Thursday, April 18, 2024

मोदी का आर्थिक पैकेज: जनता के लिए आत्मनिर्भरता और 21वीं सदी का जुमला और मलाई कार्पोरेट के हिस्से!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना संकट के संदर्भ में एक बार फिर राष्ट्र को करीब 30 मिनट तक संबोधित किया। इस संबोधन में उन्होंने कुछ ठोस बातें और कुछ भावात्मक बातें कीं और बहुत सारे सपने दिखाए। उनके संबोधन का लहजा इस तरह का था, जैसे भारत का विश्व गुरु बनने का संघी सपना कोई दूर की बात न हो, बल्कि निकट भविष्य में पूरे होने वाला हो या एक हद तक पूरा हो गया। आइए देखते हैं, प्रधानमंत्री ने मुख्य बातें क्या कहीं ?

  • प्रधानमंत्री ने 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज की घोषणा की जो भारत की सकल जीडीपी का करीब 10 प्रतिशत है। इसमें पहले से घोषित पैकेज भी शामिल है।
  • प्रधानमंत्री ने बोल्ड रिफार्म करने की घोषणा की।
  •   प्रधानमंत्री ने कोरोना की आपदा को अवसर में बदलने का आह्वान किया।
  • प्रधानमंत्री ने 21 वीं सदी को भारत की सदी बनाने का आह्वान किया।
  • प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भर भारत का आह्वान किया।
  • प्रधानमंत्री ने लॉकडाउन के चलते मेहनतकशों की यातना एवं दुखों को देश के लिए की गई त्याग-तपस्या ठहराया
  • प्रधानमंत्री ने कहा कि लॉकडाउन चौथे चरण में भी लागू रहेगा, लेकिन नए रूप-रंग में
  • प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि हमें कोरोना के साथ जीना सीखना होगा।

सबसे पहले 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज पर बात करते हैं। करीब सभी अर्थशास्त्री एवं अन्य विशेषज्ञ निरंतर इस बात पर जोर दे रहे थे विश्व को अन्य देशों की तरह भारत को भी अपने जीडीपी का 10 प्रतिशत तक के आर्थिक पैकेज की घोषणा करनी चाहिए। प्रधानमंत्री ने देर से ही सही इस पैकेज की घोषणा की।

इस घोषणा के संदर्भ में दो महत्वपूर्ण प्रश्न है। पहला यह कि इस पैकेज से कितनी राशि किसके जेब में जाएगी। क्योंकि प्रधानमंत्री जी ने साफ-साफ शब्दों में कहा है कि यह पैकेज कार्पोरेट जगत, लघु, छोटे एवं मझोले उद्योगों, किसानों एवं मजदूरों लिए हैं। देखना यह है कि इस पैकेज का कितना हिस्सा किसको मिलता है? मेहनतकश किसानों एवं मजदूरों और लघु, छोटे एवं मझोले उद्योगों को कितना मिलेगा इसी पर निर्भर करेगा कि इस पैकेज का स्वागत किया जाए या नहीं। क्योंकि प्रधानमंत्री ने पिछली बार जिस 1 लाख 70 हजार करोड़ के पैकेज की घोषणा की थी, उसका कितना हिस्सा उन 80 करोड़ भारत के गरीब लोगों को मिला, जिन्हें इसकी सर्वाधिक आवश्यकता थी। इसका कोई आंकड़ा अभी तक सरकार ने प्रस्तुत नहीं किया है। जमीनी हकीकत यह बता रही है कि इसका नहीं के बराबर हिस्सा मेहनतकश लोगों को मिला। मेहनतकशों को सिर्फ लॉलीपाप दिया गया। इसकी भयावह त्रसाद तस्वीरें पग-पग पर दिखाई दे रही हैं। 

कहीं ऐसा तो नहीं इस पैकेज की घोषणा कार्पोरेट घरानों की जेब भरने के लिए की गई हो या उन्होंने जिन बैंकों को कंगाल बना दिया, उन बैंकों को इस पैकेज के नाम पर पूंजी दी जाए और फिर उसकी लूट पूंजीपति करें। अब तक करीब बैंकों के 8 लाख करोड़ रुपए पूंजीपति डकार चुके हैं, जिसमें करीब 80 प्रतिशत मोदी जी के कार्यकाल में। 2020-21 के बजट से पहले आर्थिक विकास दर की धीमी होती गति को तेज करने के नाम पर 1 लाख 50 हजार करोड़ रूपए की सौगात कार्पोरेट जगत को कार्पोरेट टैक्स में छूट के नाम पर सौंप दी गई थी।

आर्थिक पैकेज के संदर्भ में दूसरा प्रश्न यह  है कि इस पैकेज के लिए धन का इंतजाम कहां से किया जाएगा? क्या इसका कोई बोझ संपत्ति कर, कार्पोरेट कर या आयकर के नाम पर देश के उन धन्ना सेठों पर भी डाला जाएगा, जिन्होंने इसी देश की संपदा एवं श्रम का इस्तेमाल करके अकूत संपदा इकट्ठा की या इसका बोझ भी प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष तौर पर मेहनतकशों, निम्न मध्यवर्ग और मध्यवर्ग पर डाल दिया जाएगा या इसके लिए देश की संपदा को औने-पौने दाम पर धन्ना सेठों को बेचा जाएगा। ये सारे प्रश्न भविष्य के गर्भ में हैं।

अपने संबोधन में बहुत कम शब्दों में झटके के साथ, लेकिन साफ शब्दों में प्रधानमंत्री ने बोल्ड रिफार्म की घोषणा की। हम सभी देशी-विदेशी कार्पोरेट घराने, इनके पालतू अर्थशास्त्री एवं नीति निर्धारक लगातार बोल्ड आर्थिक सुधारों की मांग कर रहे थे। बोल्ड रिफार्म में निम्न महत्वपूर्ण चीजें हैं- 

  • श्रम कानूनों में सुधार-जिसे लेबर रिफार्म कहते हैं।
  • भूमि अधिग्रहण को आसान बनाना- जिसे लैंड रिफार्म कहा जाता है।  
  •   वित्तीय सुधार- फाइनेंस सेक्टर में सुधार
  •   बचे-खुचे सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण 

 श्रम सुधारों के नाम श्रमिकों के हितों को सुरक्षित करने वाले श्रम कानूनों को खत्म करने की जोर-शोर से शुरूआत उत्तर प्रदेश, गुजरात एवं मध्य प्रदेश ने पहले ही कर दी। लैंड रिफार्म के नाम किसानों एवं आदिवासियों के जल, जंगल एवं जमीन को पूंजीपतियों द्वारा औने-पौने दाम पर एवं जबर्दस्ती सरकार के सशस्त्र बलों के सहयोग से हड़पने के मार्ग की सारी बाधाएं दूर करने की कोशिश मोदी जी ने अपने पहले कार्यकाल के शुरू में ही कर दी थी। इसके लिए तीन बार अध्यादेश लाए गए। लेकिन किसानों-आदिवासियों के विरोध और विपक्ष द्वार निरंतर सूट-बूट की सरकार कहने के चलते मोदी जी को झुकना पड़ा था और अध्यादेश कानून नहीं बन पाया। अब कोरोना संकट का इस्तेमाल इसके लिए किया जाएगा। भाजपा शासित कर्नाटक ने इसकी शुरूआत भी कर दी है। इसी को शायद प्रधानमंत्री जी ने आपदा का इस्तेमाल अवसर के रूप मे करना करार दिया है।

वित्तीय क्षेत्र में सुधार के नाम पर बैंकों एवं भारतीय जीवन बीमा निगम का निजीकरण देशी-विदेशी कार्पोरेट घरानों की बहुत पुरानी मांग रही है। वित्तीय सुधारों के नाम पर इस दिशा में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर आगे बढ़ाने की कोशिश सरकार पहले की कर चुकी है। बजट में भारतीय जीवन बीमा के शेयरों को निजी हाथों में बेचने की घोषणा पहले ही की जा चुकी है, जिसे विनिवेश कहा जाता है और बैंकों के विलय का काम भी चल रहा है या कुछ हद तक पूरा हो गया है।

रेल, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों और अन्य सार्वजनिक एवं सरकारी कंपनियों और संस्थानों को जल्दी से जल्दी बेचना भी इस बोल्ड रिफार्म के दायरे में आता है। जिसकी धीमी शुरूआत पहले ही हो चुकी है। एयर इंडिया एवं बीएसएनएल आदि अंतिम साँसें गिन रहे हैं।

कोरोना आपदा को बेहतर अवसर में बदलने का मूल निहितार्थ बोल्ड रिफार्म करना ही है और हम सभी जानते हैं कि बोल्ड रिफार्म का निहितार्थ देश के मेहनतकश श्रमिकों, आदिवासियों एवं किसानों को कार्पोरेट घरानों के रहमों-करम पर छोड़ देना और देश के प्राकृतिक संसाधनों, सार्वजनिक संस्थाओं और सार्वजनिक पूंजी को कार्पोरेट घरानों को ऐन-केन प्रकारेणन सौंप देना।

मुझे लगता है कि 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज एवं बोल्ड रिफार्म को एक साथ जोड़कर देखा जाना चाहिए। असल में जिन कार्पोरेट घरानों के हितों के लिए बोल्ड रिफार्म किया जा रहा है, यह आर्थिक पैकेज भी प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष तौर पर उन्हीं के लिए है।

21 वीं सदी भारत की सदी होगी और भारत विश्व को रास्ता दिखायेगा, जैसे जुमले भी प्रधानमंत्री जी ने अपने संबोधन में बार-बार इस्तेमाल किया। खैर इसके लिए तो वे मशहूर ही हैं। अच्छे दिन के सपने ने उन्हें प्रधानमंत्री बना दिया और अब 21वीं सदी भारत की सदी होगी, इस जुमले का इस्तेमाल अपनी नाकामयाबियों को छुपाने एवं अपने भक्तों की उम्मीदों को जिंदा रखने के लिए कर रहे हैं, ताकि इस नारे का इस्तेमाल कर भविष्य की चुनावी वैतरणी पार की जा सके।

(डॉ. सिद्धार्थ जनचौक के सलाहकार संपादक हैं।)

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