कहीं टूटेंगे हाथ तो कहीं गिरेंगी फूल की कोपलें

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राजस्थान की सियासत को देखते हुए आज कांग्रेस आलाकमान यह कह सकता है- कांग्रेस में बीजेपी की न घुसपैठ हुई, न बीजेपी घुसी हुई है और न ही विधायकों पर बीजेपी का कब्जा हुआ है। गलवान में, क्षमा कीजिए गुरुग्राम में या समझ लीजिए राजस्थान में घुसपैठ की जो कोशिश हुई थी, उसे बहादुर कांग्रेसियों ने तत्क्षण जान की बाजी लगाकर विफल कर दिया है। दुश्मन यानी बीजेपी के सैनिकों को वहां तक खदेड़ दिया है, जहां उन्हें होना चाहिए। 

राजस्थान के इस रण में सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी गंवानी पड़ी है। वहीं भंवरलाल शर्मा और दूसरे नेताओं को राजस्थान की सियासत में घायल होना पड़ा है। आगे जो कोई भी इस लड़ाई में कांग्रेस के भीतर यह सवाल उठाएगा कि दुश्मन यानी बीजेपी आखिरकार घर में घुसी कैसे, तो वैसे लोगों को कांग्रेस आर्मी का दुश्मन करार दिया जाएगा। कांग्रेस में आलाकमान से बड़ा कोई नहीं है और कांग्रेस आर्मी का दुश्मन यानी आलाकमान का दुश्मन। 

बीजेपी हैरान है। वह अपनी भूमिका क्यों नहीं निभा सकी? उन्हें पता था कि ‘वे’ निहत्थे थे। तैयारी भी पूरी थी। खरीद-फरोख्त और लालच के दूसरे धारदार हथियारों को उन्होंने अलग-अलग कद-काठी वाले बीजेपी नेताओं को सौंप रखा था। खुफिया रिपोर्ट भी ठीक-ठाक थी। फिर ऐसा क्या हुआ कि ‘मिशन लोटस’ फेल हो गया। वक्त भी बर्बाद, संसाधन भी। अब जाने कब आएगा घुसपैठ का मौका। 

चीन ने, क्षमा कीजिए बीजेपी ने कर्नाटक में डोकलाम किया था। लम्बा गतिरोध चला था। डोकलाम में भूटान या कह लें जेडीएस का भी हित था और कांग्रेस का भी। दोनों मिलकर डोकलाम की रक्षा कर रहे थे। कर्नाटक में ‘ऑपरेशन लोटस’ कुछ ऐसा चला कि कांग्रेस समझती रही कि उसका गढ़ सुरक्षित है। मगर, जब तूफान अपना काम कर गया तो पता चला कि बहुमत का पहाड़ डोकलाम का पठार बन चुका है। वहां बीजेपी कब्जा जमा चुकी है। कांग्रेस अब इसके लिए जेडीएस को कोस रही है और जेडीएस वास्तव में कांग्रेस को कोस भी नहीं पा रही है।

बीजेपी ने कर्नाटक के बाद नया मोर्चा मध्यप्रदेश में खोल दिया मानो चीन को पाकिस्तान जैसा साथी मिल गया हो कश्मीर में पाकिस्तान को भड़काने का और कांग्रेस को तंग करने का। ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ रणनीति बनी। तिथि वही, जिस दिन होली थी। राजनीतिक खून की होली खेलना तय हुआ। कोरोना का सीज़ फायर मानने को बीजेपी तैयार नहीं थी।

अचानक हुई फायरिंग में एक के बाद एक कई कांग्रेसी विधायक घायल हो गये। सभी समूह में इकट्ठा हुए और फिर नक्शा जारी कर दिया गया कि न सिर्फ समूचा कश्मीर उसका है बल्कि जूनागढ़ भी उसी का है। जूनागढ़ मतलब संकेत राजस्थान की ओर ही था। कांग्रेस ने तत्काल इस दावे को झूठा कहकर खारिज कर दिया। कांग्रेस का दावा है कि उपचुनाव में जीतकर वे इस झूठे दावे पर जनता की मुहर लगवा देंगे। जीत उसकी ही होगी।

भारतीय सियासत में भारत-चीन-पाकिस्तान का संग्राम जारी है। सबके अपने-अपने दावे हैं। हर कोई पीड़ित है। हर कोई आरोपी है। जो जिसके साथ है उसे ही सही ठहरा रहा है। दूसरे को गलत बता रहा है। वफाएं लड़ रही हैं वफाओं से। सवाल यह है कि इस जंग से बेहतरी किसकी होगी? यथास्थितिवाद लंबा खिंचेगा। जो ताकतवर हैं वे अपनी-अपनी मुट्ठियां ताने रहेंगे, जो कमजोर हैं वो तनी हुई मुट्ठियों से ही खुद को मजबूत बताएंगे। इस लड़ाई में कहीं टूटेंगे हाथ तो कहीं गिरेंगी फूल की कोपलें टूटकर।

(प्रेम कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल आप को विभिन्न न्यूज़ चैनलों के पैनल में बहस करते देखा जा सकता है।)

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