क्या नेता प्रतिपक्ष बनते ही राहुल गांधी का रातोंरात कायाकल्प हो चुका है?

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यह वह केंद्रीय मुद्दा है जिसको लेकर देश में तमाम राजनीतिक पंडित माथापच्ची करने में लगे हुए हैं। अधिकांश का मानना है की पीएम इन वेटिंग पद पर आसीन राहुल गांधी के व्यक्तित्व में बहुत बड़ा अंतर आ चुका है। 1 जुलाई से लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष पद पर आसीन होने के बाद से राहुल गांधी ने वस्तुतः देश की हर प्रमुख घटनाओं के लिए जैसे अपनी स्वंय की जिम्मेदारी तय कर ली है। ऐसा जान पड़ता है कि वे वस्तुतः स्वंय को देश के प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी के बोझ तले पा रहे हैं, जबकि जो असल में पीएम हैं, उनके पास लगभग सभी ज्वलंत मुद्दों पर बोलने के लिए कुछ बचा ही नहीं है। इस विरोधाभाषी भूमिका को देख, देश का मीडिया, राजनीतिक पंडित सहित समूचा देश अपने-अपने हिसाब से 2024 आम चुनाव के बाद की स्थिति का आकलन कर रहा है।

राहुल गांधी के आज के दौरे को ही ले लें। आज उनके कार्यक्रम में पूर्वोत्तर के दो राज्य हैं, जिनमें असम और मणिपुर शामिल हैं। असम में पिछले कुछ दिनों से भयानक बाढ़ आई हुई है, जिसमें 66 लोग अभी तक मारे जा चुके हैं और 23 लाख से अधिक लोगों को अपने घरों और मवेशियों को छोड़ विस्थापित होना पड़ा है। लेकिन राष्ट्रीय टेलीविजन मीडिया और समाचार पत्रों में कहीं भी असम की विभीषिका को प्रमुखता से लेने की जरूरत ही नहीं समझी गई। आज राहुल के दौरे के बाद संभवतः देश और आम लोगों का ध्यान जाये। असम वह प्रदेश है, जहां डबल इंजन की सरकार लगातार दूसरा कार्यकाल चला रही है। जो सरकार में बैठे हैं, वे सोशल मीडिया पर पोस्ट डालकर असम की जनता के साथ खुद को जुड़ा हुआ बताकर अपने कर्तव्य की इतिश्री करते देखे जा सकते हैं।

राहुल गांधी ने आज असम के कछार क्षेत्र का दौरा कर बाढ़ पीड़ितों की खैर-खबर ली और अपने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा है, “असम में बाढ़ से हुई भारी तबाही दिल दहला देने वाली है – 8 वर्षीय अविनाश जैसे मासूम बच्चों को हमसे छीन लिया गया। राज्य भर के सभी शोक संतप्त परिवारों के प्रति मेरी हार्दिक संवेदनाएं। असम कांग्रेस के नेताओं ने मुझे जमीनी हालात से अवगत कराया।

अब तक 60+ मौतें

53,000+ विस्थापित

24,00,000 प्रभावित

ये संख्या भाजपा की डबल इंजन सरकार की घोर और गंभीर कुप्रबंधन को दर्शाती हैं, जो “बाढ़ मुक्त असम” के वादे के साथ सत्ता में आई थी। असम को एक व्यापक और सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण की आवश्यकता है – जल्द से जल्द उचित राहत, पुनर्वास और मुआवज़ा, और एक अखिल पूर्वोत्तर जल प्रबंधन प्राधिकरण जो दीर्घावधि में बाढ़ को नियंत्रित करने के लिए जरुरी सभी काम कर सके। मैं असम के लोगों के साथ खड़ा हूं, मैं संसद में उनका सिपाही हूं और मैं केंद्र सरकार से आग्रह करता हूं कि वह राज्य को हर संभव सहायता और समर्थन शीघ्र उपलब्ध कराए।”

आज ही राहुल मणिपुर के हिंसा प्रभावित कुकी और मैतेई समुदाय से मुलाकात करने चले गये। याद रहे, पिछले एक वर्ष से भी अधिक समय से जातीय हिंसा की आग में झुलस रहे मणिपुर का यह राहुल का तीसरा दौरा है। आज के समाचार पत्रों में भी इस दौरे की चर्चा थी। एक अंग्रेजी दैनिक ने तो इसके लिए राहुल गांधी को 3 और नरेंद्र मोदी के आगे जीरो स्कोर वाले शीर्षक के साथ रिपोर्ट लिखी है। पिछली बार की तरह इस बार भी राहुल मैतेई और कुकी बहुल इलाके में हिंसा से पीड़ित लोगों, विशेषकर महिलाओं से मिल रहे हैं। याद कीजिये, अभी पिछले सप्ताह ही राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर लगभग ढाई घंटे तक बोलते हुए प्रधान मंत्री ने मणिपुर का नाम तक नहीं लिया था, जबकि समूचा विपक्ष उनके पूरे भाषण के दौरान “मणिपुर को न्याय दो” के नारे लगाता रहा।

पूर्वोत्तर के राज्यों में किसी भी राष्ट्रीय नेता का यह आम चुनाव के बाद पहला दौरा है। असम के दौरे के बाद राहुल हिंसा प्रभावित क्षेत्र जिरिबाम और चुराचांदपुर के दौरे पर हैं। राहुल गांधी ने भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दूसरे चरण की शुरुआत जनवरी 2024 में थौबल से की थी। जिरिबाम वह जगह है, जहां कुछ दिनों पहले भी दोनों समुदाय के बीच तनाव की सूचना थी। क्या राहुल गांधी के इस दौरे से पूर्वोत्तर के अनुत्तरित प्रश्नों का कोई हल मिलेगा? शायद नहीं, लेकिन इतना तय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आज से शुरू होने वाली रूस की यात्रा या किसी भी विदेश यात्रा और देश की बदहाल हालत पर आम लोगों का नजरिया पहले की तुलना में काफी-कुछ बदला सा देखने को मिल सकता है।

राहुल गांधी के इस दौरे को पूर्व की तुलना में राष्ट्रीय मीडिया के द्वारा भी कवर किया जाना एक सुखद आश्चर्य है। स्थानीय प्रशासन भी पूर्व की तुलना में विरोध की बजाय व्यवस्था में लगा दिखा। यह भी कहा जा रहा है की राहुल गांधी पीड़ितों से मुलाक़ात के बाद राज्य की राज्यपाल से भी मुलाक़ात करेंगे और 6 बजे के बाद वे मीडिया से मुखातिब होंगे। इस दौरे के बाद निश्चित रूप से केंद्र सरकार पर अनुत्तरित प्रश्नों को संबोधित करने का दबाव होगा।

प्रियंका गांधी ने भी इस यात्रा के बारे में अपने सोशल मीडिया पोस्ट पर लिखा है,“नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी जी ने आज मणिपुर में हिंसा पीड़ितों से मुलाकात कर उन्हें सांत्वना और हिम्मत दी। मणिपुर एक साल से ज्यादा समय से हिंसा से पीड़ित है। सैकड़ों लोगों ने जान गंवाई। हजारों लोग राहत शिविरों में रह रहे हैं। लेकिन केंद्र की भाजपा सरकार ने शांति बहाली के लिए न तो कोई सकारात्मक पहल की, न ही प्रधानमंत्री ने मणिपुर का दौरा किया। मणिपुर में उग्र आंदोलन के बाद से यह राहुल गांधी जी का तीसरा दौरा है। उन्होंने शांति और प्रेम के संदेश के साथ प्रदेश की जनता को भरोसा दिलाया है कि हम हर हाल में आपके साथ हैं।”

लेकिन यह तो राहुल गांधी के आज के पूर्वोत्तर की बात हुई, लेकिन यह काम तो उन्होंने पिछले एक सप्ताह से धुआंधार तरीके से शुरू कर दिया है। राहुल गांधी ने जिस प्रकार से अपने नेतृत्व का इज़हार देश के समक्ष पेश किया है, उसको लेकर अब लगभग सभी हलकों में चर्चा शुरू हो गई है। क्या राहुल गांधी का व्यक्तित्व शुरू से ऐसा ही था, या नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी पाने के बाद राहुल का यह विराट रूप उभरकर आ रहा है?

यह काफी हद तक सही भी है। 4 जून को चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद से कुछ तो ऐसा घटित हुआ है, जिसे सरकार और गोदी मीडिया नजरें नहीं मिला पा रही है, जबकि विपक्ष का उत्साह एक माह बाद भी बल्लियों उछालें मार रहा है। वो चाहे नीट परीक्षा में व्यापक स्तर पर धांधली का मामला हो या हाथरस में एक स्वयंभू बाबा के चरणों की धूल माथे से लगाने की होड़ में मारे गये सैकड़ों निर्दोष गरीबों की दास्तां हो, राहुल गांधी ने आगे बढ़कर इसके शिकार लोगों की मुखर आवाज बनने में संकोच नहीं किया।

नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में आने से पहले ही 28 जून को राहुल ने नरेंद्र मोदी की सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा, “भारत का विपक्षी दल NEET परीक्षा और मौजूदा पेपर लीक मुद्दे पर सरकार के साथ रचनात्मक बहस करना चाहता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमें आज संसद में ऐसा करने की अनुमति नहीं दी गई। यह एक गंभीर चिंता का विषय है जो पूरे भारत में लाखों परिवारों को परेशान कर रहा है। हम प्रधानमंत्री से इस मुद्दे पर बहस करने और छात्रों को वह सम्मान देने का आग्रह करते हैं जिसके वे हकदार हैं।”

1 जुलाई को ही राहुल गांधी नेता प्रतिपक्ष के संवैधानिक पद पर आसीन हुए और उसी दिन संसद में अपने भाषण से उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि वे किसी भी सूरत में भाजपा/आरएसएस के साथ विचारधारात्मक लड़ाई को कमजोर नहीं होने देंगे। राहुल ने अपनी पोस्ट में लिखा, “नरेंद्र मोदी 10 साल से ‘भय का राज’ चला रहे हैं! सभी मुद्दों और मीडिया पर कब्ज़ा करके समाज के हर वर्ग में भाजपा ने सिर्फ डर फैलाने का काम किया है।

  • किसानों को काले कानून का डर
  • छात्रों को पेपर लीक का डर
  • युवाओं को बेरोज़गारी का डर
  • छोटे व्यापारियों को गलत जीएसटी, नोटबंदी और छापों का डर
  • देशभक्तों को अग्निवीर जैसी योजनाओं का डर
  • मणिपुर के लोगों को गृहयुद्ध का डर

इसीलिए देश की जनता ने ‘डर के पैकेज’ के खिलाफ जनादेश देकर भाजपा से बहुमत छीन लिया है। डरना-डराना, भय फैलाना भारत की आत्मा के खिलाफ है। हमारे सभी धर्म भी यही सिखाते हैं – डरो मत, डराओ मत। मेरी जिम्मेदारी है कि मैं अपनी निजी आकांक्षाओं और विचारों से पहले भारत की संयुक्त आवाज़ को सदन की विशेषताओं के साथ रखूं। और सरकार से हमारी यही उम्मीद है कि वह विपक्ष को दुश्मन नहीं, अपना सहयोगी मान कर देश हित में सबके साथ काम करे। जय हिन्द।”

इसी तरह 2 जुलाई को राहुल ने एक बार फिर नीट के मुद्दे पर पीएम नरेंद्र मोदी को देश की जनता के सामने कठघरे में खड़ा किया। राहुल ने लिखा, “प्रिय प्रधानमंत्री जी, मैं कल संसद में NEET पर बहस के लिए अनुरोध करने के लिए लिख रहा हूं। हमारा उद्देश्य 24 लाख NEET उम्मीदवारों के हित में रचनात्मक रूप से जुड़ना है, जो जवाब के हकदार हैं। मेरा मानना ​​है कि यह उचित होगा कि आप इस बहस का नेतृत्व करें।”

3 जुलाई को राहुल ने एक दिन पहले गुजरात प्रदेश कांग्रेस के मुख्यालय पर बजरंग दल और भाजपा के कार्यकर्ताओं के हिंसक प्रदर्शन और पथराव के मुद्दे पर संज्ञान लेते हुए इसे एक कायरतापूर्ण और हिंसक हमला बताया। राहुल गांधी ने साफ़ कहा कि, “यह कायरतापूर्ण घटना भाजपा और संघ परिवार के बारे में मेरी बात को और पुख्ता करती है। हिंसा और नफ़रत फैलाने वाले भाजपा के लोग हिंदू धर्म के मूल सिद्धांतों को नहीं समझते। गुजरात की जनता उनके झूठ के पार देख सकती है और भाजपा सरकार को ठोस सबक सिखाएगी। मैं फिर से कह रहा हूं-भारत गुजरात में जीतने वाला है!”

लेकिन इस बार राहुल गांधी सिर्फ जुबानी जमाखर्च तक नहीं रुके। उन्होंने 6 जुलाई को गुजरात जाकर प्रदेश कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का हौसलाअफजाई करते हुए ऐलान किया कि इस बार कांग्रेस गुजरात के चुनाव में पूरी ताकत और निडरता के साथ लड़ेगी और जीतेगी। अपने हर एक कार्यकर्ता को बब्बर शेर की उपाधि से नवाजकर राहुल गांधी ने अपनी पार्टी के प्रतीक, हाथ को अभय मुद्रा से जोड़कर संदेश दिया – डरो मत, डराओ मत। अयोध्या में भाजपा की हार का उदाहरण पेश करते हुए राहुल ने कहा, “भाजपा और संघ परिवार के नेता नफ़रत और हिंसा फैलाने की कोशिश करते हैं, लेकिन भारत ने उन्हें अयोध्या में हराया, वैसे ही हम उन्हें गुजरात में पराजित करने जा रहे हैं।”

गुजरात में मोदी-शाह के गढ़ में घुसकर भाजपा को परास्त करने की चुनौती देना बताता है कि राहुल गांधी कैसे अपने आत्मबल और निर्भीकता को पिछले 3 दशक से मुर्दा पड़े गुजरात कांग्रेस को पुनर्जीवित करने के लिए कृतसंकल्पित हैं। निश्चित तौर पर भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने इस चुनौती का गंभीरता से संज्ञान लिया होगा, क्योंकि पिछले कुछ दशकों से कम से कम गुजरात में उसे ऐसी चुनौती नहीं मिली थी।

संसद में अग्निवीर के मुद्दे पर राहुल गांधी के भाषण के बीच ही रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने टोककर सदन को बताया था कि राहुल गांधी असत्य बोलकर सदन और देश को गुमराह कर रहे हैं। 3 जुलाई को इसके जवाब में राहुल ने शहीद अग्निवीर अजय सिंह का हवाला देते हुए लिखा, “सत्य की रक्षा हर धर्म का आधार है! लेकिन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शहीद अग्निवीर के परिवार को सहायता मिलने के बारे में संसद में झूठ बोला। उनके झूठ पर शहीद अग्निवीर अजय सिंह के पिता जी ने खुद की सच्चाई बताई है। रक्षा मंत्री को संसद, देश, सेना और शहीद अग्निवीर अजय सिंह जी के परिवार से माफी मांगनी चाहिए।” राहुल इसके बाद भी नहीं रुके।

5 जुलाई को इस मुद्दे को एक बार फिर से उठाते हुए उनका बयान था, “शहीद अग्निवीर अजय कुमार जी के परिवार को आज तक सरकार की ओर से कोई मुआवजा नहीं मिला है। ‘मुआवजा’ और ‘बीमा’ में अंतर होता है, शहीद के परिवार को सिर्फ बीमा कंपनी की ओर से भुगतान किया गया है। सरकार की ओर से जो सहायता शहीद अजय कुमार के परिवार को मिलनी चाहिए थी वो नहीं मिली है। देश के लिए जान देने वाले हर शहीद के परिवार का आदर किया जाना चाहिए, लेकिन मोदी सरकार उनके साथ भेदभाव कर रही है। सरकार कुछ भी कहे, यह राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला है और मैं इसे खोलता रहूंगा। इंडिया गठबंधन सेना को कभी कामज़ोर नहीं होने देगा।” जाहिर है, इस मुद्दे पर अब सेना के रिटायर्ड अधिकारियों ने भी अपना मुंह खोलना शुरू कर दिया है, जो सरकार के लिए भारी शर्मिंदगी की वजह बनने जा रहा है।

इतना ही नहीं, खबर तो यहां तक है कि देश के सबसे धनी पूंजीपति मुकेश अंबानी जब अपने बेटे की शादी का निमंत्रण देने सोनिया गांधी के निवास स्थान पर पहुंचे तो उन्हें उम्मीद थी कि प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी से भी गुफ्तगू करने का मौका मिल जायेगा, क्योंकि राहुल गांधी का आवास छिन जाने के बाद से वे अपनी मां के साथ ही रह रहे हैं। लेकिन मौके की नजाकत को समझते हुए राहुल गांधी 6 जुलाई को दिल्ली के रेहड़ी-पटरी और दिहाड़ी मजदूरों से मुलाक़ात करने निकल पड़े। देश ही नहीं दुनिया के सबसे अमीरजादों में से एक व्यक्ति से मिलने के बजाय राहुल गांधी ने खुद को गरीबों के बीच दिखना पसंद किया, यह अपने आप में एक लंबी व्याख्या की मांग करता है।

राहुल ने लिखा, “नरेंद्र मोदी की सरकार में ‘भारत बनाने वालों’ को भयंकर कष्ट सहना पड़ रहा है। मजदूर एक दिन की कमाई से चार-चार दिन अपने घर को चलाने को मजबूर हैं। बचत के नाम पर एक पाई नहीं और ब्याज भरने की चिंता में वह पेट काट कर अपना जीवन गुजार रहे हैं। जीटीबी नगर में रेहड़ी-पटरी वालों और दिहाड़ी मजदूरों से मिलकर उनके जीवन संघर्ष को क़रीब से जानने का मौका मिला। जो ‘भविष्य का भारत’ बना रहे हैं, उनके अपने परिवार का भविष्य खतरे में है। भारत के मेहनतकश मजदूरों को उनका पूरा हक, सुरक्षा और सम्मान दिलाना – यह संकल्प है।”

इसी तरह 7 जुलाई को लोको पायलट के मुद्दे को देश के सामने लाने का काम भी राहुल गांधी को करना पड़ा, जो असल में देश की मीडिया के जिम्मे है। उनके साथ अनुभवों को एक विडियो में साझा करते हुए राहुल लिखते हैं, “नरेंद्र मोदी की सरकार में लोको पायलटों के जीवन की रेल पूरी तरह पटरी से उतर चुकी है। गर्मी से खौलते केबिन में बैठ कर लोको पायलट 16-16 घंटे काम करने को मजबूर हैं। लगभग करोड़ों जिंदगियां चलती हैं, उनकी अपनी जिंदगी का कोई भरोसा नहीं रह गया है।

यूरिनल जैसी बुनियादी सुविधाओं से भी मरहूम लोको पायलटों के न काम के घंटों की कोई सीमा होती है और न ही उन्हें कोई हॉलिडे मिलता है। जिसके कारण वे शारीरिक और मानसिक रूप से टूट कर बीमार हो रहे हैं। ऐसे हालात में लोको पायलटों से गाड़ी चलाना उनकी और यात्रियों की जान को जोखिम में डालना है। भारत के लोको पायलटों के अधिकारों और कामकाजी स्थितियों को बेहतर किए जाने के लिए संसद तक आवाज उठाऊंगा। इस छोटी सी चर्चा को देखकर आप भी उनकी पीड़ा को महसूस कर सकते हैं।”

अपने पिछले कार्यकाल की अंतिम बेला में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में ‘एक अकेला सबपे भारी’ और ‘अबकी बार 400 पार’ का जो नारा बुलंद किया था, अब उसका हिसाब-किताब करने की बारी है। राहुल गांधी भले ही पीएम इन वेटिंग हों, लेकिन जिस तरीके से उन्होंने पिछले एक सप्ताह के भीतर मन-कर्म और वचन से आम अवाम के साथ खुद को जोड़ा है, वह अपने आप में अभूतपूर्व है।

कुछ लोग तो अभी से कहना शुरू कर चुके हैं कि राहुल गांधी अपने एक्शन से देश और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को बार-बार दिखा रहे हैं कि वास्तव में देश के प्रधानमंत्री को किस प्रकार से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना चाहिए। राहुल गांधी ने यह सबक बड़ी मेहनत से सीखा है, जिसकी कुंजी उन्हें घोर हताशा और निराशा के क्षणों में भारत जोड़ो यात्रा के दौरान उसी तरह से हुई, जैसे आज से 100 वर्ष पहले रेल के तीसरे दर्जे में भारत दर्शन के लिए सफर पर निकले मोहनदास करमचन्द गांधी को हुई थी, जो इस भारत दर्शन के बाद ही करोड़ों-करोड़ भारत वासियों के लिए ही नहीं वरन विश्व भर में ‘महात्मा’ और भारत के लोगों के ‘राष्ट्रपिता’ कहलाये।

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं)

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