एनएचआरसी अध्यक्ष जस्टिस अरुण मिश्रा ने पीएम मोदी की तारीफ में फाड़ दिए शर्म के सारे पर्दे

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एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह कहते हुए विपक्ष पर निशाना साधा है कि कुछ चुनिंदा लोग अपने रवैये से मानवाधिकार के नाम पर देश की छवि को नुकसान पहुंचा रहे हैं। उनकी हाँ में हाँ मिलाते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के अध्यक्ष जस्टिस अरुण मिश्रा ने भी कहा कि भारत पर बाहरी ताकतों के इशारे पर मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाने का एक नया नियम बन गया है। वहीं दूसरी और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच की ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है की देश में बीजेपी राज में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, दलितों, मुसलमानों और सरकार की आलोचना करने वालों को तेज़ी से परेशान, उत्पीड़ित और गिरफ्तार किया जा रहा है।

ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट के अनुसार जम्मू और कश्मीर में सैकड़ों लोगों को बिना किसी दोष के लोक सुरक्षा कानून के तहत हिरासत में रखा गया, जो दो साल तक सुनवाई के बिना हिरासत में रखने की अनुमति देता है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार संगठन, अमेरिकी कांग्रेस, यूरोपियन यूनियन, आर्गेनाईजेशन ऑफ़ इस्लामिक कन्ट्रीज भारत में मानवाधिकार और बोलने की आज़ादी को लेकर चिंता व्यक्त कर चुके हैं। संयुक्त राष्ट्र ने जम्मू और कश्मीर में मानवाधिकारों के उल्लंघन पर चिंता व्यक्त की थी, वहीं नागरिकता कानून के विरोध में गिरफ्तार मानवाधिकार रक्षकों को तुरंत रिहा करने का आग्रह किया था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के 28वें स्थापना दिवस कार्यक्रम में कहा कि कुछ चुनिंदा लोग अपने रवैये से मानवाधिकार के नाम पर देश की छवि को नुकसान पहुंचा रहे हैं। पीएम मोदी ने कहा कि हाल ही में कुछ लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए मानवाधिकारों की व्याख्या अपने दृष्टिकोण से करना शुरू कर दिया है। उल्लंघन को एक स्थिति में देखने की प्रवृत्ति ने समान स्थिति में नहीं बल्कि मानवाधिकारों को काफी हद तक नुकसान पहुंचाया है। सबसे बड़ा मानवाधिकारों का उल्लंघन तब होता है जब उन्हें राजनीति और राजनीतिक लाभ और हानि के चश्मे से देखा जाता है। यह चयनात्मक व्यवहार हमारे लोकतंत्र के लिए हानिकारक है।

पीएम मोदी ने कहा कि अपने चयनात्मक दृष्टिकोण के साथ कुछ लोग हैं जो मानवाधिकार की रक्षा के नाम पर देश की छवि को नुकसान पहुंचाते हैं। हमें उनसे सावधान रहने की जरूरत है। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि यह समझना जरूरी है कि मानवाधिकार केवल अधिकारों से नहीं जुड़ा है, बल्कि यह हमारे कर्तव्यों का भी विषय है। यह रेखांकित करते हुए कि अधिकार और कर्तव्य दो रास्ते हैं जिन पर मानव विकास और मानव गरिमा की यात्रा होती है, उन्होंने जोर देकर कहा कि कर्तव्य भी अधिकारों के समान ही महत्वपूर्ण हैं और अलग-अलग करके नहीं देखा जाना चाहिए क्योंकि वे एक दूसरे के पूरक हैं।

एनएचआरसी के अध्यक्ष जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा कि बेहद लोकप्रिय और मेहनती पीएम मोदी का यहां स्वागत करते हुए उन्हें गर्व महसूस हो रहा है। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा ने कहा, “आज भारत एक विश्व शक्ति के रूप में सामने आया है और उसे अपनी नई पहचान मिली है। इसका श्रेय नागरिकों, देश के नेतृत्व और संवैधानिक तंत्र को जाता है”। गृह मंत्री अमित शाह का स्वागत करते हुए न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि आपके प्रयासों से जम्मू-कश्मीर और देश के उत्तर-पूर्वी हिस्से में अब ‘शांति और कानून व्यवस्था’ का एक नया युग शुरू हो गया है। उन्होंने कहा कि भारत मानवाधिकारों के संरक्षण के मामले में अग्रणी है क्योंकि इसने कई ऐसी योजनाएं लागू की हैं जो देश के नागरिकों के कल्याण के लिए हैं।

जस्टिस अरुण मिश्रा ने मानवाधिकार दिवस पर प्रधानमन्त्री और गृहमंत्री की प्रशस्ति का बखान करने के लिए सारी हदें पार कर दीं हैं। पूरे विश्व में और हमारे देश में भी मानवाधिकारों का सबसे बड़ा अपराधी ‘स्टेट’ यानि सरकार है। निवारक निरोध कानूनों का दुरुपयोग, राजद्रोह, राजनीतिक विरोधियों, छात्रों, महिलाओं और आदिवासियों के खिलाफ यूएपीए प्रावधान, आरोप पत्र या मुकदमा दायर किए बिना उन्हें एक साथ कैद में रखना, स्टेट द्वारा किए गए बुनियादी मानवाधिकार उल्लंघन हैं। मानवाधिकार दिवस को दंड कानूनों के खुलेआम उल्लंघन के लिए स्टेट के प्रमुखों को तैयार करने के अवसर के रूप में उपयोग करने के बजाय, जस्टिस अरुण मिश्रा ने स्तरहीनता की पराकाष्ठा कर दी ।

ह्यूमन राइट्स वॉच कि रिपोर्ट के मुताबिक साल 2020 में मोदी सरकार ने जम्मू और कश्मीर के मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों पर कठोर और भेदभावपूर्ण प्रतिबंध लगाना जारी रखा। केंद्र सरकार ने अगस्त 2019 में जम्मू कश्मीर की संवैधानिक स्थिति को रद्द करके इसे दो केंद्र शासित क्षेत्रों में बाँट दिया था। जम्मू और कश्मीर में सैकड़ों लोगों को बिना किसी दोष के लोक सुरक्षा कानून के तहत हिरासत में रखा गया, जो दो साल तक सुनवाई के बिना हिरासत में रखने की अनुमति देता है। इसी तरह सुरक्षा के नाम पर इंटरनेट पर पाबंदी अगस्त 2019 से ही जारी रही जिससे घाटी में लोगों को ख़ासा नुक्सान हुआ।

ह्यूमन राइट्स वॉच का कहना है कि मोदी राज में अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों के खिलाफ हमले जारी हैं जबकि उन भाजपा नेताओं और समर्थकों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई है जिन्होंने मुसलमानों की छवि ख़राब की या उनके खिलाफ हिंसा की। रिपोर्ट में दिल्ली दंगों का जिक्र करते हुए कहा गया है कि ज्यादातर पीड़ित मुस्लिम परिवार से थे जबकि कपिल मिश्रा जैसे भड़काऊ भाषण देने वाले बीजेपी नेता पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।

दलित उत्पीड़न के मामलों का हवाला देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि बीजेपी राज में दलितों के खिलाफ अत्याचार 7 फीसदी तक बढ़ गया है। लॉकडाउन में भी हाशिये पर रहने वाले समुदायों को ही सबसे ज्यादा नुक्सान हुआ जिन्हें उस दौरान रोज़गार, खाना-रहना जैसे ज़रूरतों से वंचित होना पड़ा। कई पत्रकारों को कोविड -19 पर रिपोर्टिंग के लिए आपराधिक मामलों में गिरफ्तारी, धमकी या यहां तक कि बीजेपी समर्थकों और पुलिस द्वारा हमले का सामना करना पड़ा। कई मामलों में, वे ग्रामीण भारत में काम करने वाले स्वतंत्र पत्रकार थे, जो सरकार की महामारी से निपटने की आलोचना के लिए निशाने पर आये।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कैसे पुलिस हिरासत में अत्याचार और हत्याओं के मामले में बढ़ोत्तरी ने पुलिस के दुरुपयोग की जवाबदेही और पुलिस सुधार लागू करने में विफलता को उजागर किया। अक्तूबर, 2020 तक यानी पहले 10 महीनों में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने पुलिस हिरासत में 77 मौतें, न्यायिक हिरासत में 1,338 मौतें, और 62 कथित रूप से एक्स्ट्रा ज्यूडिशियल किलिंग्स दर्ज कीं।
(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

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