दिल्ली से करीब 385 किमी की दूरी पर स्थित पुरोला गांव है, जो उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में पड़ता है। यमुनोत्री के रास्ते से थोड़ा हटकर बसा यह गांव ही था, जो गांवों से लगातार पलायन के चलते अब एक कस्बे में तब्दील हो गया है। इस कस्बे की आबादी 4,000 के आसपास बताई जाती है, जो 2011 तक करीब 2,500 थी। पुरोला में करीब 40 मुस्लिम परिवार भी रहते हैं। इनमें से कुछ लोग कपड़े की दुकान चलाते हैं, और पिछले 50 वर्षों से रह रहे हैं।
जनचौक ने 10 जून को वरिष्ठ पत्रकार त्रिलोचन भट्ट के हवाले से पुरोला में हुई सांप्रदायिक तनाव की घटना पर मौके पर जाकर अपनी रिपोर्ट में विस्तार से जानकारी दी है। यहां पर हम उन स्थितियों की पड़ताल की कोशिश करेंगे, जिनके चलते आज ये हालात बने हैं कि अल्पसंख्यक समुदाय के परिवारों को पुरोला से पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
जिस तथ्य को समूचा मीडिया लगातार छुपा रहा है, वह यह है कि 14 वर्षीय हिंदू लड़की का किसी मुस्लिम लड़के से नहीं बल्कि एक हिंदू लड़के से प्रेम संबंध था। यह घटना 26 मई की है, जिसमें आरोप है कि एक 14 वर्षीय हिंदू लड़की को 2 मुस्लिम युवा अपहरण का प्रयास कर रहे थे, लेकिन स्थानीय लोगों को शक हुआ और लड़की को बचाया जा सका।
लेकिन एक लड़का इसमें सैनी हिंदू है। पत्रकार त्रिलोचन भट्ट के अनुसार, “उबैद खान और जितेन्द्र सैनी दोनों मूल रूप से बिजनौर के हैं, और दोनों की दुकानें आमने-सामने है। दोनों दोस्त थे, और सैनी के प्रेम संबंध उस लड़की से थे। जैसा कि दोस्तों में होता है उबैद भी अपने दोस्त के प्रेम-संबंधों में उसके साथ था। जो खबर उड़ाई जा रही है कि इन्हें पुरोला से बाहर बडकोट में पकड़ा गया, सही नहीं है। ये लोग पुरोला में ही एक साथ टहल रहे थे, और यह स्टोरी गढ़ी गई।”
आज भी दोनों लड़के पोस्को एक्ट के तहत हिरासत में हैं। लेकिन मामला समूचे उत्तराखंड में गर्मा गया है। अल-ज़जीरा तक ने इस पर आज अपनी स्टोरी प्रकाशित की है। लव जेहाद का एंगल निकालकर पूरे मामले को उत्तराखंड देवभूमि के लिए सबसे बड़ा खतरा बताकर मुसलामानों के खिलाफ जुलूस, प्रदर्शन, 15 जून तक पलायन करने की चेतावनी और उत्तराखंड से एक-एक जिहादी को बाहर करने के लिए हिन्दुत्ववादी संगठनों एवं स्वनामधन्य धर्माचार्यों की हुंकार गूंज रही है।
इसका असर भी हुआ है। दर्जनों मुस्लिम परिवार पुरोला से पलायन कर चुके हैं। कुछ परिवार अभी भी हैं, लेकिन 15 दिनों से भी अधिक समय से उनकी दुकानें बंद हैं। 30 मई के नवभारत टाइम्स अखबार की हेडलाइंस है, “उत्तरकाशी: लव जिहाद के खिलाफ सड़कों पर आक्रोश, पुरोला में 42 मुस्लिम व्यापारी रातोंरात दुकान छोड़कर भागे।” इस खबर में आगे बताया गया है कि किस प्रकार से पूरे इलाके की जनता इस मामले पर बेहद आक्रोशित है, और गांव-गांव से ढोल नगाड़ों के साथ लोग अपने घरों से निकलकर पुरोला में प्रदर्शन के लिए निकले।
हालांकि इस रिपोर्ट में भी नभाटा के पत्रकार रश्मि खत्री/राघवेन्द्र शुक्ल ने हिंदू आरोपी जितेंद्र सैनी का जिक्र किया है, लेकिन बताया गया है कि दोनों युवा लड़की को विकासनगर भगाकर ले जाना चाहते थे। कुल मिलाकर पूरी खबर में यही साबित करने का प्रयास किया गया है कि लोग मुसलामानों से बेहद आक्रोशित हैं, उनकी दुकानों के बोर्ड उखाड़ रहे हैं और उन्हें पुरोला खाली करने की चेतावनी दे रहे हैं। ऐसी ही रिपोर्ट कमोबेश सभी हिंदी अखबारों की होनी चाहिए, क्योंकि आज हिंदी अखबार निकालने के लिए सरकारी विज्ञापनों की कृपादृष्टि पहली शर्त है, फिर दूसरे नम्बर पर बहुसंख्यक आबादी के मनमुताबिक खबर ही उसकी थोड़ी-बहुत बिक्री की गारंटी करा सकती है।

27 मई के बाद 29 मई को भी पुरोला में हिंदू समूहों के द्वारा प्रदर्शन किया गया, जिसमें मुस्लिमों को इलाका खाली करने के लिए चेताया गया। दर्जनों परिवार तब तक पुरोला खाली कर जा चुके थे। मुस्लिम दुकानदारों में जो बचे रह गये, वे लंबे समय से यहां रहकर अपना व्यवसाय कर रहे हैं। ऐसा भी कहा जा रहा है कि आसपास के गांवों के लोग बेहतर व्यवहार और किफायती दामों के कारण उनकी दुकानों से खरीदारी करने को वरीयता देते थे। ऐसे में मुस्लिम व्यवसाइयों को पुरोला से बाहर का रास्ता दिखाने की चेतावनी के पीछे कुछ हिंदू दुकानदारों के हाथ होने से इंकार नहीं किया जा सकता।
इस सिलसिले में मुस्लिम व्यवसाइयों ने पुलिस प्रशासन से भी संपर्क साधकर अपनी सुरक्षा की मांग की, लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगी। पुरोला व्यापार संघ के अध्यक्ष बृज मोहन चौहान ने अपने बयान में कहा है कि उन्होंने मुस्लिम व्यापारियों से अपनी दुकानें खोलने की अपील की है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि अभी नहीं तो एक सप्ताह के बाद हालात सुधर जायेंगे, फिर वे दुकानें खोल सकते हैं। हमारी ओर से दुकानें बंद रखने के लिए जबरदस्ती नहीं की गई है।
लेकिन साथ ही विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के द्वारा अब खुलकर सामने आने के बाद हालात और भी गंभीर हो गये हैं। मुस्लिम दुकानें बंद पड़ी हैं, जिनके ऊपर 15 जून से पहले पुरोला खाली करने की चेतावनी के साथ पोस्टर लगाये गये हैं। कस्बे में महापंचायत आयोजित करने की खबर ने सांप्रदायिक तनाव को कई गुना बढ़ा दिया है। दूसरी तरफ मुस्लिम समुदाय की ओर से देहरादून में अपनी महापंचायत करने की खबर आ रही है।
आजतक की खबर के अनुसार पोस्टरों में लिखा था, ‘लव जिहादियों को सूचित किया जाता है, 15 जून 2023 को होने वाली महापंचायत से पहले अपनी दुकानें खाली कर दें, यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो वह वक्त पर निर्भर करेगा…”- देवभूमि रक्षा अभियान नामक अभियान के तहत ये पोस्टर मुस्लिम दुकानों पर चस्पा किये गये हैं।
मामला पुरोला तक ही सीमित रहता तो भी गनीमत थी। इसकी आग अब उत्तराखंड के अन्य क्षेत्रों में भी फैलने लगी है। उत्तरकाशी सहित बड़कोट, चिन्यालीसौड और भटवारी में भी इसकी आग फ़ैल चुकी है, और यहां पर भी हिन्दुत्ववादी संगठनों के नेतृत्व में प्रदर्शन और जुलूस निकाले गये हैं।
उत्तराखंड में इस्लामोफोबिया के पीछे की वजह क्या है?
उत्तर प्रदेश से अलग कर 23 वर्ष पहले उत्तराखंड राज्य बनाया गया। इससे पहले उत्तराखंड क्षेत्र को पहाड़ी क्षेत्र के तौर पर जाना जाता था। लेकिन विभाजन के समय देहरादून, हरिद्वार, उधमसिंह नगर के साथ यूपी का मैदानी भाग भी इसमें शामिल हो गया। पहाड़ी क्षेत्रों में बेहद कम संख्या में मुस्लिम आबादी कि बसाहट थी। गढ़वाल क्षेत्र में 250 वर्ष पहले मुगल परिवार से एक परिवार शरणागत टिहरी रियासत में पहुंचा था, जिसके साथ तीमारदारी के लिए अन्य मुस्लिम परिवार भी आये। बाद में मुगल परिवार के सदस्यों को तो जाना पड़ा लेकिन उसके साथ आये परिवारों को उत्तराखंड भा गया और वे यही के होकर रह गये।
इसी तरह कुछ लोग अल्मोड़ा और नैनीताल भी आये होंगे। लेकिन मैदानी इलाकों में यह तादाद अच्छी-खासी है, जिसके चलते उत्तराखंड की राजनीति में मुस्लिम समुदाय के रूप में सांप्रदायिक छौंक कामयाब रहती है, जो कि हिमाचल प्रदेश के मामले में भाजपा-आरएसएस के काम नहीं आती। यही कारण है कि हिमाचल में इस बार जहां भाजपा को विधानसभा चुनावों में मुंह की खानी पड़ी, लेकिन उत्तराखंड के मामले में ऐसा नहीं हुआ।
नए राज्य में पहले 10-15 वर्ष तो आसानी से कट गए, क्योंकि राजकीय कामकाज के लिए नौकरियों की आमद बनी हुई थी, लेकिन पिछले 8-10 वर्षों में हालात दिन-प्रतिदिन खराब होते जा रहे हैं। नया राज्य, नए-नए नेता और नौकरशाही अब पुरानी पड़ चुकी है, अब सवाल अपने लिए नहीं बल्कि अपने रिश्तेदारों को फिट करने का है। सरकारी नौकरी के अलावा खनन, लकड़ी, शराब और सरकारी ठेके ही वे स्रोत हैं, जिनसे कुछ कमाई हो सकती है।
भाजपा को राज्य में चुनावी जीत के बाद ही सरकारी नौकरियों में धांधली और भ्रष्टाचार की खबरों से दो-चार होना पड़ा था। बड़ी संख्या में उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों के युवा आक्रोशित थे। ऊपर से पहाड़ी युवाओं के लिए 75 वर्ष बाद भी सेना में भर्ती आज भी सबसे बड़ा सहारा और आकर्षण बना हुआ है। लेकिन उसमें तो अब 4 साल की नौकरी का ही प्रावधान मोदी सरकार ने कर दिया है। ‘अंकिता भंडारी हत्याकांड’ ने तो समूचे उत्तराखंड को सड़कों पर ला दिया था, जिसमें भाजपा नेता के पुत्र की करतूत लोगों की जुबान पर चढ़ गई थी। यह आंदोलन अपने आप में उत्तराखंड बनने के बाद सबसे बड़ा था।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, जिन्हें चुनाव में उनके क्षेत्र की जनता ने हरा दिया था, को केंद्र सरकार का पूर्ण आशीर्वाद ही था, जिसने हारने के बावजूद मुख्यमंत्री पद दिला दिया। बिना आधार वाले मुख्यमंत्री के लिए सत्ता में बने रहने के लिए जो संकट कर्नाटक में बासवराज बोम्मई जी के सामने था, वही कुछ उत्तराखंड में भी है। कर्नाटक में भी बोम्मई जो आरएसएस पृष्ठभूमि से नहीं होने के बावजूद, कर्नाटक में टीपू सुल्तान, लव जिहाद सहित हिजाब विवाद सुर्ख़ियों में बना हुआ था। पुष्कर सिंह धामी के लिए भी राज्य की जनता को देने के लिए कुछ खास नहीं है। बढ़ती बेरोजगारी, महंगाई और अंकिता भंडारी कांड ने भाजपा के लिए 2024 एक दुह्स्वप्न सरीखा बना दिया था।
ऐसे में उन तमाम नुस्खों को आजमाया जा रहा है, जिससे लोगों को उनके सांसारिक दुःख से ध्यान हटाकर आध्यात्मिक+धार्मिक+पराये धर्म से नफरत के बीज को परवान चढ़ाकर ध्यान भटकाया जा सके। इसके लिए पहले से आधार बना हुआ है। पिछले दिनों हरिद्वार में धर्म संसद चलाकर एक धर्म विशेष के खिलाफ हेट स्पीच का मामला देश देख चुका है।
लेकिन इससे भी बड़ा एक विशिष्ट पहलू उत्तराखंड को बाकी के सभी राज्यों से अलग करता है। 2011 की जनगणना के मुताबिक उत्तरखंड में सवर्ण आबादी बहुतायत में है। सबसे बड़ी आबादी में क्षत्रिय हैं, और ब्राह्मण क्षत्रिय मिलकर 58% आबादी का निर्माण करते हैं। ऊपर से उत्तराखंड को देवभूमि का देवत्व भी हासिल है, जिसे मौके-बेमौके भुनाकर मोदी सरकार ने उत्तराखंड की बहुसंख्यक आबादी को लगभग आईने में उतार लिया है।
यही कारण है कि उत्तराखंड में भाजपा को एक वर्ष के भीतर 3-3 मुख्यमंत्री मिले, जो सभी केंद्र सरकार की कृपा दृष्टि पर बनाये और हटाए गये, लेकिन राज्य में किसी ने चूं तक नहीं की। गोया उत्तराखंड भी गुजरात बन गया हो। हाल के वर्षों में दलितों के खिलाफ हिंसा और भेदभावपूर्ण व्यवहार की घटनाएं बढ़ी हैं, लेकिन छिटपुट विरोध के साथ सब ठंडा पड़ गया।
मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस भी दलितों, अल्पसंख्य समुदाय का वोट तो पाना चाहती है, लेकिन खुलकर उनके पक्ष में आने से कतराती है। यहां तक कि हिन्दुत्ववादी एजेंडे के तहत कई बार इसके निचले स्तर के कार्यकर्ता भी मुसलमानों-दलितों के खिलाफ हिंसा में बढ़चढ़कर हिस्सा लेते देखे गए हैं। इसकी बड़ी वजह प्रदेश में सवर्ण प्रभुत्व है, जिसकी शिकार राज्य इकाई भी है। पुरोला में सांप्रदायिक नफरत की आग को बजरंग दल खुलकर आगे बढ़ा रहा है, लेकिन क्या कांग्रेस उत्तराखंड में भी कर्नाटक की तरह खुलेआम चुनौती देगी?
हालांकि उत्तराखंड में प्रबुद्ध नागरिकों, अध्यापकों, कलाकारों एवं वाम दलों की भी उपस्थिति बनी हुई है, और उन्होंने इस घटना पर प्रशासन के समक्ष ज्ञापन देकर अपना प्रतिवाद भी जाहिर किया है, लेकिन उनकी आवाज अब उन्हीं तक गूंजकर रह जाती है। विरोध के लिए विरोध करने की प्रतीकात्मकता से आगे बढ़कर उत्तराखंड के आम लोगों के बीच में साहस के साथ सच को रखने के लिए अब युवाओं की नई जमात कम होती जा रही है।
लेकिन बेरोजगार उत्तराखंड कितने दिनों तक पेट की आग भुलाकर पुरोला के झूठे आख्यान से बहलाया जा सकेगा, जिसकी बहन, बेटी असल में भू-माफियाओं, खनन-माफियाओं, हजारों की संख्या में पहाड़ में कुकुरमुत्तों की तरह उग आये होटलों के जाल में एक और ‘अंकिता भंडारी’ की नियति बनने के लिए अभिशप्त हैं, यह आने वाला समय ही बतायेगा।
( रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)
बेबाक रपट ।
Aap puri tarah se anti Hindu lag rahe hain aap ki bat sahi bhi hain lekin aap shayad Muslim population ki badhti sakhya ko uttarakhand me halke me le rahe hain …Kyo jwala pur me 80% population muslim ki ho gayi hain ye sab systematic hain muslim jo bhi kam karte hain wo milkar karte hain lekin ham sab ke beech me aap jaise log hamesha aate hain aur hinduo ko kamjor karte hain.aap ki bato me sachchai kewal 10 percent hain baki sab jumla.
ये एक षड्यंत्र है भाजपा और आरएसएस का जो एक समुदाय विशेष खासतौर पर मुस्लिम समाज के खिलाफ है सरकार को महंगाई बेरोजगारी दिखाई नही देती 2024 को जितने के लिए ये किसी भी हद तक जा सकते है हिंदु मुस्लिम कर के ये सभी आवश्यक मुद्दो से ध्यान हटाकर जनता को बेवकुफ बना रहे हैं लेकिन इस बार कोई भी इनकी बातों में नहीं आयेगा जनता अब जाग चुकी है भाजपा सरकार का अंतिम वक्त आ गया
कुछ ऐसे ही सेक्युलर, इस्लाम अपना लेते है जब इनकी बहिन बेटी को शांतिदूत अपना शिकार बनाते हैं। मुस्लिम लॉबी से कितना पैसा लेके बिक रहे हो भाई?
Jhut falane ki bbi had hoti hai or ankhe band karne se sachai or khatra door nahi ho jata hai pichle 5 mahino me 48+ love jihad ke case aaye hai or 76 love jihad ke case 2022 me aaye the or aaj hi dehradun ka love jihad ka case aaya hai enka bare me kon batayega tum news ke name per modi government or Hinduo se nafrat krne ka dhanda kholkar baithe ho sach batana news walo Kam hai saCh ko chupa kar jhuti kahani band Karo yar 🙏🙏🙏😢😢
झूठ तो तुम।लिख रहे हो ,लव जिहाद एक एजेंडा है मोमिनों का जिसे तुम cover up करने के कोशिश कर रहे हो
Your articles are based on the made up stories lemme tell you one two muslim boys tried to flew with a girl who’s from the same tribe i belong keep your crappy stories to yourselves we are strong enough to protect our land of mahasu empire a suggestion for you don’t fuel these fake stories सच को जाने फिर छापे shame on you
Dear Mr Patwal, have you thought over, the kind of serious allegations you are making against several reporters who have reported this incidence?
By coming out that it is Jhooti kahani, means you are saying all the other reporters, the publuc as well, are lying and even those Videos are fabricated and it was left tosome one by name Mr Patwal who discovered the truth..
P S Chauhan
Aapke baton me schchai to bahot he par logo ko hindutwa ke alawa kux shochne ka sujata ho nahi sayd
Patrakarita ke naam pe bas BJP k khilaaf zeher. Asliyat se aankh moonde baithe andhe patrakar jb tk amjh aaega bht der ho chuki hogi.