वर्ष 2000 के दशक की शुरुआत में महाराष्ट्र में विस्फोट के कुछ ऐसे मामले सामने आए थे, जहां हिंदू समुदाय के लोग आतंकी गतिविधियों से जुड़े थे। बाद में हैदराबाद की मक्का मस्जिद (2007), अजमेर शरीफ दरगाह (2007) और मालेगांव (2008) में हुए विस्फोट भी कथित तौर पर कट्टरपंथी दक्षिणपंथी समूहों के कार्यकर्ताओं द्वारा किए गए थे। इन्हें भगवा आतंकवाद कहा गया था। 2010 में तत्कालीन गृह मंत्री पी चिदंबरम ने कट्टरपंथी हिंदुत्व समूहों की आतंकवादी गतिविधियों को ‘भगवा आतंकवाद‘ का नाम भी दिया था। अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ परिवार पर बम विस्फोटों के संदर्भ में भगवा आतंकवाद का एक सनसनीखेज आरोप संघ के ही एक पूर्व प्रचारक ने एक हलफनामे में लगाए हैं। इसके बाद संघ को सांप सूंघ गया है और बोलती बंद हो गयी है।
द टेलीग्राफ अखबार ने इस आशय की एक खबर छापी है। यह हलफनामा महाराष्ट्र के नांदेड़ (महाराष्ट्र) में डिस्ट्रिक्ट और सेशन कोर्ट में 29 अगस्त, 2022 को संघ के पूर्व कार्यकर्ता यशवंत शिंदे ने दाखिल किया है। अदालत ने सीबीआई के वकील (पब्लिक प्रॉसिक्यूटर) और आरोपी दोनों को समन भेजकर 22 सितंबर तक उनका जवाब मांगा है।
साल 2006 में नांदेड़ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के एक कार्यकर्ता के आवास पर बम विस्फोट के सोलह साल बाद संगठन के एक पूर्व वरिष्ठ पदाधिकारी ने विशेष सीबीआई अदालत के समक्ष आवेदन दायर कर दावा किया है कि कई वरिष्ठ दक्षिणपंथी नेता सीधे तौर पर घटना में शामिल थे।
रिपोर्ट के अनुसार, आवेदक यशवंत शिंदे लगभग 25 वर्षों से आरएसएस कार्यकर्ता थे और विश्व हिंदू परिषद (विहिप) और बजरंग दल जैसे अन्य दक्षिणपंथी समूहों के साथ भी जुड़े थे। उन्होंने दावा किया है कि विस्फोट से तीन साल पहले विहिप के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता ने उन्हें ‘देश भर में विस्फोटों को अंजाम देने’ के लिए चल रहे एक आतंकवादी प्रशिक्षण शिविर के बारे में बताया था।
अपने एफिडेविट में शिंदे ने इस बात का जिक्र किया है कि जुलाई 2003 में उसको दक्षिण मुंबई के खेतवाड़ी इलाके में स्थित गोल देवुल (गोल मंदिर) में एक महत्वपूर्ण बैठक होने का संदेश मिला। उसने उस बैठक में शामिल होने का दावा किया है।
एफिडेविट में बताया गया है कि “वहां केवल दो लोग थे। वो आरएसएस के सदस्य थे और महाराष्ट्र प्रांत के वीएचपी नेता मिलिंद परांडे के सहयोगी थे। इन दोनों ने आवेदकों को बताया कि बहुत जल्दी ही एक बम बनाने का प्रशिक्षण आयोजित होने जा रहा है और उसके बाद देश के स्तर पर बम विस्फोटों को आयोजित करने की योजना है। उन्होंने इस बात का प्रस्ताव आगे रखा कि उसे देश के ज्यादा से ज्यादा इलाकों में विस्फोट की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। वह बेहद अचंभित था लेकिन अपने चेहरे पर उसे जाहिर नहीं होने दिया और हल्के तरीके से पूछा कि क्या यह 2004 के लोकसभा तैयारी के मकसद से किया जा रहा है। उन्होंने इसका उत्तर नहीं दिया।”
4 और 5 अप्रैल 2006 की दरमियानी रात में हुआ नांदेड़ बम विस्फोट कुछ सालों के अंतराल में महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में हुए तीन बम धमाकों में से एक था। अन्य दो विस्फोट- परभणी (2003) और पूर्णा (2004) में हुए थे। अदालतें उन सभी व्यक्तियों को पहले ही बरी कर चुकी हैं, जिन पर मस्जिदों में बम फेंकने का आरोप था।
महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) के बाद मामले को संभालने वाली सीबीआई ने दावा किया था कि यह विस्फोट एक लक्ष्मण राजकोंडवार नाम के शख्स के घर पर दुर्घटनावश हुआ था, जो कथित रूप से एक आरएसएस कार्यकर्ता थे। बम असेंबल करते समय राजकोंडवार के बेटे नरेश और विहिप कार्यकर्ता हिमांशु पानसे की मौत हो गई थी। जांच एजेंसियों का मानना है कि बम का इस्तेमाल औरंगाबाद की एक मस्जिद को निशाना बनाने के लिए किया जाना था।
यशवंत शिंदे का कहना है कि वे पानसे को 1999 से जानते थे, जब वे गोवा में एक विहिप कार्यकर्ता के बतौर काम कर रहे थे। शिंदे का दावा है कि 1999 में हुई बैठक में पानसे और उसके सात दोस्त जम्मू में हथियार चलाने का प्रशिक्षण लेने को राजी हुए थे। शिंदे का आरोप है कि यह ट्रेनिंग भारतीय सेना के जवानों द्वारा दी गई थी।
शिंदे मामले में अभियोजन पक्ष के गवाह नहीं हैं, लेकिन उनका दावा है कि वह आखिरकार आगे आए हैं क्योंकि वह ‘अब और चुप नहीं रह सकते। शिंदे का कहना है कि मैंने पिछले 16 साल मोहन भागवत समेत आरएसएस के हर नेता को आतंकी गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए मनाने में बिताए हैं। मेरी फरियाद पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। इसलिए मैं अदालत के सामने वह सब कुछ पेश करने के लिए तैयार हूं जो मैं इतने लंबे अरसे से जानता हूं।
हलफनामे के मुताबिक, शिंदे 18 साल की उम्र में आरएसएस में शामिल हुए थे। वे अब 49 साल के हैं। उन्होंने कहा कि मुझे अब इन सभी हिंदू संगठनों से दूरी बनानी पड़ी है। वे अब हिंदू उद्देश्यों के लिए काम नहीं कर रहे हैं। वे महज सत्ताधारी पार्टी के हाथों की कठपुतली हैं।
शिंदे के हलफनामे में उन घटनाओं को सूचीबद्ध किया गया है जिनमें उन्होंने अपनी युवावस्था में भाग लिया था। बताया गया है कि 1995 में शिंदे को जम्मू में राजौरी की यात्रा के दौरान फारूक अब्दुल्ला पर कथित रूप से हमला करने के लिए सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया था। बाद में अदालत ने शिंदे को बरी कर दिया। हालांकि उन्होंने नांदेड़ सीबीआई अदालत के समक्ष अब दिए गए आवेदन में उस हमले की जिम्मेदारी ली। इस कृत्य के बाद शिंदे ने एक ‘प्रचारक’ बनने के लिए प्रशिक्षण लिया और अंततः 1999 में उन्हें बजरंग दल की मुंबई इकाई का प्रमुख बनाया गया।
हलफनामे में शिंदे ने तीन लोगों का नाम लिया है, जिसमें 2008 मालेगांव विस्फोट मामले के एक आरोपी भी शामिल हैं, जिन्होंने पुणे के सिंहगढ़ में हथियार चलाने और बम बनाने के प्रशिक्षण में भाग लिया था। शिंदे का दावा है कि आतंकी गतिविधियों से मेरी सहमति नहीं थी। फिर भी मैंने साजिश में सिर्फ यह जानने के लिए हिस्सा लिया कि आतंकी प्रशिक्षण में कौन-कौन शामिल हैं।
2000 के दशक की शुरुआत में महाराष्ट्र में विस्फोट के कुछ ऐसे मामले सामने आए थे, जहां हिंदू समुदाय के लोग आतंकी गतिविधियों से जुड़े थे। बाद में हैदराबाद की मक्का मस्जिद (2007), अजमेर शरीफ दरगाह (2007) और मालेगांव (2008) में हुए विस्फोट भी कथित तौर पर कट्टरपंथी दक्षिणपंथी समूहों के कार्यकर्ताओं द्वारा किए गए थे। इन्हें भगवा आतंकवाद कहा गया था। 2010 में तत्कालीन गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने कट्टरपंथी हिंदुत्व समूहों की आतंकवादी गतिविधियों को ‘भगवा आतंकवाद‘ का नाम भी दिया था।
यशवंत शिंदे का दावा है कि परभणी विस्फोट और 2004 के जालना मस्जिद विस्फोट दोनों में नांदेड़ वाले तरीके का ही इस्तेमाल किया गया था, लेकिन उन्होंने जानबूझकर केवल नांदेड़ मामले पर ध्यान केंद्रित किया है। वे कहते हैं, ‘उन मामलों में अदालतें पहले ही आरोपी व्यक्ति को बरी कर चुकी हैं। मैं केवल अदालत में चल रहे मामले पर ध्यान केंद्रित करना चाहता हूं।
हलफनामे में इंद्रेश कुमार को कुछ ज्यादा ही टारगेट किया गया है। शिंदे के हलफनामे में दावा किया गया है कि इंद्रेश कुमार ने उनसे कुछ लड़कों की भर्ती करने और जम्मू ले जाने के लिए कहा। जहां उन लोगों को आधुनिक हथियारों के इस्तेमाल की ट्रेनिंग मिलने वाली थी। वीएचपी की राज्यस्तरीय बैठक ठाणे में हुई, जहां कुछ युवकों को जम्मू ट्रेनिंग कैंप के लिए चुना गया। ठाणे सम्मेलन में शिंदे और बाकी युवकों का परिचय वीएचपी के नेता हिमांशु पानसे से कराया गया। हिमांशु उनमें से 7 लड़कों और यशवंत शिंदे को जम्मू ले गए। वहां उन्हें हथियारों की ट्रेनिंग दी गई।
हलफनामे में बम बनाने वाले ट्रेनिंग कैंप का जिक्र है। जिसमें दो व्यक्तियों (वीएचपी नेता मिलिंद परांडे के करीबी सहयोगी) ने शिंदे को बताया कि बम बनाने की ट्रेनिंग जल्द ही शुरू होगी। ट्रेनिंग पूरी होने के बाद उन लोगों को देशभर में बम विस्फोट करने की योजना के बारे में बताया जाएगा। इस प्रस्ताव पर यशवंत शिंदे चौंक गए लेकिन उन्होंने इसे किसी को महसूस नहीं होने दिया। अलबत्ता उन्होंने उस समय वीएचपी नेताओं से सवाल किया था कि क्या यह 2004 के लोकसभा चुनाव की तैयारी है। उन लोगों ने कोई जवाब नहीं दिया।
उसने प्रशिक्षण की प्रक्रिया का जिक्र करते हुए कहा कि प्रशिक्षण एक दूर के जंगली इलाके में संपन्न की जाएगी जहां बम को इस्तेमाल करने का प्रशिक्षण दिया जाएगा। टाइमर के साथ बम को एक छोटे गड्ढे में रखने के लिए प्रशिक्षुओं को दिया जाता था उसके बाद फटने से पहले उसे धूल और बड़े बाउल्डर के लिए जरिये ढक दिया जाता था। उनका प्रयोग सफल रहा था।
शिंदे ने कहा कि उसने हिमांशु को इन विस्फोटों में शामिल न होने की खातिर मनाने के लिए कई बार नांदेड़ की यात्रा की। क्योंकि उसका मानना था कि बीजेपी के लोकसभा चुनावों में जीत को सुनिश्चित करने के लिए यह आरएसएस का प्लॉट है।
हलफनामे में कहा गया है कि राकेश धवड़े खुद को ‘मिथुन चक्रवर्ती’ कहने वाले शख्स को ट्रेनिंग दिलाने के लिए लाते थे। लेकिन शिंदे को बाद में पता चला कि उस मिथुन चक्रवर्ती का असली नाम रवि देव था। शिंदे के मुताबिक धवड़े को बाद में मालेगांव 2008 ब्लास्ट केस में गिरफ्तार किया गया।
शिंदे ने कहा कि “यह तीन दिनों का शिविर था जिसको सिंहगढ़ किले में स्थित एक रेसॉर्ट में आयोजित किया गया था। प्रशिक्षण के लिए महाराष्ट्र के औरंगाबाद, जलगांव, नांदेड़ आदि जिलों से तकरीबन 20 युवक मौजूद थे।”
शिंदे ने अपने हलफनामे में कई अन्य लोगों की भागीदारी का जिक्र किया है। जिसमें बंगाल से तपन घोष और कर्नाटक के राम सेना के प्रमुख प्रमोद मुतालिक का नाम था। बता दें कि प्रमोद मुतालिक के खिलाफ बेंगलुरु में मॉरल पुलिसिंग के कई मामले दर्ज हैं।
द टेलीग्राफ के मुताबिक शिंदे ने हलफनामे में यह भी दावा किया है कि उसने खुद वीएचपी की कई बम विस्फोट योजनाओं को नाकाम कर दिया, क्योंकि वो हिंसा का समर्थन नहीं करते हैं। हलफनामे के मुताबिक 2004 तक यह सिलसिला चलता रहा लेकिन 2004 में कांग्रेस लोकसभा चुनाव जीतकर सत्ता में आ गई। तब वीएचपी नेता मिलिंद परांडे अंडरग्राउंड हो गए थे। शिंदे ने हलफनामे में आरोप लगाया है कि मिलिंद परांडे ने ही भूमिगत रहने के दौरान देश में बम विस्फोट कराए। पक्षपाती पुलिस और एकतरफा मीडिया के जरिए इन बम विस्फोटों का आरोप मुसलमानों पर लगा।
शिंदे हलफनामे में कहा है कि “प्रशिक्षण के बाद हिमांशु ने महाराष्ट्र के अलग-अलग इलाकों में तीन बम विस्फोट करवाए। उसके पास औरंगाबाद की मुख्य मस्जिद में एक बड़ा धमाका करने की उसकी योजना थी और अभी जब वह उस धमाके लिए बम बना रहा था उसी समय 2006 में धमाके में उसकी जान चली गयी।”
वीएचपी के प्रवक्ता विनोद बंसल ने पोर्टल मकतूब से बात करते हुए कहा कि उनको इस तरह के किसी एफिडेविट की जानकारी नहीं है। और न ही वह शिंदे के बारे में कुछ जानते हैं। और इस पर वह कोई टिप्पणी नहीं करेंगे।
यशवंत शिंदे का वीडियो शेयर करते हुए कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने संघ को निशाने पर लिया। उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा कि- “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रहे यशवंत शिंदे ने हलफ़नामा दर्ज कर संघ के राष्ट्र विरोधी कारमानों की ख़ौफ़नाक जानकारी उजागर की है। आरएसएस के प्रचारक यशवंत शिंदे ने एक हलफनामे में आरएसएस की राष्ट्र विरोधी गतिविधियों का भयानक विवरण दिया कि कैसे देश भर में बम विस्फोट करने की साजिश रची गई और इसमें कौन शामिल थे। इससे बड़ी ब्रेकिंग न्यूज और क्या हो सकती है?”
कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने कहा कि शिंदे की जान को खतरा हो सकता है। मुंबई पुलिस कमिश्नर को उनकी सुरक्षा का इंतजाम करना चाहिए।
(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)
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