26 दिसंबर को भारत के आर्थिक सुधारों के पुरोधा अर्थशास्त्री पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के निधन से पूरे विश्व में शोक की लहर व्याप्त हुई है। मनमोहन सिंह के निधन की क्षति उनके विशेष योगदान को भारत में आर्थिक सुधारों के एक मजबूत आधार का निर्माण करने वाले प्रकाश स्तम्भ के रूप में याद किया जायेगा।
अपनी शैक्षिक योग्यता, विवेकशील कार्यशैली, देश के प्रति निष्ठा और साधारण जीवन के आदर्शों से डॉ. मनमोहन सिंह ने एक अलग मय्यार देश के राजनीतिक नेतृत्व के लिए बनाया है।
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की संसार से सम्मानपूर्वक विदाई में वर्तमान सरकार ने जिस प्रकार का काम किया उससे कई सवाल खड़े हुए। कांग्रेस पार्टी द्वारा वर्तमान सरकार पर आरोप लाये गए कि डॉ. मनमोहन सिंह के अंतिम संस्कार के लिए कुप्रबंधन किया गया और उचित स्थान उपलब्ध नहीं करवाया गया।
एक सामान्य स्थान पर उनकी अंतेष्टि को निर्धारित करना पूर्वाग्रह से प्रेरित है। कांग्रेस के अशोक गहलोत ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाए हैं कि डॉ. मनमोहन सिंह के अंतिम संस्कार और स्मृति स्थल को लेकर मोदी सरकार अनावश्यक विवाद खड़ा कर रही है।
अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व चेयरमैन एवं पूर्व राज्यसभा सदस्य सरदार त्रिलोचन सिंह ने एक पत्र डॉ. मनमोहन सिंह की पत्नी गुरशरण कौर को लिखा है कि ‘स्मारक बनाने का विचार सिख पंथ के मूल्यों के विपरीत है’। उन्होंने लिखा है कि सिख धर्म में समाधि बनाने की अनुमति नहीं है।
त्रिलोचन सिंह का कहना है कि सिख पंथ में व्यक्ति के मूल्यों उपदेशों और योगदान के लिए महत्व माना गया है न कि किसी के सांसारिक अस्तित्व का किसी भी स्मारक द्वारा महिमामंडन करने को।
त्रिलोचन सिंह ने पत्र में लिखा है कि “दुख की इस घड़ी में केवल गुरबाणी ही सांत्वना है। सतगुरु की कृपा से आप स्वयं कीर्तन करती हैं। डॉक्टर साहब स्वर्ग पहुंच गये हैं और सतगुरु नानक देव जी के चरणों में बैठे हैं। मेमोरियल शब्द के प्रयोग को लेकर बहुत बड़ा भ्रम है जो मेरे हिसाब से अनुचित है।
पूरे राजघाट क्षेत्र में जिन राष्ट्रपति और प्रधानमंत्रियों का वहां अंतिम संस्कार किया गया, उनमें से प्रत्येक के केवल एक फीट ऊंचे मंच हैं। वहां किसी भी तरह का कोई ढांचा नहीं खड़ा किया गया है।”
पत्र में लिखा है कि “मैंने निवेदन किया कि डॉ. साहब का दाह संस्कार राजघाट क्षेत्र में हो सकता है। आप तो जानते ही हैं कि सिख धर्म में समाधि की भी इजाजत नहीं है। सिख धर्मगुरुओं ने ज्ञानी जैल सिंह की एक भी बात नहीं मानी है।
मेरा सुझाव है कि हम दिल्ली में किसी उपयुक्त स्थान पर एक अंतर्राष्ट्रीय डॉ. मनमोहन सिंह स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स या एक स्कूल ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन का प्रस्ताव रख सकते हैं, जहां विभिन्न देशों के छात्र सीख सकें। डॉ. साहब के जीवन और कार्यों पर एक स्थायी प्रदर्शनी उसी का हिस्सा हो सकती है।”
कांग्रेस पार्टी की स्मारक बनाने की मांग पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए त्रिलोचन सिंह ने कहा है सिख गुरु साहिबान ने सामूहिक स्मरण पर जोर दिया है न कि व्यक्तिगत प्रशंसा पर। त्रिलोचन सिंह ने करतारपुर कॉरिडोर खोले जाने पर मोदी सरकार की खुले मन से प्रशंसा की थी।
पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के प्रेस सलाहकार रहे और अक्सर सरकार के प्रति सकारात्मक रुख रखने वाले त्रिलोचन सिंह के इन सुझावों पर सिख समुदाय के अन्य बुद्धिजीवियों की प्रतिक्रियाएं भी सामने आ रही है।
विश्व के श्रेष्ठ हॉकी खिलाड़ी भारतीय टीम के पूर्व कप्तान ओलम्पियन सरदार परगट सिंह का कहना है कि त्रिलोचन सिंह द्वारा डॉ. मनमोहन सिंह पर दिया गया सुझाव उनकी प्रतिष्ठा के अनुरूप नहीं है।
डॉ. मनमोहन सिंह के विलक्षण योगदान को पूरे विश्व में सम्मान मिला है। राजनीतिक संकीर्णता से ऊपर उठ कर डॉ. मनमोहन सिंह के प्रति एक विस्तृत दृष्टिकोण को अपनाया जाना चहिये।
पंजाब के पूर्व पुलिस महानिदेशक और श्री अकाल तख्त सम्मानित रणबीर सिंह खटड़ा ने कहा है कि सरदार त्रिलोचन सिंह का यह व्यक्तिगत दृष्टिकोण हो सकता है या किसी राजनीतिक विचारधारा से प्रेरित।
पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के चंडीगढ़ में निधन के बाद उनके अंतिम संस्कार को दिल्ली में करवाने के लिए त्रिलोचन सिंह प्रयासरत रहे थे।
डॉ. मनमोहन सिंह के विश्वपटल पर सम्बोधन के बाद सिख समुदाय की साख और पहचान फिर से अलग तरह से परिभाषित हुई, जिसे 9 /11 के अमेरिकी आंतकी हमले के बाद से ओसामा बिन लादेन की वेशभूषा के कारण एक तरह से ठेस लगी थी।
भाजपा के पंजाब से किसान मोर्चा के कौमी नेता सुखमिंदर पाल सिंह ग्रेवाल ने कहा है कि डॉ. मनमोहन सिंह के देश के लिए दिए गए अमूल्य योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।
उनकी उपलब्धियों से पूरे विश्व में सिख समुदाय का सर गर्व से ऊंचा हुआ है और सिख समुदाय को हमेशा प्रेरणा मिलती रहेगी। उनके सम्मान को केवल एक कालेज या संस्थान के नामकरण तक से नहीं किया जा सकता।
सुखमिंदर पाल सिंह ग्रेवाल का कहना है कि समाधि और स्मारक स्थल में अंतर को भी समझा जाना चाहिए। सिख पंथ में स्मारक स्थल उपलब्धियों के लिए बनाये जा सकते हैं, जिस प्रकार करतार सिंह सराभा का लुधियाना के सराभा गांव में बनाया गया है सरदार भगत सिंह का पंजाब में बंगा के पास उनके मूल गांव खटकड़ कलां में है और हर वर्ष वहां सम्मानपूर्वक उनकी याद में कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं।
(जगदीप सिंह सिंधु वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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