Tuesday, March 19, 2024

कॉलेजियम पर सरकार और सुप्रीम कोर्ट में टकराव, कानून मंत्री के बयान पर शीर्ष कोर्ट ने जताया कड़ा ऐतराज

देश में उच्च न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली पर एक बार फिर सरकार और सुप्रीम कोर्ट में ठन गई है। कॉलेजियम पर कानून मंत्री किरण रिजिजू की हालिया टिप्पणी पर कड़ा ऐतराज जताते हुए सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए था।जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस ए.एस. ओका की पीठ ने कहा, जब कोई उच्च पद पर आसीन व्यक्ति कहता है तो ऐसा नहीं होना चाहिए था। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि एक बार सिफारिश दोहराए जाने के बाद नामों को मंजूरी देनी होगी। इसने आगे कहा कि कानून के अनुसार यह मामला समाप्त हो गया है।

हाल में एक चैनल को दिए साक्षात्कार में कानून मंत्री किरण रिजिजू ने कहा था कि यह कभी न कहें कि सरकार फाइलों पर बैठी है, अगर किसी को ऐसा लगता है तो फिर फाइलें सरकार को न भेजें। आप अपने आप को नियुक्त करें और काम करें। इसी टिप्पणी पर सुप्रीमकोर्ट ने ऐतराज जताया है।

दरअसल वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने एक टीवी चैनल को दिए कानून मंत्री किरण रिजिजू के साक्षात्कार को सुप्रीमकोर्ट के संज्ञान में लाया, जिसमें उन्होंने कहा था, “यह कभी न कहें कि सरकार फाइलों पर बैठी है, अगर किसी को ऐसा लगता है तो फिर फाइलें सरकार को न भेजें। आप अपने आप को नियुक्त करें और काम करें।”

जस्टिस कौल ने केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमनी से कहा, मैंने सभी प्रेस रिपोर्ट को नजरअंदाज कर दिया है, लेकिन यह किसी उच्च व्यक्ति की ओर से आया है। उन्होंने कहा कि मैं और कुछ नहीं कह रहा हूं। अगर हमें करना है तो हम फैसला लेंगे। पीठ ने आगे केंद्र के वकील से सवाल किया, क्या यह नामों को स्पष्ट नहीं करने का कारण हो सकता है।

पीठ ने कहा, कृपया इसका समाधान करें और हमारी इस संबंध में न्यायिक निर्णय लेने में मदद करें। उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया में पहले से ही समय लगता है।पीठ ने कहा कि इंटेलिजेंस ब्यूरो के इनपुट लिए जाते हैं और केंद्र के भी इनपुट लिए जाते हैं। फिर शीर्ष अदालत का कॉलेजियम इन इनपुट्स पर विचार करता है और नाम भेजता है। दलीलें सुनने के बाद पीठ ने मामले की अगली सुनवाई 8 दिसंबर को निर्धारित की।

इसे पहले 11 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधीशों की नियुक्ति में देरी पर अपना कड़ा असंतोष व्यक्त करते हुए कहा था कि यदि हम विचार के लिए लंबित मामलों की स्थिति को देखते हैं, तो सरकार के पास 11 मामले लंबित हैं, जिन्हें कॉलेजियम ने मंजूरी दी थी और अभी तक नियुक्तियों का इंतजार कर रहे हैं। इसका तात्पर्य है कि सरकार न तो व्यक्तियों को नियुक्त करती है और न ही नामों को सूचित करती है।

इसमें कहा गया है कि सरकार के पास 10 नाम लंबित हैं, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 4 सितंबर, 2021 से 18 जुलाई, 2022 तक दोहराया है। सुप्रीमकोर्ट ने अधिवक्ता पई अमित के माध्यम से द एडवोकेट्स एसोसिएशन बेंगलुरु द्वारा दायर अवमानना याचिका पर आदेश पारित किया। याचिका में कहा गया है कि केंद्र ने न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए निर्धारित समय सीमा के संबंध में शीर्ष अदालत के निर्देशों का पालन नहीं किया है।

जस्टिस कौल ने कॉलेजियम सिफारिश से कुछ नामों को मंजूरी देकर और अन्य नामों को रोककर कॉलेजियम प्रस्तावों को विभाजित करने की केंद्र की प्रथा की आलोचना की। जस्टिस कौल ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से कहा कि कभी-कभी जब आप नियुक्ति करते हैं तो आप सूची से कुछ नामों को चुनते हैं और दूसरों को नहीं। आप क्या करते हैं कि आप सिनियोरिटी को प्रभावी ढंग से बाधित करते हैं। जब सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम सिफारिश करता है, तो कई कारकों को ध्यान में रखा जाता है।

एजी ने अदालत को आश्वासन दिया कि उन्होंने अधिकारियों के साथ इस मुद्दे को उठाया है और इसे हल करने के लिए कुछ समय मांगा है। उन्होंने कहा कि किसी अन्य कारक को शामिल किए बिना कुछ शीघ्रता की आवश्यकता है। आदेश प्राप्त करने के बाद मैंने सेक्रेटीज़ के साथ कुछ चर्चा की। कुछ तथ्य बताए गए। मेरे कुछ प्रश्न भी थे। मुझे वापस आने दीजिए।

पीठ ने कहा कि जब तक कॉलेजियम प्रणाली देश का कानून है, तब तक इसका पालन किया जाना चाहिए। इस प्रकार उन्होंने एजी को सरकार को “पीठ की भावनाओं” को व्यक्त करने और यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि केंद्र सिफारिशों पर न बैठे।

पीठ ने पूछा कि क्या सुप्रीमकोर्ट राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) पास नहीं कर रहा है, यही कारण है कि सरकार खुश नहीं है, और इसलिए नामों को मंजूरी नहीं दे रही है। राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग संवैधानिक टेस्ट पास नहीं कर पाया। कोलेजियम की सिफारिशों को स्वीकार करने में केंद्र की देरी पर भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ऐसा लगता है कि उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति के लिए एनजेएसी अधिनियम को रद्द करने के फैसले से सरकार नाखुश है।पीठ ने कहा कि एक बार जब कॉलेजियम किसी नाम को दोहराता है, तो यह अध्याय समाप्त हो जाता है,” उन्होंने कहा, ऐसी स्थिति नहीं हो सकती है जहां सिफारिशें की जा रही हैं और सरकार उन पर बैठी रहती है क्योंकि यह प्रणाली को निरर्थक करती है।

पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत की तीन जजों की पीठ ने नियुक्ति प्रक्रिया पूरी करने के लिए समयसीमा तय की थी। इसमें कहा गया है कि समय सीमा का पालन करना होगा।पीठ ने उल्लेख किया कि केंद्र आरक्षण का कारण बताए बिना नामों को मंजूरी देने से पीछे नहीं हट सकता है। कोर्ट ने न्यायिक फैसले की चेतावनी भी दी और कहा, ‘पिछले दो महीने से सब कुछ ठप पड़ा है।पीठ ने कहा, कि न्यायिक पक्ष में हमसे इस पर फैसला न कराएं।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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