Wednesday, April 24, 2024

हाथरस की घटना पर हाई कोर्ट ने लिया स्वत: संज्ञान, कहा- जबरन अंतिम संस्कार जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा

हाथरस की पीड़िता के शव का परिवार की मर्जी के बिना रातों-रात अंतिम संस्कार कराना प्रशासन के लिए भारी पड़ता नजर आ रहा है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने स्वतः संज्ञान लेते हुए अपर मुख्य सचिव गृह, पुलिस महानिदेशक, अपर पुलिस महानिदेशक कानून व्यवस्था, जिलाधिकारी हाथरस और पुलिस अधीक्षक हाथरस को 12 अक्तूबर को तलब कर लिया है। न्यायालय ने इन अधिकारियों को मामले से संबंधित दस्तावेज इत्यादि लेकर उपस्थित होने का आदेश दिया है। साथ ही विवेचना की प्रगति भी बताने को कहा है।

यह आदेश जस्टिस राजन रॉय और जस्टिस जसप्रीत सिंह की खंडपीठ ने दिया। न्यायालय ने हाथरस में युवती के साथ हुए सामूहिक दुराचार और उसकी मृत्यु के पश्चात जबरन अंतिम संस्कार किए जाने की मीडिया रिपोर्टों पर स्वतः संज्ञान लिया है। न्यायालय ने ‘गरिमापूर्ण ढंग से अंतिम संस्कार के अधिकार’ टाइटिल से स्वतः संज्ञान याचिका को दर्ज करने का भी आदेश दिया है। बेंच ने कहा है कि एक क्रूरता, अपराधियों ने पीड़िता के साथ दिखाई और इसके बाद जो कुछ हुआ, अगर वो सच है तो उसके परिवार के दुखों को दूर करने के बजाए उनके जख्मों पर नमक छिड़कने के समान है।

खंडपीठ ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने पहले से ही ये तय किया है कि जीवन ही नहीं बल्कि मृत्यु के बाद गरिमापूर्ण ढंग से अंतिम संस्कार भी एक मौलिक अधिकार है। मृतक के शव को उनके घर ले जाया जाना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। हमारे समक्ष मामला आया, जिसके बारे में हमने संज्ञान लिया है। यह केस सार्वजनिक महत्व और सार्वजनिक हित का है, क्योंकि इसमें राज्य के उच्च अधिकारियों पर आरोप शामिल है, जिसके परिणामस्वरूप न केवल मृतक पीड़ित बल्कि उसके परिवार के सदस्यों की भी मूल मानवीय और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है।

खंडपीठ ने कहा कि एक तरफ एसपी हाथरस कहते हैं कि हमने बॉडी परिवार के हवाले कर दी थी और प्रशासन ने अंतिम संस्कार में मात्र सहयोग किया था। वहीं मृतका के पिता और भाई का मीडिया में बयान है कि इस संबंध में प्रशासन से कोई बात नहीं हुई थी। पुलिस ने बल प्रयोग करते हुए यह कृत्य किया है। न्यायालय ने अंतिम संस्कार के संबंध में मीडिया में चल रहे पुलिस की कथित मनमानी के वीडियो का भी हवाला दिया।

न्यायालय ने कहा कि मीडिया रिपोर्टों के अनुसार रातों-रात हुए इस अंतिम संकार के दौरान डीम प्रवीण कुमार, एसपी विक्रांत वीर, एएसपी प्रकाश कुमार, सादाबाद सीओ भ्राम सिंह, रम्शाबाद सीओ सिटी सुरेंद्र राव, सीओ सिकंदर राव और संयुक्त मजिस्ट्रेट प्रेम प्रकाश मीणा 200 पीएसी जवानों और 11 थानों की पुलिस फोर्स के साथ उपस्थित थे।

खंडपीठ ने एडीजी, लॉ एंड ऑर्डर प्रशांत कुमार के बयान का भी जिक्र किया, जिसमें उन्होंने कहा कि शव खराब हो रहा था इसलिए परिवार के सदस्य चाहते थे कि रात में ही अंतिम संस्कार हो जाए तो बेहतर होगा। न्यायालय ने कहा कि राजधानी स्थित डीजीपी ऑफिस के आला अधिकारी देर रात हुए इस अंतिम संस्कार को औचित्यपूर्ण ठहरा रहे हैं, इसलिए हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच इस मामले का संज्ञान लेती है।

खंडपीठ ने कहा कि यह राज्य के आला अधिकारियों द्वारा मनमानी करते हुए मानवीय और मौलिक अधिकारों के घोर हनन का मामला है। इस मामले में न सिर्फ मृत पीड़िता के बल्कि उसके परिवार के भी मानवीय और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया गया है। उन्होंने कहा कि पीड़िता के साथ अपराधियों ने बर्बरता की और यदि आरोप सही हैं तो उसके बाद उसके परिवार के जख्मों पर नमक रगड़ा गया है।

खंडपीठ ने कहा कि वह इस मामले का परीक्षण करेगा कि क्या मृत पीड़िता और उसके परिवार के मौलिक अधिकारों का हनन हुआ है और क्या अधिकारियों ने मनमानी करते हुए उक्त अधिकारों का हनन किया है। यदि यह सही है तो न सिर्फ जिम्मेदारी तय करनी पड़ेगी बल्कि भविष्य के दिशानिर्देश के लिए कठोर कार्रवाई की जाएगी। खंडपीठ ने यह भी कहा कि हम यह भी देखेंगे कि क्या पीड़िता के परिवार की गरीबी और सामाजिक स्थिति का फायदा उठाते हुए राज्य सरकार के अधिकारियों ने उन्हें संविधानिक अधिकारों से वंचित किया। खंडपीठ ने कहा कि यह कोर्ट पीड़िता के साथ हुए अपराध की विवेचना की भी निगरानी कर सकता है और जरूरत पड़ने पर स्वतंत्र एजेंसी से जांच का आदेश भी दे सकता है।

खंडपीठ ने मृतक पीड़िता के मां-पिता और भाई को भी 12 अक्टूबर को आने को कहा है, ताकि यह अदालत श्मशान के समय हुई घटना के तथ्यों और उनके संस्करण का पता लगा सके। खंडपीठ ने हाथरस के जनपद न्यायाधीश को उनकी उपस्थिति सुनिश्चित करने का आदेश दिया है। खंडपीठ ने जिला और राज्य सरकार के अधिकारियों को उनके आने-जाने, खाने, ठहरने और सुरक्षा का आदेश दिया है। खंडपीठ ने अधिकारियों को यह चेतावनी भी दी है कि मृतका के परिवार पर कोई दबाव न बनाया जाए।

खंडपीठ ने कहा कि 2 अक्तूबर महात्मा गांधी की जयंती है, जिनका दिल कमजोरों के लिए धड़कता था। वे कहते थे कि जो सबसे गरीब और कमजोर आदमी तुमने देखा हो उसकी शक्ल याद करो और अपने दिल से पूछो कि जो कदम उठाने का तुम विचार कर रहे हो वह उस आदमी के लिए कितना उपयोगी होगा। क्या उससे उसे कुछ लाभ पहुंचेगा। न्यायालय ने ऑस्कर वाइल्ड के एक कथन को भी उद्धृत किया।

यूपी के हाथरस में दलित युवती के साथ हैवानों ने कथित तौर पर गैंगरेप के बाद उसकी जीभ काट दी थी और उसकी रीढ़ की हड्डी तोड़ दी थी। वारदात के बाद वह एक हफ्ते से ज्यादा बेहोश रही थी। हालत खराब होने के बाद किशोरी को दिल्ली ले जाया गया था, जहां मंगलवार की सुबह लगभग चार बजे उसने दम तोड़ दिया था।

47 वरिष्ठ महिला वकीलों ने चीफ जस्टिस को पत्र लिखा
इससे पूर्व उच्चतम न्यायालय में 47 वरिष्ठ महिला वकीलों ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एसए बोबडे और कोलेजियम के सदस्य जजों को इस बारे में चिट्ठी लिखी है। महिला वकीलों ने इस केस की जल्द सुनवाई करने और आरोपियों के लिए सख्त से सख्त सजा की मांग की है। 47 महिला वकीलों के द्वारा लिखे गए पत्र में हाथरस में लापरवाही बरतने वाले सभी पुलिसकर्मियों और प्रशासन के कर्मचारियों साथ-साथ मेडिकल अधिकारियों, सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने वालों के खिलाफ उचित और तत्काल एक्शन लिए जाने की अपील की गई है। चिट्ठी में आग्रह किया गया है कि उनके खिलाफ तत्काल जांच कराई जाए और उन्हें सस्पेंड किया जाए।

सीमन की मौजूदगी साबित करना अनिवार्य नहीं
इस बीच यूपी के हाथरस कांड के बाद पुलिस ने फरेंसिक रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए कहा है कि पीड़िता का रेप नहीं हुआ है। रेप न होने की दलील के पीछे कहा गया है कि फोरेंसिक रिपोर्ट्स ये बताती हैं कि पीड़िता के शरीर पर सीमन नहीं मिला है। इस आधार पर ये साबित होता है कि इस लड़की का रेप नहीं हुआ। हालांकि सरकार की थ्योरी और कानून के आधार बिल्कुल ही जुदा हैं। अगर कानूनी पहलू पर गौर करें तो सीमन न मिलने के बावजूद ये नहीं माना जा सकता है कि किसी लड़की का रेप नहीं हुआ है।

उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश राज्य  बनाम बबलू नाथ 1994 में साफ़ तौर से कहा है कि सीमन का न मिलना या लिंग का पेनेट्रेशन ही रेप नहीं है। उसकी कोशिश करना भी रेप है। साल 2018 में यौन अपराधों से जुड़े कानून में संशोधन के बाद इस बारे में एक स्पष्ट परिभाषा दी जा चुकी है। आईपीसी की धारा-375 में रेप मामले को विस्तार से परिभाषित किया गया है।

इसके तहत बताया गया है कि अगर किसी महिला के साथ कोई पुरुष जबरन शारीरिक संबंध बनाता है तो वह रेप होगा। साथ ही मौजूदा प्रावधान के तहत महिला के साथ किया गया यौनाचार या दुराचार दोनों ही रेप के दायरे में होगा। इसके अलावा महिला के शरीर के किसी भी हिस्से में अगर पुरुष अपना प्राइवेट पार्ट डालता है, तो वह भी रेप के दायरे में होगा। 2012 में एक मामले की सुनवाई के दौरान बॉम्बे हाई कोर्ट न कहा था कि रेप का अपराध साबित करने के लिए पीड़िता से शरीर में सीमन की मौजूदगी साबित करना अनिवार्य नहीं है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

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