किसानों ने कहा- चार महीने का राशन है, पांच एंट्री प्वाइंट से घेरे रखेंगे राजधानी

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किसान संगठनों ने सिंघु बॉर्डर पर प्रेस कान्फ्रेंस करके गृहमंत्री अमित शाह की ओर से बातचीत के लिए बुराड़ी ग्राउंड जाने के प्रस्ताव को एक सिरे नकारते हुए कहा है कि ये किसानों का अपमान है। हम किसान सरकार से किसान विरोधी कानून वापस करवाने आए हैं और सरकार हमें बुराड़ी के ओपेन जेल में भेजना चाहती है। इसके अलावा किसानों ने प्रधानमंत्री द्वारा मन की बात में किसान विरोधी कृषि कानूनों को किसान हितैषी बताए जाने पर भी नाराज़गी व्यक्त की।

भारतीय किसान यूनियन क्रांतिकारी (पंजाब) के अध्यक्ष सुरजीत एस फूल ने प्रेस कान्फ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा कि “सरकार द्वारा बातचीत के लिए जो कंडीशन थी हम उसे किसान संगठनों का अपमान मानते हैं। अब हम बुराड़ी पार्क बिल्कुल नहीं जाएंगे। हमने तय किया है कि हम कभी भी बुराड़ी पार्क नहीं जाएंगे क्योंकि हमारे पास इस बात का सबूत है कि यह एक खुली जेल है। दिल्ली पुलिस ने उत्तराखंड किसान एसोसिएशन अध्यक्ष से कहा कि वह उन्हें जंतर-मंतर ले जाएंगे लेकिन पुलिस ने उन्हें बुराड़ी ले जाकर छोड़ दिया। बुराड़ी की खुली जेल में जाने के बजाय दिल्ली के पांच एंट्री प्वाइंट को घेरे जाने का फैसला किया है। हमारे पास चार महीने का राशन है, इसलिए चिंता की कोई बात नहीं है। हमारी ऑपरेशंस कमेटी सब कुछ तय करेगी।”

उन्होंने अपने किसान आंदोलन को किसी पार्टी का राजनीतिक हथियार बनने से अलग करते हुए आगे कहा कि “हमने तय किया है कि हम किसी भी राजनीतिक पार्टी के नेता को अपने मंच पर नहीं बोलने देंगे, चाहे वह कांग्रेस हो, बीजेपी हो, आप हो या और कोई पार्टी। यदि दूसरे संगठन अगर हमारे नियमों का पालन करते हैं तो हमारी कमेटी समर्थन करने वाले दूसरे संगठनों को अनुमति देगी।”

गोदी मीडिया द्वारा किसानों के बाइट लेकर आंदोलन को भटकाने के मकसद को काउंटर करते हुए उन्होंने आगे कहा कि “हम कुछ प्रदर्शनकारियों द्वारा अनजाने में मीडिया के लोगों के साथ किए गए दुर्व्यवहार के लिए मीडिया से माफी मांगना चाहते हैं। भविष्य में ऐसी स्थितियों से बचने के लिए, हमने तय किया है कि हर बैठक के बाद, मीडिया के लिए हम एक आधिकारिक प्रेस नोट जारी करेंगे।”

इसके अलावा उन्होंने किसान विरोधी कृषि कानून के हवाले से सरकार द्वारा किसानों को ‘बिचौलिये’ से बचाने और किसान व मंडी के बीच से बिचौलियों को बाहर करने वाले बयान पर नराजगी जाहिर करते हुए कहा कि सरकार पहले ‘बिचौलिये’ को परिभाषित कर ले कि बिचौलिया कौन है। सरकार खुद बिचौलिये के दबाव में काम करती है। सरकार का कोई काम बिचौलियों के बिना नहीं होता। और मंडियों में काम करने वाले जिन लोगों को वो बिचौलिया बता रही है वो सर्विस प्रोवाइडर हैं। वो मंडी में साफ सफाई से लेकर अनाज की देख-रेख सुरक्षा तक का जिम्मा संभालते हैं।”

इसके बाद बलवीर सिंह रज्जेवाल ने कहा, “वो एक तरफ कह रहे हैं कि किसान ठंड में आ रहे हैं दूसरी तरफ बात के लिए बुलाने की बात हो रही और शर्त भी लगाई जा रही है वो नहीं होनी चाहिए। जो सरकार ये रोड छुड़वाने के लिए बात कर रही वही सरकार, उसके मंत्री जब हम किसान आ रहे थे यदि आगे से आकर हमें रिसीव करते कि भाई आइए आपको क्या बात कहना चाहते हो, यहां बैठें, हम आपसे बात करेंगे तो मेरा ख्याल है कि किसान इतने एग्रेसिव न होते।

भारत सरकार जो तीन कृषि कानून लाई है वो किसानों के खिलाफ़ है और कार्पोरेट के पक्ष में है। हमारी मांग है कि ये तीनों कानून हर हाल में रद्द किया जाए। सरकार बिजली बिल जो ला रही है उसे खत्म किया जाए। और एक कानून सरकार पराली जलाने वाले किसानों के खिलाफ़ ला रही है जिसके तहत 1 करोड़ रुपया जुर्माना और 5 साल की सज़ा का प्रावधान करेगी वो भी सरकार वापस ले। पिछले साल सुप्रीमकोर्ट के करवाए एक सर्वे में ये बात सामने आई थी कि किसानों के पराली जलाने से सिर्फ़ 4-5 प्रतिशत प्रदूषण होता है। ये सरकार किसानों को सज़ा देने के लिए कानून बना रही है। इसके अलावा हमारी मांग है कि सरकार किसानों को एमएसपी की गारंटी और एमएसपी पर खरीदने की गांरटी दे कानून बनाकर।”

माले का किसानों के समर्थन में कल देशव्यापी विरोध

इस बीच, तीनों किसान विरोधी कानूनों की वापसी के लिए दिल्ली में प्रदर्शन करने आ रहे किसानों पर बर्बर दमन के खिलाफ अब पूरे देश में किसानों का आक्रोश फूट पड़ा है। दमन के बावजूद मोदी सरकार किसानों को दिल्ली पहुंचने से रोक नहीं पाई। भाकपा-माले की केंद्रीय कमेटी ने आंदोलनकारी किसानों पर दमन के खिलाफ 30 नवंबर को देशव्यापी विरोध का आह्वान किया है। इसकी जानकारी देते हुए बिहार माले राज्य सचिव कुणाल ने कहा कि कल पूरे बिहार में राज्यव्यापी प्रतिवाद दिवस मनाया जाएगा। पटना में विरोध कार्यक्रम में पार्टी के महासचिव काॅ. दीपंकर भट्टाचार्य भी शामिल होंगे।
उन्होंने आगे कहा कि 3 कृषि बिल की वापसी के लिए किसान आरपार की लड़ाई के मूड में हैं। एक ओर किसानों की दुश्मन मोदी सरकार व कारपोरेट घराने हैं तो दूसरी ओर किसान व उनके समर्थन में देश की जनता है। लगता है, शाहीन बाग आंदोलन की ही तर्ज पर यह देश के किसानों का दूसरा शाहीन बाग बनने वाला है।

(जनचौक ब्यूरो की रिपोर्ट।)

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