Saturday, April 20, 2024

नोटबंदी के बारे में पूरे तथ्य नहीं बताए सरकार और आरबीआई ने, 2 जनवरी को आएगा सुप्रीम फैसला  

मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले को लेकर सवाल उठते रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2016 में 8 नवंबर को देश को संबोधित करते हुए 1000 और 500 रुपये के नोट बंद करने का ऐलान किया था। उनके इस फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट 2 जनवरी, 23 को अपना फैसला सुनाएगा। यह फैसला जस्टिस एसए नज़ीर की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ देगी। इस बीच, इंडियन एक्सप्रेस ने 28 दिसंबर को अपनी एक विशेष रिपोर्ट में दावा किया है कि केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक ने सुप्रीम कोर्ट से कई तथ्य छिपा लिए। उसने जो शपथपत्र सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किये, उनमें नोटबंदी के बारे में पूरे तथ्य नहीं बताए।

दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से नोटबंदी के फैसले पर हलफनामा दाखिल करने को कहा था, जिसमें केंद्र सरकार ने कहा है कि पूरी तरह सोच विचार करने के बाद ही नोटबंदी का फैसला लिया गया था। 

केंद्र और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) द्वारा बताया गया कि नोटबंदी की घोषणा से 9 महीने पहले केंद्र सरकार और आरबीआई में परामर्श की प्रक्रिया शुरू हुई थी। हलफनामे में बताया गया है कि इससे 9 महीने पहले फरवरी, 2016 से ही इसकी प्रक्रिया शुरू कर दी गई थी।

आरबीआई ने अपने हलफनामे में सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि उचित प्रक्रिया का पालन किया गया था और उसने ही नोटबंदी की सिफारिश की थी। दरअसल सरकार और आरबीआई के हलफनामों में जिस बात का उल्लेख नहीं है वह यह है कि नोटबंदी के लिए आरबीआई की सिफारिश एक प्रक्रियात्मक आवश्यकता थी।

आरबीआई और सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में यह नहीं बताया कि आरबीआई की अनुमति एक प्रोसेस (प्रक्रिया) था, यह एक जरूरत थी, जिसे पूरा किया गया। यानी आसान शब्दों में अगर कहें तो यह कि आरबीआई से अनुमति लेना प्रक्रिया का एक हिस्सा था। उसे बस सूचना दी गई कि 8 नवंबर, 2016 को ऐसी घोषणा होने जा रही है। अगर उस समय के घटनाक्रम देखा जाए तो केंद्र सरकार लगातार आरबीआई की आलोचना खुलकर कर रही थी।

सरकार का मानना था कि कैश की वजह से भ्रष्टाचार बढ़ता है। पीएम मोदी ने भी नोटबंदी के वक्त 8 नवंबर, 2016 को जो भाषण दिया था, उसमें कहा था कि कैश का सर्कुलेशन भ्रष्टाचार के स्तर से सीधे जुड़ा हुआ है। 2011-12 से 2015-16 तक पिछले पांच वित्तीय वर्षों में करेंसी इन सर्कुलेशन (सीईसी) और जीडीपी का अनुपात 11% या उससे अधिक रहा है। हलफनामे में अन्य रिपोर्टों का हवाला देते हुए कहा गया कि 11.55% पर भारत का कैश टू जीडीपी प्रतिशत अनुपात अमेरिका (7.74%) की तुलना में बहुत अधिक था।

हलफनामे में इस बात को छिपाया गया कि जीडीपी के प्रतिशत के रूप में सीआईसी तीन साल के अंदर नोटबंदी से पहले के स्तर पर वापस आ गया।2019-20 के लिए आरबीआई की वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है, “करेंसी-जीडीपी अनुपात 2019-20 में 11.3 प्रतिशत से बढ़कर नोटबंदी से पहले के स्तर 12.0 प्रतिशत हो गया। यह अनुपात 2019-20 में बढ़कर 14.4 प्रतिशत हो गया। वहीं, आरबीआई के अनुसार, 2021-22 में यह 13.7 प्रतिशत तक गिर गया।

केंद्र सरकार ने नोटबंदी के लिए जो एक और वजह बताया, वो है बड़े नोटों के चलन में बढ़ोत्तरी। केंद्र अपने हलफनामे में कोर्ट को बताया कि बीते 5 सालों में 500 रुपए के नोट में 76.38% और 1,000 रुपए के नोट के चलन में 108.98% की बढ़ोत्तरी देखी गई। इसके अलावा, 2014-15 और 2015-16 के आर्थिक सर्वेक्षण में उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, 2011-12 से 2015-16 तक अर्थव्यवस्था का आकार 30% घट गया।

हालांकि आरबीआई ने सरकार के इस तर्क को नहीं माना। आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड ने सरकार के इस विश्लेषण में खामी बताई। आरबीआई ने कहा कि उल्लेखित अर्थव्यवस्था की विकास दर वास्तविक दर है जबकि चलन में मुद्रा में बढ़ोत्तरी नाममात्र की है। इसलिए नोटबंदी से इस पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाले और यह तर्क इसका समर्थन नहीं करता है।

केंद्र ने अपने हलफनामे में बताया कि सिस्टम में नकली नोट काफी बढ़ गए हैं, इसकी वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रतिकूल असर पड़ा है। हालांकि, आरबीआई ने इस तर्क को काफी नहीं माना। आरबीआई सेंट्रल बोर्ड की बैठक में कहा गया, “प्रचलन में मुद्रा की कुल मात्रा (17 लाख करोड़ रुपए से अधिक) के प्रतिशत के रूप में 400 करोड़ रुपए बहुत महत्वपूर्ण नहीं है”।

केंद्र सरकार के मुताबिक, “उच्च मूल्य वर्ग के नोटों के रूप में बेहिसाब संपत्ति का भंडारण हुआ।” वहीं आरबीआई ने केंद्र सरकार के इस दावे को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि ब्लैक मनी के तौर पर नकल नहीं बल्कि सोने और अचल संपत्ति रखे जाते हैं। आरबीआई ने कहा, “ज्यादातर काला धन नकद के रूप में नहीं बल्कि सोने या अचल संपत्ति के रूप में रखा जाता है और इस कदम का उन संपत्तियों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा”।

सुप्रीम कोर्ट ने 7 दिसंबर को आरबीआई को निर्देश दिया था कि वे सरकार के 2016 के फैसले से संबंधित रिकॉर्ड अपने पास सुरक्षित रख लें। संविधान पीठ में जस्टिस  बीआर गवई, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस वी रामसुब्रमण्यन और जस्टिस बीवी नागरत्ना भी शामिल हैं। इसी पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता पी चिदंबरम और श्याम दीवान सहित आरबीआई के वकील और याचिकाकर्ताओं के वकीलों, अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी की दलीलें सुनी थीं।

इस दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता पी. चिदम्बरम ने 500 और 1000 रुपए के नोटों का संचालन बंद करने को गंभीर त्रुटिपूर्ण बताया। उन्होंने तर्क दिया था कि सरकार कानूनी निविदा से संबंधित किसी भी प्रस्ताव को तब तक शुरू नहीं कर सकती जब तक आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की सिफारिश न की गई हो।

आरबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि 2016 में केंद्र सरकार का नोटबंदी का फैसला एक विचारहीन प्रक्रिया नहीं थी। रिजर्व बैंक ने केंद्र के फैसले का समर्थन करते हुए कोर्ट में उन 58 याचिकाओं का विरोध किया, जिसमें नोटबंदी के फैसले का विरोध किया गया था और कहा गया था कि यह रातों-रात लिया गया फैसला था। रिजर्व बैंक ने इसके साथ ही कहा कि अदालत को इसकी जांच करने से बचना चाहिए क्योंकि यह एक आर्थिक नीति से जुड़ा हुआ फैसला है।

रिजर्व बैंक की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप गुप्ता ने कहा कि यह “राष्ट्र निर्माण प्रक्रिया का एक अभिन्न हिस्सा” था और इस पर कुछ को छोड़कर सभी एकमत थे। गुप्ता ने कहा कि कोर्ट को सरकार द्वारा अपनाई गई आर्थिक नीति में दखल देने से बचना चाहिए और 2016 में 500 रुपये और 1,000 रुपये के करेंसी नोटों के नोटबंदी के फैसले की वैधता की अदालत द्वारा जांच नहीं की जानी चाहिए। इस पर बेंच ने कहा कि अदालत नोटबंदी के फैसले के गुण-दोष पर विचार नहीं करेगी, बल्कि वह निर्णय लेने के लिए अपनाई गई प्रक्रिया की जांच करेगी।

जस्टिस नागरत्ना ने कहा, “हम निर्णय की वैधता में नहीं बल्कि निर्णय लेने की प्रक्रिया की बात कर रहे हैं।” इस पर गुप्ता ने कहा कि नोटबंदी के फैसले को सुचारू रूप से लागू करने के लिए व्यापक इंतजाम किए गए थे।

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश पी चिदंबरम ने केंद्र और आरबीआई की दलीलों का खंडन करते हुए कहा कि कोर्ट को आर्थिक नीति और मौद्रिक नीति जैसे भारी भरकम शब्दों से नहीं डरना चाहिए। उन्होंने कहा कि नोटबंदी मौद्रिक नीति का हिस्सा नहीं है। उन्होंने अदालत से निर्णय लेने की प्रक्रिया की वैधता तय करने और मनमाना पाए जाने पर इसे रद्द करने की गुहार लगाई ताकि भविष्य में कानून का उल्लंघन करते हुए इस तरह की कवायद न की जाए। चिदंबरम ने कहा, “भले ही अदालत अब नोटबंदी को खत्म नहीं कर सकती है, क्योंकि कोर्ट ने छह साल बाद इस मामले की सुनवाई शुरू की है, लेकिन अदालत निर्णय लेने की प्रक्रिया पर फैसला सुना सकती है।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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