Friday, March 29, 2024

“भारत में मैं कैसे इंटरनेट की दुनिया में मशहूर हो गया”

अगर आप सच में जानना चाहते हैं कि किस तरह मैं भारत में “इन्टरनेट की दुनिया में मशहूर हो गया”, तो सबसे पहले आप यह जानने को उत्सुक होंगे कि मैं कहां पैदा हुआ और मेरा किस तरह का बेढंगा बचपन रहा, मेरे मां-पिता क्या करते थे। मुझसे पहले, डेविड कॉपरफील्ड के जैसी शैतानियां आदि-आदि। लेकिन मैं इन सब में नहीं जा रहा हूं, अगर आप सच जानना चाहते हैं।
सच यह है कि अगर मैं आपको यह न बताऊं कि मैंने अपने लेख की शुरुआत ही J.D. Salinger के शब्दों की चोरी से शुरू की है, लिहाजा मैं इस चोरी में खुद को शामिल करता हूं। चोरी के आरोप से ही इस सारे झगड़े की शुरुआत हुई है। लेकिन शुरू-शुरू में मुझे इसका पता नहीं था।
मेरे लिए, यह एक अबोध शुरुआत के रूप में दिखी, जब किसी अपरिचित ने ट्विटर पर मुझसे एक बेहद सामान्य सवाल किया।

मैंने लिंक पर क्लिक किया और सहमति दी, हालांकि वह लेख मैंने जनवरी 2017 में डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति पद ग्रहण करने के तुरंत बाद लिखा था। इन ढाई सालों में यह लिंक बेढब हो चला था। मैंने रेशमी को बताया कि मुझे इसे अपडेट करना होगा। लेकिन इसे तुरंत नहीं करने वाला, यह मेरे लिए प्राथमिकता में अभी नहीं है।

कुछ ही देर में, मैंने नोटिस किया कि कुछ लोग इस लेख को ट्वीट कर रहे हैं, और वे सभी भारतीय नाम लग रहे थे। मैं इससे खास आश्चर्यचकित भी नहीं था और जानता था कि जो कोई फासीवाद के आरंभिक लक्षणों के बारे में जानने के लिए उत्सुक होगा, उसे गूगल में इस लेख की हाई रैंकिंग के चलते ढूंढने और पढ़ने में कोई दिक्कत नहीं होगी, क्योंकि वाशिंगटन मंथली में भारी मात्रा में इन्टरनेट पर शुरू में सर्च किया गया था। मैं यह भी जानता था कि भारत सरकार का आचरण ट्रम्प प्रशासन की तरह ही मिलता-जुलता है और मैंने निष्कर्ष निकाला कि शायद किसी भारतीय ने मेरे इस लेख को किसी बातचीत में लिंक कर दिया होगा और बातचीत बहस का सिलसिला भारत में चल निकला होगा। लेकिन असल में मैं इसका आधा भी नहीं जानता था कि वहां क्या चल रहा है।

मुझे ठीक-ठीक याद नहीं कि मैं किस कारण से “फासीवाद के 12 आरंभिक खतरे के लक्षणों” को लिखना शुरू किया था, लेकिन मैं थोड़े से रिसर्च के बाद और अनुमान के आधार पर फिर से बताने की कोशिश करता हूं।
मेरा विश्वास है कि इसकी शुरुआत साराह रोज नामक महिला के द्वारा 30 जनवरी 2017 को इस इमेज को ट्वीट करने से हुई।

जैसा कि आप देख सकते हैं, 2.5 लाख लोगों से अधिक लोगों ने इस ट्वीट को पसंद किया। मुझे यह लिस्ट रोचक लगी और मैंने फैसला लिया कि इसे आधार बनाकर ट्रम्प के राष्ट्रपति चुनाव प्रचार का मूल्यांकन करूंगा। इससे अधिक मेरे दिमाग में कुछ नहीं था, लेकिन इसमें दो चीजें थीं, जिसका उस समय मुझे कोई गुमान नहीं था।
पहली, सराह रोज के ट्वीट में सिर्फ इस बात का जिक्र था कि यह लिस्ट अमेरिका के होलोकास्ट म्यूजियम में अंकित है। इसका मतलब था कि इसे प्रदर्शन के लिए रखा गया था, और इस पर वहां के संरक्षकों कि सहमति थी। जब यह पूरा बवाल भारत में फ़ैल गया तो मैंने खोजा तो पाया कि सच कुछ अलग ही है। साराह रोज ने पुष्टि की कि उसने यह म्यूजियम के गिफ्ट शॉप से लिया। इसलिए, जब मैंने लिखा कि “यदि आप अमेरिकन होलोकास्ट म्यूजियम जायेंगे, तो आप देखेंगे कि वहां पर आपको पट्टिका लटकी मिलेगी जिसमें बताया गया है कि अगर आपको देखना है कि आपका देश फासीवाद के आगोश में फिसल रहा है तो उसके क्या क्या लक्षण हैं।”,  मैं गलत नहीं था। लेकिन मैं अनजाने में लोगों के अंदर गलत भ्रम पैदा कर रहा था। म्यूजियम ने मार्च 2017 में Snopes को बताया कि अब उनके गिफ्ट शॉप में वैसा कोई पोस्टर नहीं है।
दूसरी बात जो मैं नहीं जानता था वह यह थी कि उस लिस्ट को लौरेंस ब्रिट नाम के एक व्यक्ति ने 14 साल पहले ही Free Inquiry मैगज़ीन में प्रकाशित करवाया था। अगर मुझे इसका पता होता तो मैं इसके लिए उनको क्रेडिट जरूर देता। अवश्य ही मैं उनकी लिस्ट पर उन्हें बिना आभार के इस्तेमाल नहीं करता। मैं समझता हूं मैंने होलोकास्ट म्यूजियम को इसका श्रेय देकर वह काम कर दिया था।
कुछ लोगों के लिए, ब्रिट की हैसियत एक अनगढ़ इतिहासकार होने के कारण उस लिस्ट की वैधता न होने के समान है। लेकिन व्यक्तिगत रूप में, मेरे लिए फासीवाद को समझने के लिए यह बेमिसाल प्वाइंटर हैं, चाहे उसे जिसने भी लिखा हो। मेरे हिसाब से होलोकास्ट म्यूजियम के क्यूरेटर इससे सहमत थे, या शायद मैं गलत होऊं। क्योंकि यह पोस्टर गिफ्ट शॉप में बेचने के लिए उपयुक्त लगी, और लोगों ने इस पर कोई आपत्ति दर्ज नहीं की, खासकर ऐसे लोग जो अतिसंवेदनशील थे।
बहरहाल, मुझे वह लिस्ट बेहद भा गयी। इसलिए मैंने वह लेख लिखा और बहुत से लोगों ने उसे पढ़ा। उसके बाद न मैंने उसके बारे में सोचा, सिवाय इस हफ्ते के।
मेरे पास पहली इस पर सूचना मेरे Washington Monthly के सम्पादकीय विभाग के मित्रों से आई। जिससे पता लगा कि कुछ अजीब सा चल रहा है। पहले मुझे यह सूचित किया गया कि उस लेख पर ट्रैफिक अचानक से बढ़ गया है। फिर इसका कारण यह पता चला कि भारत में नई-नई सांसद बनी कोई महुआ मोइत्रा हैं, जिन्होंने अपने संसद के पहले भाषण में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के फासीवादी प्रवृत्तियों का जिक्र किया है। उन्होंने मुझे उनके भाषण की ट्रांसक्रिप्ट मुहैया करायी और बताया कि उन पर आरोप है कि उन्होंने मेरे लेख की चोरी कर अपना भाषण दिया है।
मैंने तुरंत ट्रांसक्रिप्ट को पढ़ डाला और नोटिस किया कि उन्होंने लिस्ट को छोटा कर इसे 7 लक्षणों में समेट दिया है। मुझे नहीं लगा कि उन्होंने मेरी भाषा का इस्तेमाल किया है, फिर मुझे लगा कि क्या पता ट्रांसक्रिप्ट और अनुवाद ही कहीं ठीक से और पूरा न किया गया हो, इसलिए मैंने फिर उस भाषण का वीडियो देखा।

अच्छा रहा कि मोइत्रा का भाषण अंग्रेजी में ही था, जिससे मेरा काम आसान हो गया। ट्रांसक्रिप्ट में कोई गलती नहीं थी। उन्होंने न मेरे शब्द उधार लिए थे और न ही मेरे काम का अनुचित लाभ ही लिया था। मुझे तो यह तय करने में भी दिक्कत हो रही थी कि क्या उन्होंने कभी मेरा काम पढ़ा भी है या नहीं।
मैंने दोबारा, तिबारा ट्रांसक्रिप्ट ध्यान से पढ़ डाली। मैंने नोटिस किया कि मोइत्रा ने अपने भाषण की रुपरेखा में यह कहकर धन्यवाद दिया है:
2017 में, अमेरिकन होलोकास्ट म्यूजियम ने अपनी मुख्य लॉबी में एक पोस्टर दर्शाया था, जिसमें फासीवाद के आरंभिक लक्षणों की लिस्ट थी। मैंने जिन सात लक्षणों का जिक्र किया है, वे सभी उस पोस्टर में दिखाए गए थे।

वह भी वही गलती कर रही थीं जो मैंने की थी: उस पोस्टर पर सरकारी मुहर मानकर जिसके वह योग्य नहीं था। यह एक निर्दोष गलती थी, और मेरे साथ भी यही हुआ था, और यह सम्भव है कि मेरी गलती के कारण वह गलती मोइत्रा से भी हो गई। हम दोनों ने इसका क्रेडिट माननीय लौरेंस ब्रिट को नहीं दिया था, और मैं समझता हूं कि यह स्पष्ट है कि ऐसा क्यों नहीं हो सका। लेकिन एक बात बिल्कुल शीशे की तरह साफ़ है कि उन्होंने मेरे काम से चोरी नहीं की थी, जिसका उन पर आरोप मढ़ा जा रहा था।

अब मेरा अगला कदम था यह पता लगाना कि ये आरोप कैसे लगाये गए और किसके द्वारा? मैं शायद कुछ भूल रहा हूं। सबसे पहले मैंने किसी डॉक्टर विजय चौथै वाले को पहचाना, और उनसे बात की।
(तृणमूल की सांसद का वह प्रसिद्ध भाषण जिसकी राजदीप सरदेसाई ने प्रशंसा की है, वह लेख एक अमेरिकी पत्रकार ने जनवरी 2017 में ट्रम्प के लिए लिखा था। मोइत्रा ने सिर्फ एक काम किया, ट्रम्प की जगह मोदी को चिपका दिया। चोरी चकारी का सबसे घटिया नमूना है यह। यह देखिये असली लेख https://washingtonmonthly.com/…/the-12-early-warning…/
तुम खुद को वैज्ञानिक कहते हो मान्यवर चौथीवाले, लेकिन इस लेख का लेखक होने के नाते मैं इस बात से सहमत नहीं हूं कि महुआ मोइत्रा के भाषण को चुराया हुआ कहा जाए। उन्होंने इससे प्रेरणा ली होगी, लेकिन उनके पास भी यही विचार हो सकते हैं। जो भी हो, लेकिन उन्होंने मेरे लेख से यह नहीं चुराया है।
जल्दी ही मैंने सुधीर चौधरी नाम के उस असली आदमी को खोज निकाला जो वास्तव में इस चोरी वाले इल्जाम को लगाने में सूत्रधार का काम कर रहा था। चौधरी मोदी समर्थक केबल न्यूज़ चैनल Zee News का प्रधान सम्पादक है और Zee News को आप भारत का Fox News चैनल समझ सकते हैं। ऐसा लगता है कि चौधरी एक बेहतर वर्जन हैं हमारे सीन हंनिटी या टकर कार्लसन के, और मैंने मन में सोचा कि मैं ऐसे घटिया-जूता चाटने वाले पत्रकारों को अच्छे से जानता हूं। ये भी लगा कि भारत में बेकार में मेरे सम्मान की रक्षा ये गिरहकट कर रहे हैं, और इसकी आड़ में एक पूरी ट्रोल आर्मी है जो झूठे इल्जाम लगा रही है। इन दोनों बातों से मुझे गुस्सा और हंसी दोनों आई। इसके जवाब में मैंने जो ट्वीट किया उसे मुझे थोड़ा और सहेज कर लिखना चाहिए था अगर मुझे अहसास होता कि यह वैश्विक स्तर पर इतना वायरल होने जा रहा है।

मैं भारत की इन्टरनेट की दुनिया में प्रसिद्ध हो गया हूं क्योंकि एक नेता को मेरे लेख की चोरी का गलत इल्जाम लगाया जा रहा है। यह मजेदार है, लेकिन लगता है दक्षिणपंथी चूतिये हर देश में एक जैसे ही होते हैं।
मैं जानता हूं कि मेरी मां को मेरे शब्दों के चुनाव पर गर्व नहीं है, और उसके लिए मैंने उससे माफ़ी भी मांग ली। मैंने सच में माफ़ी मांगी। लेकिन मेरे कहने का जो आशय था उस पर कायम हूं। जो मैंने भारत में होते देखा, वह अमेरिका में हम रोज देखते हैं। दक्षिणपंथी सरकार से जुड़े “पत्रकारों” की कोशिश रहती है कि लोगों का ध्यान समाज को बर्बाद करने वाली सूचनाओं के द्वारा भटका कर भडकाऊ और उलजुलूल खबरों को ट्रोल द्वारा दूर-दूर तक फैलाया जाए। मिस मोइत्रा की स्पीच ने गहरा असर छोड़ा और वह रातों रात एक सेलेब्रिटी बन गईं, इसीलिये HuffPost ने उनके भाषण का video और ट्रांसक्रिप्ट चलाया। यह मुझे अपने यहां कि नई सनसनी, महिला सीनेटर अलेक्सांद्रिया ओकासियो-कोर्तेज़ की याद दिलाता है जिनके पीछे इसी तरह दक्षिणपंथी पड़ गए थे।

इसलिए, जो कहा सो कहा। और लगा कि बात आई गई हो गई। लेकिन थोड़ी देर बाद ही, मोइत्रा पर मेरा जवाब, भारतीय अख़बारों और वेबसाइट पर आने लगा और ऐसा लगा जैसे हर मिनट में 3 नए लोग मुझे भारत से फॉलो कर रहे हैं। मैं अभी तक भारत में “इन्टरनेट में मशहूर” होने का मजाक उड़ा रहा था, लेकिन अब सच का चक्र बन गया था। और फिर वह हुआ जिसकी मैंने कल्पना नहीं की थी।
#WATCH TMC MP महुआ मोइत्रा ने मीडिया से बात करते हुए संसद में अपने पहले भाषण पर लगे चोरी के आरोपों का जवाब देते हुए अमेरिकन पत्रकार मार्टिन लोंगमन के ट्वीट का हवाला दिया है जिसमें कहा कि “दक्षिणपंथी a**holes हर देश में एक जैसे पाए जाते हैं।”

मुझे नहीं लगा था कि यह आने वाला है।  मोइत्रा ने वास्तव में मेरे ट्वीट को पूरे प्रेस वालों के सामने जोर-जोर से पढ़ा, वह भी जो बदनाम था। अब इस कहानी के बारे में कई और बातें बताई जा सकती हैं, लेकिन बस इतना ही। मैं बता सकता कि घर आकर मैंने क्या किया और मुझे यह सब कितना ख़राब लगा। ये सब बताना मुझे अब गैर जरुरी लगता है। ओह ऊप्स, अब मैं J.D. Salinger की चोरी कर रहा हूं। यह सब पढ़कर मैं बीमार नहीं पड़ा। वास्तव में यह सब देखकर मुझे बहुत मजा आया कि भारत में ट्विटर किस तरह काम करता है।

वहां पर ट्विटर एक ऐसी जगह है जहां लोग खुलकर एक दूसरे की ऐसी-तैसी करते हैं। मेरी पूरी जिन्दगी में इतनी इज्जत इतनी नहीं उतारी गई होगी, जितना इस बार और मैंने एक-एक पल का आनन्द उठाया।  मैं समझता हूं कि औसत अमेरिकन से भारतीय इतिहास की जानकारी मेरे को अधिक है, लेकिन पहली बार मैं स्वीकार करता हूं कि वहां के रोज ब रोज के राजनैतिक जीवन के बारे में मेरी जानकारी न के बराबर थी, और वह मुझे इस दौरान ही पता चली, जब खुद पर गुजरी। मुझ पर मोइत्रा के पक्ष में खड़े होने का इल्जाम लगाया गया, यहां तक कि उनकी पार्टी से पैसे खाने का इल्जाम तक लगा।

इसके बाद मैंने मोइत्रा की पार्टी के बारे में कुछ शोध की और नवीनतम भारतीय राजनैतिक विषयों और घटनाओं की जानकारी ली,लेकिन यह मेरी लड़ाई नहीं है। मैंने मोइत्रा की स्पीच को सुना और पढ़ा और इसमें कई सारी चीजें ऐसी लगीं जो मेरे मन के करीब हैं, क्योंकि मेरे देश में भी सरकार से यही सरोकार हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं किसी भी तरह उनके पक्ष में जाकर खड़ा हो गया हूं।

मेरी नजर में, उनके ऊपर मेरे लेखन की चोरी का आरोप गलत है। जो लोग यह झूठे आरोप लगा रहे हैं, वे चाहते हैं कि इस तरह बदनाम कर लोगों को भटका दिया जाए, जिससे लोग उस सच तक न पहुंच पाएं, जिस सच को महुआ मोइत्रा ने कहा है। मुझे लगा कि मैं तथ्यों को ठीक-ठीक दिखाने की कोशिश करूं, और मैंने वही किया। अब मेरे काफी भारतीय ट्विटर फालोवर हैं। मुझे नहीं लगता कि वे मुझसे यह आशा करते हैं कि मैं उनके झगड़े में कोई साइड लूं। अगर उन्हें अच्छा जोक पसंद है तो मैं उन्हें निराश नहीं करूंगा। लेकिन मैं समझता हूं कि जिस तरह मैं 15 मिनट के लिए भारत में प्रसिद्ध हो गया, उसी तरह वह खत्म भी हो जाए।

(मार्टिन लांगमैन वाशिंगटन मंथली के वेब एडिटर हैं। वाशिंगटन मंथली में अंग्रेजी में प्रकाशित इस लेख का हिंदी अनुवाद स्वतंत्र टिप्पणीकार रविंद्र सिंह पटवाल ने किया है।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles