Thursday, April 25, 2024

गरीबी, कुपोषण और पलायन का गढ़ गुमला जिला पोषाहार संचालन में सबसे आगे

झारखंड। गुमला जिले के लोग रोजगार के अभाव में दूसरे राज्यों में पलायन को मजबूर हैं और घरों में महीनों ताले लटके रहते हैं, वह जिला पोषण माह गतिविधियों के संचालन में पिछले तीन साल से पूरे झारखंड में अव्वल है।

वित्तीय वर्ष 2020-21 तथा 2021-22 की तरह ही वित्तीय वर्ष 2022-23 में भी पोषण माह गतिविधियों के संचालन में गुमला जिला को प्रथम स्थान मिला है। जबकि दूसरे स्थान पर देवघर, तीसरे पर दुमका, चौथे पर पलामू और पांचवे स्थान पर लातेहार जिला को रखा गया है।

यह वही गुमला जिला है जिसके मुख्यालय से मात्र 26 किमी दूर सिसई प्रखंड के लकेया गांव में रोजगार के अभाव में लोग रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों पलायन करते हैं।

यहां गरीबी का आलम यह है कि लोग पेट की आग बुझाने व बच्चों की अच्छी परवरिश के लिए गांव के 40 प्रतिशत लोग दूसरे राज्य पलायन कर गये हैं। आलम यह है कि कई घरों में तो महीनों से ताला लटका हुआ रहता है।

सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि लकेया गांव प्रखंड मुख्यालय से सटा हुआ है। बावजूद गांव में मूलभूत सुविधा व रोजगार का घोर अभाव है। गांव की आबादी लगभग 1300 के आसपास है। 90 प्रतिशत से अधिक की आबादी कृषि और मजदूरी पर निर्भर है।

गांव के 40 प्रतिशत से अधिक आबादी रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों में पलायन करती है। कुछ लोग घरों में ताला लगाकर तो कुछ लोग बूढ़े बुजुर्गों के भरोसे छोटे- छोटे बच्चों को छोड़कर अन्य राज्यों में रोजगार के लिए चले जाते हैं। जिसमें बिहार और प. बंगाल शामिल है।

ज्यादातर लोग इन राज्यों के ईंट-भट्ठों में काम करने जाते हैं, जिसमें महिलाओं की संख्या अधिक होती है। कभी-कभी ईंट भट्ठों में काम करने वाले लोग खासकर महिलाएं दुर्घटनाओं का शिकार होती हैं। कभी कभी इनकी मौत भी हो जाती है।

लेकिन इन हादसों के शिकार मजदूरों को ईंट भट्ठा मालिकों द्वारा किसी भी तरह का मुआवजा नहीं दिया जाता है। इतना ही नहीं ईंट भट्ठा मालिकों द्वारा आनन-फानन में स्थानीय प्रशासन की मिलीभगत से मृतकों की लाश जलाकर मौत के कारणों का सबूत भी मिटा दिया जाता है। हाल ही में 20 मार्च को इसी लकेया गांव की तीन महिला मजदूर की पटना के एक ईंट-भट्ठा में काम करते हुए मौत हो गयी।

इसकी जानकारी पटना से मृतका सुगंती देवी के पति मेघनाथ तुरी ने फोन पर दिया था। उसने बताया था कि 20 मार्च को साप्ताहिक छुट्टी होने के बाद भी मालिक द्वारा कार्य कराया जा रहा था। सुबह करीब आठ बजे भट्ठे की दीवार गिर गयी, जिसके नीचे आठ मजदूर दब गये। सभी को निकालकर अस्पताल पहुंचाया गया। जहां डॉक्टरों ने लकेया गांव के तीन महिला मजदूर एवं एक स्थानीय मजदूर को मृत घोषित कर दिया। मृतकों में शीला देवी (35), सुगंती देवी (35) व घुरनी देवी (45) है।

मेघनाथ तुरी ने बताया कि मालिक द्वारा पोस्टमार्टम कराकर आनन-फानन में हमारी मर्जी के खिलाफ सभी शवों का अंतिम संस्कार करा दिया गया। मुआवजा देने का आश्वासन तो दिया गया है, लेकिन उसकी गुंजाइश कम है। क्योंकि बाकी सभी मजदूरों को गांव वापस आने के लिए 21 मार्च को बस में बिठा दिया गया।

इधर मृतका सुगंती की बूढ़ी सास लक्ष्मी तुरी, ससुर गंदूर तुरी व 10 वर्षीय बेटा सूरज तुरी का रो-रोकर आज भी बुरा हाल है। ग्रामीण व रिश्तेदार उन्हें ढांढस बंधाने के सिवाय कुछ भी कर पाने में असमर्थ हैं।

गांव के गंदूर तुरी और कई लोगों ने बताया कि गांव में 40-42 तुरी परिवार है। इनका मुख्य पेशा बांस का समान बनाना व मजदूरी है। लकेया गांव के सभी परिवार पूर्व में बांस का सूप, दाउरा जैसे समान बनाकर व मजदूरी कर जीविका चलाते थे।

बांस के समानों की घटती मांग व गांव में काम नहीं मिलने के कारण मजबूरी में सभी सितंबर व अक्टूबर माह में पलायन कर जाते हैं और बरसात शुरू होते ही घर लौट आते हैं। ग्रामीणों ने कहा कि मनरेगा से कोई काम नहीं मिलता है। कभी-कभी एक दो सप्ताह के लिए काम भी मिलता है, तो मजदूरी राशि मिलने में परेशानी होती है।

लकेया बस्ती की गंदौरी देवी (55) ने बताया तुरी जाति का मुख्य पेशा बांस का सूप दाउरा बनाकर जीविका चलाना है। बाजार में बांस के समानों की मांग कम हो गयी है। शादी-विवाह या पर्व-त्याहार में कुछ मांग रहती है, लेकिन पूंजी के अभाव व मांगों की कमी के कारण लोग पुश्तैनी काम छोड़कर मजदूरी करने को मजबूर हैं। अधिकतर तुरी परिवार भूमिहीन हैं।

समाजसेवी सुशील उरांव व रूपु महली ने बताया कि वर्तमान में छिटपुट आवास को छोड़कर मनरेगा से कोई काम नहीं चल रहा है। मजदूरों को गांव में काम मिलने से पलायन कम हो सकता है।

जबकि सिसई प्रखंड कार्यालय की बीपीओ गीता कुमारी ने कहती हैं कि लकेया के आसपास मनरेगा से दीदी बाड़ी, बागवानी, शेड, टीसीबी जैसी 22 योजना चल रही है। प्रति दिन पंचायत से 52 से 53 मानव दिवस कार्य दिया जा रहा है।

इन तमाम हालातों के बीच गुमला जिला का पोषण माह गतिविधियों के संचालन में पिछले तीन साल से पूरे झारखंड में अव्वल होना एक दुखद मजाक से कम नहीं है।

बच्चों में कुपोषण की समस्या को दूर करने तथा गर्भवती महिलाओं को खानपान में पौष्टिक आहार का सेवन कर खुद को और जन्म लेने वाले बच्चों को कुपोषण से दूर रखने के लिए समाज कल्याण विभाग द्वारा हर साल सितंबर माह में अभियान चलाया जाता है और अभियान की गतिविधियों को भारत सरकार द्वारा कैलेंडर के माध्यम से जारी किया जाता है।

(विशद कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं और झारखंड में रहते हैं।)

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