असम में इस समय बाल विवाह रोकने के नाम पर गिरफ्तारी और उत्पीड़न का दौर चल रहा है। मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की सरकार पिछले 7 सालों में हुए बाल-विवाह पर कानूनी कार्रवाई कर रही है। उनका दावा है कि पिछले कुछ सालों में 1 लाख लड़कियों के बाल विवाह हुए हैं। वर्तमान आदेश के अनुसार ये सब अपराधी हैं। बाल विवाह के आरोपियों को गिरफ्तार करने के दौरान कुछ महिलाओं ने आत्महत्या कर लिया। असम सरकार के निर्देश पर राज्य पुलिस “बाल विवाह” के आरोपियों को गिरफ्तार कर रही है। इस घटना से राज्य में उबाल है। इस पूरे परिदृश्य की बहुत दर्दनाक तस्वीरें सामने आ रही हैं।
साल 2020 में पति की मौत के बाद सीमा ख़ातून उर्फ खुशबू बेगम अपने दो बच्चों को लेकर पिता के घर में रहने लगी। लेकिन बाल विवाह में हो रही पुलिसिया कार्रवाई में अधेड़ पिता की गिरफ्तारी के डर से उसने 3 फरवरी को पंखे से लटककर अपनी जान दे दी। वो धुबरी जिले के दक्षिण सलमारा मनकाचर जिले की निवासी थी। उसे डर था कि उसके पिता को उसकी शादी कराने के लिए गिरफ्तार किया जाएगा। खुशबू बेग़म की शादी साल 2012 में मोजीब मियां से हुई थी, तब वह नाबालिग थी।
5 फरवरी को असम के बोंगाईंगांव जिले में प्रसव के बाद ज़्यादा ब्लीडिंग होने से एक 18 साल की महिला की मौत हो गई। परिवार वाले प्रसव के लिये इस डर से अस्पताल नहीं ले गये कि उन्हें विवाह एक्ट के तहत गिरफ्तार कर लिया जायेगा। महिला की शादी 16 साल की उम्र में हुई थी। मामले में पति व पिता समेत दोनों परिवार के 5 लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है। ऐसे में नवजात शिशु की देखभाल कैसे होगा यह भी सवाल है। असम में पुलिसिया कार्रवाई के डर से तमाम पति व परिवार गिरफ्तारी से बचने के लिये अपनी गर्भवती किशोर पत्नियों को अस्पताल से दूर रख रहे हैं। इस कारण से कई गर्भवती स्त्रियों को सरकारी लाभ, मुफ्त चिकित्सा देखभाल जैसे कि जांच, दवा, टीका, प्रसव सहित सिजेरियन, शिशु देखभाल और आईसीयू आदि का लाभ नहीं मिल पा रहा है। अस्पतालों में चेकअप कराने वाली महिलाओं की संख्या बहुत घट गई है।
असम के कछार जिले की राजनगर ग्राम पंचायत के खासपुर गांव की एक 17 साल की लड़की एक लड़के से प्यार करती थी। लड़की के माता-पिता उसकी शादी कराने के लिए राज़ी भी थे, लेकिन फिर बाल विवाह को लेकर असम पुलिस की क्रूर कार्रवाई से डर कर परिजनों ने कदम पीछे खींच लिया। परिजनों के इस कदम से दुखी होकर लड़की ने 5 फरवरी को खुदकुशी कर लिया। 12 फरवरी को 14 वर्षीय माफिदा खातून ने पुलिसिया कार्रवाई के डर से अपनी जान ले ली। माफिदा का निकाह 3 महीने पहले ही गांव के एक लड़के से हुई थी। वह कमारपाड़ा गांव की रहने वाली है जो कि थाना साउथ सलमारा मनकाचार जिले में पड़ता है।
14 फरवरी, मंगलवार को कासिम अली पुत्र बाड़ू प्रमाणिक ने धारदार हथियार से अपना गला काट लिया। वह असम के धुबरी जिला, गौरीपुर थाना, बराईबारी ग्राम पंचायत के बाघमारा गांव का निवासी था। वो अपनी गिरफ्तारी के भय से खौफजदा था। उसके परिवार में पत्नी और 2 बच्चे हैं। 10 फरवरी को धुबरी जिले के रामरायकुटी गांव में आयना बीबी ने इसलिए अपनी जान दे दी क्योंकि उनके 2 बच्चों की शादी 18 साल के कम उम्र में हो गई थी और वह उनकी गिरफ्तारी रोकने में नाकाम हो गई थी।
करीमगंज जिले की स्वीटी नामशूद्र को पुलिस पकड़कर ले गई उसका 2 माह का बच्चा घर पर ही रह गया जिसे मां की सख्त ज़रूरत थी। मां जब तक वापिस आई बच्चे की मौत हो गई। घटना करीमगंज जिले के राताबाड़ी थाना क्षेत्र के बोरूवाला जीपी के कृष्णा नगर गांव की है। पुलिस उसके पति आशीष नामशूद्र को पकड़ने गई थी जब वह घर पर नहीं मिला तो पुलिस स्वीटी नामशूद्र व उसके ससुर दिगेंद्र नामशूद्र को ही पकड़ ले गई। स्वीटी ने तमाम कागजात दिखाए कि शादी के वक्त उसकी उम्र 18 साल से अधिक थी लेकिन पुलिस नहीं मानी।
धुबरी जिले निवासी 23 साल की अफरोजा खातून ने अपने पति और पिता की गिरफ्तारी के बाद असम सरकार को सुसाइड करने की धमकी दी। अफरोजा का दावा है कि उसकी शादी 19 साल की उम्र में साल 2018 में हुई, उसका जन्म 1999 में हुआ था और वह बालिग है। महिला ने कोर्ट परिसर में खुदकुशी करने की धमकी दी। जब अफ़रोजा के पिता और पति को कोर्ट ले जाया जा रहा था तो वह बेहोश होकर ज़मीन पर गिर पड़ी।
एक लाख लोगों को गिरफ्तार करने का लक्ष्य
इस मुहिम की शुरुआत 23 जनवरी को हिमंत बिस्वा सरमा कैबिनेट ने सभी 2197 ग्राम पंचायत सचिवों को बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के तहत बाल विवाह रोकथाम (निषेध) अधिकारी के रूप में नामित करने के साथ किया। इसके बाद 3 फऱवरी से शुरू हुई पुलिसिया कार्रवाई में 14 फऱवरी तक बाल विवाह के 4,225 मामले दर्ज हुए। सैकड़ों स्त्रियों समेत कुल 3,031 लोगों को गिरफ्तार किया गया। यह कार्रवाई तीन फरवरी को 4,004 प्राथमिकियों के साथ शुरू हुई थी।
असम पुलिस के महानिदेशक (डीजीपी) जीपी सिंह के मुताबिक, अब तक पूरे असम में बाल विवाह से संबंधित 4074 मामले दर्ज़ किए गए। जबकि 8,134 लोगों की पहचान आरोपी के रूप में की गई है। वहीं, बाल विवाह में शामिल हुए 57 काजी और पुरोहित को भी गिरफ्तार किया गया। आरोपियों को गिरफ्तार कर उनकी शादी को अवैध घोषित किया जा रहा है और अगर दूल्हे की उम्र 14 साल से कम है, तो उसे सुधार गृह भेजा जा रहा है। अकेले बारपेटा जिला में 157 गिरफ्तारियां हुई हैं और 107 मामले दर्ज किए गये हैं।
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा का दावा
असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने दावा किया है कि पिछले कुछ सालों में 1 लाख लड़कियों के बाल विवाह हुए हैं। इनमें से ज्यादातर मां भी बनी हैं, इनमें एक 9 साल की बच्ची भी शामिल है, जिसने बच्चे को जन्म दिया।
यानि मोटे तौर पर असम के मुख्यमंत्री के दिमाग में 1 लाख लोगों को गिरफ़्तार करने का टारगेट है। अपने फैसले को जायज ठहराने के लिये असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा कहते हैं कि राज्य में पिछले साल 6.2 लाख से अधिक गर्भवती महिलाओं में 17 प्रतिशत नाबालिग थीं। वहीं सीमा ख़ातून की आत्महत्या के मामले में जब एक स्थानीय पत्रकार ने मुख्यमंत्री से सवाल किया तो उन्होंने बड़ी बेशर्मी से कहा कि अगर कोई गिरफ्तार हो रहा है और सोचे कि मेरे बाबा की गिरफ्तारी होगी आत्महत्या करती है तो मैं इसमें क्या कर सकता हूं। उन्होंने आगे कहा कि ऐसे सहानभूति वाली ख़बरों से ये कार्रवाई नहीं रुकेगी। बता दें कि असम सरकार ग्वालपारा जिले में मटिया ट्रांजिट कैंप सहित अस्थायी जेल खोलने की योजना बना रही है।
पॉस्को व बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत कार्रवाई
असम कैबिनेट ने बाल विवाह करने वालों के खिलाफ़ कार्रवाई करने का प्रस्ताव पास किया था। इसके तहत 14 साल से कम उम्र में शादी करने के आरोपी पर पॉक्सो एक्ट के तहत कार्रवाई की जा रही है। गिरफ़्तार किये गये लोगों पर सख़्त पॉस्को एक्ट (POSCO Act) व बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत मामला दर्ज़ किया गया है। पुलिस पिछले 7 सालों में बाल विवाह में भाग लेने वाले और इन विवाहों को कराने वाले काजियों और पुजारियों को भी गिरफ्तार कर रही है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार असम में मातृ और शिशु मृत्यु दर सबसे ज्यादा है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS-5)-2019-21 के मुताबिक असम की 20-24 आयु वर्ग की 31.8 प्रतिशत महिलाओं की शादी 18 साल से कम की उम्र में हुई है जो कि राष्ट्रीय औसत 23.3 प्रतिशत से ज़्यादा है। जबकि असम की 15-19 आयुवर्ग की 11.7 प्रतिशत महिलाएं या तो मां बन चुकी हैं या गर्भवती हैं। जबकि राष्ट्रीय औसत 6.8 फीसद है। असम में कम उम्र में विवाह की हिन्दू महिलाओं का औसत 23.5 प्रतकिशत है जोकि राष्ट्रीय औसत 23.2 प्रतिशत के क़रीब है। जबकि मुस्लिम स्त्रियों में ये 45.8 प्रतिशत और ईसाई महिलाओं में 23.8 प्रतिशत है जोकि राष्ट्रीय औसत 26.4 प्रतिशत और 15.2 प्रतिशत से कहीं ज्यादा है।
असम हाईकोर्ट ने गिरफ्तार लोगों की तत्काल रिहाई का दिया आदेश
14 फरवरी को गुवाहाटी हाई कोर्ट ने असम में बाल विवाह के खिलाफ कार्रवाई में गिरफ्तार किए गए लोगों को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है। अग्रिम जमानत और अंतरिम जमानत के लिए आरोपियों के एक समूह की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सुमन श्याम ने सभी याचिकाकर्ताओं को तत्काल प्रभाव से जमानत पर रिहा करने की अनुमति देते हुए कहा कि ये हिरासत में पूछताछ के मामले नहीं हैं। कोर्ट ने कहा कि इससे लोगों के निजी जीवन में तबाही मची है और ऐसे मामलों में आरोपियों से हिरासत में पूछताछ की कोई जरुरत नहीं है। कोर्ट ने बाल विवाह के आरोपियों पर यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (पॉक्सो) और बलात्कार के आरोप जैसे कड़े कानून लगाने के लिए असम सरकार को फटकार भी लगाई और कहा कि ये बिल्कुल बेतुके आरोप हैं।
कोर्ट ने आगे कहा कि ये नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस), तस्करी या चोरी की गई संपत्ति से संबंधित मामले नहीं हैं। कोर्ट ने आगे कहा कि यह (गिरफ्तारी) लोगों के निजी जीवन में तबाही मचा रही है। बच्चे हैं, परिवार के सदस्य हैं, बूढ़े लोग हैं। यह (गिरफ्तारी) किया जाना एक अच्छा विचार नहीं हो सकता है, जाहिर है कि यह एक बुरा विचार है।
सरकार के पास जेलों में जगह तक नहीं
न्यायमूर्ति श्याम ने अतिरिक्त लोक अभियोजक डी दास से कहा कि राज्य सरकार के पास जेलों में जगह तक नहीं है। उन्होंने प्रशासन को बड़ी जेल बनाने का सुझाव दिया। जब सरकारी वकील ने बताया कि पॉक्सो अधिनियम और बलात्कार (IPC- 376) के तहत गैर-जमानती आरोपों के तहत मामले दर्ज़ किए गये हैं, तो न्यायमूर्ति श्याम ने कहा कि यहां पॉक्सो क्या है? सिर्फ़ इसलिए कि पॉक्सो जोड़ा गया है, इसका मतलब यह नहीं है कि न्यायाधीश यह नहीं देखेंगे कि वहां क्या है? कोर्ट ने आगे कहा कि आईपीसी की धारा 376 क्यों? क्या यहां बलात्कार का कोई आरोप है? ये सभी आरोप बिल्कुल अजीब हैं।
न्यायाधीश ने बाल विवाह के आरोपियों की बड़े पैमाने पर गिरफ्तारी पर एक अलग मामले की सुनवाई के लिए अदालत कक्ष में मौजूद जाने-माने आपराधिक वकील अंशुमन बोरा की राय मांगी। बोरा ने कहा कि वे खूंखार अपराधी नहीं हैं। इस वक्त, वे (राज्य) आरोप पत्र दायर कर सकते हैं और बाद में जब मामला अदालत में आएगा तो मामले का फैसला कानून के अनुसार किया जाएगा। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि चार्जशीट दायर करके और लोगों को संवेदनशील बनाकर भी बाल विवाह के खिलाफ़ संदेश दिया जा सकता है, लेकिन सभी को गिरफ्तार करके नहीं। कथित तौर पर बाल विवाह में मदद करने वाले मौलाना साजहां अली के मामले में सरकारी वकील ने कहा कि उनकी गिरफ्तारी के पीछे पुलिस का क्या विचार है, इससे वह अनभिज्ञ हैं।
मुसलमानों को टारगेट करने के लिये किया जा रहा ये सब
मियां कवि व बारपेटा जिले के चेंगा विधानसभा से एआईयूडीएफ (AIUDF)विधायक अशरफ़ुल हुसैन जनचौक को प्रतिक्रिया देते हुए कहते हैं कि बाल विवाह एक क़ानूनी अपराध है। लेकिन बाल विवाह का कारण भी देखना पड़ेगा। सिर्फ़ गरीबी और अशिक्षा ही नहीं जहां पर डेवलपमेंट कम है, सुविधाएं कम हैं, जहां कानून व्यवस्था को पहुंचने में देर लगता है इन सारे जगहों पर ये हो रहा है। वो आगे कहते हैं कि इसको रोकने की सरकार की जिम्मेदारी थी पर वो नहीं कर पाये। जब यब सब हो रहा था तब पुलिस कुछ कर नहीं रही थी। इसीलिए ये समस्या बढ़ती रही।
वह कहते हैं कि चीजों को पीछे से नहीं आगे से देखना चाहिये। उन लोगों की प्रॉपर काउंसिलिंग करें, प्रचार प्रसार करें बच्चे के जन्म के समय के बारे में लोगों को जानकारी दें और जिन लोगों का बाल विवाह हुआ है उनके स्वास्थ्य सुरक्षा और समाजिक सुरक्षा पर ध्यान देना चाहिए। ये सब न करके सरकार पीड़ित के पति और परिजन को जेल पहुंचाकर ऐसा माहौल बना दिया कि सारे लोग चारों तरफ परेशान हैं। आगे बाल विवाह न हो इसके लिये सारे स्टेकहोल्डर यानि स्कूल टीचर, आंगनवाड़ी वर्कर, सरकार, आशा वर्कर, पुलिस इसमें शामिल हों और मिलकर काम करें।
बाल विवाह मामले में कई लोगों की जमानत करवा चुके गुआहाटी हाईकोर्ट अधिवक्ता अमन कहते हैं बाल विवाह समाजिक बुराई है और कोई शक नहीं यह बंद होना चाहिये। लेकिन यह कोई प्रक्रिया नहीं है कि पॉक्सो लगाकर जेल में डाल दो। इससे समाजिक बुराई नहीं खत्म होगी। अमन आगे कहते हैं कि बाल विवाह के मुद्दे पर असम सरकार फेल हो चुकी है इसलिये अभी बच्चों को क्रिमिनलाइज करके, उनके परिवार को क्रिमिनलाइज करके चार्ज लगा रही है। बाल विवाह साल 2006 में लागू हुआ था उसे अब तक क्यों इंप्लीमेंट नहीं किया गया।
टी ट्राइब और आदिवासियों के मुद्दों पर थियेटर करने वाले रंगकर्मी भास्कर ने जनचौक को फोन पर दिये अपनी प्रतिक्रिया में कहते हैं–बाल विवाह का कोई भी सपोर्ट नहीं करेगा, ये बंद होना ही चाहिये लेकिन प्रक्रिया गलत है। भास्कर आगे कहते हैं कि आज से 7 साल पहले या 1 महीना पहले जो बाल विवाह हो गया वो भले ही ग़लत हुआ लेकिन अभी उनमें किसी का बच्चा स्कूल में पढ़ रहा है, किसी का बच्चा गर्भ में पल रहा है, आप मां बाप के साथ बच्चों को भी सज़ा दे रहे हो। समाज को जागरुक करने के बजाय आप जिसने शादी किया उसे जेल में डालकर अपराधीकरण कर रहे हो।
कछार जिले के सोनिया निर्वाचन क्षेत्र के विधायक करीम उद्दीन बरभुइया कहते हैं कि उन्होंने मुख्यमंत्री से आग्रह किया है जिन लोगों की शादी कई वर्षों पहले हुई है उन्हें पुलिस कार्रवाई से छूट दी जाये लेकिन उन्होंने नहीं सुना। करीम उद्दीन कहते हैं कि इससे कई परिवार परेशान हो रहे हैं। और ऐसे परिवारों के बच्चों का भविष्य दांव पर है।
पॉक्सो लगाने के बाबत असम में एडवोकेट राशिद अहमद चौधरी कहते हैं ऐसे मामले में शादी की तारीख के 3 साल के भीतर पुलिस को चार्जशीट दाखिल करना होता है। उससे पुराने ममालों में वो कार्रवाई नहीं कर सकता। सरकार का हर मामले में पॉक्सो एक्ट लगाना, मौलानाओं और पुजारियों के ख़िलाफ़ पॉक्सो एक्ट लगाने को कोर्ट ने बेतुका कहा है। एडवोकेट राशिद अहमद चौधरी कहते हैं इनका तरीका ठीक नहीं है। चार साल पहले किसी की शादी हुई बच्चा हुआ, कोई शिकायत नहीं है उनको गिरफ्तार करके उनका जीवन अस्त व्यस्त कर रहे हैं। अरे पहले क़ानून की समझ गांव में ले जाइये लोगों को समझाइए फिर लागू करिए।
उन्होंने कहा कि सरकार का यह अभियान प्रमुख रूप से असम के मुसलमानों के खिलाफ़ शुरू किया गया पर एनआरसी की तर्ज़ पर अब इसकी जद में आदिवासी और दलित भी आ रहे हैं।
पलायन और तबाही
असम के तमाम नौजवान गिरफ्तारी के डर से अपना घर परिवार, बच्चे छोड़कर पलायन कर रहे हैं। इस अभियान में मुस्लिम बहुल क्षेत्र विशेष निशाने पर हैं। बड़ी संख्या में महिलाएं अस्थाई जेलों के बाहर रोते बिलखते हुए प्रदर्शन कर रही हैं। पीड़ित महिलाओं का कहना है कि उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं चाहिए बस उनके पतियों को रिहा किया जाए, वे उनके लिए रोजी रोटी कमाने वाले हैं, अगर उन्हें जेल में रखा जाएगा, तो घर का खर्च कौन चलाएगा। उनके बच्चों की परवरिश कैसे होगी। एक सामाजिक समस्या को सांप्रदायिक रंग देकर सरकार खास समुदाय को निशाना बना रही है।
चूंकि असम पुलिस ने अस्पतालों में हुये प्रसव के बारे में जानकारियां इकट्ठा करके कार्रवाई शुरू किया, इससे लक्षित पतियों तक पहुंचना आसान हुआ। असम पुलिस के इस करतूत से आशा, आंगनवाड़ी वर्करों का काम बुरी तरह प्रभावित हुआ है लोग उनसे कोई जानकारी साझा नहीं कर रहे हैं। इससे आने वाले दिनों में असम की गर्भवती महिलाओं का स्वास्थ्य और बदतर होगा।
(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)