद में फंसी और फेसबुक की इंडिया हेड आंखी दास ने क्वार्ट्ज पोर्टल में एक लेख लिखकर मोदी की तारीफों के पुल बांध दिए। इस लेख का शीर्षक ही था ‘फेसबुक पर नरेंद्र मोदी का अभियान- लाइक कैसे वोट लाते हैं’। नरेंद्र मोदी की विक्ट्री की साइन वाली लगी फोटो पूरी खबर के मजमून का लिफाफा था। इसमें फेसबुक पर ट्रेंड करने वाले मुद्दों में रोजगार, शिक्षा और भ्रष्टाचार को बताया गया था। और फिर मोदी के पूरे चुनाव प्रचार अभियान का विवरण दिया गया था। आंखी दास ने लिखा कि “मोदी ने अभियान अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की तर्ज पर चलायी और सामुदायिक और लोगों से संपर्क स्थापित करने के लिए पहली पंक्ति की सीट पर बैठकर कमांडिंग पोजीशन ली”।https://qz.com/210639/how-likes-bring-votes-narendra-modi

उसके बाद लेख में मोदी के फेसबुक पर फॉलोवरों की पुरानी संख्या और उसमें बढ़त से लेकर हर तरह के आंकड़े दिए गए। इसमें यह भी बताया गया है कि फॉलोवरों को बढ़ाने के लिए क्या-क्या तरकीबें अपनायी गईं। इसमें मोदी की एक फोटो रजनीकांत के साथ दी गयी है जिसके बारे में बताया गया है कि इससे बहुत ज्यादा लाइक और हिट मिले। इसके साथ ही बीजेपी और उसके समर्थकों द्वारा फेसबुक पर बनाए गए अलग-अलग पेजों का हवाला दिया गया है। आंखी दास लिखती हैं कि “हमने अपना इलेक्शन ट्रैकर 4 मार्च को लांच किया और लगातार बीजेपी और नरेंद्र मोदी नंबर एक पर थे। यह नौ चरणों के चुनाव अभियान में हमेशा बना रहा”। 

केंद्र में मोदी की सरकार बनने के बाद तो मानो भारत फेसबुक का दूसरा घर हो गया। और सरकार उसकी संरक्षक। राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री और सूचना प्रसारण मंत्रालय से लेकर सूबों के मुख्यमंत्रियों तक उसके अधिकारियों की सीधी पहुंच हो गयी। मई, 2015 में सरकार गठन की पहली सालगिरह से ठीक पहले हरबाथ भारत यात्रा पर आती हैं। इस दौरान उनकी सूचना और प्रसारण सचिव विमल जुल्का से मुलाकात होती है। जिसमें यह माना जाता है कि भारत में फेसबुक के जरिये कैसे सरकार के पक्ष में माहौल बनाया जाए और उसके बदले में फेसबुक को क्या-क्या लाभ मुहैया कराए जा सकते हैं आदि जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई होगी।

उसके बाद भारत सरकार और खासकर पीएम मोदी और फेसबुक के बीच का रिश्ता इतना गहरा हो जाता है कि अमेरिकी दौरे में पीएम मोदी फेसबुक के हेडक्वार्टर का दौरा करते हैं जहां वह सार्वजनिक मंच पर फेसबुक चीफ मार्क जुकरबर्ग के साथ बात करते हैं। जिसमें मोदी मार्क जुकरबर्ग को फेसबुक टाउनहाल में कहते हैं कि “सोशल मीडिया ने शासन में बेहद महत्वूपर्ण भूमिका निभाई है”। शायद यह मोदी के भीतर का चोर था जिसमें वह सीधे फेसबुक का नाम नहीं ले पाए। यह दौरा अपने तरीके से चुनावी जीत में मदद देने के लिए मोदी का धन्यवाद ज्ञापन था। साथ ही भविष्य में रिश्तों को और मजबूत बनाने और बढ़ाने का आश्वासन भी था। केटी हरबाथ के लिए यह किसी बड़ी उपलब्धि से कम नहीं था।

उसके बाद 2017 में भी हरबाथ भारत के दौरे पर आती हैं। वह 7 जनवरी, 2017 को इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरती हैं। इस यात्रा में हरबाथ ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर का भी दौरा किया। हरबाथ की इसी यात्रा के दौरान पीएम मोदी सोशल मीडिया पर फालो किए जाने वाले दुनिया के सबसे बड़े नेता बन गए। इसकी खुशी हरबाथ ने इस पर लिखे गए एक लेख को ट्विटर पर शेयर करने के जरिये जाहिर की। ‘बीजीआर डॉट इन’ वेबसाइट पर नंदिनी यादव द्वारा लिखे गए इस आर्टिकिल में बताया गया था कि कैसे ओबामा को पीछे करके नरेंद्र मोदी की सबसे बड़ी फॉलोइंग हो गयी। बराक ओबामा की फेसबुक फॉलोइंग 5 करोड़ 30 लाख थी। जबकि मोदी की 3 करोड़ 90 लाख। इसके अलावा इंस्टाग्राम पर मोदी के कुल 58 लाख फॉलोवर थे। साथ ही ट्विटर पर यह संख्या 2 करोड़ 65 लाख थी। हरबाथ ने लेख का लिंक इस टिप्पणी के साथ शेयर किया कि “पीएम नरेंद्र मोदी आज सोशल मीडिया पर फॉलो किए जाने वाले दुनिया के सबसे नेता हो जाएंगे”।

जनवरी की हरबाथ की इस यात्रा के पीछे एक दूसरा मकसद भी शामिल था। यूपी, उत्तराखंड, गोवा, पंजाब और मणिपुर के चुनाव होने जा रहे थे लिहाजा उसकी तैयारियों के सिलसिले में भी इस दौरे को देखा जा सकता है। अमृतसर का दौरा किसी स्वर्ण मंदिर के मुकाबले वहां होने वाले चुनाव के मद्देनजर ज्यादा था। 3 फरवरी, 2017 को उन्होंने बाकायदा एक ट्वीट के जरिये इसको बताया भी। जिसमें उन्होंने इन चुनावों में वोटिंग परसेंटेज कैसे बढ़ाया जाए इसको लेकर एक पोस्ट भी शेयर किया।

साथ ही बताया कि फेसबुक इस मामले में अपना पूरा योगदान करेगा। इस मौके पर फेसबुक की तरफ से जारी एक बयान में सोशल साइट की भारत हेड आंखी दास ने कहा कि “हम सिविक भागीदारी को प्रोत्साहित करना चाहते हैं- इसीलिए हम लोगों ने ऐसे टूल बनाए हैं जिससे भारत, दक्षिण और सेंट्रल एशिया के लोगों को भागीदारी (चुनाव में) करने मे आसानी हो।”   

अगले भारत दौरे में हरबाथ की तब के आईटी मिनिस्टर रवि शंकर प्रसाद से भी मुलाकात हुई। और एक कार्यक्रम में उन्हें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के साथ भी देखा जा सकता है। इसमें राष्ट्रपति द्वारा उन्हें सम्मानित किया गया था। अपने फेसबुक पोस्ट में उन्होंने लिखा है कि “मतदाताओं को शिक्षित करने के काम में फेसबुक की भूमिका के लिए भारत के राष्ट्रपति और चुनाव आयोग द्वारा पुरस्कार हासिल कर सम्मानित महसूस कर रही हूं”। इस कार्यक्रम में फेसबुक की इंडिया हेड आंखी दास भी मौजूद थीं। यह कार्यक्रम चुनाव आयोग की ओर से 25 जनवरी, 2018 को दिल्ली में आयोजित किया गया था।

एक अन्य कार्यक्रम में उन्हें छत्तीसगढ़ के तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह के साथ फेसबुक का प्रचार करते हुए देखा जा सकता है। यह कार्यक्रम छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में हुआ था। और कार्यक्रम इलेक्ट्रानिक्स एंड इंफार्मेशन डिपार्टमेंट द्वारा आयोजित किया गया था। यह कार्यक्रम राष्ट्रपति के कार्यक्रम से पहले आयोजित हुआ था। 

इसी तरह की उनकी एक और तस्वीर है जिसमें वह एक शख्स के साथ सेल्फी ले रही हैं और उसके पीछे हजारों की संख्या में नौजवान बैठे हुए हैं। यह तस्वीरें छत्तीसगढ़ में कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण शिविर की हैं।   

दरअसल कैंब्रिज एनालिटिका, व्लादीमीर पुतिन और डॉनल्ड ट्रंप के साथ गैंग बनाकर अमेरिकी चुनाव में वोटर्स के साथ खेल करते हुए फेसबुक के मार्क जुकरबर्ग जब रंगे हाथों पकड़े गए तो कहने लगे कि फेसबुक का किसी के साथ किसी तरह का कोई राजनीतिक गठजोड़ नहीं हैं। फेसबुक अपने सभी यूजर्स को राजनीति का बराबर मौका देता है। लेकिन मार्क जुकरबर्ग बड़ी चालाकी से यह छुपा गए कि उनकी कंपनी दुनिया भर की राजनीतिक पार्टियों और नेताओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करती है।

और जिनके साथ वह काम करती है, सभी जानते हैं कि उनके पास मौजूद ट्रॉल आर्मी किस तरह की फ़ेक न्यूज़ फैलाती है और किस तरह का जहर लोगों के दिमाग में भरती है। इतना ही नहीं, कंपनी बाकायदा अपने बिजनेस पेज पर इसका प्रचार प्रसार भी करती है। या फिर फटाफट वह ब्लू मार्क दिलाती है। सालों फेसबुक पर लोग टिक टुक करते है लेकिन उन्हें ब्लू मार्क नहीं मिलता। लेकिन बीजेपी के एक अज्ञात नेता को भी यह आराम से मिल जाता है। इसको समझने के लिए कोई जादू सीखने की जरूरत नहीं है। सब कुछ अब आईने की तरह साफ हो गया है।

फेसबुक के बिजनेस पेज पर दावा किया गया है कि वह पूरी तरह से निष्पक्ष है। लेकिन यह सिर्फ लिखने तक सीमित है। सच्चाई इसके बिल्कुल उलट है। सच यह है कि वह उन सभी के साथ मिलकर काम करता है जो पॉवर यानी कि शक्ति यानी कि बेइंतहा ताकत के तलबगार हैं। मगर सिर्फ तलबगार होने से काम कैसे चलेगा? पीछे अंबानी और अडानी भी तो चाहिए होते हैं। अमेरिका हुआ तो पीछे टॉमी हिलफिगर चाहिए होते हैं, या पाकिस्तान हुआ तो? इमरान खान ने किसके बल पर छक्का मारा है, यह भी आप को जानना चाहिए। 

इस पूरी प्रक्रिया में केटी हरबाथ के कनेक्शन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पूर्व सूचना मंत्री और आज के कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद से तो हैं ही साथ ही सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के चीफ सहित उसके समेत दूसरे मंत्रालयों के छह हजार से ज्यादा अधिकारियों से भी हैं। दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देशों में, चाहे वह भारत हो या ब्राजील, जर्मनी हो या ब्रिटेन केटी हरबाथ जैसे ही किसी नेता के साथ चुनावी कॉन्ट्रैक्ट साइन करती हैं, उनकी टीम के लोग उस नेता के साथ उसके कैंपेन वर्कर्स की तरह जुड़ जाते हैं। वे उस नेता के लिए हर तरह का काम करते हैं वह कानूनी हो या कि गैरकानूनी।

ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जैसे ही फेसबुक समर्थित नेता चुनाव जीतता है, केटी हरबाथ की टीम तुरंत उसके पास पहुंचकर उसके सरकारी कर्मचारियों को हर तरह की तकनीकी मदद और ट्रेनिंग देना शुरू कर देती है। जैसे कि जब नेता जी मन की बात करें तो कर्मचारियों को क्या करना है। जैसे कि जब नेता जी मन की बात कहें तो कर्मचारियों या अधिकारियों को क्या कहना है। और जैसे कि जब नेता जी के मन की बात का झूठ पकड़ा जाए तो अधिकारियों को फटाफट लीपा पोती कैसे करनी है। जैसा कि यहां भारत में हुआ और ऊपर सिलसिलेवार तरीके से उसका विवरण दिया गया है।

अमेरिका के चुनाव में रूसी राष्ट्रपति पुतिन और कैंब्रिज एनालिटिका के साथ गैंग बनाकर साजिश करने के आरोप में जब फेसबुक पकड़ा गया तो अमेरिकी संसद ने मार्क से पूछा कि बताइये जब अमेरिका में चुनाव हो रहा था तो आप के खाते में रूस से इतना ढेर सारा पैसा कहां से आया? आप को बता दें कि अमेरिकी चुनाव के वक्त रूसी विज्ञापनों से फेसबुक की इनकम में दो, चार, दस या बीस नहीं, सीधे 79 फीसदी का इजाफा हुआ था और इस इजाफे की एकमात्र वजह रूस से मिलने वाले विज्ञापन थे। यह विज्ञापन अमेरिकी नामों से चलाए जा रहे थे। न्यूयॉर्क टाइम्स ने ऐसे दर्जनों फर्जी विज्ञापन पकड़े हैं जो ट्रम्प को जिताने से लेकर जनता को भरमाने का काम पूरे धड़ल्ले से कर रहे थे।

मार्क जुकरबर्ग ने अभी इन विज्ञापनों से मिलने वाले पैसे का न तो हिसाब दिया है और न ही अमेरिकी संसद के इस सवाल का जवाब दिया है कि इतना ढेर सारा पैसा उनकी जेब में आखिर आया कहां से? उल्टे वह तो इस कोशिश में ही लगे रहे कि कैसे भी करके इस मामले पर पर्दा डाल दिया जाए। हमारे न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद फेसबुक को बड़ी मीठी-मीठी धमकियां देते हैं, पर क्या कभी किसी ने सुना कि सन 2014 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने फेसबुक को कितना पैसा दिया? कभी मार्क जुकरबर्ग को कोर्ट के कटघरे में खड़ा करके किसी ने उस तरह से पूछने की हिम्मत की जैसे अमेरिकी संसद ने इस शख्स को इन दिनों घुटने पर बैठा रखा है? 

यह अनायास नहीं है कि 2019 के चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजेपी के अपने सभी सांसदों से कहा था कि हर एक सांसद के फेसबुक पेज को कम से कम तीन लाख जेनुइन लाइक्स करने वाले होने चाहिए वरना टिकट मिलना मुश्किल है। यह भले ही मोदी के मुंह से निकला हो लेकिन इसे तैयार फेसबुक ने किया था। फेसबुक का पेज लाइक रेट पर अस्सी पैसे से ढाई रुपये के बीच बैठता है। सन 2014 के इलेक्शन में बीजेपी के 355 उम्मीदवार सांसद बने थे। पीएम मोदी का यह आदेश चुनाव के चार साल बाद का है।

चुनाव के बाद रकम कम लगती है, और चार साल बाद तो और भी कम हो जाती है, इसलिए आप अंदाजा लगा सकते हैं कि चुनाव के वक्त बीजेपी ने फेसबुक को कितने पैसे दिए होंगे। अंदाजा ही लगाना पड़ेगा क्योंकि आप चाहे जितने घोड़े दौड़ा लें, बीजेपी आपको चुनावी खर्च का असल ब्योरा नहीं देगी। और फिर ये अमेरिका भी नहीं है कि वहां की तरह यहां भी जो चाहे, सबूतों के साथ राष्ट्रपति हो या कोई बड़ा नेता उसे कटघरे में लाकर खड़ा कर दे। 

फेसबुक की इसी ग्लोबल गवर्नमेंट एंड पॉलिटिक्स टीम में कभी काम करने वाली एलिजाबेथ लिंडर बताती हैं कि किसी भी राजनीतिक कैंपेन से जुड़ना कम से कम फेसबुक का काम तो नहीं ही है। एलिजाबेथ ने सन 2016 में फेसबुक की इसी यूनिट के साथ यूरोप, मिडिल ईस्ट और अफ्रीका में काम किया है। शुरू में तो एलिजाबेथ अपने काम को लेकर बेहद उत्साहित थीं, लेकिन जब उन्होंने इस टीम की गैरकानूनी कारगुजारियां और लोकतंत्र को गहरी चोट पहुंचाने वाली हरकतें देखीं तो उनका फेसबुक के साथ मोहभंग हो गया। उन्हें फेसबुक के साथ काम करने के अपने फैसले पर बेहद अफसोस हुआ।

इसका नतीजा यह हुआ कि उन्होंने फेसबुक को अलविदा कह दिया। अमेरिका में तो अब सब जान गए हैं कि फेसबुक की इस टीम ने किस तरह से डोनाल्ड ट्रंप को चुनाव जिताने में मदद की। वैसे इस टीम ने हिलेरी क्लिंटन को भी ऑफर दिया था, लेकिन उन्होंने मना कर दिया था। दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित मीडिया हाउसेज में से एक ब्लूमबर्ग बताता है कि इसी टीम ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फेसबुक पर स्टैब्लिश किया। इसी यूनिट ने नरेंद्र मोदी के फेसबुक पेज में इतने फॉलोवर्स जोड़ दिए, जितने कि दुनिया के किसी भी नेता के पास नहीं हैं। यहां तक कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के पास भी नहीं हैं। 

वैसे फेसबुक का कहना है कि वह हर तरह से सभी लोगों के लिए खुला प्लेटफार्म है और जो चाहे इसको यूज कर सकता है। फेसबुक तो बस उसे पैसे देने वालों को इतना बताता है कि उसकी तकनीक का प्रयोग कैसे करना है, न कि वह यह बताता है कि फेसबुक पर आकर कहना क्या है। इस मामले में हमने जब हरबाथ को ईमेल लिखकर पूछा तो उन्होंने बताया कि उन्हें गर्व है कि वह दुनिया के ऐसे हजारों नेताओं के साथ काम करती हैं जो चुनाव जीत चुके हैं। उनके सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को ट्रेनिंग अपने आम में सम्मान का विषय है। इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी कहा कि कंपनी अब इस काम में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का प्रयोग कर रही है। बहाना बनाया कि कंपनी हेट स्पीच और धमकियों को रोक रही है। लेकिन डब्ल्यूएसजे का मामला सामने आने के बाद इसकी कलई खुल गयी है।

बहरहाल केटी हरबाथ ने फेसबुक के भीतर घुसने से पहले ही अपनी पत्रकारिता की डिग्री गेट पर छोड़ दी थी। और जहां से सरकारों के बनाने-बिगाड़ने का काम हो रहा हो उससे किसी निष्पक्षता की उम्मीद भी नहीं की जा सकती है। अनायास नहीं 2018 में फेसबुक ने ब्रिटेन के पूर्व उप प्रधानमंत्री निक क्लेग को नौकरी पर रखा है। ऐसे लोग अगर किसी संस्था में जाएंगे तो वहां से सत्ता में उलट फेर का काम करने के अलावा उनसे और क्या उम्मीद की जा सकती है ? ‘एस्पेनआइडिया’ की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में ‘टेक्नोनॉमी मीडिया’ के एडिटर इन चीफ डेविड किर्कपैट्रिक ने कहा था कि “टेक्नॉलाजी हमारे दिमाग को हैक कर रही है और यह दुनिया के सामने एक गंभीर चुनौती है”। संयोग से इस कार्यक्रम में हरबाथ भी मौजूद थीं। लेकिन उन्होंने न तो उससे कुछ सीखा और न ही वह सीखने के लिए तैयार हैं। 

( राहुल के साथ जनचौक के संपादक महेंद्र मिश्र की रिपोर्ट।)

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अपरेंटिसशिप गारंटी योजना भारतीय युवाओं के लिए वाकई गेम-चेंजर साबित होने जा रही है

भारत में पिछले चार दशकों से उठाए जा रहे मुद्दों में बेरोजगारी 2024 में प्रमुख समस्या के रूप में सबकी नजरों में है। विपक्षी दल कांग्रेस युवाओं के रोजगार पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, वहीं भाजपा के संकल्प पत्र में ठोस नीतिगत घोषणाएँ नहीं हैं। कांग्रेस हर शिक्षित बेरोजगार युवा को एक वर्ष की अपरेंटिसशिप और 1 लाख रूपये प्रदान करने का प्रस्ताव रख रही है।

ग्राउंड रिपोर्ट: रोजी-रोटी, भूख, सड़क और बिजली-पानी राजनांदगांव के अहम मुद्दे, भूपेश बघेल पड़ रहे हैं बीजेपी प्रत्याशी पर भारी

राजनांदगांव की लोकसभा सीट पर 2024 के चुनाव में पूर्व सीएम भूपेश बघेल और वर्तमान सांसद संतोष पांडेय के बीच मुकाबला दिलचस्प माना जा रहा है। मतदाता सड़क, पानी, स्वास्थ्य, महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दों को प्रमुखता दे रहे हैं, जबकि युवा बेरोजगारी और रोजगार वादों की असफलता से नाराज हैं। ग्रामीण विकासपरक कार्यों के अभाव पर चिंता व्यक्त कर रहे हैं।

वामपंथी हिंसा बनाम राजकीय हिंसा

सुरक्षाबलों ने बस्तर में 29 माओवादियों को मुठभेड़ में मारे जाने का दावा किया है। चुनाव से पहले हुई इस घटना में एक जवान घायल हुआ। इस क्षेत्र में लंबे समय से सक्रिय माओवादी वोटिंग का बहिष्कार कर रहे हैं और हमले करते रहे हैं। सरकार आदिवासी समूहों पर माओवादी का लेबल लगा उन पर अत्याचार कर रही है।

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