एन्नोर क्रीक तेल रिसाव: कैसे चेन्नई एक पारिस्थितिकी विनाश से बच गया?

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चेन्नई। मनाली का मद्रास रिफाइनरीज लिमिटेड, जिसका नाम बदलकर अब चेन्नई पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (सीपीसीएल) कर दिया गया है, कभी औद्योगिक चेन्नई का गौरव हुआ करता था। प्रमुख उद्योगों में मद्रास फर्टिलाइजर्स के अलावा इसके भीतर मनाली से एन्नोर तक की 8 किलोमीटर की दूरी पर निगाह डालें तो उत्तर में एन्नोर क्रीक के खूबसूरत बैकवाटर की सीमा से लेकर दक्षिण में तिरुवोत्रियुर में 4 किलोमीटर तक सैकड़ों छोटी एवं मझोली पेट्रो-केमिकल इकाइयों की एक औद्योगिक बेल्ट की श्रृंखला इसके सहारे फली-फूली।

लेकिन वही सीपीसीएल 4 दिसंबर 2023 को चेन्नई के लिए तब एक अभिशाप बन कर सामने आई, जब उत्तरी मद्रास के एन्नोर और उसके आसपास के मछुआरों एवं अन्य तटीय समुदाय के लोगों के लिए यह सचमुच में एक ‘काला दिन’ बन गया था। उस दिन एन्नोर क्रीक के पास के समुद्र की सतह पर कच्चे तेल की एक काली परत तैर रही थी, और देखते ही देखते यह तेल रिसाव पास की नदी कोसाथलैयारू और बकिंघम नहर में प्रवेश कर गया और कुछ हिस्सा समुद्र में भी फैल गया। खूबसूरत मरीना बीच सहित पूरे चेन्नई तट पर तेल के काले धब्बे जहां-तहां बिखरे हुए थे।

तेल रिसाव बड़ी मात्रा में हुआ था, जो इशारा कर रहा था कि बेहद व्यापक मात्रा में कच्चा तेल समुद्र में फैल गया था, और समुद्री धाराओं के कारण तेल का रिसाव अब उत्तर में 40 किलोमीटर से भी अधिक दूर पझावेरकाडु, और दक्षिण में 60 किलोमीटर दूर महाबलीपुरम तक फैलना शुरू हो गया था जो कि विश्व का मशहूर हेरिटेज सेंटर है।

तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (टीएनपीसीबी) के अध्ययन से जाहिर हुआ है कि तेल रिसाव की घटना चेन्नई पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (सीपीसीएल) में हुई, जिसे पूर्व में मद्रास रिफाइनरीज लिमिटेड (एमआरएल) के नाम से जाना जाता था, जो असल में इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड की एक सहायक कंपनी है, और भारत सरकार के पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय का इस पर मालिकाना है।

काले तेल में सनी हजारों मृत मछलियां समुद्र के किनारे पर बह कर आ गई थीं। असंख्य समुद्री पक्षियों पर भी तेल की परत जम गई थी, और उनमें से कई मृत अवस्था में पाई गईं। लेकिन सबसे प्रमुख बात यह है कि इस हादसे के कारण तटीय गांवों में रह रहे मछुआरों की आजीविका पर भी काफी गंभीर प्रभाव पड़ा था।

मछली पकड़ने की मात्रा में भारी गिरावट आ गई थी, और जो भी मछली पकड़कर वे घर ला पाए उसका भी उपभोग नहीं किया जा सका। लोग दूषित मछली नहीं खरीद रहे थे, क्योंकि ऐसी मछली खाने से गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो रही थीं। मछली के व्यवसाय से जुड़े गांवों में तेल रिसाव के कारण मछुआरों के लिए गंभीर पर्यावरणीय और स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो रही थीं।

इस आपदा ने बड़े पेट्रो-रसायन उद्योगों के कारण होने वाले पारिस्थितिकी विनाश से उपजने वाले कई मुद्दों की ओर सभी का ध्यान आकृष्ट किया है।

क्या यह एक ‘प्राकृतिक’ आपदा थी या आपदा के मूल में कॉर्पोरेट लापरवाही?

शुरू में तो सीपीसीएल और केंद्र सरकार, जो कि इस बड़े कॉर्पोरेट कंपनी की मालिक है, ने तेल रिसाव के सटीक कारणों के बारे में सुस्पष्ट चुप्पी बनाए रखी। जबकि कानून के मुतबिक सीपीसीएल प्रभावित लोगों को हर्जाना देने के लिए उत्तरदायी है। लेकिन सीपीसीएल ने कभी भी इस तथ्य को स्पष्ट नहीं किया कि रिसाव वास्तव में क्यों और कैसे हुआ?

केवल अपनी देनदारी को कम करने के लिए, 13 दिसंबर को उसकी ओर से एक बयान जारी कर दावा किया गया कि चेन्नई पोर्ट ट्रस्ट से मनाली स्थित रिफाइनरी तक कारखाने को कच्चे तेल की आपूर्ति करने वाली 14 किलोमीटर लंबी पाइपों से किसी प्रकार का कोई रिसाव नहीं हुआ था।

ऐसे में प्रश्न खड़ा होता है कि फिर तेल कैसे फैल गया? सीपीसीएल ने इस बारे में केवल एक गोलमोल सा स्पष्टीकरण दिया कि बारिश का पानी रिफाइनरी में प्रवेश कर गया था और फैसिलिटी में जमा पेट्रो-रसायन बह गया।

इन दोनों ही स्पष्टीकरणों में समस्या थी। मद्रास पोर्ट ट्रस्ट से रिफाइनरी को कच्चे तेल की आपूर्ति करने वाली 30 इंच की पाइप लाइन 50 साल पुरानी है। उन पाइप लाइनों में कच्चे तेल के रिसाव के कई मामले पहले भी हो चुके हैं, जिसके कारण पूरे उत्तरी चेन्नई तट का भूजल दूषित हो गया था।

लगातार पाइपलाइन रिसाव की घटनाओं के मद्देनजर, विरोध में जून 2017 को छह मछली पकड़ने वाली बस्तियों सहित तीन तटीय आवासीय क्षेत्रों नल थन्नी ओडाई कुप्पम, रामकृष्ण नगर, अंबेडकर नगर और भरतियार नगर के मछुआरे सड़कों पर उतरे थे।

10 फरवरी 2019 को प्रधानमंत्री मोदी के हाथों 17 किलोमीटर की दूरी तक इन पाइप लाइनों को 42 इंच की बड़ी पाइप लाइन से बदलने की परियोजना का उद्घाटन किया गया था। उस समय सीपीसीएल ने दावा किया था कि नई पाइप लाइनों में उच्च संक्षारण प्रतिरोध एवं स्वचालित रिसाव का पता लगाने की प्रणाली स्थापित है। लेकिन इन नई पाइपलाइनों से रिसाव होने की घटनाओं के चलते मछुआरों द्वारा कई विरोध प्रदर्शन भी देखने को मिले हैं।

कासिमेदु फिशर्स डेवलपमेंट एसोसिएशन के द्वारा बार-बार विरोध और तमिलनाडु तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण के हस्तक्षेप के बाद कहीं जाकर सीपीसीएल 15 मीटर के अपने प्रारंभिक प्रस्ताव के बजाय 10 मीटर की गहराई पर नई पाइपलाइन बिछाने पर राजी हुआ और साथ ही इंसानी बस्तियों से गुजरने वाली पाइप लाइन की मोटाई 8 मिमी से 125 मिमी तक बढ़ाने पर भी सहमत हुआ। यह तथ्य भी सिर्फ यही बताता है कि नई पाइप लाइनें भी फुलप्रूफ नहीं थीं।

बारिश का पानी आखिरकार सीपीसीएल सुविधा के अंदर संग्रहीत तेल और अन्य पेट्रोकेमिकल को कैसे बहा सकता है? सीपीसीएल ने एलपीजी और अन्य पेट्रो-रसायन उत्पादों को पारंपरिक भंडारण टैंकों के बजाय “माउंडेड बुलेट्स” में संग्रहीत करने के लिए 2016 में एक परियोजना की शुरुआत की थी।

ऐसा माना जाता है कि नई प्रणाली इतनी प्रभावी ढंग से रिसाव को रोकने में सफल हैं कि एलपीजी गैस या पेट्रोलियम वाष्प का छोटा सा अंश भी इससे बच नहीं सकता है, क्योंकि यह आग पकड़ सकता है। ऐसे में ऐसी लीक-प्रूफ बुलेट्स में जमा तेल बारिश के पानी में कैसे बह गया? यह अपने आप में एक रहस्य है जिसका जवाब देने की जहमत सीपीसीएल के अधिकारियों ने नहीं उठाई।

जिम्मेदारी से बचती सीपीसीएल

प्रारंभ में सीपीसीएल ने चार दिनों तक चुप्पी बनाए रखी और 8 दिसंबर को इस बात से इंकार कर दिया कि उसकी पाइप लाइनों और कारखाने में तेल भंडारण फैसिलिटी से किसी प्रकार से तेल लीक हुआ है।

आखिरकार तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने सीपीसीएल में तेल रिसाव का पता लगाया और 7 दिसंबर को एन्नोर क्रीक और सीपीसीएल के दक्षिणी गेट के पास से पानी के नमूने जमा किए, जिसमें उच्च स्तर के हाइड्रोकार्बन एवं फेनोलिक यौगिकों की उपस्थिति पाई गई। शुरू में तो सीपीसीएल और तमिलनाडु प्रशासन के बीच आरोप-प्रत्यारोप का खेल शुरू हुआ, और इसके बाद सीपीसीएल ने आरोप मढ़ा कि तमिलनाडु सरकार ने सिर्फ एक “अधूरी” रिपोर्ट प्रस्तुत की है।

आखिर में जाकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) द्वारा इतनी बड़ी आपदा का संज्ञान लिया गया। एनजीटी की सुनवाई की पूर्व संध्या पर पहली बार सीपीसीएल ने स्वीकार किया कि उसकी फैसिलिटी से “थोड़ा सा तेल” लीक हुआ होगा, लेकिन साथ ही यह भी जोड़ा कि वे “अभी भी जांच” कर रहे हैं।

20 वर्ग किलोमीटर तक फैले तेल के रिसाव को नकारना या छिपाना मूर्खता होती। 12 दिसंबर को अपनी सुनवाई के दौरान, एनजीटी ने तेल रिसाव को रोकने के लिए 7 दिसंबर तक कोई कार्रवाई नहीं करने के लिए सीपीसीएल को फटकार लगाई और साथ ही सीपीसीएल को 14 दिसंबर तक स्थिति की रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया।

मीडिया और सार्वजनिक आक्रोश के बाद कहीं जाकर 13 दिसंबर 2023 को सीपीसीएल ने एक बयान जारी कर बताया कि तेल रिसाव को हटाने के लिए 60 नावें तैनात की गई हैं और उन्नत स्कीमर का उपयोग किया जा रहा है, और तेल रिसाव को हटाने में महारत रखने वाली चार निजी कंपनियों को रिसाव को दूर करने के लिए काम पर तैनात किया जा चुका है।

लेकिन हकीकत तो यह है कि सीपीसीएल द्वारा सिर्फ स्थानीय मछुआरों को मैन्युअल तरीके से तेल हटाने के काम पर नियुक्त किया गया था, जबकि उसके अपने कर्मचारी इस काम में हिस्सा नहीं ले रहे थे। एक सप्ताह के बाद ही तेल की परत हटाने के लिए निजी कंपनियों को तैनात किया गया और महाराष्ट्र और ओडिशा से इस काम के लिए स्कीमर लाए गए। सार्वजनिक स्तर पर आलोचना के बाद ही कंपनी द्वारा अपने कुछ कर्मचारियों को तैनात किया।

सीपीसीएल की ओर से ली गई पहल पर्याप्त नहीं थी क्योंकि तेल 20 वर्ग किलोमीटर से अधिक दायरे में फैल चुका था और यह एक बड़ी पारिस्थितिक आपदा का कारण बन रहा था। हैरानी की बात तो यह है कि भारी मुनाफे एवं साधन संपन्न कंपनी होने के बावजूद, इसने बड़ी आसानी से तेल निकालने का सारा बोझ राज्य सरकार पर डाल दिया।

राज्य सरकार की पहल भी नाकाफी थी

राज्य सरकार के पास सरकारी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा तय किए गए पैमाने पर कार्य करने के लिए सीपीसीएल को विशिष्ट निर्देश देने की शक्तियां निहित हैं। यहां तक ​​कि उसके पास सीपीसीएल परिचालन को निलंबित करने और संयंत्र को बंद करने की भी शक्तियां हैं, जैसा कि उसने थूथुक्कुडी में वेदांता के तांबा गलाने वाले संयंत्र के मामले में किया था।

लेकिन अजीब बात है कि डीएमके सरकार द्वारा सीपीसीएल के साथ बेहद नरमी वाला व्यवहार किया गया। यहां तक ​​कि उसके खिलाफ एक भी एफआईआर तक दर्ज नहीं की गई और न ही किसी सीपीसीएल अधिकारी को गिरफ्तार किया गया, क्योंकि सरकार ने इस बात की घोषणा ही नहीं की कि इतने बड़े पैमाने की आपदा की वजह सीपीसीएल प्रबंधन की लापरवाही थी। इसकी वजह यह है कि सभी पक्षों में इस बात को लेकर आम सहमति बनी हुई है कि यह दुर्घटना चेन्नई में मूसलाधार बारिश की वजह से हुई है, और सीपीसीएल की इसमें कोई लापरवाही नहीं थी।

स्थानीय समुदायों को प्रभावित करने वाले इतने बड़े पैमाने पर तेल रिसाव की घटना के पीछे डिजाइन में गंभीर चूक और पर्याप्त सुरक्षा उपायों का न होना है, और इसलिए यह एक इसे एक बेहद गंभीर कॉर्पोरेट अपराध की श्रेणी में रखा जाना चाहिए। प्रकृति पर दोष मढ़कर सीपीसीएल अपने दायित्व से नहीं बच सकती।

कल्पना कीजिए कि चक्रवाती तूफ़ान या भूकंप के कारण किसी परमाणु संयंत्र में विस्फोट हो जाए, जिसमें हजारों लोग मारे जाएं तो क्या हो? क्या इसके लिए भी प्रकृति को ही दोषी ठहराया जाएगा? फिर सरकार के पास आयातित परमाणु रिएक्टरों के लिए दायित्व अनुच्छेद का क्या औचित्य रह जाता है?

पूरी दुनिया में “प्रदूषणकर्ता को भुगतान करना होगा”- यह समय-सम्मानित सिद्धांत को अपनाया जा रहा है। जापान में भी फुकुशिमा परमाणु संयंत्र द्वारा पीड़ितों को 909 अरब डॉलर का मुआवजा दिया गया था, जबकि यह आपदा भूकंप और उसके परिणामस्वरूप छोटी सुनामी जैसी ज्वारीय लहरों के कारण हुई थी।

सीपीसीएल की स्थापना चक्रवात से अक्सर प्रभावित होने वाले तट पर की गई थी, जिसे हर साल पूर्वोत्तर मानसून के दौरान कई चक्रवात से दो चार होना पड़ता है। अगर आज इसी उद्योग को स्थापित करने का प्रस्ताव रखा जाता तो तटीय विनियमन क्षेत्र अधिनियम (सीआरजेड अधिनियम) के कारण इसे अस्वीकार कर दिया जाता।

केंद्र और राज्य सरकार इस बहाने से खुद को नहीं बचा सकतीं कि सीपीसीएल के लिए पर्यावरण मंजूरी एनजीटी या सीआरजेड अधिनियम के अस्तित्व में आने से पहले 1965 में केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों द्वारा प्रदान की गई थी। पर्यावरण कानूनों के तहत, नियमानुसार कंपनी को हर छह महीने पर पर्यावरण अनुपालन रिपोर्ट जमा करनी होती है जिसमें यह स्पष्ट करना होता है कि वह नए पर्यावरण मानदंडों का भी पालन करती है।

अपने स्वयं के पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों को सूचीबद्ध करते समय सीपीसीएल, जो कि एक सार्वजनिक लिमिटेड कंपनी है और अपने शेयरधारकों के प्रति जवाबदेह है, के द्वारा वायु प्रदूषण, विशेष रूप से सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन एवं जल प्रदूषण के खिलाफ अपने सुरक्षा उपायों को निर्दिष्ट किया जाता है, विशेष रूप से पुनर्नवीनीकरण पानी के प्रदूषण से संबंधित मामलों में, जो इसके उपयोग की प्रक्रिया में परिष्कृत करने के लिए उपयोग में लाया जाता है। लेकिन इसकी ओर से नियमित अग्नि सुरक्षा उपायों को छोड़कर अन्य आपदाओं से सुरक्षा की बात नहीं कही गई है। यह एक बड़ी चूक है।

सरकार की ओर से भी ऐसी प्राकृतिक आपदाओं के खिलाफ सुरक्षात्मक उपायों के लिए कड़े मानदंड तैयार नहीं किए गये हैं। और ऐसे आपदा-प्रवण उद्योगों के द्वारा मूल्यह्रास निधि की तरह कोई क्षतिपूर्ति निधि का भी गठन नहीं किया गया है।

इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि सीपीसीएल द्वारा प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए पूरी तरह से कार्य किया जा रहा है या नहीं, लेकिन राज्य सरकार तो नैतिक एवं कानूनी रूप से अपने नागरिकों की रक्षा करने के लिए बाध्य है। ऐसे में तटीय समुदायों की सुरक्षा का मुख्य बोझ तमिलनाडु सरकार पर आ जाता है। लेकिन रोकथाम उपायों की सीमा क्या होनी चाहिये? और ये उपाय किस हद तक प्रभावी थे?

18 दिसंबर 2023 के दिन तमिलनाडु सरकार द्वारा एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर दावा किया गया कि 700 कर्मियों, 110 नावों, 3 स्किमर, 2 हाइड्रोजेट, 5 गली सकर, 1 ट्रैक्टर, 11 टिपर, 5 पोकलेन और 7 जेसीबी उत्खननकर्ता को इस काम के लिए 14 दिनों तक तैनात किया गया था। लेकिन हकीकत तो यह है कि समुद्र तट की सफाई का काम केवल तीन तटीय गांवों नेट्टुक्कुप्पम, एन्नोर कुप्पम और मुगाथुवरम कुप्पम में ही पूरा किया जा सका।

यह भी तब हुआ जब तेल रिसाव के चलते चेन्नई शहर के तट पर मछली पकड़ने वाले 44 गांवों, तिरुवल्लुर जिले के तट पर मछली पकड़ने वाली 26 बस्तियों और कांचीपुरम जिले में मछुआरों की 42 ऐसी बस्तियां इसकी जद में आ चुकी थीं। कुल मिलाकर कहें तो यह प्रतीकात्मकता वाला मामला था, जिसमें सबसे नजदीकी केवल 3 गांव शामिल थे।

वैसे भी, तमिलनाडु सरकार ने अभी तक इस बात का खुलासा नहीं किया है कि उसके द्वारा करदाताओं का कितना पैसा इस रिसाव को हटाने पर खर्च किया है। केंद्र या सीपीसीएल की ओर से भी नहीं बताया गया है कि सीपीसीएल ने इस काम पर कितना पैसा खर्च किया है।

आज तक तमिलनाडु सरकार द्वारा सीपीसीएल को अपने स्वयं के खर्चों को वहन करने का निर्देश देने के लिए एनजीटी से संपर्क साधने को लेकर संपर्क साधा गया है, को लेकर कोई रिपोर्ट नहीं है। केंद्र सरकार की ओर से भी तेल रिसाव को दूर करने के विशिष्ट उद्देश्य के लिए किसी अनुदान की बात नहीं कही गई है, जबकि इसके लिए मुख्य रूप से उसके स्वयं के पेट्रोलियम मंत्रालय के तहत एक उद्योग ही जिम्मेदार है।

एनजीटी का ढांचा भी त्रुटिपूर्ण है

भारत में आपदा प्रभावित लोगों के लिए राहत पाने का कोई क़ानूनी स्वीकृत अधिकार नहीं है, और सुरक्षित वातावरण के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में अंगीकार नहीं किया गया है। कायदे से एनजीटी को उन प्रभावित लोगों के लिए मुआवजे का आदेश देना चाहिए जो कॉर्पोरेट घरानों द्वारा पर्यावरण सुरक्षा उल्लंघन एवं प्रदूषण के शिकार हैं।

लेकिन इसके पास मछुआरों एवं अन्य तटीय लोगों को हुए नुकसान का सटीक आकलन करने का कोई साधन नहीं है। प्रदूषण नियंत्रण पर खर्च के कारण राज्य सरकारों को होने वाले नुकसान को सीधे उद्योगों से वसूले जाने की व्यवस्था नहीं बनाई गई है।

तात्कालिक नुकसान से भी प्रमुख चिंता इस बात की की जानी चाहिए कि स्थानीय आबादी के स्वास्थ्य पर इसका दीर्घकालिक प्रतिकूल प्रभाव और बीमारियों का खतरा बना हुआ है। इसके अलावा भूजल प्रदूषण, वनस्पतियों और जीवों को नुकसान की भरपाई कभी भी नहीं की जाती है।

सबसे बड़ी बात तो यह है कि भारत में कोई भी कानून स्पष्ट रूप से इस बात को नहीं बताता है कि प्रदूषण फैलाने वाले को इसका भुगतान करना होगा या मुआवजे की मात्रा के लिए मानदंड निर्दिष्ट करने होंगे। यहां तक ​​कि भारत में किसी भी पक्ष द्वारा की गई दुर्घटनाओं के नुकसान के लिए दिया जाने वाला मुआवजा भी बेहद मामूली है जो कि मुकदमे की लागत की तुलना में बेहद कम है। एनजीटी के पास भले ही सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियां हों, लेकिन उसे बेहद कमजोर कानूनी नींव एवं अविकसित हरित न्यायशास्त्र पर अपना काम करना पड़ रहा है।

प्रमुख कॉर्पोरेट हाउस सीपीसीएल की ओर से बेख़ौफ़ टिप्पणी 19 दिसंबर 2023 को तब सामने आई जब सीपीसीएल के प्रबंध निदेशक अरविंद कुमार ने पत्रकारों के सामने साफ़-साफ़ इस बात से इंकार कर दिया कि सीपीसीएल से एन्नोर क्रीक और कोसथलैयरु में कच्चा तेल लीक हुआ है। उनका कहना था कि ऑयल स्लिक में फिनोल और ग्रीस पाया गया है, और ये सीपीसीएल में रिफाइनिंग प्रक्रिया से उत्पन्न नहीं हुए थे।

उनके अनुसार, “इस क्षेत्र में और भी 25 बड़े और मध्यम उद्योग सहित 500 से अधिक छोटी इकाइयां हैं, और उन पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।” यह न सिर्फ कॉर्पोरेट बेईमानी की पराकाष्ठा है बल्कि यह टीएनपीसीबी के निष्कर्षों की भी सिरे से नकारने वाला बयान है।

जाहिर सी बात है कि पेट्रोलियम मंत्रालय एवं केंद्र की पूर्व मंजूरी के बिना अरविंद कुमार ने यह पद नहीं संभाला होगा। उनका यह निष्कर्ष मोदी सरकार और तमिलनाडु सरकार के बीच संघीय आधार पर एक नई लड़ाई की शुरूआत कर सकता है।

जलवायु परिवर्तन के चलते चेन्नई में रिकॉर्ड बारिश जैसी असामान्य मौसमी घटनाओं को अब आम नियम बना दिया है। ऐसे में, यदि समुचित आपदा सुरक्षा उपाय नहीं किए गए, तो आज जो चेन्नई में हुआ वह कल को चेन्नई में समुद्र तट पर स्थित दर्जनों प्रमुख उद्योगों, जिनमें कलपक्कम में स्थापित परमाणु ऊर्जा संयंत्र सहित कुड्डालोर, नागप्पट्टिनम और थूथुक्कुडी में दोहराया जा सकता है।

सीपीसीएल आपदा हमारे लिए आंखें खोलने वाली होनी चाहिए। यथोचित नए कानूनों के माध्यम से, नवीनतम आपदा सुरक्षा मानदंडों को इन सभी उद्योगों के लिए अनिवार्य बनाया जाना समय की मांग है।

(बी.सिवरामन स्वतंत्र शोधकर्ता हैं। [email protected] पर उनसे संपर्क किया जा सकता है।)

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