Friday, March 29, 2024

यूएपीए की नई व्याख्या से होम मिनिस्ट्री परेशान, सुप्रीम कोर्ट पहुंची सरकार

गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) को पहली बार सिलसिलेवार दिल्ली उच्च न्यायालय ने व्याख्यायित किया है और स्पष्ट कहा है कि विरोध-प्रदर्शन करना आतंकवाद नहीं है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा था कि यूएपीए के तहत आतंकवादी अधिनियम केवल भारत की रक्षा को प्रभावित करने वाले मामलों से निपटाने के लिए बनाये गये हैं, सामान्य कानून और व्यवस्था की समस्याओं से नहीं। हम यह कहने के लिए विवश हैं, कि ऐसा दिखता है कि असंतोष को दबाने की अपनी चिंता में और इस डर में कि मामला हाथ से निकल सकता है, स्टेट ने संवैधानिक रूप से अधिकृत ‘विरोध का अधिकार’ और ‘आतंकवादी गतिविधि’ के बीच की रेखा को धुंधला कर दिया है। अगर इस तरह के धुंधलापन बढ़ता है, तो लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा। उच्च न्यायालय की यह टिप्पणी केंद्र सरकार विशेष रूप से गृह मंत्रालय को रास नहीं आई क्योंकि यूएपीए की आड़ में केंद्र सरकार अभिव्यक्ति की आज़ादी पर रोक लगा रही थी।

एक ज़माने में जिस तरह डाइज़ापाम दिखाकर हर छोटे मोटे आपराधिक मामलों में पुलिस चालान कटती थी ताकि आरोपी की जल्दी जमानत न हो सके,उसी तरह जहाँ भी धरना प्रदर्शन या सरकार का विरोध होता है वहां एनी धाराओं के साथ यूएपीए भी लगा दिया जा रहा है।नतीजतन दिल्ली पुलिस ने गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत दिल्ली दंगों के एक मामले में आसिफ इकबाल तन्हा, देवांगना कलिता और नताशा नरवाल को जमानत देने के दिल्ली उच्च न्यायालय के एक दिन पहले दिए गये आदेश आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दे दी है। उच्चतम न्यायालय में स्पेशल लीव पिटीशन के जरिए तीनों आरोपियों को जमानत देने के दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई है।

जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस अनूप जे भंभानी की बेंच द्वारा मंगलवार को दिए गए फैसले के खिलाफ बुधवार सुबह स्पेशल लीव पिटीशन (अपील) दायर की गई। उच्च न्यायालय ने माना था कि प्रथम दृष्ट्या, तीनों के खिलाफ वर्तमान मामले में रिकॉर्ड की गई सामग्री के आधार पर धारा 15, 17 या 18 यूएपीए के तहत कोई अपराध नहीं बनता है। दिल्ली हाईकोर्ट ने 15 जून के अपने फैसले में पाया कि गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत अपराध दिल्ली दंगों की साजिश मामले में छात्र नेताओं आसिफ इकबाल तन्हा, नताशा नरवाल और देवांगना कलिता के खिलाफ प्रथम दृष्टया नहीं बनते हैं।

इस बीच तीनों आरोपियों को जमानत देने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। कड़कड़डूमा अदालत के कर्मचारी और पुलिस अधिकारी सत्यापन रिपोर्ट का इंतजार कर रहे हैं। जमानतदारों की पहचान सत्यापित होने के बाद कड़कड़डूमा कोर्ट के जज को वेरिफिकेशन रिपोर्ट भेजी जाएगी जो रिलीज वारंट पर दस्तखत करेंगे। यह भी दिल्ली पुलिस द्वारा जमानत पर रिहाई में रोड़ा अटकाना माना जा रहा है। आजकल पहचान सत्यापित करने और पते के सत्यापन के लिए आधार कार्ड का इस्तेमाल किया जा रहा है। दिल्ली पुलिस को यह उम्मीद है कि उच्चतम न्यायालय से दिल्ली उच्च न्यायालय के उक्त फैसले पर रोक लग जाएगी।   

फैसले में यूएपीए लागू करने के लिए कतिपय सिद्धांत निर्धारित किये है, जिसमें कहा गया है कि आतंकवादी अधिनियम” धारा 15 यूएपीए को हल्के में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए ताकि उन्हें तुच्छ बनाया जा सके, ‘आतंकवादी गतिविधि’ वह है जो सामान्य दंड कानून के तहत निपटने के लिए कानून प्रवर्तन एजेंसियों की क्षमता से परे जाती है, हर आतंकवादी अपराधी हो सकता है, लेकिन हर अपराधी को “आतंकवादी” नहीं कहा जा सकता, “आतंकवादी अधिनियम” राज्य में एक सामान्य कानून और व्यवस्था की समस्या के साथ समान नहीं होना चाहिए, आईपीसी के तहत पारंपरिक अपराधों के अंतर्गत आने वाले मामलों में आतंकवादी अधिनियम” को लापरवाही से लागू नहीं किया जा सकता।

फैसले में कहा गया है कि गंभीर दंडात्मक परिणामों वाले कानूनों के लिए (जैसे यूएपीए) न्यायालयों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि केवल उन्हीं को आरोपी बनाया जाए जो इसमें शामिल हैं, संशोधित यूएपीए के तहत “आतंकवादी गतिविधि” का अर्थ “भारत की रक्षा” पर गहरा प्रभाव पड़ता है- कुछ ज्यादा नहीं,  कुछ कम नहीं, सामान्य अपराध चाहे कितने भी गंभीर, गंभीर या जघन्य क्यों न हों, यूएपीए के अंतर्गत नहीं आते हैं, धारा 15 के तहत अपराध का अनुमान, जैसा कि एस 43ई में प्रावधानित किया गया है, केवल यदि अभियुक्त से हथियार, विस्फोटक या अन्य पदार्थ बरामद किए गए हों तथा यूएपीए के अध्याय IV के भीतर मामला लाने के लिए, राज्य न्यायालय को निष्कर्ष और निष्कर्ष निकालने के लिए बाध्य नहीं कर सकता।

फैसले में कहा गया है कि अभियोजन पक्ष पर प्रथम दृष्ट्या मामला सिद्ध करने का भार है। तदनुसार, यूएपीए की धारा 43डी(5) के तहत, जहां, जमानत याचिका की अनुमति देने से पहले, अदालत को यह आकलन करना आवश्यक है कि क्या किसी आरोपी के खिलाफ आरोप प्रथम दृष्ट्या सच है, आरोप की प्रथम दृष्ट्या सत्यता को प्रदर्शित करने का बोझ होना चाहिए अभियोजन पर ही गिरता है।
फैसले में कहा गया है कि चार्जशीट में दर्ज आरोपों को पढ़ने पर किसी विशिष्ट, विशेषीकृत, वास्तविक आरोपों की कमी है। ऐसे में यूएपीए के सेक्शन 15, 17 या 18 जैसी अत्यंत गंभीर धाराओं और दंडात्मक प्रावधानों को लोगों पर लगाना, एक ऐसे कानून के मकसद को कमजोर कर देगा, जो हमारे देश के अस्तित्व पर आने वाले खतरों से निपटने के लिए बनाया गया है।

जेएनयू की एमफिल-पीएचडी की छात्र नरवाल पर आईपीसी और यूएपीए के तहत पिछले साल उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के संबंध में विभिन्न अपराधों का आरोप लगाया गया था। उन पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने दिल्ली के मुस्लिम बहुल इलाकों में स्थानीय आबादी, विशेषकर महिलाओं को कथित रूप से सीएए और एनआरसी के खिलाफ भड़काया ‌था। उन पर यह आरोप भी लगा था कि पिंजरा तोड़, दिल्ली प्रोटेस्ट सपोर्ट ग्रुप और जामिया कोऑर्डिनेशन कमेटी के सदस्य के रूप में वह दंगे भड़काने की तथाकथित साजिश में शामिल थी।

खंडपीठ ने विरोध के अधिकार का इस्तेमाल करने के पहलू पर कहा कि सरकार ट्रैफिक की परेशानी और गड़बड़ी से बचने के लिए सड़कों या राजमार्गों पर सार्वजनिक सभाओं, प्रदर्शनों या विरोध प्रदर्शनों पर रोक लगा सकती है, लेकिन सरकार सार्वजनिक मीटिंग्स के लिए सभी सड़कों या खुली जगहों को बंद नहीं कर सकती है, यह संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) और 19(1)(बी) के तहत ‌दिए गए मौलिक अधिकारों के खिलाफ है।

खंडपीठ ने कहा कि हम जो जानते हैं वह यह है कि यदि कोई अपराध, जो कथित रूप से विरोध प्रदर्शनों के कारण किया गया है, प्राथमिकी संख्या 48/2020 और 50/2020 का विषय है, जिसमें अपीलकर्ता है अभियुक्तों में से एक है और जिसमें अपीलकर्ता की जमानत को स्वीकार किया गया है और वह उचित समय पर मुकदमे का सामना करेगा। किसी विशिष्ट आरोप के माध्यम से चार्जशीट में बिल्कुल कुछ भी नहीं है, जो धारा 15, यूएपीए के अर्थ में आतंकवादी कृत्य को दिखाता हो; या धारा 17 के तहत एक आतंकवादी कृत्य के लिए ‘धन जुटाने’ का कार्य किया हो; या धारा 18 के अर्थों में आतंकवादी कार्य करने के लिए ‘साजिश’ या करने के लिए एक ‘तैयारी का कार्य’ किया हो। तदनुसार, प्रथम दृष्टया हम चार्ज-शीट में उन मौलिक तथ्यात्मक अवयवों को समझने में असमर्थ हैं, जो धारा 15, 17 या 18 यूएपीए के तहत परिभाषित किसी भी अपराध को खोजने के लिए जरूरी हैं।

खंडपीठ ने कहा कि भड़काऊ भाषण, चक्का जाम करने, महिलाओं को विरोध के लिए उकसाने और इसी प्रकार के अन्य आरोप कम से कम इस बात के सबूत हैं कि अपीलकर्ता विरोध प्रदर्शनों को आयोजित करने में शामिल था, लेकिन हम नहीं समझ सकते हैं कि अपीलकर्ता ने हिंसा को उकसाया हो, आतंकवादी कृत्य या साजिश की क्या बात करें।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)   

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles