Tuesday, March 19, 2024

उनका जाना हमारे परिवार और पाकिस्तान के लिए बहुत बड़ी क्षति: मिल्खा सिंह के प्रतिद्वंदी के बेटे

मिल्खा सिंह के निधन के साथ दुनिया ने एक बेहतरीन एथलीट खो दिया। लिजेंड खिलाड़ी किसी भी देश के लिए उसके परिवारों के गहने की तरह होते हैं। और हमारे देशों के साझा इतिहास को देखते हुए यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि यह भारत और पाकिस्तान दोनों का नुकसान है।

ट्रैक पर प्रतिद्वंदी रहने वाले मेरे पिता और मिल्खा जी में बहुत कुछ समानता थी। रावलपिंडी के जंद अवां गांव में पले-बढ़े मेरे पिता भी गरीबी से उठ कर ही वैश्विक स्तर के एथलीट बने। मिल्खा सर की तरह वह भी सेना में भर्ती हुए। और यह सेना का ही प्रशिक्षण था जो दौड़ने के शौक के साथ मिलकर मेरे पिता को 1956-1960 के बीच एशिया का सबसे तेज धावक बनने में मदद पहुंचाया।

मेरे पिता को भी1956 के ओलंपिक में निराशा हाथ लगी जब मेलबोर्न गेम्स के सेमीफाइनल के 100 और 200 मीटर दोनों दौड़ों में वह चौथे स्थान पर रहे। (आपको बता दें कि 1960 के रोम ओलंपिक के 400 मीटर के फाइनल में मिल्खा सिंह भी चौथे नंबर पर रहे थे।) 

मैंने पहली बार मिल्खा जी से 2009 में बात की थी। उनके सचिव ने उनके जीवन पर बनी फिल्म ‘भाग मिल्खा भाग’ में मेरे पिता को दिखाने के अधिकार की मांग के लिए फोन किया था। वह तुरंत लाइन पर आए और जब मैंने उनको बताया कि वह एक महान खिलाड़ी हैं तो उन्होंने कुछ ऐसा कहा जो मुझे आज भी याद है। ‘पुत्तर, तेरा बापू बोहत वड्डा एथलीट था। मैं उसे हराकर ही ‘फ्लाइंग सिख’ बना। मेरी प्रसिद्धि उसी की वजह से है।’

टोक्यो एशियन गेम्स में 200 मीटर की दौड़ में मिल्खा सिंह गोल्ड मेडल लेते हुए। बायीं तरफ सफेद बनियान में अब्दुल खालिक खड़े हैं।

केवल एक इंसान जिसके पास सोने का दिल हो वही ऐसा कुछ कह सकता है। उन्होंने इसी को आधार बनाते हुए मेरी मां से भी बात की। बात खत्म करने से पहले उन्होंने कहा कि “मांयें ईश्वर का रूप होती हैं और हम जितना कर सकते हैं हमें उतना उनका ख्याल रखना चाहिए।” 

मेरे पिता बहुत ज्यादा नहीं बोलते थे। उन्होंने शायद ही कभी 1960 में लाहौर में हुए भारत पाकिस्तान की एथलीट मीट में 200 मीटर की मशहूर दौड़ में मिल्खा जी के हाथों मिली मात के बारे में  बात की हो।(यह वही मौका था जब तब के पाकिस्तानी राष्ट्रपति जनरल अयूब खान मिल्खा सिंह के पास आए और उन्हें फ्लाइंग सिख के नाम से बुलाया।)

उस दौड़ के एक दिन बाद मेरे पिता ने 4×100 मीटर की रिले रेस में हिस्सा लिया। वह और मिल्खा जी ने अपने-अपने देशों के लिए दौड़ के अंतिम कदम तक प्रयास किए। ऐसा कहा जाता है कि मेरे पिता ने मिल्खा जी से पहले बैटन को हासिल किया लेकिन जैसा कि मेरे चाचा ने मुझको बताया था, उन्होंने मिल्खा जी का अपने करीब आने का इंतजार किया। एक बार जब वह उनके बाद थे तो उन्होंने कहा, ‘मिल्खा साहिब, अब जोर लगाना।’

पाकिस्तानी टीम जीती और पुराने खिलाड़ियों के मुताबिक मेरे पिता ने फिर से अपनी प्रसिद्धि हासिल की। प्रतिद्वंदिता का यही रूप था जो दोनों आपस में रखते थे। मेरे पिता मैदान में कभी गुस्सा नहीं होते थे। एक बार जब दौ़ड़ें खत्म हो गयीं तो उनको वहीं छोड़ देते थे। वह हमेशा अपने विरोधियों के साथ सम्मान पूर्वक व्यवहार करते थे।

मिल्खा जी के महान व्यवहार के लिए मेरा परिवार हमेशा उनका ऋणी रहेगा। बांग्लादेश युद्ध के बाद मेरे पिता एक युद्धबंदी थे और मेरठ जेल में बंद थे। मिल्खा जी मेरे पिता से मिलने गए और जेल अधिकारियों से कहा कि वो उनका विशेष ख्याल रखें। 

जब मैंने उनसे इस मुलाकात के बारे में पूछा तो उन्होंने इसकी पुष्टि की और यहां तक कि मुझे भारत आने का न्योता दिया। लेकिन दुख की बात यह है कि लिजेंड से मिलने की हमारी चाहत अब कभी नहीं पूरी हो पाएगी।

मोहम्मद एज़ाज़, अब्दुल खालिक के बेटे और इस लेख के लेखक।

मिल्खा जी को फ्लाइंग सिख का खिताब जनरल अयूब खान ने दिया लेकिन बहुत सारे लोगों को नहीं पता है कि तब के भारतीय प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने जो कि मनीला में हुए 1954 के एशियन गेम्स के मुख्य अतिथि थे, मेरे पिता को ‘फ्लाइंग बर्ड ऑफ एशिया’ का खिताब दिया था। यह तब हुआ जब 100 मीटर की दौड़ में मेरे पिता जीते थे और उस दौड़ को नेहरू देख रहे थे।

‘भाग मिल्खा भाग’ फिल्म ने एक बार फिर मेरे पिता को चर्चे में ले आने का काम किया। हालांकि पाकिस्तान सरकार ने मेरे पिता का हर संभव तरीके से सम्मान किया। लेकिन युवा पीढ़ी उनके बारे में बहुत ज्यादा कुछ नहीं जानती थी। उस फिल्म ने मेरे पिता को उनकी खोई हुई प्रसिद्धि को फिर से हासिल करने में मदद की।

एशियन गेम्स, 1956 के भारत-पाक मीट और मेलबॉर्न गेम्स में लोग उनके पैरों के बारे में पूछ रहे थे। उनमें से कुछ ऐसे थे जिन्होंने मेरे पिता को 1950 के दशक का उसैन बोल्ट करार दिया। यह देखकर खुशी मिलती है कि युवा पीढ़ी मेरे पिता को जानती है।

इस माह की शुरुआत में पाकिस्तान और हमारे परिवार ने मेरे चाचा अब्दुल मलिक को खो दिया, जो 1960 के ओलंपियन थे और अब मिल्खा जी के निधन की एक और खबर  हमारे परिवार और देश के लिए दूसरा नुकसान है।

मेरी मां वलायत बेगम ने मिल्खा जी के परिवार और भारत के लोगों के लिए अपनी संवेदनाएं भेजी हैं। मेरा परिवार उनके साथ खड़ा है।

(पाकिस्तानी लिजेंड अब्दुल खालिक के बेटे मोहम्मद एज़ाज का लेख। इसे इंडियन एक्सप्रेस से साभार लिया गया है।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles