Saturday, September 23, 2023

ग्राउंड रिपोर्ट: दिल्ली में मलबे के बीच दबते कई सपने, कहीं रोजगार की चिंता तो कहीं अंधेरे में जा रही पढ़ाई लिखाई

मेहरौली, दिल्ली। दिल्ली के महरौली में जहाजरानी से दाहिनी ओर गली में आगे बढ़ते हुए आपको कई बिल्डिंग दिखाई देंगी। इसमें से ज्यादातर बिल्डिंग को डीडीए की तरफ से खाली करने का नोटिस दिया गया है। कुछ बिल्डिंग ऐसी भी है, जो हाल ही बनी हैं। आसपास के लोगों से बात करने पर पता चलता है कि इसमें कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने लोन लेकर फ्लैट लिए हैं।

इन्हीं बिल्डिंग से आगे बढ़ते हुए मलबे का पूरा ढेर दिखाई पड़ता है। जिसमें लोगों की सालों की कमाई दुःख के आंसुओं के साथ दब गई हैं। चारों तरफ फैला मलबा, ईंट, उसमें पड़ा समान, खाना, इस बात की ओर इशारा कर रहा कि आशियाना तो गया अब बैठने के लिए भी जगह नहीं है।

इसी जगह पर 10 फरवरी को पांच घर तोड़े गए थे। जिनका अब बस मलबा ही पड़ा है। जिसमें कहीं बर्तन और घर के अन्य समान भी पड़ा हुआ है। अब लोग इन ईंटों को इस उम्मीद के साथ उठा रहे हैं कि काश सरकार फिर से उन्हें घर बनाने को कह दें और वह अपना आशियाना खड़ा कर लें।

मलबे में तब्दील हुआ समान

रात में बाहर रहना महिलाओं के लिए मुश्किल

इसी घर में रहते हैं अमरीश पासवान और उनका परिवार। अमरीश के घर को 10 फरवरी को तोड़ा गया था। एक कुर्सी को बैठे अमरीश और बगल में जमीन पर बैठकर बच्चे को दूध पिलाती अमरीश की पत्नी निशा ने हमसे बात करते हुए बताया कि नौ फरवरी को शाम को उनको नोटिस दिया गया था। इससे पहले कोई भी नोटिस नहीं आया था। फिर 10 फरवरी को सुबह को बुलडोजर के साथ भारी पुलिस बल आया और कहा 10 मिनट में खाली कर दें।

“निशा गुस्से में कहती हैं हमें समय नहीं दिया गया। हमारा इतना महंगा समान भी खराब हो गया। स्थिति ऐसी थी कि पुलिस ने हमारे साथ बदसूलकी भी की। हमारी महिलाओं के साथ भी मारपीट की।“ क्या करें फिलहाल अपने पास कोई छत नहीं है। किसी तरह त्रिपाल लगाकर रह रहे हैं। जमीन में ही मिट्टी और मक्खियों के बीच खाना बना रहा हैं। बच्चों को भी ऐसे ही रखा है। क्या करें, मेरे खुद का चार महीने का बच्चा है। अभी चार दिन पहले ही बेटे को अस्पताल से लेकर आई हूं। अब इस घटना के बाद हमें रात में ओस में रहना पड़ा रहा है। जिसके कारण बच्चे बीमार हो सकते हैं।

निशा बताती है कि दिनभर ऐसे बाहर में बैठकर गुजार लेते हैं। रात में बाहर रहना बहुत मुश्किल है। इतने में ही अमरीश कहते हैं 14 लोगों का हमारा परिवार है। जिसमें मेरे पिता और चाचा का परिवार है। रात को बाहर रहने वाली बात पर वह कहते हैं कि हमलोग तो पुरुष हैं कहीं भी रह सकते हैं। लेकिन महिलाओं के लिए बहुत परेशानी है। निशा बताती हैं कि स्थिति ऐसी है कि बाथरुम नहीं होने के कारण शौच के लिए बाहर जाना पड़ता है। नहाने के लिए आसपास किसी के घर में जाते हैं।

अमरीश पासवान

बच्चा कुछ पढ़ नहीं पाया, आज उसकी परीक्षा है

वहीं अमरीश के चाचा रामशोभित पासवान ईंटों को उठाकर साफ कर रहे हैं। उनको अभी भी उम्मीद है कि सरकार उनको दोबारा आवास बनाने देगी। हमने उनसे पूछा कि इन ईंटों को क्यों साफ कर रहे हैं ये तो मलबे में तब्दील हो चुकी हैं। इस पर वह कहते हैं कि क्या करें इनको ही साफ करके रहने का कोई तो इंतजाम करें। कब तक ऐसे बाहर बैठे रहेंगे? आखिर एक छत तो चाहिए। कम से कम बाथरुम का तो कोई इंतजाम करेंगे। ताकि महिलाओं का ज्यादा परेशानी न हो।

रामशोभित के परिवार में उनकी पत्नी के अलावा दो बच्चे हैं। जो पढ़ते हैं। अमरीश महरौली में ही पूड़ी की रेहड़ी लगाते हैं। वह कहते हैं पांच दिन के बाद आज रेहड़ी लगाई हैं। क्या करें कब तक बैठे रहेंगे। घर चला गया है अगर कमाएंगे नहीं तो खाएंगे क्या? छोटे बच्चे हैं मेरे, उनकी पढ़ाई का भी खर्चा है। फिलहाल मेरा बड़ा बेटा नवीं में पढ़ता है। इतना अंधेरा है आज बेटा परीक्षा देने गया है पता नहीं क्या लिखेगा? क्योंकि पढ़ने के लिए लाइट भी नहीं है।

दो महीने के बाद बेटी की शादी

इसी जगह से थोड़ी आगे की तरफ गंदे नाले के पास खदीजा खातून का घर है। खदीजा एक खाट में अपनी बेटी के साथ बैठकर बातचीत कर रही थीं। खाट के बगल में ही एक टेबल पड़ा हुआ था। जिसमें गैस चूल्हा और बर्तन पड़े हुए थे। खदीजा खातून की उम्र 60 साल है। उनके परिवार में चार बेटियों के अलावा एक बेटा और उसका परिवार रहता है। वह हमें देखते हुए उस मलबे को दिखाती हैं और कहती है कि मिनटों में मेरे पूरे घर को स्वाहा कर गए। मेरे छह कमरों का घर था। अब उसकी जगह एक मलबा पड़ा है।

खदीजा खातून के घर का समान

क्या करुं मेरे पति कुछ सालों से बीमार रहते हैं वह कोई काम नहीं करते हैं। बेटा गुड़गांव में किसी कंपनी में काम करता हैं और मैं खुद यहां बच्चों को अरबी और फारसी पढ़ाने जाती थी। लेकिन कुछ दिनों से मेरा भी स्वास्थ्य खराब हो गया है। तो नहीं जा पाती हूं।

जब हमने उनसे पूछा कि आपको कोई नोटिस दी गई थी। वह कहती है कि हमें कोई नोटिस नहीं गई थी। पीछे वाले घरों को नोटिस दी गई थी। इसलिए हम लोग निश्चित थे कि हमारे घर को कुछ नहीं होगा। लेकिन एक दिन सुबह डीडीए वाले आए और बोले कि 10 मिनट में घर खाली कर दें। हम लोग पूरा समान भी भार नहीं निकाल पाएं और हमारी आंखों के सामने ही हमारे घर मिट्टी में मिल गए।

अपनी घर की तरफ इशारा करके खदीजा कहती हैं कि मेरा बहू और बेटा मलबे में से समान निकाल रहे हैं। वह कहती हैं इसमें मेरी बेटी की शादी में देने के लिए जो समान रखा था, वह भी खत्म हो गया है। अगले दो महीने में मेरी बेटी की शादी की तैयारी कर रहे थे। हमें क्या पता था कि हमारे पास छत ही नहीं रहेगी। अब पता नहीं क्या होगा।

बोर्ड की परीक्षा है, लेकिन किताबें भी मलबे में मिल गई

खदीजा से बातचीत करते हुए उनके आसपास के लोग भी वहां इकट्ठा हो जाते हैं। आसपास की महिलाएं भी अफसोस जता रही थी कि ऐसे नहीं होना चाहिए था। वहीं बगल में ही उनकी पोती अपनी दादी के बालों में तेल लगाते हुए मुझसे कहती हैं मैं 12वीं में पढ़ती हूं। कुछ दिनों में ही मेरी बोर्ड की परीक्षा है। समझ नहीं आ रहा क्या करुं। इस हडबड़ी में किताबें भी इधर-उधर रखी गई हैं। जो हैं उनसे मैं दिन में ही पढ़ पाती हूं। रात को पढ़ना तो अब मुश्किल है। रात को बस दादी के पास ही आग जलाकर यहां बाहर रहते हैं। मेरे भाई की 9वीं की परीक्षा चल रही है। वह फिलहाल किसी के घर में पढ़ने गया है।

घर का समान

आपको बता दें कि दिल्ली विकास प्राधिकरण का दावा है कि यहां के पुरातात्विक उद्यान क्षेत्र में 55 स्मारक है। जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण दिल्ली के पुरातत्व विभाग और डीडीए के संरक्षण में हैं। जिसमें पिछले एक दशक के दौरान डीडीए की भूमि पर लोगों ने न केवल गलत तरीके से कब्जा कर लिए बल्कि बड़ी-बड़ी बहुमंजिला इमारत भी बनाई है।

डीडीए द्वारा दिए गए इस तर्क पर स्थानीय लोगों कहना है कि अगर यह जमीन डीडीए की है तो लोगों के पास घर के कागज कहां से आ गए हैं? उनके पास बिजली का बिल भी है। अमरीश का भी यही कहना था कि उनका परिवार साल 1980 में दिल्ली आया था। उनका खुद का जन्म भी इसी घर में हुआ था। इतने सालों तक कोई इंसान बिना कागज के कैसे रह सकता है।

आपको बता दें दिल्ली में पिछले लंबे समय से चल रहे अतिक्रमण हटाओ अभियान को रोकने का 14 फरवरी को उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने आदेश दिया था। एलजी कार्यालय की तरफ जारी आदेश में यह कहा गया कि डीडीए को निर्देश दिया है कि महरौली और लाडो सराय में चल रहे डेमोलिशन ड्राइव को रोक दें।

(दिल्ली से सीनियर प्रोड्यूसर पूनम मसीह की रिपोर्ट।)

जनचौक से जुड़े

1 COMMENT

5 1 vote
Article Rating
Average
5 Based On 1
Subscribe
Notify of

guest
1 Comment
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
Syed Maqsood Ali
Syed Maqsood Ali
Guest
7 months ago

ये कौन सा विकास है जो जनता के आशियाने को उजाड़ कर किया जा रहा है।

Latest Updates

Latest

Related Articles

गौतम अडानी और प्रफुल्ल पटेल के बीच पुराना है व्यावसायिक रिश्ता

कॉर्पोरेट की दुनिया में गौतम अडानी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सबसे करीबी सहयोगी...