वाराणसी। पहले से ही छिछली गंगा में बहाव बढ़ने से रामनगर की तरफ रेत का बड़े पैमाने पर कटान खतरे का अलार्म बजा रही है। बनारस में गंगा नदी में 2021 में 12 करोड़ रुपए की लागत से अस्सी से राजघाट के समानांतर बाईं तरफ नहर बनाई गई थी, जिसे स्थानीय लोगों ने मोदी नहर का नाम दिया था, जो निर्माण वर्ष में ही गंगा में बाढ़ आने से डूब गई थी। अब खोदी गई नहर का साइड इफेक्ट भी दिखने लगा है। इन दिनों एक बार फिर से गंगा का जलस्तर बढ़ऩे से गंगा के बायीं तरफ यानी रामनगर की ओर रेत में कटान के बाद अब दशाश्वमेध के सामने भीषण कटान जारी है। इससे नदी प्रेमी और साइंटिस्ट ने गंगा रिवर सिस्टम को नुकसान पहुंचने की आशंका जताई है।
विशेषज्ञों का मानना है कि असफल मोदी नहर की रेत गंगा अपने धारा में साथ बहा ले जा रही है, जबकि होता यह है कि नदियां रेत या भारी मैटेरियल को नदी के दोनों किनारों पर डिपोजिट (जमा) करती हैं। बनारस में ठीक उलट हो रहा है। गंगा नदी चैनल में आ रही अथाह जल राशि रामनगर साइड में किनारों पर पड़ी हजारों-हजार टन रेत को काटकर बीच धारा में ले रही है। इससे नदी की गहराई का पटान होगा। गंगा की तलहटी में रेत भरने से गहरे और शांत जल में रहने वाली राष्ट्रीय जलीय जीव डॉल्फिन, घड़ियाल और मछलियों के लिए रिवर इको सिस्टम गड़बड़ा सकता है। इसके कई भयावह परिणाम भी देखने को मिल सकते हैं।
अब बाढ़ का संकट
कमोबेश सभी लोगबाग बचपन से ही सुनते-पढ़ते आए होंगे कि ‘गंगा तेरा पानी अमृत कल-कल बहता जाए’… जी हां, न तो अब गंगा नदी का पानी अमृत रह गया है और न ही कल-कल यानी अविरलता बरकरार रह पाई है। बारिश या इसके कुछ महीने बाद तक बनारस में गंगा नदी का प्रवाह सुचारु रहता है। मार्च महीने के आखिरी दिनों में गंगा पानी की कमी से छटपटाने लगती है। पानी की नदी के जल राशि का दायरा भी सिमटने लगता है। इससे बीच धार में जहां-तहां रेत के टीले ताकने लगते हैं। गंगा रिवर बेसिन से लगायत उत्तराखंड, यूपी, बिहार और बंगाल में मानसूनी बारिश के चलते गंगा नदी के जल राशि में बढ़ोत्तरी शुरू हो गई। मसलन, बनारस में मई और जून में प्रवाह कम होने से गंगा नदी में रोजाना बिना शोधित सैकड़ों एमएलडी सीवर मिलता रहा। इससे रविदास घाट, अस्सी घाट, दशाश्वमेध घाट, मणिकर्णिका घाट, सिंधिया घाट, मान-मंदिर घाट, राजा घाट, ललिता घाट समेत दो दर्जन से अधिक घाटों के किनारे गंगा का पानी सड़ने और दुर्गन्ध उठने लगी थी।
अब बारिश, पहाड़ों और मैदानों से अधिक पानी आने पर बनारस में गंगा नदी को जीवन मिला है। इससे गंगा नदी उफना गई और प्रवाह तेज हो गया है, जो बहुत अच्छी बात है। लेकिन, इसी बीच एक समस्या और कड़ी हो गई है। गंगा की सेहत सुधारने के लिए करोड़ रुपए खर्च कर चलाया जा रहा नमामि गंगे प्रोजेक्ट जमीन पर उतना कारगर साबित नहीं हो रहा है, जितनी उसकी भौंड़ी मुनादी कराई जा रही है। ग्लोबल वार्मिंग यानी वातावरण में आए अनावश्यक बदलाव के चलते वाराणसी में कल तक पानी की कमी से जूझ रही गंगा में इन दिनों बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है।
रामनगर के बाद अब दशाश्वमेध घाट के सामने की रेत का कटान
केंद्रीय जल आयोग के मुताबिक़ हाल के 10 दिनों में गंगा का जलस्तर 2 मीटर तक ऊपर चढ़ गया है। कोरियन घाट के नाविक ज्योति निषाद कहते हैं कि ‘वाराणसी में गंगा की चौड़ाई जून महीने के मुकाबले डबल हो गई है। साथ ही दशाश्वमेध, तुलसी और मणिकर्णिका समेत कई घाटों की 10-12 सीढ़ियां जलस्तर बढ़ने से डूब गई हैं। इसकी वजह से दशाश्वमेध घाट पर होने वाली गंगा आरती का स्थान बदल दिया गया है। इससे श्रद्धालुओं को बैठने और आरती देखने में दिक्कतें हो रही हैं।’ बहरहाल, अस्सी घाट के सामने वाले रेत तो पूरी तरह से बह गए हैं। दशाश्वमेध के सामने वाले रेतों पर साफ दिनों में ऊंट की सवारी लोग करते हैं। अब इन रेत में कटान बहुत तेजी से जारी है। फिलहाल, यहां तीन-चौथाई रेत गंगा में बह चुका है। गंगा अभी खतरे के निशान से साढ़े सात मीटर दूर हैं। वहीं वार्निंग लेवल से साढ़े 6 मीटर। गंगा में 3 सेंटीमीटर प्रति घंटे की औसत से पानी बढ़ रहा है। बुधवार को गंगा का जलस्तर 63.8 मीटर तक आ पहुंचा है। वहीं कल 63.54 मीटर, सोमवार को 62.56 मीटर, रविवार को 62.36 मीटर और शनिवार को 61.76 मीटर पर बना हुआ था।
दुर्लभ जीवों पर संकट
गंगा नदी का जलस्तर दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। नदी में पानी का बहाव व पश्चिम की तरफ अधिकतर पक्के घाट होने की वजह से पानी का दबाव पूरब यानी रामनगर की तरफ है। इस कारण गंगा भीषण कटान कर रही है। कटान की यह रेत पानी के साथ अथाह जलराशि में जाकर समाहित हो रहा है। ऐसे में यह रेत नदी की तलहटी में जाकर बैठ जाएगा। साथ ही रेत की कुछ मात्रा पानी के साथ बहकर नदी तंत्र का पटान भी करेगा। इससे नदी के इको सिस्टम को काफी नुकसान पहुंच सकता है। तलहटी में रेत भरने से गहरे हुए साफ पानी में रहने वाली मछलियां, डॉल्फिन, घडिय़ाल, कछुएं समेत कई दुर्लभ जीवों का जीवन संकट में पड़ सकता है।
करोड़ों रुपए की बर्बाद
गंगा में रिवर वेटलैंड के नियमों की अनदेखी कर बनाई गई नहर निर्माण के समय से ही सवालों के घेरे में रही। एक्टिविस्ट डॉ. अवधेश दीक्षित ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण में याचिका दायर कर जनता के करोड़ों रुपए की बर्बादी पर सरकार से जवाब मांगा है। दीक्षित के अधिवक्ता सौरभ तिवारी ने बताया कि ‘गंगा में वर्ष 2021 में बरसात के ठीक पहले खुदाई करके नहर बनाई गई। लेकिन, अचानक आई बाढ़ से नहर का अस्तित्व समाप्त हो गया। यह ऐसा प्रोजेक्ट था, जिसमें लगभग 11.95 करोड़ रुपए खर्च हुए और सरकार को मात्र 2.5 करोड़ का राजस्व लाभ हुआ। यानी, सरकार को लगभग 9.45 करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान हुआ। एनजीटी की 3 सदस्यीय पीठ ने सुनवाई की अगली तारीख 21 अक्टूबर निर्धारित की है।’
गलती किसी और की खामियाजा भुगत रहे नाविक
मां गंगा निषादराज सेवा समिति के सचिव हरिश्चंद्र बिंद कहते हैं कि ‘गंगा नदी के स्वरूप से छेड़खानी करने का नतीजा अब सामने दिख रहा है। रामनगर बंदरगाह से धारा टकराने के बाद सुंदरी पुल से टकराती है। इसी क्रम में मणिकर्णिका घाट से टकराने के बाद आगे बढ़ती है, लेकिन नदी में काशी विश्वनाथ मंदिर के गंगा द्वारा तकरीबन सौ मीटर पक्का निर्माण आदि होने के चलते भी परेशानी बढ़ी है। इससे इनकार नहीं किया जा सकता है। वहीं, घाटों की तरफ पानी का दबाव कम करने के लिए मोदी नहर खोदी गई, जिसका कोई फायदा नहीं मिला। अब नदी में उफान होने से दो दर्जन से अधिक जानलेवा भंवर बन रहे हैं। इसी का नतीजा है कि तुलसी घाट पर ऐसा प्रतीत होता है पानी वापस आता है। हाल के महीने में घाट किनारे स्नान करने आए सैकड़ों सैलानियों-श्रद्धालुओं की डूबकर मौत हो गई थी। पूरे घटनाचक्र की विवेचना करने पर पाएंगे कि सिस्टम के मनमानी पूर्ण रवैये का खामियाजा नाविकों, गंगा और सैलानियों को भुगतना पड़ रहा है।’
आईआईटी-बीएचयू के प्रो. विश्वंभर नाथ मिश्रा के मुताबिक ‘यह रेत बहकर गंगा नदी में जहां-तहां जमा होगी। पानी के अंदर रेत के टीले बनने से बहाव की दिशा में बड़े भंवर भी बनेंगे। लिहाजा, नौकायन और जलयान के आवागमन में भी परेशानी होगी। गहरे पानी में रहने वाले जीवों के आवास भी प्रभावित होंगे। पहले ऐसा देखने को नहीं मिलता था, लेकिन इस बार की स्थिति डराने वाली है।’
(वाराणसी से पत्रकार पीके मौर्य की रिपोर्ट।)
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