अदालतों की स्वतंत्रता की निडर भावना बनी रहेगी और इससे कोई समझौता नहीं: चीफ जस्टिस

जजों की नियुक्ति को लेकर केंद्र सरकार और न्यायपालिका के बीच चल रहे विवाद में देश के नये चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ अप्रत्यक्ष रूप से मुनादी कर रहे हैं कि अदालतों की स्वतंत्रता की निडर भावना बनी रहेगी और इससे कोई समझौता नहीं हो सकता। अब सरकार के पाले में गेंद है कि वह विवाद को खत्म करती है या न्यायपालिका को कोई न्यायिक आदेश देने पर बाध्य करती है।

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने शनिवार को मुम्बई में कहा कि 1975 में आपातकाल के दौरान ‘अदालतों की स्वतंत्रता की निडर भावना’ ने लोकतंत्र को बचाया। नवंबर में भारत के प्रधान न्यायाधीश का पद संभालने वाले जस्टिस चंद्रचूड़ को यहां बंबई उच्च न्यायालय ने सम्मानित किया। समारोह में, उन्होंने अतीत में कई न्यायाधीशों और उनके साथ काम करने के अपने अनुभव के बारे में विस्तार से बात की।

चीफ जस्टिस ने कहा कि यह राणे जैसे न्यायाधीश थे जिन्होंने स्वतंत्रता की मशाल को जलाए रखा जो 1975 में आपातकाल के उन वर्षों में मंद हो गई थी। यह हमारी अदालतों की स्वतंत्रता की निडर भावना थी जिसने 1975 में भारतीय लोकतंत्र को बचाया था।

उन्होंने कहा कि भारतीय लोकतंत्र हमारी अपनी अदालतों की निडर परंपरा, न्यायाधीशों के, बार के एक साथ आने और स्वतंत्रता की मशाल थामने के कारण हमेशा से कायम रही है।

बंबई उच्च न्यायालय के बारे में चीफ जस्टिस ने कहा कि इसकी ताकत भविष्य के लिए कानून लिखने, तैयार करने और कानून बनाने की क्षमता में निहित है। उन्होंने कहा कि बंबई उच्च न्यायालय में सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को आकर्षित करने के लिए हम जो कुछ भी कर सकते हैं वह हम करते हैं। मेरा मानना है कि बार को मार्गदर्शन प्रदान करने में न्यायाधीशों की अहम भूमिका होती है।

चीफ जस्टिस ने अदालतों के कामकाज में प्रौद्योगिकी के बढ़ते महत्व को भी रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ दशकों में न्यायिक संस्थानों की प्रकृति बदल गई है। हमारे कामकाज में प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल बढ़ रहा है। अगर कोविड महामारी के समय में तकनीक नहीं होती तो हम काम नहीं कर पाते। उन्होंने कहा कि महामारी के दौरान तैयार किए गए बुनियादी ढांचे को खत्म नहीं किया जाना चाहिए।

समारोह में चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने न्यायपालिका में अनकहे पदानुक्रम के बारे में बात की जहां बार से सीधे नियुक्त न्यायाधीशों को सीधे न्यायिक सेवाओं से नियुक्त किए गए न्यायाधीशों से बेहतर माना जाता है। उन्होंने कहा कि सेवाओं से आने वाले और बार से आने वालों के बीच एक विभाजन है। मुझे लगता है कि यह विभाजन समाप्त होना चाहिए। सेवाओं से आने वालों का हाईकोर्ट को समृद्ध बनाने में बहुत कुछ योगदान है। बार के सदस्य कानूनी पेशे के साथ हाल के अनुभव की ताजगी की भावना लाते हैं, सेवा के सदस्य परंपरा की निरंतरता लाते हैं जो न्यायपालिका के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।”

चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने ‘जिला न्यायपालिका’ को ‘अधीनस्थ न्यायपालिका’ के रूप में संदर्भित नहीं करने के मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के हालिया प्रस्ताव की सराहना की। चीफ जस्टिस ने इसे जिला न्यायपालिका के बराबर होने का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा, “सिविल सेवाओं के विपरीत जहां सिविल सेवा के युवा सदस्यों को समान माना जाता है, न्यायपालिका में हमारे पास अधीनता की भावना है, पदानुक्रम की भावना है जो हमें सर्वश्रेष्ठ इनपुट प्राप्त करने से रोकती है”।

चीफ जस्टिस ने हाल की एक घटना के बारे में बात की जिसने उन्हें हिला दिया। न्यायिक सेवाओं के माध्यम से पदोन्नत एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की आत्मकथा के अनुसार, बॉम्बे हाईकोर्ट में पदोन्नति होने की जस्टिस चंद्रचूड़ के कॉल ने उन्हें आत्महत्या से बचाया था, क्योंकि उनके पति पर बलात्कार का आरोप लगा था और वे बुरी तरह व्यथित थीं। वह कहती हैं कि उन्होंने पत्र (सुसाइड नोट) फाड़ दिया और एक और अगले दिन ज़िंदगी की ओर देखना जारी रखा। इसे शेयर इसलिए किया जा रहा क्योंकि इसके अंत में मुझे लगता है कि हमारे जीवन का मूल्य इस बात पर निर्भर करता है कि क्या हम दुनिया को थोड़ी बेहतर जगह छोड़ते हैं या नहीं। जियो अगर यह हमारे जीवन का आखिरी दिन है।

चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने बताया कि कैसे कृषि कानूनों में सीलिंग के बाद उनकी जमीन जब्त कर ली गई, जिसके बाद उनके पूर्वजों ने शिक्षा की ओर बढ़ने का फैसला किया। लगभग इसी समय सीजेआई की परदादी को पता चला कि उनके पति दूसरी शादी करने जा रहे हैं। तो उन्होंने नौ बच्चों को अपनी गोद में ले लिया, अपने गहने गिरवी रख दिए और परिवार के बच्चों के लिए जीवन का एक नया मार्ग तैयार करने के लिए उन्हें पुणे ले आईं। उस एक महिला के बल पर हमारे परिवार की पहली डॉक्टर आई। मेरे पिता के चाचा वकील बने और इस तरह मेरा परिवार भूमि परंपरा से बौद्धिक परंपरा में चला गया।

चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में सबसे लंबा कार्यकाल रखने वाले वाईवी चंद्रचूड़ के बारे में बात करते हुए कहा कि उन्होंने दादर में चॉल से शुरुआत की थी, हर सुबह 5 बजे क्लाइंट ब्रीफ लेते थे। मेरे माता-पिता के पास मेरी बहन और मुझे एक अंग्रेजी माध्यम में भेजने का सपना था। उन्होंने [कक्षा] 7 में ही अंग्रेजी सीखना शुरू कर दिया था। उन्हें विदेशी शिक्षा का लाभ कभी नहीं मिला, जिस तरह से हमें मिला। मैं जजमेंटल हुए बिना जज करने की कोशिश करता हूं। जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस अभय ओक, जस्टिस दीपांकर दत्ता के साथ-साथ बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस गौतम पटेल ने सीजेआई की तारीफ की।

मुंबई में बॉम्बे बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित कानून और नैतिकता पर अशोक देसाई मेमोरियल व्याख्यान में चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ सिंह ने देश में बढ़ते ऑनर किलिंग को लेकर चिंता जाहिर की है। चीफ जस्टिस ने कहा कि आज देश में प्यार करने वाले और दूसरे धर्म और जाति में शादी करने वाले सैकड़ों युवा ऑनर किलिंग का शिकार हो रहे हैं।

चीफ जस्टिस ने ऑनर किलिंग के संबंध में टाइम मैगजीन में छपी 1991 में हुई यूपी की ऑनर किलिंग की घटना का जिक्र किया। चीफ जस्टिस ने कहा कि उस आर्टिकल में एक 15 साल की लड़की की कहानी है। लड़की ने छोटी जाति के एक 20 साल के लड़के के साथ घर से भाग गई थी। बाद में गांव के अगड़ी जाति के लोगों ने उनकी दोनों को मौत के घाट उतार दिया। चीफ जस्टिस ने कहा कि गांव वालों को अपना यह अपराध भी न्याय संगत लगा था। इसकी वजह थी कि उन्हें ऐसा करना उनके समाज की परंपराओं के मुताबिक सही लगा था। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ऐसे दृष्टिकोण को किसी भी तरह से तर्कसंगत ठहराया जा सकता है?

नैतिकता के बारे में जिक्र करते हुए सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि हम सभी इस बात से सहमत हो सकते हैं कि नैतिकता मूल्यों की एक प्रणाली है जो एक आचार संहिता तैयार करती है। उन्होंने कहा कि लेकिन क्या यह जरूरी है कि जो मेरे लिए नैतिक है, वह आपके लिए भी नैतिक हो?’ उन्होंने कहा कि नैतिकता एक ऐसी अवधारणा है, जो हर व्यक्ति के लिए अलग-अलग होती है।

उन्होंने कहा कि रोजमर्रा की चर्चा में हम अक्सर अच्छे और बुरे, सही और गलत का जिक्र करते हैं। उन्होंने कहा कि एक तरफ कानून जहां बाहरी संबंधों को कंट्रोल करता है, वहीं नैतिकता आंतरिक जीवन और प्रेरणा को कंट्रोल करती है। नैतिकता हमारे विवेक को आकर्षित करती है। साथ ही नैतिकता अक्सर हमारे व्यवहार को प्रभावित करती है।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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