Friday, April 19, 2024

भारत की पहली ऑस्कर विनर और कास्ट्यूम डिजाइन को शास्त्रीय कला बनाने वाली भानु अथैया का जाना

भारत की पहली ऑस्कर विजेता और सिनेमा जगत की जानी-मानी कॉस्ट्यूम डिजाइनर भानु अथैया का 91 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। भानु अथैया ने भारत के लिए पहला अकादमी और ऑस्कर अवॉर्ड जीता था।

चर्चित चलचित्र निर्माता सत्यजीत राय को सभी जानते हैं किन्तु शायद बहुत कम लोग ही भानु अथैया का नाम सुने हों। आठ साल पहले उनके मस्तिष्क में ट्यूमर होने का पता चला था। पिछले तीन साल से वह बिस्तर पर थीं क्योंकि उनके शरीर के एक हिस्से को लकवा मार गया था।

भानु अथैया को साल 1982 में रिलीज़ हुई फ़िल्म ‘गांधी’ में कॉस्ट्यूम डिज़ाइन करने के लिए ऑस्कर पुरस्कार दिया गया था। इस फ़िल्म को ब्रिटिश निर्देशक रिचर्ड एटेनबरो ने बनाया था।

भानु अथैया ने हिंदी सिनेमा में गुरु दत्त की सुपर हिट फिल्म ‘सीआईडी’ (1956) में कॉस्ट्यूम डिजाइनर के रूप में अपने करियर की शुरुआत की थी। अथैया ने पांच दशक के अपने लंबे करियर में 100 से अधिक फिल्मों के लिये अपना योगदान दिया। उन्हें गुलजार की फिल्म ‘लेकिन’ (1990) और आशुतोष गोवारिकर की फिल्म ‘लगान’ (2001) के लिये राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला था। भानु अथैया ने फ़िल्म लगान और ‘स्वदेश’ में उन्होंने आखिरी बार कॉस्ट्यूम डिज़ाइन किए थे।

साल 2012 में भानु अथैया ने ऑस्कर ट्रॉफी को एकेडमी ऑफ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइंसेज को लौटा दी थी। क्योंकि उन्हें इस पुरस्कार की सुरक्षा को लेकर चिंता थी। खासकर कुछ साल पहले शांतिनिकेतन से रबिंद्रनाथ टैगोर के नोबेल पुरस्कार के मेडल के चोरी हो जाने के बाद उनकी यह चिंता और बढ़ गयी थी। वह चाहती थीं कि उनके जाने के बाद ऑस्कर ट्रॉफी को सुरक्षित स्थान पर रखा जाए। उनका कहना था कि उनके परिवार वाले और भारत सरकार उनके इस अमूल्य अवार्ड के रख-रखाव में सक्षम नहीं हैं, इसलिए यह अवार्ड अकादमी के संग्रहालय में ही सबसे सुरक्षित और सुव्यवस्थित रहेगा। भानु अथैया का मानना था कि अगर उनकी ट्रॉफी ऑस्कर के दफ्तर में रखी जाएगी तो उसे ज़्यादा लोग देख पाएंगे।

भानु अथैया का जन्म और पालन-पोषण कोल्हापुर में हुआ था। उनके पिता पेंटर थे और सात बच्चों में वह तीसरे नंबर पर थीं। अथैया 1945 में मुंबई आयी थीं और उन्होंने जेजे स्कूल ऑफ आर्ट ज्वाइन किया। वह पहली और अकेली महिला बनीं जिसको बॉम्बे प्रोग्रेसिव ने ज्वाइन करने के लिए आमंत्रित किया था। और उसकी 1953 में आयोजित प्रदर्शनी का हिस्सा बनीं। 

हालांकि उनका आर्टिस्ट के तौर पर कैरियर बहुत छोटा रहा। उसके बाद उन्होंने ‘फैशन एंड ब्यूटी’ तथा इव की ‘वीकली’ जैसी फैशन मैगजीनों के लिए चित्र बनाने शुरू कर दिए। उसके बाद उन्होंने पूरे कला को ही अलविदा कह दिया। जिसके बाद उनके दोस्तों परिचितों ने उन पर व्यवसायिक होने का आरोप लगाया।

आर्ट के इतिहासकार डॉ. ज़ेहरा जुमोभ्वाय ने बताया कि “समूह (बॉम्बे प्रोग्रेसिव) की अकेली महिला होने के नाते वह बेहद महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने इसलिए छोड़ा क्योंकि उन्हें जीवन चलाने के लिए कुछ करना था; उनके पास फैशन में जाकर कास्ट्यूम डिजाइन करने का विकल्प था, क्योंकि ये चीजें उन्हें वित्तीय तौर पर स्वतंत्र कर देतीं। उनके सौंदर्य स्टाइल को विकास का मौका नहीं मिला लेकिन अगर आप कृष्ण खन्ना या फिर वीएस गैतोंडे के 1950 के दशक के काम को देखें तो आप उनके बीच की एकता को समझ सकते हैं जिसको भानु ने साझा किया था।”

उनका कोलाबा में अपना वर्कशॉप था जिसे बाद में 1970 के दशक में उन्होंने वार्डेन रोड पर शिफ्ट कर दिया था। उनकी कुछ कास्ट्यूम डिजाइनें जो बेहद चर्चित रहीं उनमें ब्रह्मचारी फिल्म (1969) के गाने ‘आज कल तेरे मेरे प्यार के चर्चे’ में मुमताज की नारंगी सारी, आम्रपाली (1966) में वैजयंती माला के कास्ट्यूम शामिल हैं।  

भानु अथैया अपने पीछे एक बेटी छोड़ गयी हैं। जिसका नाम राधिका गुप्ता है। निधन के बाद आयी अपनी टिप्पणी में उन्होंने अपनी मां को खुदा का गिफ्ट करार दिया है।

भानु अथैया के निधन पर कई जाने माने लोगों ने दुःख व्यक्त करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी है। अभिनेता राज बब्बर ने उन्हें याद करते हुए ट्वीट किया है। उन्होंने कहा कि “भानु अथैया ने कास्ट्यूम डिजाइन को एक शास्त्रीय कला बना दिया। उनकी फिटनेस का कमाल अमरोही और राज कपूर जैसे महान लोग भी तारीफ करते थे। गांधी में उनका ऑस्कर जीतने का कारनामा कालातीत है। ‘इंसाफ का तराजू’ और ‘निकाह’ जैसी अपनी शुरुआती फिल्मों में उनके बनाए डिजाइन पहनने का मुझे भी विशेषाधिकार हासिल था। उनका निधन एक व्यक्तिगत क्षति है”। 

केन्द्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने भी भानु अथैया की मौत पर शोक व्यक्त करते हुए श्रद्धांजलि दी है।

(लेखक कवि और पत्रकार हैं। और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

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