Wednesday, April 24, 2024

आखिर भूखे पेट कब तक काम करेंगी आशा कार्यकर्ता और आशा संगिनी?

“भूखे भजन न होईं गोपाला, ले लो अपनी कंठी माला” इस लोकोक्ति को सच करती हुई 1 मार्च को उत्तर प्रदेश की हजारों आशा कार्यकर्ताओं ने ब्लॉक और सीएचसी पर कार्यबंदी कर विरोध प्रदर्शन किया। आशा कार्यकर्ताओं का पिछले 4 से 6 महीने का वेतन बकाया है जिस कारण उनका परिवार भुखमरी के कगार पर पहुंच चुका है। 

“एक तो वैसे ही जीने लायक मानदेय नहीं मिलता, उस पर भी छः महीने का बकाया है।” भले ही यह एक आशा कार्यकर्ता ने कहा हो लेकिन ये उत्तर प्रदेश की तमाम आशा कार्यकर्ताओं का दर्द है। तभी तो ‘दो हजार में दम नहीं, इक्कीस हजार से कम नहीं’ के नारे के साथ कल आशा कार्यकर्ताओं ने प्रदेश के सभी जिलों के तमाम सीएचसी पर अपनी आवाज़ बुलंद की।

उत्तर प्रदेश के आशा वर्कर्स यूनियन के तहत आशा कार्य़कर्ताओं ने तमाम जिलों के अलग-अलग ब्लॉकों पर हड़ताल करते हुए विरोध-प्रदर्शन किया और राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपा। कुशीनगर, गोरखपुर, महाराजगंज समेत कुल 41 जिलों में आशा कार्यकर्ताएं कल हड़ताल पर रहीं और बकाये वेतन के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन किया।  

राष्ट्रपति को सौंपा ज्ञापन

आशा कार्यकर्ताएं समाजसेविका नहीं हैं

प्रदर्शन के दौरान ‘आज करो अर्जेंट करो, हमको परमानेंट करो’, ‘2 हजार में दम नहीं 21 हजार से कम नहीं’, आशा कार्यकर्ताओं और आशा संगिनीयों को स्थाई करो, आशाओं का शोषण बंद करो, योगी मोदी होश में आओ, यौन हिंसा को रोकने के लिए महिला सेल का गठन करो, आशाओं को ईएसआई का लाभ दो, 10 लाख का स्वास्थ्य बीमा, 50 लाख रुपये का जीवन बीमा की गारंटी करो आदि नारे लगाये गए।

प्रदर्शन को सम्बोधित करते हुए उत्तर प्रदेश आशा वर्कर्स यूनियन की शहर संयोजिका रूपाली श्रीवास्तव ने कहा कि आशा समाजसेविका नहीं कर्मचारी हैं, जिन्हें श्रम सम्मेलन से मान्यता मिली है। इनको न्यूनतम वेतनमान और पीएफ, ईएसआई और पेंशन का लाभ दिया जाना चाहिए।

प्रदेश भर में आशा कार्यकर्ताओं और आशा संगिनियों का 4 से 6 माह तक  का संपूर्ण मानदेय बकाया है। बहुत कम प्रोत्साहन राशि  में रात दिन काम करने वाली आशा कार्यकर्ताएं और आशा संगिनियां भुखमरी की कगार पर हैं। रुपाली श्रीवास्तव ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि बहुत थोड़े से मानदेय के भुगतान की चिंता न एनएचएम को रहती है और न सरकार को। सरकार द्वारा घोषित आशा का 6700+ और अन्य कार्यों की प्रोत्साहन राशि और संगिनी बहनों का 11000+ अन्य सेवाओं की प्रोत्साहन राशियां अभी तक सरकारी जुमला ही हैं।

भुखमरी की शिकार आशा वर्कर

उत्तर प्रदेश आशा वर्कर्स यूनियन की शहर सह संयोजिका राजेश्वरी ने प्रदर्शन सभा को संबोधित करते हुए कहा कि अल्प मानदेय में रात-दिन काम करने वाली आशा कार्यकर्ताएं और आशा संगिनियां भुखमरी की शिकार हो रही हैं। उन्होंने आगे कहा कि कई वर्षों से दस्तक और आयुष्मान कार्ड बनाने जैसे कार्यों में अलग से समकालीन कार्यों में किए गए नियोजनों की कोई प्रोत्साहन राशि आज तक भुगतान नहीं की गई है। 

उत्तर प्रदेश आशा वर्कर्स यूनियन की शहर सह संयोजिका नीलम जायसवाल ने कहा कि कोई भी आशा ऐसी नहीं है जिसने 5 से 1000 तक गोल्डन आयुष्मान कार्ड बनाने समेत दूसरे कामों में योगदान न दिया हो और वर्तमान समय में फिर योगदान कराया जा रहा है। उन्होंने बताया कि पूर्व घोषित ₹5 प्रति कार्ड की अनुतोष राशि और इस वर्ष की प्रति कार्ड की घोषित ₹10 की राशि का पैसा भुगतान नहीं मिला। 

प्रदर्शन को संबोधित करते हुए सफाई मजदूर एकता मंच के जिला उपाध्यक्ष और ऐक्टू नेता वीरेंद्र रावत ने कहा कि सरकार ने चुनावी वर्ष में समारोह पूर्वक आशा कर्मियो को उपहार कहकर मोबाइल भेंट किए थे। अब उन्हीं अनुपयोगी मोबाइल से कार्य का डेटा फीड करने, आयुष्मान कार्ड बनाने का फरमान जारी हुआ है। डेटा उधार, 2 जी नेटवर्क, दूर दराज ग्रामीण जीवन में नेटवर्क संकट, उस पर एक घंटे की ट्रेनिंग पर कंप्यूटर ऑपरेटर का कार्य करने के लिए मजबूर किया जा रहा है। 

कार्यक्रम के दौरान 3 मार्च को सदर तहसील पर होने वाले प्रदर्शन में सभी आशाओं से सम्मिलित होने की अपील की गई। प्रदर्शन में भाकपा माले के जिला प्रभारी सुनील मौर्य, वीरेंद्र रावत ने शामिल होकर आशा कार्यकर्ताओं का समर्थन किया।

आशा कार्यकर्ताओं का विरोध प्रदर्शन

कई कार्यों में नहीं दी जाती प्रोत्साहन राशि

प्रदर्शन के दौरान आशा कार्यकर्ताओं ने बताया कि वर्षों से दस्तक, कुष्ठ रोग, टीवी, खसरा, रुबैला, फाइलेरिया, आयुष्मान कार्ड बनवाने, जैसे कार्यों में कोई प्रोत्साहन राशि नहीं दी गई। आशा कार्यकर्ताओं ने कोविड प्रोत्साहन राशि में भी लूट खसोट किए जाने का आरोप लगाया। आशा कार्यकर्ताओं ने मांग किया कि आशा कार्यकर्ताओं को 6700 रुपये और संगिनी को 11 हजार रुपये की दर से मानदेय और अन्य कार्यों की प्रोत्साहन राशि के भुगतान की गारंटी दी जाये।

आशा कार्यकर्ताओं ने पेंशन और ग्रेच्युटी के भुगतान और वर्ष 2022 में दुर्घटनाओं में जान गंवाने वाली आशा कार्यकर्ताओं को 20 लाख रुपये मुआवजे की मांग की।  इसके अलावा 3 साल के अंतराल पर स्थानांतरण भुगतान के नाम पर होने वाली लूट को रोकने के लिए निगरानी तंत्र बनाये जाने की भी मांग की।

बहरिया स्वस्थ्य केंद्र में ब्लॉक अध्यक्ष संगीता सिंह की अगुवाई में आशा कार्यकर्ताओं ने ‘ईंट से ईंट बजा देंगे’ नारे के साथ विरोध प्रदर्शन करते हुए 12 सूत्रीय मांगों को दोहराया। मेजा ब्लॉक में प्रदर्शन के दौरान आशा कार्यकर्ताओं ने सरकार को चेताया कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गई तो वो बेमियादी हड़ताल पर जाने को मज़बूर हो जाएंगी।    

आशा कार्यकर्ताओं को दो हजार रुपये केंद्र से और पंद्रह सौ रुपये अतिरिक्त मिलते हैं। इसके अलावा उन्हें कुछ अन्य प्रोत्साहन राशि भी मिलती है। जिससे कि उन्हें प्रति प्रसव 600 रुपये और बैठक के 150 रुपये मिलते हैं। आशा को सार्वभौमिक टीकाकरण को बढ़ावा देने, प्रजनन और बाल स्वास्थ्य और अन्य स्वास्थ्य सेवाओं और घरेलू शौचालयों के निर्माण के लिए उनके कार्य के मुताबिक इंसेंटिव मिलता है। उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्र में 1 लाख 56 हजार और शहरी क्षेत्र में 60 हजार से अधिक आशा कार्यकर्ताएं हैं। इनके अलावा 7 हजार आशा संगिनी कार्यरत हैं।

क्या है आशा का मतलब

आशा (Accredited Social Health Activist) मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता होती हैं जो कि समुदाय (गांव) से ही चुनी जाती हैं। आशा को समुदाय और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के बीच एक इंटरफेस के रूप में काम करने के लिए चुना जाता है। सरल शब्दों में कहें तो आशा वर्कर ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था की रीढ़ हैं।

आशा गांव में एक स्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं जो स्वास्थ्य और इससे जुड़े सामाजिक निर्धारकों के बारे में जागरुकता पैदा करती हैं। वो ग्रामीणों को स्थानीय स्वास्थ्य योजना और योजनाओं के उपयोग और जवाबदेही को बढ़ाने के लिए प्रेरित करती हैं। आशा उच्च स्तर के लिए उचित और व्यवहार्य उपचारात्मक देखभाल का न्यूनतम पैकेज और रेफरल प्रदान करती हैं।

आशा कार्यकर्ताओं का प्रदर्शन

 ‘आशा की भूमिका और जिम्मेदारी

आशा कार्यकर्ताएं जागरुकता पैदा करने का काम करती हैं। वो अपने निश्चित इलाकों को स्वास्थ्य के निर्धारकों जैसे पोषण, बुनियादी स्वच्छता, और स्वच्छ प्रथाओं, स्वस्थ रहने और काम करने की स्थिति, मौजूदा स्वास्थ्य सेवाओं की जानकारी देती हैं। इसके अलावा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण सेवाओं के बारे में जानकारी देने करने और सुविधाएं उपलब्ध कराने का काम करती हैं।

आशा समुदाय को संगठित करती हैं और उन्हें गांव उपकेंद्र प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रो जैसे टीकाकरण, प्रसव पूर्व जांच, प्रसव के बाद जांच में उपलब्ध स्वास्थ्य और स्वास्थ्य संबंधी सेवाओं तक पहुंचने में सुविधा प्रदान करती हैं। आशा के कार्य में महिलाओं को जन्म की तैयारी, सुरक्षित प्रसव का महत्व, स्तनपान, पूरक आहार टीकाकरण, गर्भनिरोधक और प्रजनन पथ के संक्रमण, यौन संचारित संक्रमण और छोटे बच्चों की देखभाल सहित सामान्य संक्रमणों की रोकथाम के बारे में सलाह देना और कार्य करना शामिल है।

आशा एक व्यापक ग्राम स्वास्थ्य योजना विकसित करने के लिए ग्राम पंचायत की ग्राम स्वास्थ्य और स्वच्छता समिति के साथ भी काम करती हैं। आशा अपने गांव में जन्म और मृत्यु और समुदाय में किसी भी असामान्य स्वास्थ्य समस्या, बीमारी के प्रकोप के बारे में उप-केन्द्रों, प्राथमिक स्वास्थ्य केंन्द्रों को सूचित करती हैं ताकि उसका निवारण किया जा सके।

आबादी के वंचित वर्गों विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों, जिन्हें स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंचने में कठिनाई होती है, इनकी किसी भी स्वास्थ्य संबंधी मांगों के लिए आशा सबसे पहले उत्तरदाई होती हैं।

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

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