नई दिल्ली। महाराष्ट्र मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले को कल 10.30 बजे तक के लिए रिजर्व कर लिया है। जस्टिस रमना ने कहा कि मैं कल सुबह 10.30 बजे इस पर आदेश जारी करूंगा। आज की सुनवाई में सालिसीटर जनरल ने गवर्नर को मिले पत्रों को पेश किया। इसके साथ ही दोनों पक्षों के वकीलों ने अपना-अपना पक्ष रखा। कपिल सिब्बल, अभिषेक मनुसिंघवी शिवसेना-एनसीपी का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। जबकि अजित पवार का पक्ष एडवोकेट मनिंदर सिंह रख रहे थे। और मुकुल रोहतगी देवेंद्र फडनवीस का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता में गठित बेंच में उनके अलावा जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस संजीव खन्ना भी शामिल थे।
सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि गवर्नर का फैसला दिखाने से पहले वह केस की पृष्ठभूमि के बारे में बताना चाहेंगे। एसजी ने गवर्नर द्वारा फडनवीस को सरकार बनाने के लिए दिया गया पत्र बेंच को सौंपा। इसके साथ ही उन्होंने 22 नवंबर को अजित पवार द्वारा गवर्नर को भेजे गए समर्थन के पत्र को भी दिया।
हालांकि इसके पहले तुषार मेहता ने गवर्नर के फैसले के न्यायिक परीक्षण को भी असंवैधानिक करार दिया। उन्होंने कहा कि गवर्नर के विवेकाधिकार का न्यायिक परीक्षण नहीं हो सकता है। मेहता गवर्नर के पत्र को पढ़ रहे हैं जिसमें कहा गया है कि सरकार को 170 विधायकों का समर्थन हासिल है। उन्होंने कहा कि अजित पवार के पत्र में कहा गया है कि उन्हें एनसीपी के 54 विधायकों का समर्थन हासिल है। और वह एनसीपी के विधायक दल के नेता हैं। तुषार मेहता ने कहा कि गवर्नर घूम-घूम कर इस बात की जांच नहीं कर सकते हैं। उनके सामने जो सामग्री मौजूद थी उसमें सरकार को बहुमत का समर्थन हासिल था।
उसके बाद तुषार मेहता ने फडनवीस के पत्र को पढ़ा। जिसमें उन्होंने कहा है कि पहले जब उन्हें आमंत्रित किया गया था तब उनको बहुमत का समर्थन नहीं हासिल था। लेकिन बाद में अजित पवार के समर्थन के बाद उनके पास बहुमत हो गया। उनके पत्र में अजित पवार के पत्र का जिक्र किया गया है। उन्होंने कहा कि गवर्नर के पास उस पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं था।
फडनवीस का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि शिवसेना के साथ चुनाव पूर्व समझौता टूट जाने के चलते राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा। बाद में जब अजित पवार का समर्थन मिल गया तो फडनवीस 170 विधायकों के समर्थन के साथ गवर्नर के पास गए और उन्होंने उन्हें सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर लिया। इसके साथ ही राष्ट्रपति शासन हटा दिया गया। उन्होंने कहा कि यह कर्नाटक के केस से अलग है यहां गवर्नर के पास बहुमत दिखाने की सामग्री है। कोई भी यह नहीं कह रहा है कि विधायकों के हस्ताक्षर फर्जी हैं।
जस्टिस खन्ना ने पूछा कि क्या फडनवीस के पास आज बहुमत है। रोहतगी ने कहा कि कोर्ट के पास अंतरिम आदेश देने का कोई आधार नहीं है। और फ्लोर पर बहुमत सिद्ध करने की तारीख तय करने का भी अधिकार राज्यपाल के पास है। रोहतगी ने कहा कि फडनवीस के पास बहुमत है या नहीं इसका फैसला फ्लोर पर ही होगा।
जस्टिस खन्ना ने कहा कि अभी तक सभी पहले के मामलों में 24 घंटे के भीतर फ्लोर टेस्ट हुआ है। और बहुमत है या नहीं इसका फैसला गवर्नर हाउस में नहीं बल्कि फ्लोर पर होता है।
अजित पवार का प्रतिनिधित्व कर रहे मनिंदर सिंह ने कहा कि मेरी सूची तथ्यात्मक, कानूनी और संवैधानिक हर लिहाज से सही है। और समर्थन के लिए मैं अधिकृत था। मैंने विधायक दल के नेता के तौर पर काम किया। और फिर उसके आधार पर गवर्नर ने अपने विवेक से फैसला लिया। उन्होंने कहा कि इस कोर्ट को इस याचिका को नहीं स्वीकार करना चाहिए। क्योंकि कर्नाटक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उछल कर इधर-उधर जाने की इजाजत नहीं दी जाएगी।
रोहतगी ने दो मांगें की पहली कोई अंतरिम आदेश नहीं दिया जाना चाहिए और दूसरा मामले को संविधान पीठ को सौंप दिया जाना चाहिए। जिससे कानून के दूसरे और बड़े पहलुओं पर विचार किया जा सके।
कपिल सिब्बल ने कहा कि वह कैसे कह सकते हैं कि इस मामले में प्रथम दृष्ट्या कोई केस नहीं बनता है। गवर्नर उद्धव के सीएम प्रत्याशी चुने जाने की घोषणा के बाद 24 घंटे तक का भी इंतजार नहीं किए और उन्होंने फडनवीस को शपथ दिला दी। सिब्बल ने कहा कि राष्ट्रपति शासन हटाये जाने के पीछे बिल्कुल एक गलत नियत काम रही थी।
सुबह 5.47 मिनट पर राष्ट्रपति शासन हटाये जाने और सुबह 8 बजे फडनवीस को शपथ दिलाने के पीछे आखिर क्या इमरजेंसी थी। इस तरह की इमरजेंसी का कोई कारण भी नहीं दिखाया गया। उन्होंने कहा कि हमने इस बात एफिडेविट पेश किया है जिसमें कहा गया है कि अजित पवार को एनसीपी का प्रतिनिधित्व करने के लिए अधिकृत नहीं किया गया था।
उन्होंने कोर्ट से तत्काल फ्लोर टेस्ट करने का निर्देश देने की मांग की। उन्होंने कहा कि सबसे वरिष्ठ विधायक को प्रोटेम स्पीकर बनाया जाए और पूरी कार्यवाही की वीडियो रिकार्डिंग हो।
एनसीपी की तरफ से बोलते हुए सिंघवी ने कहा कि दोनों पक्ष फ्लोर टेस्ट चाहते हैं लेकिन सवाल यह है कि वह कब हो? यह विशिष्ट किस्म का मामला है। उन्होंने कहा कि 54 सदस्यों की सूची वहां मौजूद है लेकिन क्या वे सभी कह रहे हैं कि वो बीजेपी को समर्थन देंगे। उन्होंने कहा कि बीजेपी चालाक है लेकिन आधी। इस तरह का कोई पत्र नहीं है कि 54 विधायक बीजेपी का समर्थन कर रहे हैं। पत्र केवल इस बात का है कि 54 विधायक पवार को अपना नेता चुन रहे हैं।
उन्होंने कहा कि वहां इस तरह का कोई कवरिंग पत्र नहीं है जिसमें सभी विधायकों ने बीजेपी को समर्थन देने की बात कही हो। यह 54 विधायकों की सूची है। यह लोकतंत्र के साथ फ्राड है। सिंघवी ने कहा कि अजीत पवार को विधायक दल के नेता पद से हटा दिया गया है। सिंघवी ने कहा कि फ्लोर टेस्ट आज या फिर कल संपन्न हो जाना चाहिए। इस पर हस्तक्षेप करते हुए तुषार मेहता ने कहा कि जब अजीत पवार को हटाने वाला पत्र गवर्नर को सौंपा गया तो उसमें 12 हस्ताक्षर नदारद थे।
सिंघवी ने कहा कि जब दोनों पक्ष फ्लोर टेस्ट के लिए तैयार हैं तब कोर्ट एफिडेविट के साथ उत्तर की क्यों प्रतीक्षा कर रही है। सिंघवी ने कहा कि इस तरह के ढेर सारे उदाहरण हैं जब एससी ने लोकतंत्र की पवित्रता को बनाए रखने के लिए 24-48 घंटे के भीतर फ्लोर परीक्षण के आदेश दिए हैं।
रोहतगी ने कहा कि वो एक याचिका के लिए तीन लोग बहस कर रहे हैं इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती है। रोहतगी ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के वकील अब हाउस के स्पीकर की तरह काम करे और सब कुछ यहीं तय कर दे। उन्होंने कहा कि अभी स्पीकर चुना जाना बाकी है और हाउस की बैठक बुलायी जानी बाकी है। लेकिन उससे पहले सब कुछ मानकर कोर्ट यहीं फैसला दे दे।
रोहतगी ने कहा कि कोर्ट उस हाउस की कार्यवाही की प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। जिसको कि असेंबली के रुल के हिसाब से तय किया गया है। उन्होंने कहा कि गवर्नर ने 14 दिन का समय दिया है 14 महीने का नहीं। क्या इस कोर्ट को गवर्नर के विचार की जगह अब अपने विचार थोपने का अधिकार है।