मजदूर-किसान रैली: किसानों को एमएसपी और मजदूरों को पेंशन दे सरकार

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नई दिल्ली। मंगलवार को दिल्ली का रामलीला मैदान एक बार फिर देश भर से आए किसानों-मजदूरों से भर गया। चारों तरफ लाल झंडे ही दिखाई दे रहे थे। दिल्ली की सड़कों पर हाथ में लाल झंडा और कंधे पर थैला रखे पुरुषों और महिलाओं का झुंड रामलीला मैदान की तरफ जा रहे थे। दिल्ली की सड़कों से अनजान किसान-मजदूरों का यह रेला अपने आगे चलने वालों के साथ रैली स्थल की तरफ बढ़ रहा था।

नई दिल्ली मेट्रो स्टेशन का क्षेत्र आमतौर पर भीड़-भाड़ वाला है। दिल्ली रेलवे स्टेशन नजदीक होने से यह भीड़ और बढ़ जाती है। लेकिन रैली या ऐसे किसी कार्यक्रम के दौरान ट्रैफिक डायवर्ट कर दिया जाता है। लेकिन इस बार ऐसा नहीं किया गया था। यह सब प्रशासन ने एक साजिश के तहत किया था।

दरअसल, रामलीला मैदान पहुंचने पर पता चला कि सरकार मजदूर-किसान संघर्ष रैली के आयोजन की अनुमति नहीं देना चाह रही थी। शासन-प्रशासन अनुमति न देने का कारण भी स्पष्ट नहीं बता रहे थे। भारी दबाव के बाद अंतत: तीन दिन पहले आयोजकों को रैली करने की अनुमति दी गई। शासन-प्रशासन ने रैली को असफल करने की भरसक कोशिश की, लेकिन देश भर से आए किसानों-मजदूरों के हुजूम ने केंद्र सरकार की मंशा पर पानी फेर दिया।

‘मजदूर किसान संघर्ष रैली’ को सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन, ऑल इंडिया किसान सभा और ऑल इंडिया एग्रीकल्चर वर्कर्स यूनियन ने संयुक्त रूप से आयोजित किया था। देश के अलग-अलग राज्यों से आए हजारों किसान अपनी मांगों के साथ रैली का हिस्सा बने। इस रैली में पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, ओडिशा, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, बिहार, उत्तर प्रदेश और राजस्थान आदि राज्यों से किसान बड़ी संख्या में आए थे।

लंबी दूरी की यात्रा के बाद दोपहर की चिलचिलाती धूप में खड़े ये किसान-मजदूर सरकार से वादाखिलाफी का हिसाब मांगने आए थे। रैली में किसानों-मजदूरों के साथ ही एलआईसी सेक्टर में काम करने वाले, मनरेगा मजदूर, मंडी परिषद कर्मी और मिड डे मील में कार्यरत लोगों की बड़ी संख्या थी। जो यह साबित करता है कि सिर्फ किसान-मजदूर ही नहीं आंगनबाड़ी, मिड डे मील और तमाम क्षेत्रों में काम करने वालों की दशा बहुत खराब है।

रैली को सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी, सीटू अध्यक्ष हेमलता और महासचिव तपन सेन, एआईकेएस के अध्यक्ष अशोक धावले और महासचिव विजू कृष्णन और एआईडब्लयूयू के अध्यक्ष ए. विजयराघवन और महासचिव बी. वेंकट ने संबोधित किया। इनकी प्रमुख मांगें एमएसपी, पेंशन की मांग, ठेकेदारी प्रथा, सेना में अग्निपथ योजना का विरोध और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के निजीकरण का विरोध है।

किसान और मजदूर नेताओं वे केंद्र सरकार पर राष्ट्र की संपत्ति को नष्ट करने और मेहनतकश जनता के जीवन को गंभीर आर्थिक संकट से ध्यान हटाने के लिए नफरत फैलाने का आरोप लगाया।

सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी ने केंद्र सरकार पर किसानों और मजदूरों की अनदेखी का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, “ये सरकार किसान मज़दूर विरोधी है। ये सरकार बस बड़े-बड़े वादे करती है, नीतियों की बात करती है, लेकिन किसानों को सुविधाएं देने की बात सिर्फ कागज़ पर होती है, असल में जमीन पर नहीं होती। मनरेगा में काम करने के दिन घटा दिए। बजट में मनरेगा के लिए पैसे कम कर दिए। आज देश में जो माहौल चल रहा है इसके लिए भी केंद्र सरकार जिम्मेदार हैं।”

ऑल इंडिया किसान सभा के अध्यक्ष अशोक धावले ने कहा कि आज महंगाई इतनी बढ़ गई है, लेकिन गरीबों के लिए वैलनेस टैक्स कम कर दिया गया है। अमीरों के लिए कम से कम 25 प्रतिशत से 30 प्रतिशत टैक्स बढ़ाना चाहिए। जो जितना ज्यादा कमा रहे हैं उनको इतना टैक्स भरना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि लोकसभा चुनाव से पहले हम देश के हर गली मोहल्ले तक जाएंगे और सरकार के खिलाफ माहौल बनाएंगे। और इस सरकार को हटाना ही होगा। जब तक यह सरकार रहेगी तब तक इन्हें हक नहीं मिलेगा। हम राजनीति के लिए नहीं कर रहे हैं हमारे स्टेज पर कोई भी राजनीतिक पार्टी का नेता नहीं आया है।

रैली स्थल पर जनचौक संवाददाता ने कुछ महिलाओं को देखा, जो भीड़ में अलग दिख रही थीं। अलग दिखने का कारण यह था कि सब हरे रंग के कपड़े पहनी थीं। पूछने पर पता चला कि ये गुरुग्राम के कापसहेड़ा से आईं हैं, और मिड डे मील कर्मी हैं। श्यामा ने बताया कि “पिछले 6 महीने से वेतन नहीं आ रहा है। स्कूल में 6 घंटे काम करना पड़ता है। हर अधिकारी से वेतन के लिए कहा जा चुका है, लेकिन अभी तक वेतन नहीं आया।”

सरोज कहती हैं कि “हम लोगों को मिड डे मील का काम करने के बाद शिक्षकों के लिए चाय बनाना पड़ता है और उनके लंच का बर्तन भी धोना पड़ता है, हमें सिर्फ 50 रुपये प्रतिदिन यानि 1500 रुपये महीना मिलता है। सरकार से हमारी मांग है कि हमारा वेतन साढ़े तेरह हजार रुपये किया जाए।”

भगवती कहतीं हैं कि “हरियाणा में दो लाख मिड डे मील कर्मी हैं। मिड डे मील का काम करने के बाद हमें स्कूल टीचरों की बेगारी करनी पड़ती है। उनके लिए चाय बनाना और ठंडी में पानी गर्म करके देना आम बात है।”

रैली में पश्चिम बंगाल से आए वरुण भट्टाचार्य कहते हैं कि “ हम 21 वर्षों से एलआईसी एजेंट हैं। मोदी सरकार लगातार एजेंटों का कमीशन कम कर रही है। और एलाईसी में निवेश किए गए जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा अडानी और अंबानी को दे रही है। इस पर रोक लगना चाहिए, और एलआईसी का निजीकरण बंद होना चाहिए। ”

पश्चिम बंगाल के 24 परगना (उत्तर) के रहने वाले सोमनाथ भट्टाचार्य इलेक्ट्रीसिटी यूनियन में काम करते हैं। सोमनाथ कहते हैं कि “पहले तो सरकार ने बिजली को ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में बांटा। अब वह निजीकरण कर रही है। इस तरह वह गांवों को बिजली से वंचित करने में लगी है।”

हरियाणा के ईश्वर ठाकुर मंडी परिषद में काम करते हैं। उनका कहना है कि सरकार मंडी परिषद को ताकतवर बनाने की बात करती है। लेकिन सच्चाई यह है कि वह मंडी परिषद को निजी हाथों में सौंपना चाहती है।

रैली में मजदूर को न्यूनतम भत्ते, प्राइवेटाइजेशन के खिलाफ, ठेकेदारी प्रथा खत्म करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी जामा पहनाने, किसानों के लिए केंद्र से कर्ज माफी के साथ 60 साल से अधिक उम्र के किसानों के लिए पेंशन जैसी मांगें शामिल रहीं। इसके आलावा इस दौरान अग्निपथ योजना और अमीरों पर अलग से टैक्स की सीमा बढ़ाने की भी मांग की गई।

ऑल इंडिया किसान सभा के उपाध्यक्ष हनान मोल्ला ने कहा, “हमारी 13 सूत्री मांग है खेत मजदूर और किसान उत्पादन करता है फिर भी बेहद गरीब है। सरकार का फसल का न्यूनतम दाम के लिए 14 महीने का समय हो गया, लेकिन कोई समाधान नहीं हुआ। राशन व्यवस्था खत्म करने की साजिश चल रही है।”

उन्होंने आगे कहा, “कॉर्पोरेट के हाथ सारा देश बिक रहा है। रामनवमी के नाम पर देश में दंगा फैल रहा है देश को बांटने की साजिश हो रही है, क्योंकि हिंदू-मुसलमान आपस में लड़ेगा तो असली मुद्दों से दूर हो जाएगा। सरकारी खजाना प्राइवेट हो रहा है। आर्मी भी प्राइवेट कर दी है। अग्निपथ योजना से बड़ी गद्दारी देश के लिए क्या होगी। हमारे देश में पहले से ही स्टैबलिश सेना है, लेकिन अब उनको 5 साल के बाद रिटायर कर देंगे तो यह देश के साथ खिलवाड़ है।”

सेंटर ऑफ इंडिया ट्रेड यूनियन अध्यक्ष हेमलता ने कहा कि सरकार की नीतियों का फायदा मजदूर और किसानों को नहीं हो रहा है। यह सरकार प्राइवेटाइजेशन कर रही है। सरकार मजदूर और किसान विरोधी नीति लागू कर रही है। उन्होंने आगे कहा कि वो जंगल को बेच रहे हैं खदान को बेच रहे हैं, समुद्र के पानी को बेच रहे हैं।

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प्रदीप सिंह https://www.janchowk.com

दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय और जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।

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