महिला पहलवानों द्वारा दर्ज प्राथमिकी पर सरकार की शर्मनाक खामोशी

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यदि यौन शौषण की ऐसी एक भी एफआईआर किसी ऐसे व्यक्ति के खिलाफ दर्ज हुई होती, जो न तो दबंग होता और न ही असरदार और न धन और बाहुबल में मजबूत होता और न ही वह सत्तारूढ़ दल का कोई सांसद होता, तो अब तक यही दिल्ली पुलिस, न केवल उक्त अभियुक्त को गिरफ्तार कर लेती, बल्कि रोजाना, प्रेस कॉन्फ्रेंस कर के मुकदमे की प्रगति परोसती और खुद ही अपनी पीठ थपथपाती हुई, लोगों की तालियां बटोरती। बात मैं, बीजेपी के बाहुबली सांसद और कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृज भूषण शरण सिंह के खिलाफ दर्ज यौन शौषण के एफआईआर की कर रहा हूं।

लेकिन यह एक अनोखा मामला है जिसमें अभियुक्त निर्लज्जता के साथ कानून को ही चुनौती देते हुए, पॉक्सो एक्ट के कथित ‘दुरुपयोग’ के खिलाफ खुलकर अभियान चला रहा है। अयोध्या के साधुओं के साथ मिल कर एक रैली करने की बात कर रहा था, और पुलिस तथा सरकार चुपचाप इसे सुन भी रही है। और गोदी मीडिया ऐसी खबरों को सकारात्मक रूप से प्रसारित कर रहा है। यह उस न्यू इंडिया की एक बानगी भी है, जो अब तक सभी सिस्टम पर अकेले ही भारी पड़ रही है और यह संकेत दे रही है कि समरथ को नहीं दोस गुसाईं।

यह अनोखा मामला है, महिला पहलवानों द्वारा कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष के खिलाफ दर्ज एफआईआर का। याद कीजिए पहलवानों ने कुश्ती महासंघ के पूर्व अध्यक्ष बृज भूषण शरण सिंह द्वारा किए गए यौन शौषण के विरोध को लेकर, इस साल जनवरी में ही धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया था। लेकिन खेल मंत्री अनुराग ठाकुर द्वारा जांच के आश्वासन के बाद ओलंपिक पदक विजेता पहलवानों ने अपना विरोध प्रदर्शन हटा लिया गया था।

गठित जांच समिति ने पूछताछ और जांच में किस तरह से वीडियो कैमरे को समय समय पर ऑन-ऑफ कर के जांच को प्रभावित करने की कोशिश की, यह आप एफआईआर के कंटेंट में आगे पढ़ेंगे। अंततः सुप्रीम कोर्ट द्वारा हस्तक्षेप, यौन शोषण की प्राथमिकी दर्ज करने और अभियुक्तों की गिरफ्तारी करने की मांगों को लेकर 23 अप्रैल से पहलवानों द्वारा दूसरा विरोध और धरना-प्रदर्शन जंतर मंतर पर शुरू हुआ।

दिल्ली पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में महिला पहलवानों द्वारा दायर याचिका पर सीजेआई के सख्त रुख को देखते हुए बीजेपी सांसद बृज भूषण शरण सिंह के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की इच्छा न होते हुए भी, अंततः 28 अप्रैल को कनॉट प्लेस पुलिस स्टेशन में दो एफआईआर दर्ज की।

बृज भूषण शरण सिंह पर आईपीसी की धारा 354 (महिला की लज्जा भंग करने के इरादे से हमला या आपराधिक बल प्रयोग), 354ए (यौन उत्पीड़न), 354डी (पीछा करना) और 34 (समान इरादे) के अंतर्गत मामला दर्ज किया गया। एक फरियादी के नाबालिग होने के कारण मुकदमे में यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण से जुड़ी POCSO एक्ट की धारा भी जोड़ी गई। बृज भूषण शरण सिंह के साथ डब्ल्यूएफआई के सचिव विनोद तोमर का भी नाम पुलिस प्राथमिकी में दर्ज है।

कुश्ती की विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग ले चुकी एक वादी नाबालिग है और एफआईआर में उसकी आयु 17 साल अंकित है। उसके पिता ने पुलिस में दर्ज शिकायत में कहा है कि, “वह महिला पहलवान, साल 2016 से ही कुश्ती की विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग ले रही है।” उसके द्वारा दर्ज कराये गए एफआईआर में पॉक्सो एक्ट की धारा लगाई गई है। यौन शौषण से जुड़ी यह एक गंभीर आपराधिक धारा है।

अंग्रेजी अखबार द हिंदू ने दर्ज एफआईआर के कुछ अंश छापे हैं। उस अखबार के अनुसार, उसके (नाबालिग वादी के) पिता ने कहा कि, “जब उसने भारत में हुई एक चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता, तो आरोपी ने फोटो लेने के बहाने, लड़की को जबरदस्ती अपनी ओर खींचा और उसे इतना कस कर पकड़ लिया कि वह हिल भी नहीं सकती थी और न ही खुद को मुक्त कर सकती थी।”

आगे अखबार लिखता है, “श्री सिंह ने जानबूझकर अपना हाथ उसके कंधे के नीचे सरका दिया और अपना हाथ उसके स्तनों पर फेर दिया।” अविश्वसनीय लगने वाली यह हरकत अखबार के अनुसार एफआईआर में दर्ज है।

एफआईआर में अंकित उक्त महिला पहलवान के पिता के अनुसार, श्री सिंह ने पीड़िता को अपने संपर्क में रहने के लिए कहा। श्री सिंह ने पीड़िता से कहा था कि “यदि आप मेरा समर्थन करते हैं, तो मैं आपका समर्थन करूंगा, मेरे साथ संपर्क में रहें।” जिस पर, पीड़िता ने जवाब दिया, “सर, मैं अपने बलबूते पर इतनी दूर आई हूं और मैं आगे जाने के लिए कड़ी मेहनत करूंगी।”

हालांकि, श्री सिंह ने कथित तौर पर उसे चेतावनी भी दी कि एशियाई चैंपियनशिप के ट्रायल जल्द ही होने वाले हैं, और चूंकि वह उसके साथ सहयोग नहीं कर रही है, “उसे ट्रायल में नतीजे भुगतने होंगे।”

“मेरी बेटी, एक युवा पहलवान है, जो अपने कैरियर के प्रति शुरुआत से ही सजग है। वह एक यौन शिकारी जैसे, स्वभाव वाले, अभियुक्त का सामना करने की हिम्मत नहीं जुटा सकी और इस तरह की शिकायत कहीं और या फेडरेशन के समक्ष नहीं उठा सकी क्योंकि फेडरेशन पूरी तरह से अभियुक्त के नियंत्रण में है और उसके इशारे पर काम करता है।” पीड़िता के पिता ने, यह तथ्य एफआईआर में बताए हैं।

प्राथमिकी में एक अन्य पहलवान ने कहा है कि, श्री सिंह ने पिछले साल अगस्त में पहली बार उसका यौन उत्पीड़न किया। “जब मैं प्रशिक्षण ले रही थी तो आरोपी ने मुझे अलग से बुलाया, जिसे मैंने इनकार कर दिया क्योंकि अभियुक्त अन्य लड़कियों को भी अनुचित तरीके से छू रहा था। हालांकि उसने मुझे फिर से बुलाया, मेरी टी-शर्ट खींची और मेरी सांस की जांच के बहाने मेरे पेट को छू लिया।”

उसी पहलवान ने आगे कहा कि, “मैने देखा है कि कोई भी महिला पहलवान कभी भी अकेले, बाहर जाने की योजना नहीं बनाती है।”

आगे उसने इसका कारण बताते हुए कहा, “असल में सभी महिला पहलवान हमेशा एक साथ बाहर जाती थीं, और ऐसा केवल, अभियुक्तों से सामना न हो सके, इसलिए।”

एफआईआर का यह अंश, महिला पहलवानों के डर और मनोदशा को बताता है।

एफआईआर में अंकित है, “वह जबरदस्ती और महिला एथलीटों की इच्छा के खिलाफ उन्हें उनके समूह से अलग करने की कोशिश करता था और फिर अनुचित रूप से व्यक्तिगत सवाल पूछता था, जिसका जवाब देने में हम सहज नहीं होते थे।”

प्राथमिकी में महिला पहलवान ने कहा, “अभियुक्त भविष्य में फिर किसी अन्य महिला का यौन उत्पीड़न और शोषण के न कर सके, और उसे रोकना आवश्यक है, अतः मैं आपसे अनुरोध करती हूं कि आप उसके खिलाफ, मुकदमा दर्ज करें और उसे गिरफ्तार कर सलाखों के पीछे डालें।”

एफआईआर दर्ज कराने वाली महिला पहलवान ने बृज भूषण शरण सिंह द्वारा किए गए यौन शौषण के बारे में एक अत्यंत महत्वपूर्ण रहस्योद्घाटन किया है कि उसने इस यौन शौषण की शिकायत प्रधानमंत्री से भी की थी। एफआईआर में अंकित है, “मैंने प्रधानमंत्री को बार-बार होने वाले यौन, भावनात्मक, शारीरिक आघात के बारे में सूचित किया, जब वे अभियुक्तों सहित अन्य महिला पहलवानों के साथ मिले थे।”

यहां प्रधानमंत्री से कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृज भूषण शरण सिंह तथा अन्य पहलवानों के बीच हुई मुलाकात का उल्लेख है। शिकायत के अनुसार, “प्रधानमंत्री ने मुझे आश्वस्त किया था कि ऐसी शिकायतों को देखा जाएगा। खेल मंत्रालय द्वारा और मुझे जल्द ही से फोन आएगा।”

एक अन्य पहलवान ने पुलिस प्राथमिकी में आरोप लगाया, “अपने बयान की रिकॉर्डिंग के दौरान मैंने देखा कि वे [निगरानी समिति] बार-बार कैमरे को चालू और बंद कर रहे थे। इसके अलावा, मैं तब बेहद आश्चर्य और अत्यधिक सदमे में आ गई, जब समिति के सदस्य अभियुक्तों के कार्यों को सही ठहराने की कोशिश कर रहे थे, जैसे कि कुछ भी गलत नहीं किया गया हो। ऐसा प्रतीत होता है कि समिति पहले से ही अभियुक्तों का पक्ष लेने के लिए पूर्व निर्धारित दिमाग से बैठी थी।”

यह उल्लेख पहलवानों द्वारा लगाए गए आरोपों की जांच करने के लिए गठित समिति द्वारा बयानों के दर्ज करने के समय का है। यानी जांच समिति तब भी शिकायतकर्ताओं के बयान को निष्पक्षता से दर्ज नहीं कर रही थी।

महिला पहलवान ने आगे कहा, “जैसा कि मुझे गंभीर रूप से संदेह था कि मेरा बयान पूरी तरह से दर्ज नहीं किया गया था, मैंने अपने लिए वीडियो रिकॉर्डिंग की एक प्रति प्राप्त करने के लिए समिति से अनुरोध किया लेकिन समिति ने मुझे रिकॉर्डिंग की प्रति देने से इनकार कर दिया। समिति के इस कृत्य ने समिति के पक्षपाती होने के बारे में मेरे संदेह को और पुख्ता किया। मुझे डर है कि अभियुक्त के खिलाफ आरोपों की जांच के लिए समिति गठित होने के बावजूद मुझे न्याय नहीं मिलेगा क्योंकि आरोपी एक शक्तिशाली और महत्वपूर्ण लोगों से जुड़ा हुआ व्यक्ति है और समिति उनके निर्देश के अनुसार कार्य करती है, ऐसा प्रतीत होता है।”

पहलवान ने आगे कहा कि जब दिल्ली के जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन चल रहा था तो आरोपी ने अपने गुंडों की मदद से उसके पति के माध्यम से उससे संपर्क करने की कोशिश की और उसे धमकी दी गई कि अगर उसने समिति के सामने आरोपियों के खिलाफ कुछ भी कहा, तो उन्हें “गंभीर परिणाम” भुगतना पड़ेगा। प्राथमिकी में एक अन्य पहलवान ने भी कुछ ऐसी ही कहानी सुनाई कि, टीम के ग्रुप फोटो खिंचवाते समय पीछे खड़ी पहलवान ने देखा कि कोई उसे गलत तरीके से छू रहा है।

एफआईआर में अंकित है, “आरोपी आया और मेरे साथ खड़ा हो गया, मेरे आश्चर्य की सीमा नहीं रही, जब मुझे अचानक अपने नितंब पर कोई हाथ महसूस हुआ। मैंने तुरंत पीछे मुड़कर देखा और मेरे होश उड़ गए। यह आरोपी ही था जिसने यह कृत्य किया था। मैं अभियुक्त की हरकतों से स्तब्ध थी, जो बेहद अशोभनीय और आपत्तिजनक और मेरी सहमति के बिना मुझे स्पर्श कर रहे थे। आरोपी द्वारा अनुचित रूप से हो रहे स्पर्श से खुद को बचाने के लिए मैंने तुरंत उस स्थान से हट जाने की कोशिश की। हालांकि, जब मैंने वहां से जाने की कोशिश की तो आरोपी ने मुझे जबरन पकड़ लिया। किसी तरह मैं छूटने में कामयाब रही।”

एक अन्य पहलवान ने आरोप लगाया, “उन्होंने मुझे सप्लीमेंट्स खरीदने की भी पेशकश की, जो मुझे एक एथलीट के रूप में “यौन एहसान” के बदले में चाहिए।”

एक अन्य पहलवान ने पुलिस प्राथमिकी में दावा किया है कि, “चैंपियनशिप के दौरान चोट लगने पर आरोपी ने उसका यौन उत्पीड़न किया था। पहलवान को महासंघ के कार्यालय में बुलाया गया था, जहां श्री सिंह ने कथित तौर पर उससे कहा था कि महासंघ इलाज से संबंधित सभी खर्चों को वहन करेगा,”बशर्ते वह उनकी “यौन इच्छाओं” को पूरा करे।”

POCSO यानी (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ओफेंसेस एक्ट) अधिनियम, नाबालिगों को यौन शोषण से बचाने के लिए बनाया गया एक विशेष कानून है। यहां तक ​​कि नाबालिग के खिलाफ यौन हमले की सूचना न देना भी एक गंभीर अपराध है। कानून में कहा गया है कि विशेष अदालत द्वारा संज्ञान लेने के साथ ही मुकदमे को एक साल के भीतर पूरा किया जाना चाहिए। इसके अलावा, परीक्षण शुरू होने के बाद और अभियोजन पक्ष द्वारा आरोप की नींव स्थापित करने के बाद सबूत का भार अभियुक्त के पास होता है।

POCSO को यदि कुछ देर के लिए अलग रख दें तो दूसरे आपराधिक मामले में भी कोई प्रगति अब तक नहीं दिख रही है। ऐसे अपराधों में पहला नियम मजिस्ट्रेट के सामने जल्द से जल्द धारा 164 सीआरपीसी के अंतर्गत बयान दर्ज कराना होता है। यह भी बताया जा रहा है कि पहलवानों के बयान तो दर्ज कर लिए गए हैं, लेकिन अभी तक तो गिरफ्तारी की बात तो दूर, आरोपी को बयान और पूछताछ के लिए भी नहीं बुलाया गया है।

इस बीच, यह भी सत्तर साल में पहली बार हो रहा है कि अभियुक्त, कानून (POCSO अधिनियम) के कथित दुरुपयोग के खिलाफ खुलकर अपने विचारों को खुले तौर पर प्रसारित कर रहा है और दावा कर रहा है कि इसे पिछली सरकार द्वारा गलत तरीके से तैयार किया गया था। साथ ही, वह यह भी घोषणा कर रहा है कि कानून में परिवर्तन किए जाएंगे। किसके दम पर एक मुल्जिम कानून बदलवा देने तक की बात कर रहा है और सब ख़ामोश भी हैं? एक जनसभा में उसने सिर्फ एक एक ‘स्पर्श’ (बैड टच या बुरी नीयत से छूना) होने का मजाक उड़ाया था। अभियुक्त ने अपने और पहलवानों के पॉलीग्राफ टेस्ट का सुझाव भी दिया है। 

क्या सरकार को अभियुक्त की इन सब गतिविधियों से इस बात का एहसास नहीं हो रहा है कि इस तरह विधिविरुद्ध टिप्पणी से यह महत्वपूर्ण जांच प्रभावित होगी और इससे सरकार और पुलिस की छवि के बारे में गलत संदेश जाएगा? न तो बीजेपी ने अपने सांसद अभियुक्त के खिलाफ कोई कार्रवाई करना मुनासिब समझा और न ही केंद्र सरकार ने डब्ल्यूएफआई के अध्यक्ष पद पर रहते हुए उनके खिलाफ कोई कार्रवाई ही की।

सामान्य परिस्थितियों में पुलिस एफआईआर दर्ज होने के बाद विवेचना की धारा 41 सीआरपीसी के अंतर्गत अभियुक्त की गिरफ्तारी की कार्रवाई में जुट जाती। लेकिन पुलिस के निकम्मेपन के कारण एफआईआर दर्ज कराने के पीछे लालच और राजनीति के हास्यास्पद तर्क दिए जा रहे हैं। इन तर्कों से क्या कानून, दर्ज एफआईआर की जांच करने से पुलिस को रोक रहा है। यह भी सवाल उठता है कि क्या कई बार के कुश्ती चैंपियन, ओलंपिक और विश्व पदक धारक, इस तरह के क्षुद्र लाभ के शिकार हो सकते हैं?  क्या परिश्रम और धैर्य से कमाया गया जीवन का मिशन इस तरह के राजनीतिक प्रभाव में बर्बाद हो सकता है?

यौन शौषण के इस हाई प्रोफाइल मामले में प्रधानमंत्री सहित पूरी सरकार और सत्तारूढ़ दल बीजेपी की लगातार बनी हुई चुप्पी से देश के आपराधिक न्याय व्यवस्था और पुलिस के कामकाज को लेकर देश के लगभग हर वर्ग से आवाजें उठ रही हैं। देश में ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी भारत की छवि दांव पर है। कुश्ती की विश्व संस्था ने एफआईआर पर कार्रवाई की मांग के साथ साथ भारतीय कुश्ती महासंघ के खिलाफ भी कार्रवाई करने की बात कही है।

देश और अब विदेशों से भी, खिलाड़ियों के समर्थन के संदेश आ रहे हैं। दिल्ली पुलिस की छवि सवालों के घेरे में है। किसानों के संगठन ने सरकार को कार्रवाई करने के लिए 9 जून तक का समय दिया है। देश और विशेषकर उत्तर प्रदेश के पश्चिमी भाग हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के कुछ हिस्सों में जैसा आक्रोश घनीभूत हो रहा है, उससे सरकार के समक्ष देर सबेर इस मामले में अभियुक्तों के विरुद्ध कार्रवाई करने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं रहेगा।

सरकार या दिल्ली पुलिस के सामने, इस मामले में, विकल्प स्पष्ट हैं। वे विकल्प हैं,

बिना किसी डर या पक्षपात के प्रोफेशनल दायित्व निभाते हुए पूरी तत्परता से जांच प्रक्रिया आगे बढ़ाएं।

आरोपियों को गिरफ्तार करें और चार्जशीट दाखिल करें।

यदि जांच के दौरान सबूत न मिले तो, इसका उल्लेख करते हुए मामले में फाइनल रिपोर्ट अदालत में दाखिल करें। 

शिकायत झूठी मिलने पर महिला पहलवानों के खिलाफ झूठी शिकायत दर्ज कराने के आरोप पर आईपीसी की धारा 182/212 के अंतर्गत कार्रवाई करें।

लेकिन, इस मामले में दिल्ली पुलिस जिस प्रकार से आचरण कर रही है वह एक गैर-पेशेवराना आचरण है। अब एक सामान्य नागरिक भी यह सवाल उठाने लगा है कि, क्या एक बाहुबली सांसद, पूरे तंत्र और सत्तारूढ़ दल पर इतना भारी पड़ गया है कि उसके खिलाफ जांच और कोई कार्रवाई करने की हिम्मत सरकार नहीं जुटा पा रही है? यह स्थिति बेहद शर्मनाक और निंदनीय है।

(विजय शंकर सिंह पूर्व आईपीएस हैं)

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