करनाल के दोराहे पर किसान नेता, टिकैत ने कहा- यहीं डटेंगे

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करनाल में किसान नेताओं और ज़िला प्रशासन के अधिकारियों की लगातार चार दौर की बातचीत नाकाम रही। हरियाणा सरकार आईएएस आयुष सिन्हा पर किसी भी तरह की कार्रवाई के लिए तैयार नहीं है। संयुक्त किसान मोर्चा के सामने बहुत बड़ा सवाल खड़ा हो गया है कि वो आगे क्या रणनीति अपनाए? किसान मोर्चा का नेतृत्व करनाल में आंदोलन को लंबा चलाने के मूड में नहीं है। इससे सिंघु, टीकरी और ग़ाज़ीपुर में चल रहे धरनों पर असर पड़ेगा। लगता है हरियाणा सरकार इस स्थिति को भाँप गई है, इसलिए वो कोई माँग स्वीकार नहीं कर रही है।

निलंबन के लिए भी तैयार नहीं

अधिकारियों और किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल, दर्शन पाल, राकेश टिकैत, गुरनाम सिंह चढ़ूनी और योगेन्द्र यादव के बीच बीती रात से लेकर आज शाम चार बजे तक चार दौर की बात हुई। सूत्रों ने बताया कि किसान नेता आयुष सिन्हा की बर्ख़ास्तगी की माँग छोड़कर उसे निलंबित किए जाने पर भी समझौता करने को तैयार थे। लेकिन पहले की ही तरह करनाल के अधिकारियों ने चंडीगढ़ से पूछकर जवाब देने की बात कही। 

इसके बाद जब फिर बातचीत शुरू हुई तो चंडीगढ़ से हुई बातचीत के आधार पर अधिकारी आयुष सिन्हा को निलंबित किए जाने की माँग मानने से मुकर गए। ज़िला प्रशासन मृत किसान सुशील काजला के परिवार को दस लाख रूपये देकर समझौता करने की पेशकश कर रहा था। जिसे किसान नेताओं ने ठुकरा दिया। किसान नेता यहाँ तक झुके कि सरकार एसडीएम को निलंबित कर दे, मामले की जांच का आदेश दे दे तो भी बात बन सकती है। लेकिन करनाल ज़िला प्रशासन के अधिकारी चंडीगढ़ के इशारे पर अपना अड़ियलपन छोड़ने को तैयार नहीं हुए।

खट्टर की इज़्ज़त का सवाल

दरअसल, मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के बयान से सारा मामला उलझा और अब हरियाणा सरकार इसे अपनी नाक ऊँची रखने का मामला बना चुकी है। किसानों का सिर फोड़ने वाला घरौंडा के तत्कालीन एसडीएम आयुष सिन्हा का वीडियो जब 28 अगस्त को वायरल हुआ तो सीएम ने चुप्पी साधे रखी। लेकिन जब पुलिस की पिटाई से अगले दिन किसान काजला की मौत हो गई तो सीएम ने अपने बयान में कहा कि एसडीएम के शब्दों का चयन ग़लत था। एसडीएम सख़्ती की बात कह रहे थे। किसान की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई।

खट्टर के बयान के बाद किसानों का ग़ुस्सा भड़क गया। उन्होंने गुरनाम सिंह चढ़ूनी पर इस मुद्दे को उठाने का दबाव बनाया। चढ़ूनी ने ज़िला प्रशासन को 6 सितंबर तक कार्रवाई का अल्टीमेटम दिया। इसी बीच 5 सितंबर को जब किसान नेताओं को मुजफ्फरनगर महापंचायत में किसानों का सागर हिलोरे मारता नज़र आया तो उन्होंने करनाल को भी बड़ा मुद्दा बना दिया। 

अगर कल करनाल अनाज मंडी में बड़े पैमाने पर किसान नहीं जुटते तो किसान नेता कल शाम को ही लौटने की तैयारी करके आए थे। लेकिन किसानों के दबाव पर उन्हें करनाल मिनी सचिवालय तक पैदल जाना पड़ा। उनकी रात भी वहाँ बीती। किसान नेताओं को उम्मीद थी कि आज बुधवार को दिन में कोई हल निकल आएगा। लेकिन निराशा हाथ आई।

हालाँकि सीएम के विधानसभा क्षेत्र में चल रहे इस आंदोलन से सरकार के जल्द से जल्द पीछा छुड़ाने की उम्मीद थी लेकिन खट्टर को इसकी परवाह नहीं है। खट्टर के रणनीतिकार आंदोलन को लंबा खींचने और कोई नुक़सान न होने के बेवक़ूफ़ी वाले दावे कर रहे हैं।

करनाल में फँसे किसान नेता

संयुक्त किसान मोर्चा के नेता अब करनाल के दोराहे पर फँसा हुआ महसूस कर रहे हैं। अगर वे किसानों को धरना देते छोड़कर चले जाते हैं और पीछे से कोई और घटना होती है तो उनकी किरकिरी होगी। तमाम किसान नेताओं को लखनऊ की बैठक में जाना है। उसमें वे कैसे जाएँगे? वहाँ लखनऊ में योगी सरकार ने धारा 144 लगाकर अपने इरादे ज़ाहिर कर दिए हैं। संयुक्त किसान मोर्चा ने यह रिपोर्ट लिखे जाने तक अपनी अगली रणनीति का ऐलान नहीं किया है। उन्होंने बस इतना कहा है कि करनाल में किसानों का धरना जारी रहेगा। राकेश टिकैत ने ट्वीट करके भी इसकी जानकारी दी।

समझा जाता है कि संयुक्त किसान मोर्चा के नेता आज रात में अपनी रणनीति बनाएँगे और शायद कल गुरूवार को इसकी घोषणा करेंगे। किसान नेताओं को लगा था कि आसपास इलाक़ों से आए किसान आज शाम तक लौट जाएँगे लेकिन किसान लौटने को तैयार नहीं हैं। इससे किसान नेताओं को नैतिक रूप से भी यहाँ रूकना पड़ रहा है।

हुड्डा का बयान

हरियाणा के पूर्व सीएम भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने सरकार को किसानों से बातचीत की सलाह दी है। हुड्डा ने कहा – करनाल में धरनारत किसानों की मांगें जायज, सरकार जानबूझकर उकसावे की कार्रवाई करके टकराव के हालात पैदा करती है। लाठीचार्ज के दोषियों पर कार्रवाई हो और सरकार राजधर्म निभाते हुए एक बार फिर आंदोलनकारियों से संवाद स्थापित करे। लोकतंत्र में संवाद से ही हर समस्या का समाधान संभव है।

कई मिथक ध्वस्त हुए

सभी किसान नेता बीती रात किसानों के साथ मिनी सचिवालय पर सोए। हालाँकि इनके बारे में संघ और भाजपा ने प्रचार कर रखा था कि ये लोग एसी कमरों में सोते हैं और महँगे रेस्तराँ से इनका खाना आता है। इस संबंध में राकेश टिकैत का एसी में सोते हुए एक फ़ोटो भी वायरल किया गया था।लेकिन वही टिकैत जब कल रात किसानों के साथ सोए तो सारी अफ़वाहों का खंडन हो गया। यही नहीं जब ये लोग लंगर का खाना खाते दिखे तो सारी बातें साफ़ हो गईं।

हालाँकि कल रात का सबसे बेहतरीन दृश्य वो था जब एक ही जगह एक तरफ़ पुलिस के जवान सो रहे थे तो उनके सामने किसान सो रहे थे। यह फ़ोटो आज सोशल मीडिया पर काफ़ी वायरल भी हुआ।

(यूसुफ किरमानी वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

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