संजीव भट्ट का आवेदन खारिज करने के पीछे कोर्ट का अजीबोगरीब तर्क, कहा- कोर्ट के प्रति सम्मान का न होना प्रमुख वजह

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नई दिल्ली। 1990 के हिरासत मौत मामले में संजीव भट्ट की सजा को निलंबित करने वाले आवेदन को खारिज करने के पीछे गुजरात हाईकोर्ट ने अजीबोगरीब तर्क दिया है। कोर्ट ने कहा है कि मामला खारिज होने के पीछे प्रमुख वजह संजीव भट्ट के जेहन में कोर्ट और सच के लिए थोड़ा भी सम्मान का न होना है।

जस्टिस बेला त्रिवेदी ने 25 सितंबर को ही यह आदेश पारित कर दिया था लेकिन उसे सोमवार को कोर्ट की वेबसाइट पर डाला गया। इसके साथ ही आदेश में कहा गया है कि क्योंकि भट्ट को हत्या के मामले में आईपीसी की धारा-302 के तहत सजा दी गयी है इसलिए निर्दोष होने की प्राथमिक मान्यता आरोपी के पक्ष में नहीं जाती है। इसके अलावा जस्टिस त्रिवेदी ने सरकारी वकील मितेश अमीन की ओर से पेश दूसरे मामलों में गुजरात हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों का भी संज्ञान लिया।

आदेश में कहा गया है कि “….ऐसा लगता है कि आवेदनकर्ता के मन में कोर्ट के प्रति बेहद कम सम्मान है और कानून की प्रक्रिया के बेजा इस्तेमाल करने और कोर्ट को विवादित करने का वह आदी है। आवेदनकर्ता द्वारा दाखिल कुछ मामलों में सुप्रीम कोर्ट की कुछ टिप्पणियां श्री अमीन द्वारा पेश की गयी बातों की पुष्टि करती हैं। खास कर संजीव राजेंद्र भट्ट बनाम भारत सरकार के मामले में जिसमें कोर्ट ने कहा था कि ….याचिकाकर्ता ने कोर्ट को दिग्भ्रमित करने का जानबूझ कर प्रयास किया है…..यहां तक कि इस कोर्ट ने भी (कहा था कि)….आवेदक के मन में कोर्ट के प्रति रत्ती भर सम्मान नहीं था।”

सुनवायी के दौरान भट्ट के वकील बीबी नायक ने केस के ट्रायल के सिलसिले में उसे बेहद बुरा ट्रायल करार दिया। आदेश में कहा गया है कि “ सरकारी पक्ष द्वारा कुछ गवाहों की गवाही न कराए जाने और कुछ दूसरी कमियों के आधार पर ट्रायल गलत है या नहीं आदि बातों पर गौर अपील की फाइनल सुनवाई के समय होगी। इस मौके पर कोर्ट रिकार्ड में दर्ज प्रमाणों और सेशन कोर्ट की फाइडिंग को देखते हुए आवेदनकर्ता की सेक्शन 302 के तहत हुई सजा से पूरी तरह से संतुष्ट है। और इसके अलावा आवेदनकर्ता द्वारा कोई दूसरा अपवादस्वरूप मामला न पेश किए जाने के बाद मौजूदा आवेदन पर विचार करने का कोई कारण नजर नहीं आता है। इसलिए सजा को निलंबित किए जाने का आवेदन रद्द किया जाता है।”

आप को बता दें कि भट्ट और झाला के साथ पांच दूसरे लोगों को भी इस मामले में सजा मिली है। भट्ट और झाला को आजीवन कारावास की सजा हुई है। यह मामला 30 अक्तूबर 1990 का है।

भट्ट उस समय जामनगर के एडिशनल एसपी थे। भट्ट समेत दूसरे पुलिस अफसरों ने जमजोधपुर टाउन से 133 लोगों को गिरफ्तार किया था। यह गिरफ्तारियां उस समय की गयी थीं जब बीजेपी और वीएचपी ने बंद का आह्वान किया था औऱ इन लोगों ने उस दौरान जमकर दंगा फैलाने की कोशिश की थी। बंद रथयात्रा पर निकले लाल कृष्ण आडवानी की बिहार के समस्तीपुर में हुई गिरफ्तारी के विरोध में बुलाया गया था। गिरफ्तार लोगों में प्रभुदास और उसका छोटा भाई रमेश चंद्र भी शामिल थे। इनकी गिरफ्तारियां टाडा के तहत की गयी थीं। बाद में प्रभुदास की मौत हो गयी थी। और उसके पीछे हिरासत में उत्पीड़न को प्रमुख वजह बताया गया था।

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