दुनिया भर के देशों में भूख और पोषण का आकलन करने वाली ‘वैश्विक भूख सूचकांक’(Global Hunger Index- GHI)- 2021 जारी कर दिया गया है। इस सूचकांक में भारत की स्थिति पिछले वर्ष के मुकाबले और अधिक बदतर हालात में पहुंच गई है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2021 में भारत की रैंकिंग 101 है।
‘वैश्विक भूख सूचकांक’, भुखमरी की समीक्षा करने वाली वार्षिक रिपोर्ट है, जो वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक रूप से भुखमरी की स्थिति का मापन करती है। वैश्विक भूख सूचकांक’को आयरलैंड स्थित एक एजेंसी ‘कंसर्न वर्ल्डवाइड’ (Concern Worldwide) और जर्मनी के एक संगठन ‘वेल्ट हंगर हिल्फे’(Welt Hunger Hilfe) द्वारा संयुक्त रूप से तैयार किया जाता है।
GHI का सृजन वर्ष 2006 में वाशिंगटन डी.सी. स्थित अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (International Food Policy Research Institute) के अनुसंधानकर्ताओं द्वारा किया गया था।
हालांकि वर्ष 2018 में IFPRI ने GHI के प्रकाशन से स्वयं को अलग कर लिया, अब यह सूचकांक वेल्ट हंगर हिल्फे एवं कंसर्न वर्ल्डवाइड की संयुक्त परियोजना के रूप में प्रकाशित किया जा रहा है।
GHI सूचकांक के रैंकिंग का निर्धारण चार संकेतकों के आधार पर किया जाता है।
(i)अल्पपोषण (Undernourishment)
(ii) बाल दुबलापन या चाइल्ड वेस्टिंग (Child Wasting)
(iii) बाल ठिगनापन चाइल्ड स्टंटिंग (Child Stunting)
(iv) बाल मृत्यु दर (Child Mortality)
इस सूचकांक में GHI स्कोर के पांच वर्ग बनाए गए हैं, जिनके आधार पर किसी देश में भुखमरी की तीव्रता (Severity)का आकलन किया जाता है-
(i) 9.9 या उससे कम स्कोर-‘अल्प’ (Low)
(ii) 10.0-19.9 स्कोर-‘मध्यम’ (Moderate)
(iii) 20.0-34.9 स्कोर-‘गंभीर’ (Serious)
(iv) 35.0-49.9 स्कोर ‘भयावह’ (Alarming)
(v) 50.0 या उससे अधिक स्कोर-भुखमरी की ‘चरम भयावह’ (Extremely Alarming) स्थिति को प्रदर्शित करता है।
वैश्विक भूख सूचकांक 100 आधार बिंदुओं के पैमाने पर तैयार किया जाता है, जिसमें शून्य (0) सबसे अच्छा स्कोर माना जाता है, जबकि 100 सबसे खराब स्कोर होता है। स्पष्ट है कि किसी देश का GHIस्कोर जितना कम है, उस देश मे भुखमरी की स्थिति उतनी अच्छी है और जिस देश का GHIस्कोर जितना अधिक है उस देश मे भुखमरी की स्थिति उतनी ही खराब और चिंताजनक है।
विश्वगुरु का दम्भ भरने वाले और ‘सबका साथ, सबका विकास’ की डुगडुगी पीटने वाले मोदी जी के तमाम दावों के बीच जारी इस ग्लोबल इंडेक्स ने देश के अंदर भुखमरी की भयावह चिंताजनक स्थिति को एक बार फिर से सामने ला दिया है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट 2021 में भारत की स्थिति और चिंताजनक हो गई है। भारत इस सूची में पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल से भी पीछे है।
भारत वैश्विक भूख सूचकांक-2021 की 116 देशों की सूची में पिछड़कर 101वें स्थान पर आ गया है।
‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स’ 2021 के इस रिपोर्ट में कहा गया कि चीन, ब्राजील और कुवैत समेत 18 देश शीर्ष स्थान पर हैं, जिनका GHIस्कोर पांच से कम है। इस रिपोर्ट में भारत का GHIस्कोर 28.8 से 27.5 के बीच रहा है। इस प्रकार भुखमरी वाले देशों की सूची में भारत में भूख की स्थिति को ‘चिंताजनक’ बताया गया हैं।
इससे पहले साल 2020 में जारी वैश्विक भुखमरी सूचकांक में भारत 107 देशों में 94वें, वर्ष 2019 में भारत 117 देशों में से 102 वें,जबकि वर्ष 2018 में 103वें स्थान पर था।
GHIसूचकांक 2021 में भारत की स्थिति इतनी बदतर हालत में है कि केवल 15 देश का प्रदर्शन ही भारत से अधिक ख़राब दर्ज की गई है। इन देशों में पापुआ न्यू गिनी (102), अफगानिस्तान (103), नाइजीरिया (103), कांगो (105), मोजाम्बिक (106), सिएरा लियोन (106), तिमोर-लेस्ते (108), हैती (109) ), लाइबेरिया (110), मेडागास्कर (111), कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (112), चाड (113), मध्य अफ्रीकी गणराज्य (114), यमन (115) और सोमालिया (116) शामिल है।
भारत में पोषण की स्थिति को देखकर यही कहा जा सकता है कि भले ही हम विकास की जितनी बड़ी-बड़ी बातें करते रहें, पर सच यही है कि आज भी भारत में लाखों लोगों को पर्याप्त भोजन नहीं मिल पा रहा है, वो आज भी दाने-दाने के लिए मोहताज हैं।
हाल ही में छपी यूनिसेफ रिपोर्ट के अनुसार भारत में 50 फीसदी बच्चे कुपोषित हैं।
पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया, आईसीएमआर और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रेशन की ओर से 18 सितंबर, 2019 को कुपोषण पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2017 में देश में कम वजन वाले बच्चों के जन्म की दर 21.4 फीसदी थी। जबकि जिन बच्चों का विकास नहीं हो रहा है, उनकी संख्या 39.3 फीसदी, जल्दी थक जाने वाले बच्चों की संख्या 15.7 फीसदी, कम वजनी बच्चों की संख्या 32.7 फीसदी, अनीमिया पीड़ित बच्चों की संख्या 59.7 फीसदी, 15 से 49 साल की अनीमिया पीड़ित महिलाओं की संख्या 59.7 फीसदी और अधिक वजनी बच्चों की संख्या 11.5 फीसदी पाई गई थी। पांच साल की उम्र से छोटे हर तीन में दो बच्चों की मौत का कारण कुपोषण है।
भारत सरकार द्वारा किये गए राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण (2016-18) में जो आंकड़ें प्रस्तुत किए गए हैं वो भी गंभीर स्थिति की ओर इशारा करते हैं। इसके अनुसार देश में 58 फीसदी नौनिहालों (6 से 23 माह के बच्चों) को भरपेट भोजन नहीं मिलता है। वहीं 93.6 फीसदी नौनिहालों के भोजन में पोषक तत्वों की कमी है। भारत में बच्चों की एक बड़ी आबादी कुपोषण का शिकार है, जिसके पीछे की बड़ी वजह बच्चों के आहार में विविधता की कमी है। आंकड़ें दर्शाते हैं कि भारत में 79 फीसदी नौनिहालों के भोजन में विविधता की कमी है। जबकि 91.4 फीसदी के भोजन में आयरन की गंभीर कमी है।
इसी को देखते हुए मार्च 2018 में नेशनल न्यूट्रिशन मिशन की स्थापना की गई थी। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS)भी ऐसी ही एक पहल थी, जिसका लक्ष्य देश के गरीब तबके को सस्ते दर पर भोजन मुहैया कराना था।
हाल ही में सितम्बर 2020 को राष्ट्रीय पोषण माह के रूप में मनाया गया था। जबकि सरकार द्वारा खाद्य सुरक्षा की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए कृषि में सुधार लाने की बात कही जा रही है, लेकिन इन सबके बावजूद आंकड़े दिखाते हैं कि अभी भी हम 2030 तक जीरो हंगर के लक्ष्य को हासिल करने के काफी पीछे हैं।
कुल मिलाकर देश एक भयावह और गम्भीर पोषण संकट से घिर चुका है जो 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था का ख्वाब संजोने वाले देश के लिए बेहद शर्मनाक और दुखद है।
(दया नन्द स्वतंत्र लेखक हैं और बिहार में रहते हैं।)